बिहार में राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गई हैं। एनडीए के अंदर भी सीट बंटवारे को लेकर खींचतान है पर वहां खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बैठे हैं मसला सुलझाने के लिए और ज्यादा पेंच होने पर रामविलास पासवान, सुशील कुमार मोदी और भूपेंद्र यादव भी मसला सुलझा सकते हैं। जरूरत होने पर अमित शाह और जेपी नड्डा भी दखल दे सकते हैं। पर महागठबंधन के पास ऐसा कोई नेता नहीं है, जो उसके घटक दलों के बीच मसला सुलझाए। लालू प्रसाद जेल में हैं और रिमोट के जरिए वे जितना कर सकते हैं, उतना कर रहे हैं। पर महागठबंधन को बचाने के लिए आमने सामने बैठ कर दो टूक बात करने वाले नेता की जरूरत है। अगर कायदे से यह काम नहीं हुआ तो महागठबंधन बिखरेगा और एनडीए को इसका बड़ा फायदा होगा।
मौजूदा समय में भी एडवांटेज एनडीए को है। उसे स्पष्ट बढ़त है पर अगर महागठबंधन बिखरा, जैसे कांग्रेस और राजद अलग हुए या उपेंद्र कुशवाहा को साथ लेने के लिए गंभीरता से बात नहीं हुई तो विपक्ष की लड़ाई अपने आप कमजोर हो जाएगी। वैसे ही बिहार के मतदाताओं के सामने महागठबंधन के नेता कोई विकल्प नहीं पेश कर पा रहे हैं। ऊपर से कांग्रेस और रालोसपा दोनों पार्टियों के नेता इस बात का विरोध कर रहे हैं कि राजद से मुख्यमंत्री पद के लिए तेजस्वी यादव का चेहरा पेश करना ठीक नहीं है। पर उनके पास इस बात का जवाब नहीं है कि फिर किसके चेहरे पर लड़ें।
उपेंद्र कुशवाहा का चेहरा अच्छा है पर तमाम सद्भाव के बावजूद यादव उनको वोट नहीं देंगे। वे पाला बदल कर भाजपा के साथ जा सकते हैं क्योंकि भाजपा ने छद्म रूप से यह मैसेज दिया हुआ है कि उसको अपना मुख्यमंत्री बनाना हुआ तो वह यादव नेता नित्यानंद राय को बना सकती है। उन्हें पहले ही केंद्र सरकार में गृह राज्य मंत्री बनाया गया है। बहरहाल, महागठबंधन के सामने फिलहाल तेजस्वी के अलावा कोई चेहरा नहीं है। जितनी जल्दी उन्हें प्रोजेक्ट करके महागठबंधन मैदान में उतरे, उसका नुकसान उतना ही कम होगा।

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