शनिवार, 20 अक्टूबर 2018

नाटक 'रक्त पुष्प' का प्रभावपूर्ण मंचन


 जयपुर । सम्पादक—कला समीक्षक राजेन्द्र सिंह गहलोत द्वारा नाटक 'रक्त पुष्प'की संक्षिप्त समीक्षा प्रस्तुत।  गंधर्व थियेटर और वी के पोद्दार फाउण्डेशन की ओर से नाटक 'रक्त पुष्प' का मंचन जवाहर कला केन्द्र के रंगायन सभागार में गत दिनों किया गया।

महेश एलकुंचवार के मराठी में लिखे नाटक का रूपान्तरण इस नाटक के निर्देशक सौरभ श्रीवास्तव ने किया है और साथ ही इसमें पिता की भूमिका भी प्रभावपूर्ण ढ़ंग से निभाई है।

राजेन्द्र सिंह गहलोत
कथानक में नारी जीवन के दो महत्वपूर्ण पड़ावों पर होने वाले परिवर्तनों का मनोवैज्ञानिक चित्रण है, पहला पड़ाव जब किशोरी का युवती बनने की प्रक्रिया में नवीन शारीरिक परिवर्तनों और नवीन मनोभावों से परिचय होता है,जब उसके मासिक धर्म की शुरूआत होती है, और दूसरा पड़ाव, जब किशोरी से युवती बनी उस नारी का मासिक धर्म समाप्ति की ओर होता है, तब फिर वह दुबारा नवीन शारीरिक व मानसिक परिवर्तनों से रूबरू होती है।



सौरभ श्रीवास्तव ने बेहद संवेदनशील विषय का चुनाव कर उसे बेहद संवेदनशीलता के साथ नाटक के माध्यम से प्रस्तुत किया है, और इसमें उनका साथ दिया है सुस्मिता श्रीवास्तव ने, जिन्होंने अधेड़ नारी की भूमिका में अपने अभिनय से जान डाल दी, और अपने आपको इस नाटक का केन्द्र बिन्दु बना दिया, जबकि किशोरी की भूमिका अभिनीत करने वाली कलाकार ने भी पूर्ण तन्मयता के साथ बेहद सुन्दर अभिनय किया, लेकिन संवेदनशीलता के साथ जीवन जीने और उसे मार्मिक अभिनय से साकार करने में बहुत फर्क होता है, और इसी बारीक फर्क में सुस्मिता श्रीवास्तव बाजी मार ले जाती है, किशोर वय के पेइंग गेस्ट का किरदार नाटक के कथानक के अनुरूप रहा। नाटक का रूपान्तरण, कथानक, निर्देशन और कलाकारों का अभिनय ही इतना सशक्त रहा कि नाटक के प्रकाश, रूपसज्जा, ध्वनि संचालन आदि पर ध्यान नहीं जाता है।
कुल मिलाकार गंधर्व थियेटर और वी के पोद्दार फाउण्डेशन की ओर से मं​चित नाटक 'रक्त पुष्प' दर्शकों द्वारा लंबे समय तक याद किया जायेगा।

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