रविवार, 7 अक्टूबर 2018

भाजपा मुक्त राजस्थान की शपथ लेकर मंत्रालयिक कर्मचारियों ने खत्म किया महापड़ाव

जब जब कर्मचारियों ने चाहा, तब-तब सिंहासन बदला है
मंत्रालयिक कर्मचारियों ने संयुक्त रूप से राज्य सरकार पर वादाखिलाफी के आरोप लगाते हुए शपथ ली कि आगामी चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को किसी भी प्रकार से वोट और समर्थन नहीं दिया जाएगा
जयपुर। राजस्थान में आदर्श आचार संहिता लागू होने के साथ ही मंत्रालयिक कर्मचारियों का 20 सितंबर से चल रहा महापड़ाव 18 दिन बाद भाजपा मुक्त राजस्थान की शपथ के साथ समाप्त हुआ। इससे पूर्व राज्य सरकार के निर्देशों पर पुलिस प्रशासन ने लोकतंत्र की हत्या करते हुए मंत्रालयिक कर्मचारियों को अपने संवैधानिक अधिकारों का प्रयोग करने से रोका गया। गौरतलब है कि मंत्रालयिक कर्मचारी अपनी व्यथा सुनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सभा में अजमेर जाने वाले थे। 

राजस्थान राज्य मंत्रालयिक कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष मनोज सक्सैना ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार द्वारा मंत्रालयिक कर्मचारियों के साथ एक बार फिर छल किया गया है। 5 सितंबर की रात्रि राजस्थान सरकार के मंत्री यूनुस खान ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए जिला कलेक्टर जयपुर को दबाव में लाकर मंत्रालयिक कर्मचारियों को झूठे समझौते का आश्वासन दिया और सुबह होते ही समझौते से मना कर दिया। राजस्थान का प्रत्येक कर्मचारी राज्य सरकार के झूठे समझौतों और आश्वासनों से आहत हो गया है और बार-बार मिले धोखे का परिणाम राज्य सरकार को आगामी चुनाव में भुगतना होगा।
प्रदेश महामंत्री रमेश चंद शर्मा, प्रदेश वरिष्ठ उपाध्यक्ष राज सिंह चौधरी, विजय सिंह राजावत, कमलेश शर्मा और जितेंद्र सिंह राठौड़ ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अजमेर दौरे पर शांतिपूर्वक ढंग से अपनी मांग रखने के लिए जा रहे मंत्रालयिक कर्मचारियों के प्रतिनिधिमंडल को राज्य सरकार के दमनात्मक रवैये के कारण पुलिस प्रशासन ने रोका दिया। कर्मचारियों के साथ पुलिस प्रशासन ने बदसलूकी भी की।

उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में अपनी बात रखने का अधिकार सभी को समान रूप से प्राप्त होने के बाद भी राज्य सरकार ने मंत्रालयिक कर्मचारियों को प्रधानमंत्री के समक्ष अपनी पीड़ा रखने का अवसर नहीं दिया। साथ ही मंत्रालयिक कर्मचारियों के साथ बदसलूकी की गई। लोकतांत्रिक व्यवस्था से चुनी सरकार भी यदि लोकतंत्र का मजाक बनाएगी तो जनता और कर्मचारी इसका परिणाम मतदान के दिन राज्य सरकार के विरुद्ध मतदान करके देंगे।

वर्ष 1972-73 में कोंग्रेस 145 से फिसल कर 41 पर सिमटी 
- रोडवेज अन्य सरकारी कर्मचारियों और शिक्षक हड़ताल पर रहे रोडवेज कर्मचारी 1972 में फरवरी से मार्च तक 30 दिन के के हड़ताल पर रहे,  शिक्षक और कर्मचारी 1973 में से 30 दिन तक हड़ताल पर  इस दौरान कांग्रेस की सरकार थी  , कर्मचारियों के विरोध का नतीजा यह रहा कि  1977 में हुए आम चुनाव में 151 सीटों के साथ जनता पार्टी को बहुमत मिला , कोंग्रेस 145 में से महज 41 पर सिमट कर रह गई. वहीं इस चुनाव में कांग्रेस को सीधे तौर पर 104 सीटों का भारी नुकसान हुआ.

   वर्ष 1989-90 में फिर बदली कोंग्रेस
- 1989 में अक्टूबर-नवंबर में मंत्रालय कर्मचारियों की 19 दिन और शिक्षक 46 दिन की हड़ताल पर रहे तो रोडवेज कर्मचारियों ने 1990 में 19 सितंबर से 28 नवंबर तक 71 गति दिन तक बसें नहीं चला कब कक्का जाम रखा , इस दौरान कांग्रेस के हरलाल देवपुरा, हरिदेव जोशी ओर शिवचरण माथुर मुख्यमंत्री रहे। परिणाम ये रहा कि 91 दिनों की हरिदेव जोशी सरकार को 46 दिन मंत्रालयिक कर्मचारियों के आंदोलन का सामना करना पड़ा। चुनाव हुए और सरकार बदल गई। कांग्रेस 113 सीटों से सिमटकर 50 सीटों पर पहुंच गई। जबकि 1985 में 39 विधायकों वाली भाजपा को जनता और कर्मचारियों ने 1990 के चुनाव में 85 सीटों तक पहुंचा दिया। भाजपा से भैरोंसिंह शेखावत मुख्यमंत्री बने। कुछ समय बाद ही कर्मचारी आंदोलन फिर शुरू हो गया। इसी दौरान रोडवेज के इतिहास की सबसे बड़ी 71 दिनों की हड़ताल रही।

 वर्ष 1999-99 गहलोत सरकार 153 से 56 पर सिमटी
-शुरुआत मंत्रालयिक कर्मचारियों, पटवारियों से हुई। सबसे ज्यादा 88 दिनों तक पटवारी हड़ताल पर रहे। क्योंकि समझौते के बाद भी पटवारी इसे लागू करने पर अड़े रहे। मंत्रालयिक कर्मचारी 15 दिसंबर 1999 से 17 फरवरी 2000 के बीच 64 दिनों तक हड़ताल पर रहे, लेकिन सबसे बाद में हड़ताल में शामिल हुए शिक्षक 38 दिन बाद ही काम पर लौट आए। तब कांग्रेस की गहलोत सरकार थी , नतीजा कर्मचारियों के चौतरफा विरोध का असर 2003 के चुनावों पर साफ दिखा। हड़ताल और प्रदर्शन के दो साल बाद हुए चुनाव में कांग्रेस वापस सरकार नहीं बना पाई। 1998 के चुनाव में 153 विधायकों के पूर्ण बहुमत के साथ कांग्रेस के अशोक गहलोत ने सरकार बनाई, लेकिन कांग्रेस का सफर 2003 के चुनाव में महज 56 सीटों पर थम गया। 1998 की तुलना 2003 के चुनाव में भाजपा को 87 सीटों की बढ़त मिली। भाजपा सरकार बनाने में सफल रही। वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री बनीं।

2008-09 में फिर गहलोत सरकार से कर्मचारी रहे नाराज
- अपने पहले कार्यकाल में कर्मचारियों की नाराजगी झेल चुके अशोक गहलोत ने सरकार बनने के साथ की कर्मचारियों के हितों का ध्यान तो रखा , लेकिन इस दौरान भी विद्यार्थी मित्रों को विधानसभा के बाहर कई दिनों तक माहापडाव डाले बैठा रहना पड़ा , विद्यार्थी मित्रों के अलावा मंत्रालय कर्मचारियों ने सरकार के खिलाफ उद्योग मैदान में 36 दिन तक माहापडाव डाला , उस वक्त  महापड़ाव को खत्म कराने के लिए खुद ततकालिक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को धरना स्थल पर जाकर , कर्मचारियों के महापड़ाव को खत्म करना पड़ा , सम्भातः ये पहला मामला था जब किसी मुख्यमंत्री को ही आंदोलनकारियों के बीच जाना पड़ा हो ,  उनके साथ तात्कालिक पीसीसी चीफ डॉक्टर चंद्रभान भी मौजूद रहे , लेकिन बावजूद इसके 2 साल बाद भी कर्मचारियों की नाराजगी खत्म नहीं हुई थी और नतीजा यह रहा कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा कांग्रेस महज 21 सीटों पर सिमट कर रह गई थी


प्रदेश प्रतिनिधियों और जिला प्रतिनिधियों ने संयुक्त रूप से राज्य सरकार पर वादाखिलाफी के आरोप लगाते हुए शपथ ली कि आगामी चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को किसी भी प्रकार से वोट और समर्थन नहीं दिया जाएगा, क्योंकि राज्य सरकार ने गत 5 वर्ष में अपने ही चुनाव घोषणा पत्र में किए वादे पूरे नहीं किए। राजस्थान से भाजपा की विदाई आगामी चुनाव के बाद निर्धारित हो जाएगी।

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