शनिवार, 27 अक्टूबर 2018

राजस्थान में भी तीसरे मोर्चे के लिए जरूरी है सोशल इंजीनियरिंग


जयपुर । राजस्थान में तीसरा मोर्चा को लेकर विशेष रिपोट वरिष्ट पत्रकार दुर्गेश एन. भटनागर द्धौरा प्रस्तुत । चुनाव आयोग के पांच राज्यों में चुनाव की तारीखों का ऐलान के साथ ही आचार संहिता लग चुकी है राजनीतिक दल प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया में जुट चुके है। राजस्थान में पिछले कई चुनाव के अंतर्गत एक बार बीजेपी तो एक बार कांग्रेस वाली परिपाटी चली आ रही है। इस बार के चुनाव में बीजेपी इस परिपाटी को तोड़ने का दावा कर रही है तो कांग्रेस एंटी इनकंबेंसी को लेकर परिपाटी की दुहाई देते हुए सत्ता में आने के ख्वाब संजोए हुए है।
दुर्गेश एन. भटनागर 
 आमतौर पर राजस्थान की चुनावी गणित की बात की जाए तो जब-जब तीसरे मोर्चे का गठन हुआ है, वह बागियों के दम पर ही हुआ है और यही कारण रहा है की तीसरा मोर्चा हमेशा से ही असफल रहा है। शायद यही कारण रहा कि बागियों के भरोसे बनने वाला तीसरा मोर्चा सफल नहीं हो पाया तो क्या आगे भी राजस्थान में दो पार्टियों की ही परिपाटी देखने को मिलेगी। बीजेपी और कांग्रेस के बाद इस बार सबसे ज्यादा मत प्रतिशत किरोड़ीलाल मीणा की एनपीपी का रहा था, अब किरोड़ीलाल मीणा बीजेपी में चले गए हैं।  2013 में बसपा पार्टी का मत प्रतिशत सबसे ज्यादा था।

अब सवाल ये क्या इस बार भी हर बार की तरह तीसरा मोर्चा बनेगा और वो फिर बागियों के दम पर ही होगा ?तीसरे मोर्चे की सफलता के पीछे जरूरी है सोशल इंजीनियरिंग, यदि पिछले चुनाव के परिणामों को देखें और इन चुनाव में आए मत प्रतिशत का विश्लेषण किया जाए तो साफ है किस सामाजिक तौर पर सोशल इंजीनियरिंग करके बीजेपी और कांग्रेस को राजस्थान में भी पटखनी की जा सकती है। अब सवाल ये किस फार्मूले पर तीसरे मोर्चे का गठन किया जाए तो साफ है जातिगत समीकरणों को दिखा जाए तो जाट, राजपूत, ब्राह्मण, गुर्जर और दलितों को साथ में ले कर सोशल इंजीनियरिंग की जा सकती हैं। "जिस क्षेत्र में जिस भी जाति का बाहुल्य है उसका उम्मीदवार मैदान में उतारा जाए और बाकी सभी जातियां उसको सपोर्ट करें" इस फार्मूले पर काम किया जाए तो परिणामों के बाद तीसरा मोर्चा किंग मेकर की भूमिका में सामने आ सकता है। अब सवाल यह कि इस फार्मूले को लेकर कदम कौन बढ़ाए। जाट नेता हनुमान बेनीवाल, राजपूत नेता सुखदेव सिंह गोगामेड़ी, अजीत सिंह मामडोली, ब्राह्मणों के नेता घनश्याम तिवारी और गुर्जरों के नेता कर्नल किरोड़ी सिंह बैसला और हिम्मत सिंह को एक जाजम पर लाकर यह प्रयोग किया जा सकता है।

देश के बिहार और उत्तर प्रदेश राज्य में तीसरे मोर्चे को लेकर सफल प्रयोग हो चुके हैं। बिहार में लालू प्रसाद यादव ने एक समीकरण इजाद किया था जिसे "भूरा बाल साफ करो" कहा गया था। भूरा बाल में जातिगत समीकरण देखा जाए भू से भूमिहार, रा से राजपूत, बा से ब्राह्मण और ल से लाला यानी कायस्थ को हटाकर सत्ता प्राप्ति की नीव रखी थी। वही बात बिहार के साथ उत्तर प्रदेश की कि जाए तो वहां पर भी "एमवाई समीकरण" या "माई समीकरण" नाम दिया गया था। इस समीकरण में मुस्लिम और यादव को एक साथ लाकर मुलायम सिंह यादव ने सत्ता की सीढ़ी चढ़ी थी। मायावती ने भी सत्ता प्राप्ति के लिए सोशल इंजीनियरिंग की और दलितों के साथ ब्राह्मणों का समीकरण बिठाया जो उन्हें सत्ता तक ले पहुंचा। अब ऐसे ही समीकरण की जरूरत राजस्थान की राजनीति में भी संभावित है।

राजस्थान में तीसरे मोर्चे का इतिहास

भारत की आजादी के बाद से ही राजस्थान में बहुकोणीय मुकाबला होता आया। कांग्रेस के सामने उस समय राम राज्य पार्टी, जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी, समाजवादी, भारतीय क्रांति दल, लोकदल और जनता दल अलग अलग चुनाव लड़ते थे। किसान नेता कुम्भा राम आर्य, दौलत राम सारण और नाथूराम मिर्धा ने प्रदेश में किसान मुख्यमंत्री बनाने को लेकर तीसरा मोर्चा बनाया, मगर सफल नहीं हो पाया। 2003 में कद्दावर राजपूत नेता देवी सिंह भाटी ने सामाजिक न्याय मंच के नाम से तीसरे मोर्चे का गठन किया , परन्तु भाटी के अलावा उनका कोई उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत सका और यह मोर्चा भी चुनाव के साथ ही खत्म हो गया। पिछले चुनाव में डॉ किरोड़ी मीणा ने एनपीपी के बैनर तले तीसरे मोर्चे का गठन किया था मगर ये मोर्चा भी 5 सीटों पर सिमट कर राह गया था।

7 दिसम्बर 2018 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले किरोड़ी मीणा तीसरे मोर्चे को त्याग कर भाजपा में शामिल हो गए है और पिछले विधानसभा चुनाव में सर्वाधिक वोटों से जीतने वाले विधायक घनश्याम तिवाड़ी ने भाजपा से निकलकर मीणा की जगह ले ली है। तिवाड़ी ने भाजपा से बाहर आकर भारत वाहिनी पार्टी बनाली है। दूसरी तरफ विधायक हनुमान बेनीवाल प्रदेश में जगह जगह किसान रैली का आयोजन कर अपनी अलग दुंदुभी बजा रहे है।और 29 अक्टूबर को राजधानी जयपुर में फिर किसान हुँकार रैली करने जा रहे हैं। करणी सेना भी तीन चार वर्षों से अपनी सियासी ताकत बढ़ाने में लगी है हालाँकि करणी सेना भी दो टुकड़ों में विभाजित है।


चुनावी साल में राजस्थान में भाजपा से नाराज नेताओं ने तीसरा मोर्चा गठित करने की कवायद शुरू कर दी है। तीसरा मोर्चा बनाकर चुनाव में भाजपा और कांग्रेस को टक्कर देने का चक्रव्यूह रचा जा रहा है और इसके रचयिता इस बार भाजपा छोड़कर आने वाले वरिष्ठ नेता घनश्याम तिवारी है। तिवारी चाहते है कि बेनीवाल के रूप में उन्हें हनुमान मिल जाये। साथ ही करणी सेना के नाम से वसुंधरा से नाराज राजपूतों का समर्थन हासिल हो। दलितों के नाम पर भी किसी नेता को उभारने के प्रयास किये जा रहे है ताकि दलितों की नाराजगी को भुनाया जा सके। यदि इनके साथ वसुंधरा राजे से नाराज गुर्जर नेता किरोड़ी सिंह बैंसला, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सुमित्रा सिंह राजपूत नेता मानवेन्द्र सिंह, सुखदेव सिंह गोगामेडी और लोकेन्द्र कालवी भी आ जाते है तो प्रदेश में वसुंधरा के नेतृत्व को चुनौती देने और तीसरे मोर्चे के बनने में देर नहीं लगेगी।

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