बुधवार, 31 अक्टूबर 2018

राजनीतिक इतिहास का दोहराव !

सामान्य चुनावी रणनीति यह कहती है कि यदि प्रतिद्वंद्वी लोकप्रिय है, तो सीधा हमला करने की बजाय उसे इधर-उधर से घेरा जाये, ताकि आपके तीर उसकी लोकप्रियता के कवच से टकराकर आपकी ओर न मुड़ आयें. सत्ता-विरोधी रुझानों के बावजूद लोकप्रियता के पैमाने पर प्रधानमंत्री आज भी आगे हैं. जनता के बड़े वर्ग में मोदी से अब भी काफी उम्मीदें हैं. कम-से-कम उन्हें भ्रष्ट मानने को कोई तैयार नहीं है. तब क्या कारण है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी सीधे नरेंद्र मोदी पर लगातार भ्रष्टाचार और पक्षपात के आरोप लगा रहे हैं?


हाल के दिनों में उनके आरोप बहुत तीखे, अशालीन और अवमानना की सीमा तक पहुंच रहे हैं. फ्रांस के साथ राफेल विमान सौदे के बारे में वे ‘चौकीदार चोर है’ चीख रहे हैं. यह ठीक नहीं है. ऐसा दिख रहा है कि राहुल ने 2019 के मुकाबले में मोदी के विरुद्ध इसे ही अपना बड़ा हथियार बना लिया है. राहुल को कोई चिंता नहीं दिखती कि साफ छवि वाले नरेंद्र मोदी पर उनके आरोप उनको ही भारी न पड़ जायें.

इस प्रसंग में साल 1989 की याद आना स्वाभाविक है, जब विश्वनाथ प्रताप सिंह बोफोर्स-दलाली के संगीन आरोप लगाकर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर लगातार हमले कर रहे थे. यह उनकी आक्रामक रणनीति ही थी कि ‘मिस्टर क्लीन’ राजीव गांधी के दामन पर धब्बे लगे और वे लोकप्रियता के शिखर से लुढ़क गये थे. प्रश्न है कि क्या राहुल गांधी कभी अपने पिता के विश्वस्त सहयोगी रहे और बाद में कट्टर शत्रु बन गये वीपी सिंह की उसी रणनीति पर चल रहे हैं?

राजीव गांधी और नरेंद्र मोदी के हालात में कई साम्य हैं. सरकारी तंत्र और राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार से मुक्ति, पारदर्शिता, परिवर्तन और आशा की नयी किरण दिखाने के लिए राजीव गांधी जाने गये, तो नरेंद्र मोदी ने भी जनता में ऐसी ही उम्मीदें जगायीं. दोनों को ही जनता ने अपार बहुमत के साथ सत्ता में बिठाया. हालांकि, बड़ी उम्मीदों के कारण दोनों से कुछ निराशाएं भी घिरने लगीं. दोनों में कुछ असमानताएं भी हैं.

राजीव सलाहकारों और दोस्तों पर पूरी तरह निर्भर थे, तो नरेंद्र मोदी सलाहकारों से ज्यादा अपनी राह चलते हैं. राजीव को बरगलाना आसान था, लेकिन मोदी के बारे में ऐसी कल्पना भी नहीं की जा सकती.

बोफोर्स में दलाली की सच्ची-झूठी कहानियों से राजीव आसानी से घिर गये थे, क्योंकि उन्हें चुनौती देनेवाला पहले उनका विश्वस्त सहयोगी हुआ करता था. राजीव गांधी की सरकार से बगावत करके वीपी सिंह ने जब बोफोर्स सौदे में दलाली के आरोप लगाये, तो जनता ने आसानी से उन पर विश्वास कर लिया था.

वीपी सिंह राजनीति के चतुर खिलाड़ी भी थे. वे जनसभाओं में अपनी जेब से एक पर्ची निकालकर लहराया करते थे कि इसमें दलाली खानेवालों के नाम हैं और जैसे ही हमारी सरकार बनेगी, वे सभी जेल के भीतर होंगे. विपक्ष के लिए वीपी सिंह शानदार अवसर बनकर आये थे. इसलिए वे उनके समर्थन में खड़े हो गये थे. इस तरह साल 1984 में चार सौ से ज्यादा लोकसभा सीटें जीतनेवाले राजीव गांधी साल 1989 में 200 के आंकड़े से नीचे रह गये और फिर कई दलों के समर्थन से वीपी सिंह की सरकार बन गयी थी.

राफेल सौदे में भ्रष्टाचार और पक्षपात का आरोप लगाकर 2019 में नरेंद्र मोदी को परास्त करने की रणनीति पर चल रहे राहुल गांधी क्या वीपी सिंह की स्थिति में हैं? शायद नहीं. वीपी सिंह चूंकि सरकार से बगावत करके आये थे, इसलिए उन पर ईमानदारी का ठप्पा लग गया था.

इसके ठीक उलट राहुल जिस कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष हैं, उसकी पूर्व सरकारों पर भ्रष्टाचार के बहुत सारे आरोप हैं. वीपी सिंह को झूठा साबित करने के लिए राजीव गांधी के पास कुछ नहीं था. राहुल पर जवाबी हमला करने के लिए मोदी की टीम के पास ढेरों मुद्दे हैं. उनके पिता पर लगे बोफोर्स दलाली के आरोप भले साबित न हुए हों, लेकिन भाजपा ने गांधी परिवार के खिलाफ बोफोर्स-दलाली को आज तक अपना बड़ा हथियार बनाये हुए है.

साल 1989 में विरोधी दलों का साथ आना वीपी सिंह की बड़ी ताकत बना था. देवीलाल, चंद्रशेखर, मुलायम सिंह जैसे कई धुरंधर तब वीपी सिंह को अपना नेता मानने को मजबूर हो गये थे. लेकिन, साल 2019 की लड़ाई के लिए विरोधी दल राहुल की कांग्रेस का साथ देने में कई शंकाओं से घिरे हुए हैं. स्वयं राहुल की छवि भी अब तक ऐसी नहीं बन पायी है कि अन्य दल उन्हें गठबंधन का नेता मानने के लिए आसानी से तैयार हो जाएं.

आज की भाजपा बहुत ताकतवर है और राहुल की कांग्रेस प्रचार के मोर्चे पर कमजोर है. तब भी राहुल राफेल सौदे को प्रमुख मुद्दा बनाने के लिए पूरी क्षमता से जूझ रहे हैं. महंगाई, बेरोजगारी, खेती एवं अर्थव्यवस्था जैसे मुद्दे भी उन्होंने पीछे छोड़ दिये हैं.

दरअसल, राहुल की रणनीति है कि यदि मोदी के साफ दामन पर वे राफेल के दाग दिखा सकें, तो बाजी पलट जायेगी. लेकिन, मोदी के खिलाफ राहुल की कोशिश जनता में असर डालती नहीं दिख रही है. मगर राहुल ने मुद्दा जोरों से पकड़ रखा है. राफेल सौदे में बरती जा रही कतिपय गोपनीयता उनका तरकश है. वैसे भी राजनीति में सबूतों से ज्यादा आरोपों की बारंबारता काम करती है. राहुल इसी भरोसे तीर छोड़े जा रहे हैं.

अब यह तो वक्त ही बतायेगा कि इतिहास अपने को दोहराता है या नया प्रहसन रचता है. फिलहाल नरेंद्र मोदी कोई राजीव गांधी नहीं हैं. और न ही राहुल का नाम भी कोई वीपी सिंह है.

पटेल ने देश में एकता का भूगोल रचा - नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री

वर्ष 1947 के पहले छह महीने भारत के इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण थे. साम्राज्यवादी शासन के साथ-साथ भारत का विभाजन भी अपने अंतिम चरण में पहुंच गया था. हालांकि, उस समय यह तस्वीर पूरी तरह से साफ नहीं थी कि क्या देश का एक से अधिक बार विभाजन होगा. कीमतें आसमान पर पहुंच गयी थीं, खाद्य पदार्थों की कमी आम बात हो गयी थी, लेकिन इन बातों से परे सबसे बड़ी चिंता भारत की एकता को लेकर नजर आ रही थी, जो खतरे में थी.

इस पृष्ठभूमि में ‘गृह विभाग’ का गठन 1947 के जून में हुआ. इसका एक प्रमुख लक्ष्य उन 550 से भी अधिक रियासतों से भारत के साथ उनके रिश्तों के बारे में बात करना था, जिनके आकार, आबादी, भू-भाग या आर्थिक स्थितियों में भिन्नताएं थीं. तब महात्मा गांधी ने कहा था, ‘राज्यों की समस्या इतनी ज्यादा विकट है कि सिर्फ ‘आप’ ही सुलझा सकते हैं.’ यहां पर ‘आप’ से आशय सरदार वल्लभ भाई पटेल से है, जिनकी जयंती आज हम मना रहे हैं.

अपनी विशिष्ट शैली में सरदार पटेल ने सटीक तौर पर सुदृढ़ता और प्रशासनिक दक्षता के साथ इस चुनौती को पूरा किया. समय कम था और जवाबदेही बहुत बड़ी थी. लेकिन, इसे अंजाम देनेवाली शख्सियत कोई साधारण व्यक्ति नहीं, बल्कि सरदार पटेल थे, जो इस बात के लिए दृढ़प्रति‍ज्ञ थे कि वह किसी भी सूरत में अपने राष्ट्र को झुकने नहीं देंगे. उन्होंने और उनकी टीम ने एक-एक करके सभी रियासतों से बात की और इन सभी रियासतों को ‘आजाद भारत’ का अभिन्न हिस्सा बनाना सुनिश्चित किया.

पटेल ने पूरी तन्मयता और लगन से दिन-रात एक कर इस कार्य को पूरा किया, जिसकी बदौलत आधुनिक भारत का वर्तमान एकीकृत मानचित्र हम देख रहे हैं.

कहा जाता है कि वीपी मेनन ने स्वतंत्रता मिलने पर सरकारी सेवा से अवकाश लेने की इच्छा व्यक्त की. इस पर सरदार पटेल ने उनसे कहा कि समय आराम करने या सेवा निवृत्त होने का नहीं है. पटेल का ऐसा दृढ़संकल्प था.

वीपी मेनन विदेश विभाग के सचिव बनाये गये. उन्होंने अपनी पुस्तक ‘द स्टोरी ऑफ द इंटीग्रेशन ऑफ इंडियन स्टेट्स’ में लिखा है कि किस तरह पटेल ने इस मुहिम में अग्रणी भूमिका निभायी और अपने नेतृत्व में पूरी टीम को परिश्रम से काम करने के लिए प्रेरित किया. उन्होंने लिखा है कि सरदार पटेल के लिए सबसे पहले भारत की जनता के हित थे, जिस पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता.

हमने 15 अगस्त, 1947 को नये भारत के उदय का उत्सव मनाया. लेकिन राष्ट्र-निर्माण का कार्य अधूरा था. स्वतंत्र भारत के प्रथम गृह मंत्री के रूप में पटेल ने प्रशासनिक ढांचा बनाने का काम प्रारंभ किया, जो आज भी जारी है- चाहे यह दैनिक शासन संचालन का मामला हो या लोगों विशेषकर, गरीब और वंचित लोगों के हितों की रक्षा का मामला हो.

सरदार पटेल अनुभवी प्रशासक थे. साल 1920 के दशक में अहमदाबाद नगरपालिका में उनकी सेवा का अनुभव स्वतंत्र भारत के प्रशासनिक ढांचे को मजबूत बनाने में सहायक साबित हुआ. उन्होंने अहमदाबाद में स्वच्छता कार्य को आगे बढ़ाने में सराहनीय कार्य किये और पूरे शहर में स्वच्छता और जल-निकासी प्रणाली सुनिश्चित की. उन्होंने सड़क, बिजली तथा शिक्षा जैसी शहरी अवसंरचना के अन्य पहलुओं पर भी जोर दिया.

आज यदि भारत जीवंत सहकारिता क्षेत्र के लिए जाना जाता है, तो इसका श्रेय सरदार पटेल को जाता है. ग्रामीण समुदायों, विशेषकर महिलाओं को सशक्त बनाने का उनका विजन अमूल परियोजना में दिखता है. सरदार पटेल ने ही सहकारी आवास सोसाइटी के विचार को लोकप्रिय बनाया और अनेक लोगों के लिए सम्मान और आश्रय सुनिश्चित किया.

सरदार पटेल निष्ठा और ईमानदारी के पर्याय रहे. किसानों की उनमें प्रगाढ़ आस्था थी. वह किसान पुत्र थे, जिन्होंने बारदोली सत्याग्रह का नेतृत्व किया था. श्रमिक वर्ग उनमें आशा की किरण देखता था, ऐसा नेता देखता था, जो उनके लिए बोलेगा. व्यापारी और उद्योगपतियों ने उनके साथ इसलिए काम करना पसंद किया, क्योंकि वे समझते थे कि पटेल भारत के आर्थिक और औद्योगिक विकास के विजन वाले दिग्गज नेता हैं.

उनके राजनीतिक मित्र भी उन पर भरोसा करते थे. आचार्य कृपलानी का कहना था कि जब कभी वह किसी दुविधा में होते थे और यदि बापू का मार्गदर्शन नहीं मिल पाता था, तो वह सरदार पटेल का रुख करते थे. वर्ष 1947 में जब राजनीतिक समझौते के बारे में विचार-विमर्श अपने चरम पर था, तब सरोजिनी नायडू ने उन्हें ‘संकल्प शक्ति वाले गतिशील व्यक्ति’ की संज्ञा दी. पटेल के शब्दों और उनकी कार्यप्रणाली पर सबको पूरा विश्वास था. जाति, धर्म, आयु से ऊपर उठकर सभी लोग पटेल का सम्मान करते थे.

इस वर्ष सरदार की जयंती और अधिक विशेष है. 130 करोड़ भारतीयों के आशीर्वाद से आज ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ का उद्घाटन किया जा रहा है. नर्मदा के तट पर स्थित ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमाओं में से एक है. धरतीपुत्र सरदार पटेल हमारा सिर गर्व से ऊंचा करने के साथ हमें दृढ़ता प्रदान करेंगे, हमारा मार्गदर्शन करेंगे और हमें प्रेरणा देते रहेंगे.

मैं उन सभी को बधाई देना चाहता हूं, जिन्होंने सरदार पटेल की विशाल प्रतिमा को हकीकत में बदलने के लिए दिन-रात काम किया. मैं 31 अक्तूबर, 2013 के उस दिन को याद करता हूं, जब हमने इस महत्वाकांक्षी परियोजना की आधारशिला रखी थी. रिकॉर्ड समय में इतनी बड़ी परियोजना तैयार हो गयी और प्रत्येक भारतीय को इससे गौरवान्वित होना चाहिए.

मैं आप सभी से आग्रह करता हूं कि आप ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ को देखने जरूर आएं. ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ दिलों की एकता और हमारी मातृभूमि की भौगोलिक एकजुटता का प्रतीक है. यह याद दिलाता है कि आपस में बंटकर शायद हम मुकाबला नहीं कर पाएं, पर एकजुट रहकर हम दुनिया का सामना कर सकते हैं और विकास तथा गौरव की नयी ऊंचाइयों को छू सकते हैं.

सरदार पटेल ने उपनिवेशवाद के इतिहास को ढहाने के लिए अभूतपूर्व काम किया और राष्ट्रवाद की भावना के साथ एकता के भूगोल की रचना की. उन्होंने भारत को छोटे क्षेत्रों या राज्यों में विभाजित होने से बचाया और राष्ट्रीय ढांचे में कमजोर हिस्सों को जोड़ा.

आज, 130 करोड़ भारतीय नये भारत का निर्माण करने के लिए कंधे-से-कंधा मिलाकर काम कर रहे हैं, जो मजबूत, समृद्ध और समग्र होगा. प्रत्येक फैसला यह सुनिश्चित करके किया जा रहा है कि विकास का लाभ भ्रष्टाचार या पक्षपात के बिना समाज के सबसे कमजोर वर्ग तक पहुंचे, जैसा कि सरदार पटेल चाहते थे.
 

टिकटों को लेकर जल्द होगा ऐलान - भाजपा और कांग्रेस के पैनल तैयार

जयपुर । राजस्थान विधानसभा चुनाव को लेकर प्रदेश भाजपा की कोर कमेटी ने दो दिन तक एक होटल में चले मंथन के बाद पैनल बना लिया है। अब 1 नवंबर को दिल्ली में केंद्रीय संसदीय बोर्ड के सामने यह पैनल रखा जाएगा। माना जा रहा है कि भाजपा के प्रत्याशियों की पहली वह सूची जारी हो सकती है, जिन पर कोई विवाद नहीं है, साथ ही पार्टी इन प्रत्याशियों की जीत के प्रति आश्वस्त है।

इसके अलावा कांग्रेस की स्क्रीनिंग कमेटी में भी सिंगल नामों का पैनल तैयार कर लिया है और जल्द ही कांग्रेस की सूची जारी हो सकती है। इस सूची में कांग्रेस के मौजूदा विधायकों के नाम भी तय है। माना जा रहा है कि कांग्रेस और भाजपा दिवाली से पहले पहली सूची जारी कर सकती है।

वहीं भाजपा में दो दिन तक चलते मंथन में मौजूदा विधायकों के टिकट काटने को लेकर भी चर्चा हुई। लेकिन यह बात भी सामने आई कि अगर ज्यादा विधायकों के टिकट काटे गए, तो पार्टी को विरोध का सामना करना पड़ सकता है। साथ ही भाजपा में उम्रदराज विधायकों को टिकट नहीं देकर, उनके परिजन या किसी रिश्तेदार को टिकट देने पर भी सहमति बनी है।

यौन उत्पीड़न के खिलाफ खुलकर सामने नहीं आती महिलाएं : रोली सिंह

jaipur news : Women not come front against sexual harassment : Roli Singh - Jaipur News in Hindi
जयपुर। कार्यस्थल पर शर्मिंदगी प्रमुख कारण है, जिसकी वजह से महिलाएं यौन उत्पीड़न व दुराचार के खिलाफ खुलकर सामने नहीं आती हैं। जब किसी महिला का यौन शोषण होता है तो वह भावनात्मक रूप से अत्यधिक निराशा हो जाती है। पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को पुरुषों द्वारा ऐसे कृत्यों को सहन करना पड़ता है। यह कहना था राजस्थान सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग की प्रमुख शासन सचिव रोली सिंह का। वे  जयपुर में पीएचडीसीसीआई द्वारा ‘सैक्सुअल हरेसमेंट ऑफ वुमन एट वर्कप्लेस’ विषय पर आयोजित सेमिनार को संबोधित कर रही थीं। 

उन्होंने आगे कहा कि ये मुद्दे पहले भी ज्वलंत माने जाते थे, लेकिन अब सोशल मीडिया के साथ चीजें बदल रही हैं। लैंगिक समानता को एचआर मेंडेट का भाग होना चाहिए और संस्थानों की ओर से अपनी आंतरिक समिति के कॉन्टेक्ट नम्बरों को प्राथमिकता के साथ प्रदर्शित करना चाहिए। सैक्सुअल हरेसमेंट ऑफ वुमन एट वर्कप्लेस एक्ट, 2013 के अनुसार सभी संस्थानों के अधिकारियों को प्रत्येक वर्ष यौन उत्पीड़न पर नियमित प्रशिक्षण दिया जाना अनिवार्य है।

इस अवसर पर दिल्ली हाई कोर्ट की वकील प्रिया खन्ना ने महिला यौन उत्पीड़न के बारे में जागरूक करने पर एक टेक्निकल सेशन लिया। उन्होंने सैक्सुअल हरेसमेंट ऑफ वुमन एट वर्कप्लेस एक्ट, 2013 के विभिन्न प्रावधानों की जानकारी भी दी। उन्होंने बताया कि अनुचित स्पर्श (शारीरिक सम्पर्क व इसका प्रयास करना) यौन संबंध बनाने की मांग करना, अश्लील साहित्य या सामग्री दिखाना तथा किसी भी अन्य प्रकार के अवांछित शारीरिक, मौखिक या गैर मौखिक आचरण जैसे कृत्यों में से कोई एक या एक से अधिक कृत्य यौन उत्पीड़न माने जाते हैं। 

पॉलिसी फॉर प्रिवेंशन ऑफ सैक्सुअल हरेसमेंट (पीओएसएच) एक्ट और मी टू कैम्पेन के बाद महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा हाल ही शुरू किए गए शी बॉक्स (सैक्सुअल हरेसमेंट इलेक्ट्रॉनिक बॉक्स) के बारे में विस्तापूर्वक जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए महिलाओं के सशक्तीकरण से अधिक प्रभावी कोई अन्य तरीका नहीं है। कार्यस्थल का समावेशी माहौल पुरुषों व महिलाओं, दोनों के लिए सम्मानजनक होता है, जो सफल कार्यस्थल को मापने के सर्वाधिक महत्वपूर्ण मापदंडों में से एक बन जाएगा।

चुनाव आयोग के निर्देशों के अनुरूप निर्धारित समय में पूरी करें तैयारियां : आनंद कुमार

jaipur news : preparations will the prescribed time according to the instructions of the Election Commission : Anand Kumar - Jaipur News in Hindi
जयपुर। मुख्य निर्वाचन अधिकारी आनंद कुमार ने कहा कि विधानसभा आम चुनाव त्रुटि रहित, निष्पक्ष एवं पारदर्शिता के साथ कराने के लिए अधिकारी टीम भावना के साथ कार्य करें। आम मतदाता भयमुक्त होकर मतदान कर सकें, इसके लिए आवश्यक कदम उठाने एवं मतदान केन्द्रों पर मूलभूत सुविधाएं समय पर तैयार करने के निर्देश दिए।

मुख्य निर्वाचन अधिकारी बुधवार को कलेक्ट्रेट सभागार में विधानसभा चुनाव की तैयारियों की समीक्षा बैठक में उपस्थित जिला स्तरीय एवं उपखण्ड स्तरीय अधिकारियों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि चुनाव के दौरान दिए गए दायित्व समय पर पूरे किए जाएं। चुनाव आयोग द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुरूप सभी तैयारियां निर्धारित समय पर गुणवत्ता के साथ पूरी करें। उन्होंने कहा कि इस बार चुनाव आयोग की थीम प्रत्येक दिव्यांग को मताधिकार के लिए जागरूक कर उन्हें आवश्यक सुविधाएं प्रदान कर मतदान बूथ पहुंचाने की है। इसके लिए सभी निर्वाचन अधिकारी मतदान केन्द्रों पर आवश्यक सुविधाएं समय पर तैयार करते हुए दिव्यांगजनों को सूचीबद्ध करें।

मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने कहा कि आदर्श आचार संहिता की पालना में किसी तरह की शिथिलता नहीं बरती जाए। आवश्यक स्थानों पर चैकपोस्ट लगाकर चुनाव आयोग के निर्देशों की पालना के लिए एसएसटी, वीएसटी को भी लगातार सक्रिय रखा जाए। उन्होंने कहा कि संवेदनशील, अतिसंवेदनशील एवं भयग्रस्त मतदान केन्द्रों को चिन्हित कर वहां अतिरिक्त जाब्ता लगाने का प्लान तैयार करने एवं फ्लैगमार्च के साथ चौपाल आयोजित कर आम मतदाताओं को भयमुक्त होकर मतदान करने की बात कही।
संभागीय आयुक्त सुबीर कुमार ने जिला निर्वाचन अधिकारी एवं रिटर्निंग अधिकारियों को चुनाव आयोग के निर्देशों की अक्षरशः पालना करते हुए सभी तैयारियां निर्धारित समय में पूरी करने के लिए प्लान बनाकर कार्य करने के निर्देश दिए।

आईजी हवा सिंह घुमरिया (कानून एवं व्यवस्था) पुलिस महानिरीक्षक ने कहा कि स्वतंत्र, निष्पक्ष एवं भयमुक्त वातावरण में कराने के लिए प्रशासनिक अधिकारी एवं पुलिस अधिकारी संयुक्त कार्य योजना बनाएं। आपस में बेहतर समन्वय रखते हुए अधिक से अधिक आपराधिक तत्वों के खिलाफ निरोधात्मक कार्रवाई सुनिश्चित करें। आम मतदाता भयमुक्त होकर अपने मत का प्रयोग करें, आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को पाबंद करने एवं चैकपोस्ट लगाकर अवैध गतिविधियों पर पूरी तरह से अंकुश लगाना सुनिश्चित करें।

नवाचार अपनाएं

मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने सभी जिलों में नवाचार अपनाने पर विशेष जोर देते हुए कहा कि इस प्रकार कार्य करें कि कोई भी मतदाता मतदान से वंचित नही रहे। उन्होंने स्वीप गतिविधियों के साथ अन्य गतिविधियों में भी नवाचार अपनाने की बात कही।

शिकायतों का समय पर हो निराकरण

अतिरिक्त मुख्य निर्वाचन अधिकारी डॉ. जोगाराम ने विभिन्न माध्यमों से चुनाव संबंधी प्राप्त होने वाली शिकायतों का समय पर पारदर्शिता के साथ निराकरण करने एवं विभिन्न अनुमतियों के लिए चुनाव आयोग के मापदण्डों की पालना करने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा किसी-विजिल मोबाइल एप पर प्राप्त होने वाली शिकायतें निर्धारित समय पर निस्तारित की जाएं। बैठक में जिला निर्वाचन अधिकारी एनएम पहाडिया ने विधानसभा चुनाव के लिए गठित सभी प्रकोष्ठों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। बैठक में मुख्य कार्यकारी अधिकारी शिवचरण मीना, उप जिला निर्वाचन अधिकारी राजेश वर्मा सहित सभी रिटर्निंग अधिकारी उपस्थित रहे।

मंगलवार, 30 अक्टूबर 2018

करवा चौथ पर सुहागिनों ने मतदान करने की ली शपथ

जयपुर। सर्व समाज महिला उत्थान संस्था द्वारा करवा चौथ के अवसर पर करवा चौथ महोत्सव—2018 गोविन्द गार्डन, बनीपार्क में आयोजित किया गया। सर्व समाज महिला संस्थान की राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉक्टर अनीता मिश्रा ने बताया कि यह कार्यक्रम इस मायने में सबसे अलग है कि इसमें सुहागिन बहनों ने विधवा माताओं और बहनों की सहायतार्थ यह कार्यक्रम किया गया ।


 कार्यक्रम में करीब 500 महिलाओं ने हिस्सा लिया, महिलाओं के लिये इस अवसर पर नृत्य प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया, सांस्कृतिक कार्यक्रम के पश्चात विजेताओं का सम्मान भी किया गया, चौथ माता की कथा का आयोजन किया गया व चांद निकलने के पश्चात सभी महिलाओं ने पूजा कर भोजन ग्रहण किया।



जिलाध्यक्ष नीरा जैन ने बताया कि करवा चौथ महोत्सव के इस पावन अवसर पर निर्वाचन विभाग की नोडल अधिकारी और सर्व समाज महिला उत्थान संस्था की राष्ट्रीय अध्यक्ष ने 500 सुहागिनों से चन्द्रदेव को अर्ध देने के पश्चात चुनाव में मतदान करने की शपथ दिलाई।

सोमवार, 29 अक्टूबर 2018

जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद : सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टली

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में दायर अपीलों को जनवरी, 2019 में एक उचित पीठ के सामने सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाएगा।

 सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अयोध्या मामले की सुनवाई कहा कि वह जनवरी, 2019 में इस मामले की सुनवाई की तारीख तय करेगा. मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एके कौल और जस्टिस केएम इस मामले की सुनवाई कर रहे थे।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि मालिकाना हक विवाद मामले में दायर अपीलों को जनवरी, 2019 में एक उचित पीठ के सामने सूचीबद्ध किया जाएगा।

भूमि विवाद मामले में ये अपील इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर की गई है। उचित पीठ मामले में अपील पर सुनवाई की तारीख तय करेगी।

मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘हम जनवरी में उचित पीठ के सामने अयोध्या विवाद मामले की सुनवाई की तारीख तय करेंगे।’

इससे पहले तीन न्यायाधीशों की एक पीठ ने 2:1 के बहुमत से 1994 के अपने फैसले में मस्जिद को इस्लाम का अभिन्न हिस्सा ना मानने संबंधी टिप्पणी पर पुनर्विचार का मुद्दा पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजने से इनकार कर दिया था।
अयोध्या भूमि विवाद मामले की सुनवाई के दौरान यह मुद्दा उठा था।

साल 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने 2:1 के बहुमत वाले फैसले में कहा था कि 2.77 एकड़ जमीन को तीनों पक्षों सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला में बराबर-बराबर बांट दिया जाए।

राजस्थान की जनता केजरीवाल को देगी करारा जवाब : डॉ. अरुण चतुर्वेदी

जयपुर। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री डॉ. अरुण चतुर्वेदी ने कहा कि अरविंद केजरीवाल ने जयपुर की सभा में किसानों के विषय में जिस प्रकार की शब्दावली का उपयोग किया है, वह घोर निंदनीय है। राजस्थान की जनता केजरीवाल को किसानों के संबंध में की गई अभद्र भाषा के उपयोग का करारा जवाब देगी। 

डॉ. चतुर्वेदी ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी किसानों के कल्याण के लिए सदैव ही तत्पर रही है। केजरीवाल जयपुर में आकर किसानों का कर्ज माफ करने का मांग करते हैं। उन्हें जानकारी ही नहीं है कि भाजपा सरकार ने 28 लाख किसानों के 50 हजार रुपए तक के ऋण माफ किए हैं। भाजपा सरकार ने किसानों की सहकार व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना की राशि को 50 हजार रुपए से बढ़ाकर 10 लाख रुपए कर दिया है। साथ ही पिछले 5 वर्ष में 2 लाख 18 हजार कृषि कनेक्शन दिए जा चुके हैं। ‘स्वस्थ धरा-खेत हरा’ के विजन के साथ श्रीगंगानगर जिले के सूरतगढ़ कस्बे से शुरू हुई सॉयल हेल्थ कार्ड योजना से भी किसानों को लाभान्वित करने के प्रयास किए गए हैं। देश की पहली जैतून रिफाइनरी की स्थापना बीकानेर जिले में की गई। इस प्रकार किसानों के उत्थान के लिए भाजपा संकल्पित है।

डॉ. चतुर्वेदी ने कहा कि जो अरविंद केजरीवाल अपने आंदोलन के समय के साथियों के साथ विश्वासघात कर चुके हैं वे बीमा के नाम पर धोखा देने की बात कर रहे हैं। केजरीवाल को जानकारी नहीं है कि राजस्थान में वर्ष 2013-14 में प्रति किसान औसत बीमा क्लेम राशि 49,384/- रुपए थी, वह वर्तमान में लगभग 9 गुना बढ़कर 4,42,445/- रुपए हो गई है। भाजपा सरकार ने फसलों का समर्थन मूल्य बढ़ाकर प्रदेश के किसानों को सशक्त बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया है।

उन्होंने कहा कि केजरीवाल की विश्वसनीयता दिल्ली में समाप्त हो चुकी है। वे दिल्ली को तो ठीक से संभाल नहीं पा रहे और राजस्थान के किसानों के हितों के साथ खिलवाड़ करने की बात कर रहे हैं। राजस्थान की जनता बहुत समझदार है और दिल्ली में चढ़ी काठ की हांडी की खुमारी दिल्ली की जनता ने महानगर पालिका चुनाव में उतार दी थी। केजरीवाल को स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि राजस्थान की जनता उनके बहकावे में नहीं आने वाली है।

डॉ. चतुर्वेदी ने कहा कि बदली है दिल्ली का नारा देने वाले अरविंद केजरीवाल शायद यह नहीं जानते हैं कि उनके दल के साथी सार्वजनिक रूप से केजरीवाल के बदल जाने की बात कर रहे हैं।

रविवार, 28 अक्टूबर 2018

लेट्स वोट जयपुर मैराथन का आयोजन

जयपुर । मतदान के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए लेट्स वोट जयपुर मैराथन का आयोजन हुआ। रामनिवास बाग में मुख्य निर्वाचन अधिकारी आनंद कुमार ने मतदाताओं को मताधिकार के प्रति जागरूक करने के लिए लेट्स वोट जयपुर मैराथन को हरी झंडी दिखाई। 

उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के उत्सव में मतदान के दिन मतदाता 7 दिसंबर को जरूर मतदान करेंगे। इस मौके पर अतिरिक्त मुख्य निर्वाचन अधिकारी डॉ जोगाराम, जिला निर्वाचन अधिकारी सिद्धार्थ महाजन, उद्योग आयुक्त डॉ. समित शर्मा समेत अन्य अधिकारी मौजूद रहे। यह मैराथन दो श्रेणियों में आयोजित हुई।

दस किमी की दौड़ में प्रतिभागियों ने रामनिवास बाग के दक्षिणी द्वार से एमएनआईटी से यू-टर्न लेकर रामनिवाग तक दौड़ पूरी की। वहीं 5 किमी वाली दौड़ में गांधी सर्किल से यू-टर्न लेकर अपनी दौड़ पूरी की।

दुनिया के हर देश की सरकारें ढोंगी हैं

सरकारें प्रदूषण को लेकर ढोंग रचती रहती हैं, ताकि इसके असल कारणों पर लोगों का ध्यान ही न जाये. सरकारें प्रदूषण की बड़ी वजहाें को नजरअंदाज करती हैं. साल में एक बार आनेवाली दिवाली के पटाखों पर शोर मचाया जाता है, लेकिन सालों-साल प्रदूषण के बड़े-बड़े अजगरों को पाला-पोसा जाता है। 
सरकार के शब्दों का मायाजाल है कि एक दिन के शोर में बाकी 364 दिन कोई शोर न मचाये. सरकारें इन अजगरों को पालती हैं. और जो लोग इन अजगरों से सचेत कराते हैं, उनकी कोई सुनता ही नहीं है। परिवहन, निर्माण और ऊर्जा के लिए ईंधनों (कोयला, तेल, लकड़ी) का जलना, ये ऐसे स्रोत हैं, जिनसे प्रदूषण के अजगर जन्म लेते हैं. और ये तीनों चीजें हमारे शहरों में तेजी से बढ़ रही हैं, चूंकि इन्हें ही विकास का पहिया मान लिया गया है. पर्यावरण और प्रदूषण को लेकर हमारी सरकारी नीतियां इन्हीं के ईद-गिर्द घूमती हैं और सरकारें ग्रोथ का रोना रोती रहती हैं।
वायुमंडल में मौजूद वायु हमारे लिए प्राणवायु है. इसके बिना कोई भी प्राणी जीवित नहीं रह सकता है, लेकिन मनुष्यों ने प्राकृतिक संसाधनों का इस कदर दोहन किया है कि प्राणवायु अब जहरीली हो चली है और प्राण लेने की वजह बनने लगी है. आज पूरी दुनिया वायु प्रदूषण का शिकार है और भारत इस मामले में अग्रणी है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी भारत की हवा को दुनिया की सबसे जहरीली हवा बताया है. बढ़ते वायु प्रदूषण से लोगों को सांस की बीमारियां हो रही हैं और कैंसर का खतरा भी मंडरा रहा है।

आजकल, सर्दियों की आहट सुनायी दे रही है, दूसरी तरफ स्मॉग (धुंध) से लोगों को सांस लेने में दिक्कत हो रही है. फिर भी, तमाम बड़े खतरों के बावजूद हमारे बीच वायु प्रदूषण को लेकर जागरूकता नहीं दिखायी नहीं देती. हालिया रिपोर्ट, वायु प्रदूषण के कारण व खतरों, रोकथाम एवं उपायों पर केंद्रित है आज का इन दिनों।    


सरकारें पाल रही हैं प्रदूषण के अजगर   
दुनिया के हर देश की सरकारें ढोंगी हैं। ये सरकारें प्रदूषण को लेकर ढोंग रचती रहती हैं, ताकि इसके असल कारणों पर लोगों का ध्यान ही न जाये. सरकारें प्रदूषण की बड़ी वजहाें को नजरअंदाज करती हैं. साल में एक बार आनेवाली दिवाली के पटाखों पर शोर मचाया जाता है, लेकिन सालों-साल प्रदूषण के बड़े-बड़े अजगरों को पाला-पोसा जाता है। 
सरकार के शब्दों का मायाजाल है कि एक दिन के शोर में बाकी 364 दिन कोई शोर न मचाये. सरकारें इन अजगरों को पालती हैं. और जो लोग इन अजगरों से सचेत कराते हैं, उनकी कोई सुनता ही नहीं है। परिवहन, निर्माण और ऊर्जा के लिए ईंधनों (कोयला, तेल, लकड़ी) का जलना, ये ऐसे स्रोत हैं, जिनसे प्रदूषण के अजगर जन्म लेते हैं. और ये तीनों चीजें हमारे शहरों में तेजी से बढ़ रही हैं, चूंकि इन्हें ही विकास का पहिया मान लिया गया है. पर्यावरण और प्रदूषण को लेकर हमारी सरकारी नीतियां इन्हीं के ईद-गिर्द घूमती हैं और सरकारें ग्रोथ का रोना रोती रहती हैं।

पहले यह माना जाता था कि सरकार जनता के लिए है, लेकिन सरकार ने 1990 में ही अपने हाथ खड़े कर दिये थे कि वह जनता की तरफ से नहीं, बल्कि पूंजी निवेशकों की तरफ से समाज को चलायेंगी. इसका अर्थ यही है कि सरकार पूंजी की रक्षा करेगी, जनता की नहीं. इसलिए सरकारें चाहती हैं कि शहर का उत्पादन बढ़े और सरकारें एवं कंपनियां मुनाफा कमाएं. हमें यह समझना चाहिए कि हमें विकास की जरूरत तो है, लेकिन प्रदूषण के अजगरों को पालकर नहीं, क्योंकि ऐसा करना हमारे साथ ही आगे आनेवाली कई पीढ़ियों तक के लिए बहुत घातक है।
सड़कों पर गाड़ियाें की संख्या जितनी बढ़ेगी, प्रदूषण में बढ़ोतरी भी उतनी ही होती जायेगी. समस्या यह है कि लोगों को यह अजगर दिखायी नहीं देगा, क्योंकि आज हर आदमी अपनी निजी गाड़ी में चलना चाहता है।

दरअसल, ज्यादा गाड़ियाें की संख्या का अर्थ है तेल की खपत का बढ़ना. तेल के जलने से उसका धुआं पेड़-पौधों के कार्बन डाईऑक्साइड सोखने की ताकत कम कर देता है, जिससे पेड़ों से ऑक्सीजन उत्सर्जन की क्षमता पर असर पड़ता है. यहां तक कि सड़क पर गाड़ियों के पहियों के घिसने से एक प्रकार का महीन धूल बनने लगता है, जो सांस के लिए बहुत घातक है. यह प्रदूषण गंभीर बीमारियां देकर तिल-तिल करके मारता रहता है. इसलिए दुनियाभर में पब्लिक ट्रांसपोर्ट की बात की जाती है।  
पिछले कई वर्षों से देश-दुनिया में जहां कहीं भी पर्यावरण-प्रदूषण को लेकर सभाएं हुईं, वहां इस बात का जिक्र होता रहा है कि पर्यावरण और विकास के बीच कोई अंतर्विरोध नहीं है। दरअसल, हमारे नीति-निर्धारक शहर को ही विकास का इंजन मानते हैं और कहते हैं कि शहरों के विस्तार से ही टिकाऊ विकास हो सकता है. लेकिन, असली बात यह है कि ये लोग पर्यावरण का शोषण और दोहन करके ही विकास को टिकाऊ बनाना चाहते हैं। 
शब्दों का ऐसा मायाजाल बुनकर हमारे नीति-निर्धारकों ने प्रदूषण जैसी गंभीर समस्या को गंभीरतम बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. टिकाऊ पर्यावरण को लेकर भारत के पुराने पर्यावरण एक्ट में बहुत महत्वपूर्ण बात यह थी कि फैक्टरी खोलने, उद्योग लगाने, बांध बनाने, सड़कें बनाने या पुल बनाने में स्थानीय जनता की सहमति होनी चाहिए और उनका विस्थापन नहीं होना चाहिए। 
लेकिन, इस एक्ट में संशोधन करके कहा गया कि पर्यावरण अब विकास में बाधक नहीं है। उनके टिकाऊ विकास में पर्यावरण बाधा ही न बन पाये, इसलिए सरकार ने एक्ट में बदलाव कर दिया. यही वजह है कि देशभर में तमाम प्राकृतिक संसाधनों का बेतहाशा दोहन हो रहा है और प्रदूषण व जल-संकट की स्थितियां पैदा हो रही हैं।
देश-दुनिया में सारी बड़ी कंपनियां निर्माण क्षेत्र में हैं और निर्माण कार्य को ही विकास का द्योतक मान लिया जाता है. और यह द्योतक प्रदूषण बढ़ाने के लिए बड़ा जिम्मेदार है. बड़ी कंपनियां चाहे जितना प्रदूषण पैदा कर लें, सरकारें उन पर लगाम लगाने से डरती हैं।
प्रदूषण से लोग दिन-प्रतिदिन बीमार होते जा रहे हैं और उनकी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ती जा रही है, फिर भी अगर हम नहीं चेत रहे हैं, तो यह हमारी जान-बूझकर की जानेवाली गलती है. प्रदूषण खत्म करने का कोई तकनीकी उपाय नहीं है. किसी भी देश में तकनीक का उपयोग करने के लिए सबसे पहले राजनीतिक इच्छाशक्ति होनी चाहिए. नदियों, तालाबों, बावड़ियों का इतना बुरा हाल है कि उनके पानी का इस्तेमाल घातक है।
सरकार चाहे, तो इसका हल निकाल सकती है और प्रदूषण को खत्म तो नहीं, लेकिन कुछ हद तक कम जरूर कर सकती है. लेकिन, राजनीति करने के सिवा सरकार कुछ भी नहीं कर रही है. सरकार सिर्फ चिंता करने का नाटक करती है, उसकी मंशा में प्रदूषण से मुक्ति नहीं है. इसका बेहतरीन उदाहरण गंगा है. नमामि गंगे के जरिये गंगा साफ करने की चिंता को सरकार ने व्यक्त किया, लेकिन आजतक क्या गंगा 
साफ हुई?(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)

जहर का बढ़ता कहर

ब्लूमबर्ग की वैश्विक वायु प्रदूषण पर हाल में जारी रिपोर्ट भारत को चिंतित हाेने की वजह देती है. इस रिपोर्ट के अनुसार विश्व के सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में 10 भारतीय हैं. यहां हवा में उपस्थित पार्टिकुलेट मैटर का स्तर बेहद घातक है. कानपुर प्रदूषण में शीर्ष पर
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जिन 10 सबसे प्रदूषित शहरों की सूची जारी की गयी है, उनमें कानपुर शीर्ष पर है. यहां प्रति क्यूबिक मीटर 173 माइक्रोग्राम पीएम2.5 कंसन्ट्रेशन दर्ज हुआ है।
विश्व के 10 सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर  (वर्ष 2016 का वैश्विक औसत)

स्थान पीएम 2.5
1. कानपुर        173
2. फरीदाबाद       172
3. वाराणसी        151
4. गया           149
5. पटना          144
6. दिल्ली        143
7. लखनऊ        138
8. आगरा        131
9. मुजफ्फरपुर      120
10. श्रीनगर, गुड़गांव      113

कारण क्या हैं?
प्रकृति से प्राप्त संसाधनों का हमने अंधाधुंध दोहन किया है। देश की राजधानी दिल्ली में, केवल निजी चारपहिया गाड़ियों की संख्या लगभग एक करोड़ पहुंच चुकी है। यह सारे वाहन तेल पीते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन, हाइड्रोकार्बन जैसी विषैली गैसें वायु में उगलते हैं। इसके अतिरिक्त, वाहनों की लंबी फेहरिस्त है, मोटर, ट्रक, बस, विमान, ट्रैक्टर, स्वचालित वाहन एवं मशीनों आदि में डीजल, पेट्रोल, मिट्टी का तेल इस्तेमाल होता है और इनके जलने से हवा भारी मात्रा में प्रदूषित होती है. खासकर शहरों में, यह वायु प्रदूषण का बहुत बड़ा कारण है।  
औद्योगीकरण ने वायु प्रदूषण में बड़ी भूमिका निभायी है. कारखानों की चिमनियां जो धुआं छोड़ती हैं, उसमें सीसा, पारा, जिंक, कॉपर, कैडमियम, आर्सेनिक एवं एस्बेस्टस के कण होते हैं. इसके अलावा, इन गैसों में कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाइड, हाइड्रोजन-फ्लोराइड शामिल हैं, जो प्राणियों को नुकसान पहुंचाती हैं. अन्य कारणों में पेट्रोलियम परिशोधनशालाएं वायु प्रदूषण का प्रमुख स्रोत हैं, जिनमें सल्फर डाइऑक्साइड तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड प्रमुख गैसें हैं, जो बड़े पैमाने पर वायु प्रदूषण फैलाती हैं। 
ताप विद्युतगृहों एवं घरेलू ईंधन को जलाने से जो धुआं पैदा होता है, उनके सूक्ष्मकणों में हाइड्रोकार्बन, कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी विषैली गैसें होती हैं और प्राणियों के स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक होती हैं.
लौह अयस्क तथा कोयले आदि की खदानों की धूल से भी बड़े पैमाने पर प्रदूषण होता है तथा वायु दूषित होती है।

70 लाख मौत प्रतिवर्ष

10 में से नौ लोग विश्वभर में प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर हैं। 70 लाख (7 मिलियन) लोगों की मृत्यु घरेलू और बाहरी वायु प्रदूषण के कारण प्रति वर्ष हो जाती है.42 लाख (4.2 मिलियन) लोग अकेले मारे गये थे अपने आसपास के वायु प्रदूषण से, जबकि वैसे ईंधन जो प्रदूषण उत्पन्न करते हैं, पर भोजन पकाने व तकनीक आधारित वायु प्रदूषण से 38 लाख (3.8 मिलियन) लोग मारे गये थे वर्ष 2016 में वैश्विक स्तर पर।
90 प्रतिशत से ज्यादा वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में निम्न और मध्य आयवर्ग वाले देश, जिनमें एशिया और अफ्रीका जैसे देश प्रमुख हैं, के लोग शामिल हैं. इसके बाद पूर्वी भूमध्य क्षेत्र, यूरोप और अमेरिका के निम्न और मध्य आयवर्ग वाले देशों का 
वायु प्रदूषण से 30 प्रतिशत भारतीयों की समयपूर्व मृत्यु
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवॉयरमेंट की एक रिपोर्ट की मानें तो, भारत में होनेवाली समयपूर्व मृत्यु के 30 प्रतिशत मामलों के लिए वायु प्रदूषण जिम्मेदार है।

क्या होते हैं पार्टिकुलेट मैटर (पीएम)

पार्टिकुलेट मैटर, जिसे पार्टिकल पॉल्यूशन भी कहते हैं, बेहद छोटे-छोटे कण व तरल बूंदों का सम्मिश्रण होते हैं. नाइट्रेट व सल्फेट जैसे एसिड, कार्बनिक रसायन, धातु, धूल कण, पराग कण आदि मिलकर इन कणों का निर्माण करते हैं. इन मैटरों की हवा में जरूरत से ज्यादा उपस्थिति का सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है।
अगर ये मैटर 10 माइक्रोमीटर व्यास यानी डायमीटर या उससे छोटे आकार के होते हैं तो ये हमारे गले व नाक के द्वारा हमारे फेफड़ों तक पहुुंच जाते हैं. एक बार सांस के साथ इन्हें भीतर ले लेने पर हमारे हृदय और फेफड़ों को काफी नुकसान पहुंचता है। पार्टिकुलेट मैटर को मुख्य तौर पर दो भागों में बांटा गया है. इनहेलेबल कोर्स पार्टिकल्स व फाइन पार्टिकल्स।

इनहेलेबल कोर्स पार्टिकल्स  

ये पार्टिकल 2.5 माइक्रोमीटर से बड़े व 10 माइक्रोमीटर से छोटे व्यास के होते हैं. ये पार्टिकल सड़क मार्गों व धूल भरे उद्योगों में पाये जाते हैं।

फाइन पार्टिकल्स  

धुएं और धुंध में पाये जाने वाले ये पार्टिकल 2.5 माइक्रोमीटर व उससे छोटे व्यास के होते हैं. जंगल की अाग या ऊर्जा संयंत्रों, उद्योगों और ऑटोमोबाइल से उत्सर्जित होनेवाले गैस ही फाइन पार्टिकल्स का निर्माण करते हैं।

पैदा हो रहे अनेक खतरे सांस लेने में परेशानी  

यह देखने में आया है कि वायु प्रदूषण के कारण श्वसन प्रणाली में दिक्कत आती है। वायुमंडल में उपस्थित कार्बन डाइआॅक्साइड, कार्बन मोनोआॅक्साइड, नाइट्रोजन आक्साइड, हाइड्रोकार्बन आदि गैसें सांस लेने के साथ हमारे फेफड़ों में पहुंचती हैं और नुकसान पहुंचाती हैं. जिससे, श्वसन प्रणाली से जुड़ी समस्याएं पैदा हो रही हैं। इसके अंतर्गत, उल्टी, सिर दर्द, आँखों में जलन, बेचैनी के लक्षण दिखायी देते हैं। 
कैंसर और दिल की बीमारी
वायु में मौजूद विषैली गैसों के कारण कैंसर का खतरा होता है और दिल की बीमारी होने का डर भी बना रहता है. प्रदूषण के कारण वायुमंडल में उपस्थित हानिकारक रासायनिक गैसें ओजोन मंडल से रियेक्ट करके उसकी मात्रा को घटाने का काम करती हैं. इसलिए,ओजोन मंडल की कमजोरी के कारण त्वचा कैंसर आदि का खतरा मंडराता है।
प्राणवायु की कमी

वायु प्रदूषण के कारण वायुमंडल में आक्सीजन के स्तर में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है. यह धरती पर रहने वाले जीवों के लिए घातक स्थिति है. मनुष्यों द्वारा प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन से बढ़ते वायु प्रदूषण का दुष्परिणाम बाकी जीव भी झेल रहे हैं।

मृदा प्रदूषण 

सड़क पर दौड़ते वाहनों व फैक्टरियों से निकलने वाले धुएं में सल्फर डाइआॅक्साइड मौजूद होता है. वातावरण में आने के बाद यह सल्फाइड और सल्फ्यूरिक एसिड में बदलकर वायु में बूदों के रूप में तब्दील हो जाता है. बारिश होने की दशा में यह पानी के साथ धरती पर गिरता है. इसके बाद जमीन में एसिड मिलने से मिट्टी की उर्वरता घटने लगती है।

ऐतिहासिक स्मारकों को खतरा 

प्राचीन ऐतिहासिक इमारतें वायु प्रदूषण के कारण क्षय का सामना कर रही हैं. इसे समझने के लिए ताजमहल को देखा जा सकता है। मथुरा में स्थापित तेल शोधक कारखाने के कारण ताजमहल क्षय का सामना कर रहा है। 

नियंत्रण के आवश्यक उपाय 

हमें वृक्षारोपण को बढ़ावा देना चाहिए.  पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा देना चाहिए और निजी वाहनों की बढ़ती संख्या को काबू में लाना चाहिए। 
कारखानों, फैक्ट्रियों की चिमनियों की ऊंचाई ज्यादा ऊंची रखनी चाहिए, ताकि वातावरण से विषैली गैसें दूर रहें. इसके अतिरिक्त चिमनियों में फिल्टरों का उपयोग भी शुरू करना चाहिए. मोटरकारों और स्वचालित वाहनों की समय-समय पर ट्यूनिंग होनी चाहिए, अधजला धुआं वातावरण में न आये।
कारखानों, फैक्ट्रियों, उद्योगों को हमेशा शहरों एवं गांवों से एक निश्चित दूरी के बाहर ही स्थापित होने देना चाहिए, जिससे रहवासियों पर असर न पड़े. झारखंड का जादूगोड़ा इसका उदाहरण है, जहां न्यूक्लियर प्लांट की स्थापना के बाद इलाके के लोगों पर बहुत हानियां पहुंची हैं और जादूगोड़ा को ‘न्यूक्लियर कब्रगाह’ कहा जाता है। 
सरकारों को अधिक धुआं देने वाले वाहनों पर बिना देर किये रोक लगानी चाहिए.
भारत को अब जनसंख्या वृद्धि रोकने की दिशा में काम करना चाहिए, जिससे प्राकृतिक संसाधनों का दोहन नियंत्रित किया जा सके।
हमारी रोजमर्रा की धूम्रपान जैसी आदतों से भी वायु प्रदूषण फैलता है. इसलिए वायु प्रदूषण के रोकथाम के लिए सबसे पहले वायु प्रदूषण के प्रति जागरूक होना आवश्यक है।
ओजोन परत में जारी प्रदूषण के कारण क्षरण
बैंगनी व नीले रंगों वाली जगहों पर ओजोन की मात्रा सबसे कम है और पीले रंग वाली जगह पर ओजोन की मात्रा तुलनात्मक रूप से अधिक है
ओजोन घनत्व के मापन के लिए डॉबसन इकाई का प्रयोग किया जाता है. एक डॉबसन उन ओजोन अणुओं की संख्या है जो 0℃ और 1 एटीएम (वायुमण्डलीय दबाव) दाब पर 0.01 मिलीमीटर पतली परत बनाते हैं।

पार्टिकुलेट मैटर10 में दिल्ली पहले स्थान पर

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा वैश्विक स्तर पर 10 बड़े शहरों के हवा की सेहत जानने पर जो नतीजा सामने आया वह भारत के लिए बेहद चिंताजनक है. हवाओं में पार्टिकुलेट मैटर10 (पीए10) की उपस्थिति के मामले में विश्व भर में दिल्ली पहले स्थान पर है. दिल्ली के बाद वाराणसी, रियाद, सउदी अरब, अली सुबह अल-सलेम, कुवैत, आगरा, पटियाला, अल-शुवैक, कुवैत, बगदाद, इराक, श्रीनगर, भारत और दम्मम, सउदी अरब का स्थान है।

शनिवार, 27 अक्टूबर 2018

राज इलेक्शन पोर्टल पर नामांकन एवं शपथ पत्र अपलोड करने की प्रक्रिया का दिया प्रशिक्षण

जयपुर। अतिरिक्त मुख्य निर्वाचन अधिकारी डॉ. रेखा गुप्ता और डॉ. जोगाराम ने विधानसभा आम चुनाव 2018 के लिए एनआईसी द्वारा तैयार किए गए राज इलेक्शन पोर्टल पर नामांकन एवं शपथ पत्र अपलोड करने की प्रक्रिया के प्रशिक्षण के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए विस्तार से चर्चा की।

डॉ. रेखा गुप्ता और डॉ. जोगाराम ने शनिवार को सचिवालय स्थित एनआईसी सेंटर में हुई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान कहा कि राज इलेक्शन पोर्टल पर सूचनाएं समय पर की जाएं और उनमें किसी प्रकार की त्रुटि न हो। इस अवसर पर एनआईसी की स्टेट यूनिट टीम ने राज इलेक्शन पोर्टल सॉफ्टवेयर के बारे में प्रेजेंटेशन दिया। उन्होंने सॉफ्टवेयर की कार्य प्रणाली और बारीकियों के बारे में समझाया। इस अवसर पर विभिन्न जिलों के निर्वाचन अधिकारियों और रिटर्निग ऑफिसर की राज इलेक्शन पोर्टल के बारे में उत्पन्न जिज्ञासाओं और प्रश्नों का जवाब दिया गया।

डॉ. रेखा गुप्ता ने कहा कि राज इलेक्शन पोर्टल को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि यह रिटर्निग ऑफिसर को गलतियां करने से रोकेगा। इस बार विभाग की वेबसाइट पर उम्मीदवारों के खर्चों की सूचना भी अपलोड की जाएगी। उन्होंने कहा कि रिटर्निग ऑफिसर को राज इलेक्शन पोर्टल पर उम्मीदवारों के नामांकन पत्र और शपथ पत्र अपलोड करने होंगे। उन्हें उम्मीदवारों की नाम वापसी की सूचना, अंतिम उम्मीदवारों की सूचना भी अपलोड करनी होगी। 

डॉ. जोगाराम ने कहा कि रिटर्निग ऑफिसर को अपने द्वारा डाली गई सूचनाओं को क्रॉस वेरिफाई कर लेना चाहिए। इससे किसी भी तरह की गलती की आशंका नहीं रहेगी। उन्होंने बताया कि डाटा फ्रिज होने के बाद करेक्शन संभव नहीं होगा। इसलिए पहले से ही सावधानी बरतना जरूरी है।
इस दौरान उप मुख्य निर्वाचन अधिकारी विनोद पारीक, संयुक्त मुख्य निर्वाचन अधिकारी आर.के. पारीक, संयुक्त मुख्य निर्वाचन अधिकारी पी.सी. गुप्ता, संयुक्त मुख्य निर्वाचन अधिकारी (आईटी) एम.एम. तिवारी सहित संबंधित अधिकारी उपस्थित रहे।

राजस्थान में भी तीसरे मोर्चे के लिए जरूरी है सोशल इंजीनियरिंग


जयपुर । राजस्थान में तीसरा मोर्चा को लेकर विशेष रिपोट वरिष्ट पत्रकार दुर्गेश एन. भटनागर द्धौरा प्रस्तुत । चुनाव आयोग के पांच राज्यों में चुनाव की तारीखों का ऐलान के साथ ही आचार संहिता लग चुकी है राजनीतिक दल प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया में जुट चुके है। राजस्थान में पिछले कई चुनाव के अंतर्गत एक बार बीजेपी तो एक बार कांग्रेस वाली परिपाटी चली आ रही है। इस बार के चुनाव में बीजेपी इस परिपाटी को तोड़ने का दावा कर रही है तो कांग्रेस एंटी इनकंबेंसी को लेकर परिपाटी की दुहाई देते हुए सत्ता में आने के ख्वाब संजोए हुए है।
दुर्गेश एन. भटनागर 
 आमतौर पर राजस्थान की चुनावी गणित की बात की जाए तो जब-जब तीसरे मोर्चे का गठन हुआ है, वह बागियों के दम पर ही हुआ है और यही कारण रहा है की तीसरा मोर्चा हमेशा से ही असफल रहा है। शायद यही कारण रहा कि बागियों के भरोसे बनने वाला तीसरा मोर्चा सफल नहीं हो पाया तो क्या आगे भी राजस्थान में दो पार्टियों की ही परिपाटी देखने को मिलेगी। बीजेपी और कांग्रेस के बाद इस बार सबसे ज्यादा मत प्रतिशत किरोड़ीलाल मीणा की एनपीपी का रहा था, अब किरोड़ीलाल मीणा बीजेपी में चले गए हैं।  2013 में बसपा पार्टी का मत प्रतिशत सबसे ज्यादा था।

अब सवाल ये क्या इस बार भी हर बार की तरह तीसरा मोर्चा बनेगा और वो फिर बागियों के दम पर ही होगा ?तीसरे मोर्चे की सफलता के पीछे जरूरी है सोशल इंजीनियरिंग, यदि पिछले चुनाव के परिणामों को देखें और इन चुनाव में आए मत प्रतिशत का विश्लेषण किया जाए तो साफ है किस सामाजिक तौर पर सोशल इंजीनियरिंग करके बीजेपी और कांग्रेस को राजस्थान में भी पटखनी की जा सकती है। अब सवाल ये किस फार्मूले पर तीसरे मोर्चे का गठन किया जाए तो साफ है जातिगत समीकरणों को दिखा जाए तो जाट, राजपूत, ब्राह्मण, गुर्जर और दलितों को साथ में ले कर सोशल इंजीनियरिंग की जा सकती हैं। "जिस क्षेत्र में जिस भी जाति का बाहुल्य है उसका उम्मीदवार मैदान में उतारा जाए और बाकी सभी जातियां उसको सपोर्ट करें" इस फार्मूले पर काम किया जाए तो परिणामों के बाद तीसरा मोर्चा किंग मेकर की भूमिका में सामने आ सकता है। अब सवाल यह कि इस फार्मूले को लेकर कदम कौन बढ़ाए। जाट नेता हनुमान बेनीवाल, राजपूत नेता सुखदेव सिंह गोगामेड़ी, अजीत सिंह मामडोली, ब्राह्मणों के नेता घनश्याम तिवारी और गुर्जरों के नेता कर्नल किरोड़ी सिंह बैसला और हिम्मत सिंह को एक जाजम पर लाकर यह प्रयोग किया जा सकता है।

देश के बिहार और उत्तर प्रदेश राज्य में तीसरे मोर्चे को लेकर सफल प्रयोग हो चुके हैं। बिहार में लालू प्रसाद यादव ने एक समीकरण इजाद किया था जिसे "भूरा बाल साफ करो" कहा गया था। भूरा बाल में जातिगत समीकरण देखा जाए भू से भूमिहार, रा से राजपूत, बा से ब्राह्मण और ल से लाला यानी कायस्थ को हटाकर सत्ता प्राप्ति की नीव रखी थी। वही बात बिहार के साथ उत्तर प्रदेश की कि जाए तो वहां पर भी "एमवाई समीकरण" या "माई समीकरण" नाम दिया गया था। इस समीकरण में मुस्लिम और यादव को एक साथ लाकर मुलायम सिंह यादव ने सत्ता की सीढ़ी चढ़ी थी। मायावती ने भी सत्ता प्राप्ति के लिए सोशल इंजीनियरिंग की और दलितों के साथ ब्राह्मणों का समीकरण बिठाया जो उन्हें सत्ता तक ले पहुंचा। अब ऐसे ही समीकरण की जरूरत राजस्थान की राजनीति में भी संभावित है।

राजस्थान में तीसरे मोर्चे का इतिहास

भारत की आजादी के बाद से ही राजस्थान में बहुकोणीय मुकाबला होता आया। कांग्रेस के सामने उस समय राम राज्य पार्टी, जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी, समाजवादी, भारतीय क्रांति दल, लोकदल और जनता दल अलग अलग चुनाव लड़ते थे। किसान नेता कुम्भा राम आर्य, दौलत राम सारण और नाथूराम मिर्धा ने प्रदेश में किसान मुख्यमंत्री बनाने को लेकर तीसरा मोर्चा बनाया, मगर सफल नहीं हो पाया। 2003 में कद्दावर राजपूत नेता देवी सिंह भाटी ने सामाजिक न्याय मंच के नाम से तीसरे मोर्चे का गठन किया , परन्तु भाटी के अलावा उनका कोई उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत सका और यह मोर्चा भी चुनाव के साथ ही खत्म हो गया। पिछले चुनाव में डॉ किरोड़ी मीणा ने एनपीपी के बैनर तले तीसरे मोर्चे का गठन किया था मगर ये मोर्चा भी 5 सीटों पर सिमट कर राह गया था।

7 दिसम्बर 2018 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले किरोड़ी मीणा तीसरे मोर्चे को त्याग कर भाजपा में शामिल हो गए है और पिछले विधानसभा चुनाव में सर्वाधिक वोटों से जीतने वाले विधायक घनश्याम तिवाड़ी ने भाजपा से निकलकर मीणा की जगह ले ली है। तिवाड़ी ने भाजपा से बाहर आकर भारत वाहिनी पार्टी बनाली है। दूसरी तरफ विधायक हनुमान बेनीवाल प्रदेश में जगह जगह किसान रैली का आयोजन कर अपनी अलग दुंदुभी बजा रहे है।और 29 अक्टूबर को राजधानी जयपुर में फिर किसान हुँकार रैली करने जा रहे हैं। करणी सेना भी तीन चार वर्षों से अपनी सियासी ताकत बढ़ाने में लगी है हालाँकि करणी सेना भी दो टुकड़ों में विभाजित है।


चुनावी साल में राजस्थान में भाजपा से नाराज नेताओं ने तीसरा मोर्चा गठित करने की कवायद शुरू कर दी है। तीसरा मोर्चा बनाकर चुनाव में भाजपा और कांग्रेस को टक्कर देने का चक्रव्यूह रचा जा रहा है और इसके रचयिता इस बार भाजपा छोड़कर आने वाले वरिष्ठ नेता घनश्याम तिवारी है। तिवारी चाहते है कि बेनीवाल के रूप में उन्हें हनुमान मिल जाये। साथ ही करणी सेना के नाम से वसुंधरा से नाराज राजपूतों का समर्थन हासिल हो। दलितों के नाम पर भी किसी नेता को उभारने के प्रयास किये जा रहे है ताकि दलितों की नाराजगी को भुनाया जा सके। यदि इनके साथ वसुंधरा राजे से नाराज गुर्जर नेता किरोड़ी सिंह बैंसला, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सुमित्रा सिंह राजपूत नेता मानवेन्द्र सिंह, सुखदेव सिंह गोगामेडी और लोकेन्द्र कालवी भी आ जाते है तो प्रदेश में वसुंधरा के नेतृत्व को चुनौती देने और तीसरे मोर्चे के बनने में देर नहीं लगेगी।

प्रदेश के 9 जिलों में सूखा, लेकिन विभाग को गिरदावरी रिपोर्ट का इंतजार


 जयपुर । राजस्थान विधानसभा चुनाव को लेकर आचार संहिता क्या लगी, किसानों का मुआवजा सरकारी फाइलों में अटक गया। प्रदेश के 9 जिले जोधपुर, जालोर, बाड़मेर, हनुमानगढ़, जैसलमेर, पाली, बीकानेर, चूरू और नागौर में इस बार सूखा पड़ने से किसानों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। 


पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सूखे की स्थिति को लेकर अपना बयान जारी कर चुके है। वहीं आप पार्टी के नेता रामपाल जाट भी अनशन कर रहे है। करीब छह हजार गांव में फसल बर्बाद हो चुकी है, लेकिन सूखे की घोषणा नहीं होने के कारण मुआवजा का मामला फाइलों में अटक गया है। 


आपका एवं राहत विभाग के शासन सचिव हेमंत कुमार गेरा ने बताया कि सूखा पड़ने पर किसानों को राहत देने के लिए नीति केंद्र ने तय की है और 33 फीसदी खराबे पर ही किसानों को मुआवजा दिया जा सकता है। आपका विभाग के मुताबिक गिरदावरी रिपोर्ट मिलने के बाद ही सूखे की घोषणा संभव है। इसके बाद ही किसानों की मुआवजा दे सकते है।

शुक्रवार, 26 अक्टूबर 2018

वुड कंट्रोल सिस्टम बतायेगा लकड़ी के फर्नीचर की कहानी


जयपुर,वाणिज्य संवाददाता। फ्रांस की कंपनी मायसंस डू मोंडे की मिस ​इरिना कूप ने पिंकसिटी प्रेस क्लब में आयोजित पत्रकार वार्ता में बताया कि उनकी कंपनी द फोरेस्ट ट्रस्ट के साथ मिलकर इस वुड कंट्रोल सिस्टम पर कई सालों से काम कर रही है। वुड कंट्रोल सिस्टम प्रणाली यह बता देती है कि हम जो लकड़ी का फर्नीचर खरीदते हैं वह फर्नीचर किस लकड़ी से बनाया गया है और इससे पर्यावरण को कितना नुकसान हुआ है।

द फोरेस्ट ट्रस्ट मायसंस डू मोंडे की सप्लाई चैन के साथ जमीनी स्तर पर कार्य करता है, इसमें लकड़ी किसान से सीधे एक्सपोर्टर तक आती है और इसे  वुड  कंट्रोल सिस्टम के लायक बनाया जाता है, इस तरीके से आम और शीशम के पेड़ों की लकड़ी के उपयोग और उनकी पहचान को भी ट्रेस किया जा सकता है, साथ ही प्रत्येक पेड़ की लोकेशन व उसके मालिक का भी पता लगाया जा सकता है, इसके अलावा प्रोडक्ट को त्वरित प्रतिक्रिया कोड़ के साथ मार्केट में लाया जाता है, इस कोड को स्कैन करके खरीदी गई लकड़ी का पूरा इतिहास जाना जा सकता है ​कि वह लकड़ी किस जंगल से लाई गई है, किस ग्रुप की है, उसका मालिक कौन है।

मिस ​इरिना कूप ने बताया कि यूरोपीय कंपनियों को अपने ग्राहकों को भी संतुष्ट रखना होता है, इस सिस्टम से पता लगाना असंभव नहीं है कि वह क्वालिटी प्रोडक्ट है या नहीं, इससे सप्लाई चेन में पारदर्शिता आती है, क्वालिटी कंट्रोल में सुधार होता है।

द फोरेस्ट ट्रस्ट के ग्रेगोयर ने कहा कि विश्व में लाखों लोग लकड़ी के माध्यम से अपनी आजीविका चलाते है, इसके संरक्षण के लिये सामूहिक जिम्मेदारी का निर्वहन करने हुए आगे आना ही होगा। द फोरेस्ट ट्रस्ट इस ​दिशा में उल्लेखनीय कार्य कर रहा है।

मतदान और मतगणना में कर्मचारियों की होती है अहम भूमिका : डॉ.गुप्ता

जयपुर। अतिरिक्त मुख्य निर्वाचन अधिकारी डॉ. रेखा गुप्ता ने कहा कि उम्मीदवारों के नामांकन पत्रों के दाखिले से लेकर मतदान और मतगणना तक सांख्यिकी से जुड़े अधिकारियों-कर्मचारियों की अहम भूमिका होती है। आपके द्वारा समय और पूर्ण शुद्धता के साथ आंकड़े उपलब्ध कराना ही निर्वाचन प्रक्रिया को मजबूती देना है।


डॉ. गुप्ता शुक्रवार को शासन सचिवालय में आयोजित प्रदेश भर के सांख्यिकी अधिकारियों की एक दिवसीय कार्यशाला को संबोधित कर रही थीं। उन्होंने कहा कि चुनाव में बिना देरी किए सही सूचनाएं उपलब्ध करवाना महत्वपूर्ण होता है। ऐसे में पूरी तरह जांच-परखकर ही सूचनाओं को साझा करें। इस दफा पहली बार दिव्यांगजनों की श्रेणीवार सूचनाएं अलग से देनी होंगी। साथ ही संपूर्ण प्रदेश में पहली बार वीवीपैट का इस्तेमाल होगा ऐसे में सभी तरह की सूचना पीठासीन अधिकारी को देनी होगी। 

अतिरिक्त मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने कहा कि राज्य में 19 नवम्बर तक नामांकन दाखिल होंगे, 20 को नामांकन पत्रों की जांच होगी तथा 22 नवम्बर तक नाम वापस लिए जा सकेंगे। ऐसे में इनसे जुड़ी सभी तरह की सूचनाएं जिले के आंकड़ा प्रकोष्ठ प्रभारियों, उप प्रभारी और सांख्यिकीकर्मी को देनी रहेगी। इसके अलावा मतदान प्रारंभ होने की सूचना से लेकर प्रतिघंटा सूचना उपलब्ध कराने, मतदान के बाद बूथ पर कतार में शेष रहे मतदाताओं की संख्या, बूथ पर हुए कुल मतदान की अंतिम सूचना और मतदान के पश्चात मतदान दलों का सुरक्षित रूप से वापस पहुंचाने की सूचना देनी होगी।

इस दौरान संयुक्त मुख्य निर्वाचन अधिकारी आर.के.पारीक ने सांख्यिकी सूचना का महत्व, संयुक्त मुख्य निर्वाचन अधिकारी सुरेन्द्र माहेश्वरी, संयुक्त मुख्य निर्वाचन अधिकारी (आईटी) एमएम तिवारी ने सूचना प्रौद्योगिकी सम्बंधी जानकारी, संयुक्त निदेशक (सांख्यिकी) ने नामांकन प्रपत्रों व अन्य प्रपत्रों पर परिचर्चा की वहीं उप मुख्य निर्वाचन अधिकारी विनोद पारीक ने चुनाव सम्बंधी सामान्य जानकारी से अधिकारियों को अवगत कराया। 

प्रदेश में स्वच्छता वाहनों से गूंजेगा ‘चुनाव समय‘ का संदेश

जयपुर। निर्वाचन विभाग की ओर से प्रदेश भर की नगरपालिकाओं, नगर परिषदों और नगर निगमों के तहत चलने वाले स्वच्छता वाहनों के हूपर्स पर अब मतदाता जागरूकता संबंधी आॅडियो जिंगल भी जल्दी ही गूजेंगे। स्वीप कार्यक्रम के तहत विभिन्न विभागों के साथ सहभागिता करते हुए प्रदेश में मतदाता जागरूकता के लिए अनेक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।

उप मुख्य निर्वाचन अधिकारी विनोद पारीक ने बताया कि स्वच्छता अभियान के तहत सभी शहरी निकायों द्वारा स्वच्छता वाहनों का संचालन किया जा रहा हैं। इन वाहनों से स्वच्छता का संदेश गीतों के माध्यम से आमजन तक पहुंच रहा है। इस व्यवस्था का उपयोग अब निर्वाचन विभाग की ओर से विधानसभा चुनाव के दौरान मतदाताओं को मताधिकार के प्रति और अधिक जागरूक बनाने के लिए भी किया जाएगा। निर्वाचन विभाग द्वारा तैयार जिंगल-‘चुनाव समय है’ अब इन स्वच्छता वाहनों के द्वारा आमजन को मतदान करने के लिए प्रेरित करेगा।

उप मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने बताया कि इस कार्य के लिए निदेशक, स्वायत्त शासन को विभाग की ओर से पत्र प्रेषित कर स्वच्छता वाहन से चुनाव समय जिंगल भी प्रसारित करने के लिए भिजवाया गया है।

गुरुवार, 25 अक्टूबर 2018

सीबीआई विवाद: वो सात महत्वपूर्ण मामले जिनकी जांच आलोक वर्मा कर रहे थे

छुट्टी पर भेजे जाने से पहले सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा राफेल सौदा से लेकर स्टर्लिंग बायोटेक जैसे हाई-प्रोफाइल मामलों की जांच कर रहे थे. इनमें से एक मामला ऐसा है जिसमें प्रधानमंत्री के सचिव आरोपी हैं.


 राफेल सौदा मामले से लेकर मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया रिश्वत मामला, कोयला खदान आवंटन मामले में कथित रुप से आईएएस अधिकारी भास्कर कुल्बे की भूमिका से लेकर स्टर्लिंग बायोटेक मामला, जिसमें राकेश अस्थाना की कथित भूमिका की जांच की जानी थी.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक ये कुछ बेहद महत्वपूर्ण मामले थे जो कि सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा द्वारा जांच प्रक्रिया में थे. हालांकि बीते बुधवार को केंद्र सरकार ने उन्हें अचानक से छुट्टी पर भेज दिया.

आलोक वर्मा ने सरकार के इस फैसले को असंवैधानिक बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई है और कल यानि कि शुक्रवार को इस पर सुनवाई होगी. वर्मा में अपनी याचिका में ये भी कहा है कि वे कुछ बेहद संवेदनशील मामलों की जांच प्रक्रिया में थे. कानूनी रुप से सीबीआई निदेशक को उनकी नियुक्ति से लेकर दो साल तक नहीं हटाया जा सकता है.

अगर किसी विशेष परिस्थिति में निदेशक को हटाना है तो उस चयन समिति की सहमति लेनी होती है जिसने सीबीआई निदेशक के नियुक्ति की सिफारिश की थी. इस चयन समिति में भारत के प्रधानमंत्री, संसद में विपक्ष के नेता और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश होते हैं.

विपक्षी दलों ने भी केंद्र की मोदी पर निशाना साधा है कि राकेश अस्थाना को बचाने और राफेल सौदे की जांच से बचने के लिए आलोक वर्मा को अचानक छुट्टी पर भेज दिया गया.

 कुछ ऐसे बेहद संवेदनशील मामलों के बारे में बता रहे हैं जिस पर आलोक वर्मा या तो जांच कर रहे थे या फिर जांच की शुरुआत करने वाले थे.

1 इसमें सबसे मुख्य मामला है कथित राफेल सौदा घोटाला: पूर्व भाजपा नेता यशवंत सिंहा, अरुण शौरी और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने इस मामले को लेकर चार अक्टूबर को सीबीआई में 132 पेज का शिकायत पत्र सौंपा था, जिसे आलोक वर्मा ने स्वीकार किया था. इस शिकायत की सत्यापन प्रक्रिया एजेंसी के अंदर चल रही थी. सूत्रों ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि इस पर जल्द ही फैसला लिया जाना था.

2 सीबीआई मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया रिश्वत मामले में हाई-प्रोफाइल लोगों की भूमिका की जांच कर रही थी. इस मामले में हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज आईएम कुद्दूसी को गिरफ्तार किया गया था. सूत्रों ने बताया कि कुद्दूसी के खिलाफ चार्जशीट तैयार कर ली गई थी और सिर्फ आलोक वर्मा का हस्ताक्षर होना बाकी था.

3 मेडिकल एडमिशन में कथित भ्रष्टाचार मामले को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस एसएन शुक्ला आरोप थे और एजेंसी ने इस मामले को अपनी जांच में शामिल किया था. सूत्रों ने बताया कि प्राथमिक जांच पूरी हो गई थी और इस पर सिर्फ आलोक वर्मा के हस्ताक्षर बाकी थे.

4 भाजेपी सांसद सुब्रामन्यम द्वारा वित्त और राजस्व सचिव हसमुख अढ़िया के खिलाफ की गई शिकायत भी सीबीआई जांच के दायरे में थी.

5 प्रधानमंत्री के सचिव आईएएस अफसर भास्कर कुल्बे की कोयला खदानों के आवंटन में कथित भूमिका को लेकर सीबीआई जांच कर रही है.

6 एक अन्य मामले में दिल्ली स्थिति एक बिचौलिए के यहां अक्टूबर के पहले महीने में छापा मारा गया था. इस दौरान लोगों को किए गए भुगतान की एक कथित सूची और तीन करोड़ रुपये कैश में बरामद हुआ था. सीबीआई को ये बताया गया था कि इस व्यक्ति ने पीएसयू में सीनियर पदों पर नियुक्ति के लिए नेता और अधिकारियों को रिश्वत दिया था.

7 सीबीआई नितिन संदेसरा और स्टर्लिंग बायोटेक मामले की जांच खत्म करने वाले थी. इस मामले में सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना की कथित भूमिका को लेकर जांच की गई थी.

सीबीआइ में अधिकारियों की एक बड़ी संख्या है और इनका काम भी बहुत जोखिम और सूझबूझ वाला है. सीबीआइ में डेढ़-दो सौ एसपी हैं, चार हजार के करीब डिप्टी एसपी हैं और अन्य अधिकारी हैं, दो दर्जन से ज्यादा डीआईजी हैं, एक दर्जन संयुक्त निदेशक हैं, और शीर्ष पदों पर निदेशक और विशेष निदेशक हैं.

यानी कुल मिलाकर देखें, तो साढ़े चार-पांच हजार के करीब अधिकारियों का यह महकमा है, जिसमें एक से बढ़कर एक ईमानदार अधिकारी हैं. ऐसे में महज दो लोगों के बीच उभरे विवाद के चलते पूरी सीबीआइ को कठघरे में कैसे खड़ा किया जा सकता है

बुधवार, 24 अक्टूबर 2018

निर्वाचन विभाग नहीं देगा मंत्री-विधायकों को सुरक्षा

निर्वाचन विभाग का काम शांतिपूर्ण निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव संपन्न करवाना है न कि किसी मंत्री और विधायक को सुरक्षा मुहैया कराना. जिला कलेक्टर और एसपी चाहे तो किसी मंत्री और विधायक को सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं.
जयपुर। राज्य निर्वाचन विभाग ने स्पष्ट कर दिया है कि मंत्री और विधायकों को सुरक्षा मुहैया कराने का निर्णय संबंधित जिला कलेक्टर और एसपी करेंगे. जिला कलेक्टर और एसपी चाहे तो किसी मंत्री और विधायक को सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं. निर्वाचन विभाग का काम शांतिपूर्ण निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव संपन्न करवाना है न कि किसी मंत्री और विधायक को सुरक्षा मुहैया कराना.

मुख्य निर्वाचन अधिकारी आनंद कुमार ने कहा की जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक मिलकर सुरक्षा तय करते हैं. विधानसभा में मुख्य सचेतक कालू लाल गुर्जर को सुरक्षा मुहैया कराने का मामला निर्वाचन विभाग के पास नहीं आया है. कुमार ने बताया कि जनप्रतिनिधियों को सुरक्षा मुहैया कराना निर्वाचन विभाग के दायरे में नहीं आता है. यदि किसी जनप्रतिनिधि और मंत्री को अपनी जान का खतरा है तो वे संबंधित जिलों के एसपी और जिला कलेक्टर से संपर्क कर सकते हैं.


 विधानसभा में भाजपा के मुख्य सचेतक कालूलाल गुर्जर ने जान को खतरा मानते हुए पीएसओ मुहैया कराने की मांग की थी. गृह विभाग का कहना है कि ये मामला स्क्रीनिंग कमेटी से संबंधित मामलों को लेकर बनाई गई कमेटी में मंजूरी के लिए भेजा है. हालांकि, अभी तक कालूलाल गुर्जर को सुरक्षा मुहैया नहीं कराई गई है, जबकि गृह विभाग ने आनंदपाल मुठभेड़ से जुड़े तीन अफसरों को सुरक्षा प्रदान करने की स्वीकृति दे दी है.



हालांकि मामले में एसओजी के डीआईजी ने गृह विभाग को लेटर लिखकर सुरक्षा प्रदान करने का अनुरोध किया था. चुनावी मौसम के चलते जनप्रतिनिधि ने अपनी जान को खतरा बताया है. जनप्रतिनिधियों का कहना है की विधानसभा क्षेत्र में प्रचार के दौरान विरोधी दल के सदस्य हैं, उन पर हमला कर सकते हैं. उनका कहना है कि फिल्ड में होने की वजह से तरह तरह के लोगों से मिलना होता है. 

सीबीआई विवाद मोदी के ‘गुड गवर्नेंस’ के दावे की पोल खोलता है

केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो के भीतर हो रही जूतमपैजार भ्रष्टाचार के बदनुमा चेहरे को सामने लाने के साथ राजनीतिक नेतृत्व के शीर्ष स्तर पर सवाल खड़े करती है.


 केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशक आलोक वर्मा ने प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) से लिखित में सिफारिश की है कि सीबीआई के विशेष निदेशक और कथित भ्रष्टाचार के मामले के आरोपी राकेश अस्थाना को करोड़ों की रिश्वत के इस मामले में चल रही जांच पूरी होने तक निलंबित किया जाए, साथ ही उन्हें वापस उनके मूल कैडर गुजरात भेजा जाए क्योंकि वे सीबीआई में काम करने के लिए ‘अयोग्य’ हैं.

पीएमओ को भेजा गया औपचारिक पत्र या संदेश इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि इसके प्रति प्रधानमंत्री की सीधी जवाबदेही बनती है.

आलोक वर्मा यह बात प्रधानमंत्री को दो बार बता चुके हैं- पहली बार रविवार शाम हुई एक मुलाकात में और दूसरी बार सोमवार को लिखित में. वर्मा ने ‘बढ़ते हुए संक्रमण’ के बारे में बताया है, जो कैबिनेट सचिवालय की रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) समेत जांच और सुरक्षा एजेंसियों के लिए खतरा बन सकता है.

इसका जिम्मा नरेंद्र मोदी के सिर आता है क्योंकि केंद्र सरकार का कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) सीधे पीएमओ के अधीन है.

आलोक वर्मा जनवरी में रिटायर होने वाले हैं और अस्थाना, जो मोदी-अमित शाह दोनों के करीबी माने जाते हैं, वर्मा के बाद निदेशक के लिए पहली पसंद होंगे. असल में, आलोक वर्मा की नियुक्ति से पहले ही अस्थाना को कुछ महीनों के लिए सीबीआई निदेशक बनाया गया था.

15 अक्टूबर को एक अप्रत्याशित कदम उठाते हुए सीबीआई ने हैदराबाद के कारोबारी सतीश बाबू सना की शिकायत पर राकेश अस्थाना को मुख्य आरोपी बनाते हुए एक एफआईआर दर्ज की. इस मामले में सह-आरोपी दुबई के एक इनवेस्टमेंट बैंकर मनोज प्रसाद हैं, जिन्हें गिरफ्तार किया जा चुका है.

सोमवार को सीबीआई ने अपने डिप्टी एसपी देवेंद्र कुमार को गिरफ्तार किया, जिन पर सना से 3 करोड़ रुपये की रिश्वत लेने का आरोप है.

सीबीआई के भीतर मचा यह घमासान भ्रष्टाचार के बदनुमा चेहरे को सामने लाता है और मोदी के ‘गुड गवर्नेंस’ के दावे का मज़ाक उड़ाता है. इससे राकेश अस्थाना द्वारा जांचे गए हाई-प्रोफाइल मामलों, जिसमें विजय माल्या  मामले को कमज़ोर करने के बारे में बताया  और अगस्ता वेस्टलैंड के मामले शामिल हैं, की जांच पर भी सवालिया निशान खड़े होते हैं.

सूत्र बताते हैं कि आलोक वर्मा सीबीआई के कामकाज में गैर-संवैधानिक दखल को रोकने के प्रयास कर रहे थे, वहीं राकेश अस्थाना को, वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार ‘गुजरात मॉडल’, के साथ काम करने में कोई परेशानी नहीं है.

मौजूदा संकट का सार यही है. यहां तक कि पीएमओ भी निष्पक्ष नहीं है, बल्कि इन सब में एक सक्रिय खिलाड़ी के बतौर शामिल है. राकेश अस्थाना को पीएमओ के आला अधिकारियों का सहयोग प्राप्त है और बाकियों का रवैया उनके प्रति नरम है.

सीबीआई निदेशक सत्तारूढ़ दल के नेतृत्व द्वारा विपक्षी नेताओं को डराने के लिए छापे मारने के मनमाने इस्तेमाल के भी खिलाफ भी हैं. सीबीआई के एक मामले में आरोप पत्र दाखिल कर देने के बावजूद सीबीआई को एक प्रमुख विपक्षी नेता के यहां छापा मारने का आदेश मिला था.

आलोक वर्मा ने यह कहते हुए इससे इनकार कर दिया था कि सबूत जमा करने के लिए छापे मारने की अवधि ख़त्म हो चुकी है और किसी नई जानकारी की आवश्यकता नहीं है.

इसी तरह, वर्मा ने विपक्ष के कम से कम तीन मुख्यमंत्रियों पर छापे और गिरफ्तारियों को रोका था. एक मामले में प्रमुख सचिव को गिरफ्तार किया गया था और मुख्यमंत्री के यहां छापा पड़ा. वहीं एक अन्य मुख्यमंत्री के भतीजे के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति रखने के मामले में जांच की जा रही है.

विपक्ष की एक प्रमुख महिला नेता के भाई को सीबीआई द्वारा जब-तब निशाना बनाया जाता है और जब भी वे एक महत्वपूर्ण गठबंधन से जुड़ने को लेकर फैसला करने वाली होती हैं, उनके भाई को दो दिन के लिए हिरासत में ले लिया जाता है.

एक अन्य उदाहरण भी है, जहां बताया जाता है कि अस्थाना भ्रष्टाचार के एक मामले 70 साल की एक विपक्षी नेता और उनके बेटे को गिरफ्तार करना चाहते थे. आलोक वर्मा ने तब तर्क दिया था कि यह वित्तीय अपराध है इसलिए इसमें हिरासत के बजाय पैसे के लेन-देन की जानकारी की जरूरत है.

सूत्रों का कहना है कि यह बिल्कुल स्पष्ट है कि सीबीआई के अंदर चल रही यह खींचतान, उस राजनीति से जुड़ी है, जिसे कुछ लोग गुजरात से आयातित बताते हैं. और यह खींचतान केवल सीबीआई से जुड़ी नहीं है, बल्कि इसमें प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और रॉ भी शामिल हैं.

मंगलवार, 23 अक्टूबर 2018

सीबीआई बनाम सीबीआई: आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना के बीच लड़ाई की पूरी कहानी

देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी के इतिहास में पहला ऐसा मौका है जब उसके दो वरिष्ठतम अधिकारी एक दूसरे पर बेहद संगीन आरोप लगा रहे हैं.


 इस समय देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के बीच लड़ाई जारी है. सीबीआई ने मोईन कुरैशी भ्रष्टाचार मामले में रिश्वत लेने के आरोप में अस्थाना के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया है और अपने ही डीएसपी देवेंद्र कुमार को गिरफ्तार किया है.

जांच एजेंसी के इतिहास में यह पहला मौका है जब सीबीआई ने अपने ही विशेष निदेशक के खिलाफ केस दर्ज किया है. इस मामले के बाद सीबीआई के नंबर एक (आलोक वर्मा) और नंबर दो (राकेश अस्थाना) के बीच चली आ रही जंग खुल कर सामने आ गई है. अस्थाना की सीबीआई में नियुक्ति विवादित रही है. इनकी नियुक्ति के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई गई थी.

ये भी आरोप है कि सीबीआई में अस्थाना की नियुक्ति बहुत जल्दबाजी में की गई थी. राकेश अस्थाना को केंद्र की मोदी सरकार का करीबी माना जाता है.

कौन हैं आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक इस लड़ाई की शुरुआत से पहले दोनों का काफी लंबा और अविवादित कार्यकाल रहा है. वर्मा 22 साल की उम्र में 1979 में आईपीएस अधिकारी बने थे और उन्हें एजीएमयूटी (अरुणाचल, गोवा, मिजोरम, केंद्र शासित प्रदेश) कैडर दिया गया था. वर्मा अपनी बैच में सबसे कम उम्र के अधिकारी थे.

सीबीआई निदेशक का पद संभालने से पहले आलोक वर्मा दिल्ली पुलिस के कमिश्नर, दिल्ली कारागार निदेशक, मिजोरम और पुदुचेरी के डीजीपी जैसे पदों पर रह चुके थे. वर्मा सीबीआई के एकमात्र ऐसे निदेशक हैं जो एजेंसी के अंदर काम किए बगैर सीधे नियुक्त किए गए थे.

वहीं राकेश अस्थाना गुजरात कैडर के 1984 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं. अस्थाना ने चारा घोटाला, 2002 गोधरा ट्रेन अग्निकांड जैसे कई महत्वपूर्ण मामलों की जांच की है. गोधरा मामले के समय अस्थाना इंस्पेक्टर जनरल इंचार्ज थे. लालू यादव को सजा दिलाने को लेकर चारा घोटाला मामले में अस्थाना की जांच काफी महत्वपूर्ण थी. अस्थाना को मौजूदा केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार का करीबी माना जाता है.

कैसे होती है सीबीआई निदेशक की नियुक्ति
लोकपाल कानून बनने से पहले सीबीआई निदेशक की नियुक्ति दिल्ली स्पेशल पुलिस एक्ट के तहत की जाती थी. इस एक्ट के तहत, केंद्रीय सतर्कता आयुक्त, गृह सचिव और कैबिनेट सचिवालय के सचिवों की समिति में संभावित उम्मीदवारों की सूची तैयार की जाती थी. इस पर आखिरी फैसला प्रधानमंत्री कार्यालय और गृह मंत्रालय के साथ बातचीत के बाद लिया जाता था.

हालांकि लोकपाल कानून आने के बाद गृह मंत्रालय द्वारा भ्रष्टाचार विरोधी मामलों की जांच करने वाले वरिष्ठ अधिकारियों की एक सूची तैयार की जाती है जिसमें से किसी एक को सीबीआई निदेशक नियुक्त करना होता है. इसके बाद इस सूची को प्रशिक्षण विभाग के पास भेजा जाता है जहां पर इसकी वरिष्ठता और अनुभव के आधार पर आकलन किया जाता है. इसके बाद एक सूची लोकपाल सर्च कमेटी के पास भेजी जाती है जिसके सदस्य प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश और विपक्ष के नेता होते हैं. सर्च कमेटी नामों की जांच करती है और सरकार को सुझाव भेजती है.

सरकार केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) से बातचीत करने के बाद सीबीआई में अन्य सबऑर्डिनेट अधिकारियों की नियुक्ति करती है. हालांकि सीबीआई में आधिकारिक रूप से नंबर 2 का कोई पद नहीं है. निदेशक ही एजेंसी का सबसे बड़ा अधिकारी होता है. अन्य किसी अधिकारी के पास कोई स्वतंत्र शक्ति नहीं होती है जो निदेशक के आदेश की अवहेलना कर सके. निदेशक पास ये भी अधिकार होता है कि वो कौन सा मामला किस अधिकारी को आवंटित करेगा. इसके अलावा मात्र निदेशक को ही किसी मामले में अंतिम फैसला लेने का अधिकार है.

क्या है मौजूदा मामला?
इस मामले की शुरुआत साल 2017 से होती है जब मोदी सरकार ने सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा की सिफारिश के बावजूद कुछ आईपीएस अधिकारियों की नियुक्ति सीबीआई में नहीं की. अक्टूबर 2017 में राकेश अस्थाना की नियुक्ति को लेकर सीवीसी के साथ हुई बैठक में सीबीआई निदेशक वर्मा ने एक गोपनीय पत्र दिया था.

कथित रूप से उस पत्र में स्टर्लिंग बायोटेक मामले को लेकर अस्थाना के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत थी. आरोप है कि कंपनी के परिसर में पाई गई एक डायरी के मुताबिक अस्थाना को कंपनी द्वारा 3.88 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया था. स्टर्लिंग बायोटेक पर 5,000 करोड़ रुपये से ऊपर के लोन की हेराफेरी की जांच चल रही है.

इस साल जून में सीबीआई निदेशक वर्मा ने एक बार फिर अस्थाना पर निशाना साधा. निदेशक ने सीवीसी को लिखा कि उनकी अनुपस्थिति में राकेश अस्थाना सीवीसी मीटिंग में सीबीआई नियुक्ति के दौरान उनका प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते हैं.

वर्मा ने कहा कि अस्थाना के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले को लेकर जांच चल रही है. हालांकि अस्थाना ने भी निदेशक पर पलटवार किया. अस्थाना ने कैबिनेट सचिव को अगस्त में पत्र लिखा कि आलोक वर्मा उनकी जांच में हस्तक्षेप कर रहे हैं और आईआरसीटीसी घोटाला मामले में लालू प्रसाद यादव के खिलाफ छापेमारी रोकने की कोशिश की.

इस मामले के दो महीने के अंदर ही वर्मा ने अस्थाना के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप में एफआईआर दर्ज कराया.

क्या है अस्थाना पर आरोप
अस्थाना पर आरोप है कि उन्होंने मीट कारोबारी मोईन कुरैशी भ्रष्टाचार मामले में हैदराबाद के एक व्यापारी से दो बिचौलियों के जरिये पांच करोड़ रुपये की रिश्वत मांगी. सीबीआई का आरोप है कि लगभग तीन करोड़ रुपये पहले ही बिचौलिये के जरिये अस्थाना को दिए जा चुके हैं.

सीबीआई का दावा है कि वॉट्सऐप मैसेजेस से इस बात की पुष्टि होती है कि अस्थाना को रिश्वत दी गई है. हालांकि हैदराबाद का व्यापारी अस्थाना से न तो कभी मिला और न ही बात की है. ये भी  कहा जा रहा है कि चूंकि अस्थाना वाले मामले में कोई रंगे हाथ रिश्ववत लेते पकड़ा नहीं गया इसलिए सीबीआई को एफआईआर करने से पहले सरकार से इजाजत लेनी चाहिए थी.

इस मामले को लेकर सीबीआई के अंदर भी दो धड़े हो गए हैं. ज्यादातर लोग आलोक वर्मा के साथ हैं. हालांकि कुछ लोग राकेश अस्थाना के भी साथ हैं. इनके अलावा तमाम अधिकारियों ने किसी का पक्ष नहीं लिया है.

निर्वाचन से जुड़ें सभी अधिकारी पूर्ण प्रतिबद्धता के साथ काम करें - आनंद कुमार

जयपुर । प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी आनंद कुमार ने कहा है कि अभी तक आचार संहिता के उल्लंघन की कोई बड़ी शिकायत आयोग को नहीं मिली है। उन्होंने कहा कि पोस मशीनों से निकलने वाली रसीद में कमल के निशान को लेकर जो आपत्ति कांग्रेस ने जताई थी,उसे केंद्रीय निर्वाचन आयोग के पास भेजा गया है। यह शिकायत केंद्रीय चुनाव आयोग के पास विचाराधीन है। 

शासन सचिवालय में पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने बताया कि अभी तक प्रदेश में कुल बूथों में से 8000 बूथ संवेदनशील है। उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों से बैठक करके यह अपील की गई है कि वह अपने बूथ एजेंट के जरिये स्थानीय निवासियों का अधिक से अधिक मतदाता परिचय पत्र बनवाये। मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने बताया कि प्रदेश में 9 नवंबर तक मतदाता अपना नाम मतदाता सूची में जोड़ने के लिए आवेदन कर सकता है।

इससे पहले मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने शासन सचिवालय स्थित कॉन्फ्रेंस हॉल में प्रदेश भर के स्वीप नोडल (मुख्य कार्यकारी अधिकारी) अधिकारियों को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि मतदाता सूची में एक जनवरी की अहर्ता तिथि के अनुसार 18 वर्ष की आयु के पात्र युवा मतदाताओं एवं शेष रहे लोगों के नाम अभी भी जोड़े जा रहे हैं। इसके लिए काॅलेजों में जाकर ऐसे मतदाताओं को चिन्हित करें और उनका नाम मतदाता सूची में जुड़वाएं। उन्होंने कहा मतदान केंद्रों पर भारत निर्वाचन आयोग के नियमों के अनुसार मतदाताओं की सुविधा के लिए आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाएं। दिव्यांग मतदाताओं के चिन्हीकरण का काम नामांकन दाखिल करने की आखिरी तिथि तक जारी रखें तथा पात्र दिव्यांगजनों का नाम भी जुड़वाया जाए।

मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने कहा कि राज्य भर में स्कूली छात्रों से पूर्व की भांति संकल्प पत्र भरवाएं ताकि वे अपने घर के पात्र मतदाताओं को मताधिकार का प्रयोग करने के लिए प्रेरित करें। उन्होंने कहा कि दिव्यांगजनों को मतदान केंद्रों पर सहयोग करने के लिए 18 वर्ष या अधिक की आयु के एनसीसी, स्काउट या एनएसएस के स्वयंसेवकों को मतदान केंद्रों पर नियोजित करें। उन्होंने कहा कि निर्वाचन से जुड़ें सभी अधिकारी पूर्ण प्रतिबद्धता के साथ काम करें ताकि लोकतंत्र के उत्सव की सार्थकता बनी रहे।

प्रशिक्षण को संबोधित करते हुए अतिरिक्त मुख्य निर्वाचन अधिकारी डॉ.जोगाराम ने कहा कि भारत निर्वाचन आयोग द्वारा इस चुनाव में प्रदेश में पहली बार चार कार्य किए जा रहे हैं। इसके तहत सभी मतदान केंद्रों पर एक साथ वीवीपैट मशीनों का प्रयोग, दिव्यांग मतदाताओं पर विशेष फोकस, प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में एक मतदान केंद्र को पूर्णतया महिलाओं द्वारा संचालित किया जाना तथा आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायत के लिए सी-विजिल एप का प्रयोग किया जा रहा है। प्रशिक्षण के आखिर में डॉ.जोगाराम द्वारा स्वीप कार्यक्रम पर प्रस्तुतिकरण के साथ ही जिलों में स्वीप गतिविधियों की समीक्षा भी की।

प्रशिक्षण की शुरुआत उप मुख्य अधिकारी विनोद पारीक ने मुख्य कार्यकारी अधिकारी, जिला परिषद से इलेक्टोरल लिटरेसी क्लब (ईएलसी) स्थापित करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि स्वीप कार्यक्रम में गैर राजनीतिक लोगों को जोड़ा जाए, ईवीएम-वीवीपैट के लिए जिला स्तर पर आवश्यक हो तो एक और प्रशिक्षण आयोजित करवाया जाए।

प्रशिक्षण में सीईओ जिला परिषद अजमेर अरुण गर्ग, राष्ट्रीय स्तर मास्टर ट्रेनर सुधांशु जैन तथा मुख्यालय स्थित स्वीप प्रकोष्ठ के अशोक पारीक ने प्रस्तुतिकरण के माध्यम से स्वीप कार्यक्रम को प्रभावी तरीके से क्रियान्वित करने की जानकारी दी। जिला स्तर पर चित्तौड़गढ़, डूंगरपुर, राजसमंद तथा हनुमानगढ़ से आए अधिकारियों ने अपने-अपने जिलों में स्वीप गतिविधयों की जानकारी प्रदान की।

इस अवसर पर संयुक्त मुख्य निर्वाचन अधिकारी(आईटी) एमएम तिवारी ने चुनावों के दौरान काम में आने वाली आईटी एप्लीकेशंस के बारे में जानकारी दी। इससे पहले मुख्य निर्वाचन अधिकारी जिला मतदाता शिक्षा कमेटी, अजमेर द्वारा तैयार की गई ‘मतदाता प्रवाह‘ पुस्तिका तथा मतदाता जागरुकता के लिए एक रिंगटोन का लोकार्पण भी किया।