सोचें, दुनिया इस समय क्या कर रही है और भारत में क्या हो रहा है? दुनिया के शायद ही किसी सभ्य और विकसित लोकतांत्रिक देश में इस बात की चिंता की जा रही होगी कि उसके नागरिकों का पेट कैसे भरेगा। शायद ही कहीं इस बात की चिंता होगी कि अगर सरकार मुफ्त अनाज नहीं देगी तो उसके नागरिक भूखों मर जाएंगे। अत्यंत पिछड़े अफ्रीकी देशों, उसमें भी सब सहारा के देशों और कुछ लैटिन अमेरिकी देशों को छोड़ दें तो भूखमरी अब शायद ही कहीं की चिंता है। पर भारत में कोरोना वायरस की भारी महामारी के बीच सबसे बड़ी चिंता भूख की है, लोगों का पेट भरने की है। इलाज से ज्यादा इस बात की चिंता है कि लोगों का पेट कैसे भरेगा, उनका जीवन कैसे बचेगा।
एशिया और उसमें भी भारतीय उप महाद्वीप यानी दक्षिण एशिया के देशों को देखें तो उनके यहां भी कहीं से ऐसी खबरें सुनने को नहीं मिल रही हैं, जैसी भारत को लेकर हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए बड़े गर्व से बताया कि दुनिया के लिए यह हैरानी की बात है कि भारत में 80 करोड़ लोगों को सरकार मुफ्त राशन दे रही है। मुफ्त राशन की यह योजना सस्ते राशन की योजना से अलग है। इसे मई में शुरू किया गया, जब लाखों की संख्या में मजदूरों ने शहर छोड़ कर अपने घर लौटना शुरू किया। वह भी अभूतपूर्व संकट का समय था। उसे भी दुनिया ने देखा। कोरोना संकट के समय में दुनिया के किसी भी देश में पलायन का ऐसा अभूतपूर्व संकट कहीं और देखने को नहीं मिला। दुनिया ने देखा कि कैसे लाखों लोग भरी गरमी में अपने छोटे छोटे बच्चों को लेकर पैदल चले और सैकड़ों लोग इस क्रम में सड़कों पर मर गए।
लेकिन भारत की केंद्र व राज्य सरकारों ने इसमें भी गर्व करने का मौका खोज निकाला। उन्होंने गर्व के साथ बताया कि कैसे विशेष ट्रेन, बसों आदि की व्यवस्था करके लाखों लोगों को घर पहुंचाया गया। सरकारें चाहती हैं कि मजदूर इसके लिए उनका आभार मानें और वोट दें। उसी गर्व के साथ प्रधानमंत्री ने बताया कि दुनिया यह देख कर हैरान है कि भारत में 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज दिया जा रहा है। इस योजना के तहत 80 करोड़ लोगों को अगले पांच महीने तक पांच किलो अनाज मिलेगा। यह उस व्यक्ति की मर्जी पर है कि वह पांच किलो गेहूं लेता है या पांच किलो चावल। इसके अलावा उसे एक किलो चना भी मिलेगा। गेहूं या चावल और चने को वह अपने भोजन में कैसे बदलेगा यह उस पर निर्भर है।
उसकी बाकी जरूरतों के लिए उसे महात्मा गांधी नरेगा की योजना के तहत या प्रधानमंत्री गरीब कल्याण रोजगार योजना के तहत काम मिलेगा। मुफ्त राशन और गरीब कल्याण रोजगार योजना बिल्कुल हाल में घोषित की गई है, जिसका एक मकसद चुनावी लाभ हासिल करना भी हो सकता है। ध्यान रहे इस साल के अंत में बिहार में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं और गरीब कल्याण रोजगार अभियान की शुरुआत बिहार से ही की गई।
केंद्र सरकार की देखा-देखी पश्चिम बंगाल सरकार ने मुफ्त अनाज बांटने की अपनी राज्य सरकार की योजना को अगले साल जून तक बढ़ा दिया है। वहां अगले साल मई में विधानसभा के चुनाव होंगे। यह भी भारत महान की ही खूबी है, जो राजनीतिक पार्टियों के मुखिया या प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री मुफ्त अनाज और सौ-डेढ़ सौ रुपए रोज वाली कोई अस्थायी रोजगार की योजना शुरू करते हैं और उस पर उनको वोट मिल जाता है। भारत में एक तरफ विकास की होड़, आत्मनिर्भर भारत, विश्व गुरू और महाशक्ति बनने के नारे हैं तो दूसरी ओर 80 करोड़ लोगों के लिए दो वक्त के भोजन और सौ-डेढ़ सौ रुपए के एक अदद रोजगार की हकीकत है।
असल में यहीं भारत की हकीकत है बाकी चीजें ऊपरी दिखावा हैं। भारत का विकास असल में चंद लोगों के निजी उद्यम का नतीजा है और जिस बुनियादी ढांचे की बात की जाती है वह उन चंद लोगों के निजी उद्यम की जरूरतों को पूरा करने की अनिवार्यता के तहत तैयार हो गई हैं। वह देश की हकीकत नहीं है। देश की हकीकत यहीं पांच किलो गेहूं या चावल और एक किलो चना है। दूसरी हकीकत मनरेगा की या गरीब कल्याण अभियान की नौकरी है। जाहिर है आजादी के बाद से विकास के जितने भी वादे हैं वे सब झूठे हैं हकीकत भारत की गरीबी है, जिस पर भारत के नेता गर्व कर रहे हैं, जबकि कायदे से यह शर्म की बात होनी चाहिए कि आजादी के 73 साल के बाद भारत में 80 करोड़ लोगों की हैसियत दो वक्त का खाना जुटाने की भी नहीं है।
भारत में पहली बार आधिकारिक रूप से गरीब हटाने का अभियान इंदिरा गांधी ने 1970 में छेड़ा था। उन्होंने गरीबी हटाओ का नारा दिया था। प्रचार में कहा था कि वे गरीबी हटाना चाहती हैं और विपक्ष उनको हटाना चाहता है। उस नारे के 50 साल हो गए हैं और हकीकत यह है कि उस समय पूरे देश की जितनी आबादी थी, उससे ज्यादा लोग अब गरीब हो गए हैं। गरीबी हटने की बजाय बढ़ती गई। अलग अलग पार्टियों की सरकारों ने झूठे दावे किए कि उन्होंने कितने लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर कर दिया। किया होगा पर असल में गरीबी रेखा के ऊपर या बहुत ऊपर भी गरीबी ही है। ऐसा नहीं है कि भारत में कोरोना वायरस की वजह से आर्थिक गतिविधियां बंद हुई हैं तब लोग गरीब हुए हैं। वे पहले से गरीब थे और अब एबसोल्यूट पॉवर्टी में चले गए हैं, जहां दो वक्त के खाने की व्यवस्था उनके पास नहीं है।

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