पीएम केयर्स फंड किसलिए है, ये तेजी से उठ रहे सवालों के बीच आखिरकार सरकार ने कोरोना से संघर्ष के लिए 3,100 करोड़ रुपये जारी करने का एलान किया। हालांकि फंड में सैकड़ों करोड़ रुपए जमा हैं और उस नजरिए से यह रकम ऊंट के मुंह में जीरा जितनी ही है, मगर यह कहा जा सकता है कि चलो, शुरुआत तो हुई। बहरहाल, इससे इस फंड को लेकर उठे बुनियादी सवालों का जवाब नहीं मिलता। वो प्रश्न कायम हैं और सीधे सरकार से स्पष्टीकरण की अपेक्षा रखते हैं।
कोरोना महामारी के बीच प्रधानमंत्री के नाम पर स्थापित हुआ प्राइम मिनिस्टर्स सिटीजेन असिस्टेंस एंड रिलीफ इन इमरजेंसी सिचुएशंस (पीएमकेयर्स) फंड शुरू से सवालों के घेरे में रहा है तो इसकी कुछ ठोस वजहें हैं। पहला प्रश्न तो यही है कि जब प्रधानमंत्री के नाम पर देश में एक फंड (प्राइम मिनिस्टर्स नेशनल रिलीफ फंड) पहले से मौजूद है, तो एक नए फंड की क्या जरूरत थी? पुराने फंड में ऐसी क्या कमी थी जिसे ये नया फंड पूरा करेगा? पिछले डेढ़ महीने में इस कोष में कितना पैसा आया, इसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई है। मीडिया में आई खबरों के अनुसार स्थापना के पहले हफ्ते में ही इसमें लगभग 6,500 करोड़ रुपए आ गए थे।
इसके विपरीत पहले से चले आ रहे प्रधानमंत्री राहत कोष में की वेबसाइट पर इसका पूरा ब्योरा रहता है कि फंड में कितना पैसा आया, कितना खर्च हुआ और कितना बचा है। दोनों ही कोषों में दान करने पर इनकम टैक्स से छूट मिलती है।
नए फंड में कंपनियों द्वारा योगदान को उनके सामाजिक दायित्व खर्चे यानी सीएसआर के तहत दिखाया जा सकता है। पहले वाले फंड में यह व्यवस्था नहीं थी, लेकिन ये प्रावधान महज एक कार्यकारी फैसले से किया जा सकता था। बहरहाल, पीएम केयर्स की कुछ और आलोचनाएं भी हैं। कहा तो यह भी गया है कि जिन कंपनियों ने अपने सीएसआर फंड से पीएम केयर्स में बड़ा चंदा दिया, उनमें से कई ने कोविड-19 और तालाबंदी की वजह से हुए नुकसान का हवाला दे कर अपने कर्मचारियों को पूरा वेतन नहीं दिया है।
ऐसी भी खबरें आई हैं कि फंड के बारे में और जानकारी हासिल करने के लिए सूचना के अधिकार के तहत दायर किए गए आवेदनों को भी नकार दिया गया। कहा जाता है कि पारदर्शिता सबसे अच्छी नीति है। लेकिन पीएम केयर्स के मामले में इसका अभाव है। इसीलिए इसके फंड के अच्छे उपयोग के बावजूद इस पर उठे अनेक सवाल कायम रहेंगे।

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें