केंद्र सरकार ने कोरोना वायरस के संकट के समय में कई समूहों के लिए छोटी-छोटी राहतों का ऐलान किया है। जन धन खातों में पैसे जा रहे हैं और किसान सम्मान निधि भी बंट रही है। प्रवासी मजदूरों के लिए पीएम केयर्स फंड से एक हजार करोड़ रुपए जारी किए गए हैं। पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस 20 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज की घोषणा की है वह असल में पैकेज नहीं है, इकोनॉमिक रिस्ट्रक्चरिंग की एक योजना है, जिसके तहत या तो कंपनियों के ऊपर कर्ज बढ़ेगा, डिफॉल्ट कंपनियों की संख्या बढ़ेगी और बैंकों की हालत ज्यादा बिगड़ेगी, जिसके लिए बाद में सरकार को फिर से राहत पैकेज देने की जरूरत पड़ेगी।
आर्थिक मामलों के सभी जानकार मानते हैं कि प्रत्यक्ष कर ठीक है और अप्रत्यक्ष कर ठीक नहीं है। उसी तरह किसी भी मामले में प्रत्यक्ष मदद बेहतर होती है और परोक्ष मदद से स्थिति खराब होती है। जैसे आर्थिक पैकेज में वित्त मंत्री बिजली वितरण कंपनियों को सीधे 90 हजार करोड़ रुपए की मदद की है वैसे ही सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम यानी एमएसएमई को भी सीधी राहत देनी चाहिए थी। पर सरकार ने बिजली वितरण कंपनियों को सीधी मदद दी और एमएसएमई को परोक्ष रूप से मदद की। एमएसएमई को बैंकों से कर्ज लेना होगा और बिजली वितरण कंपनियों को उनका कर्ज चुकाने के लिए सीधे सरकार ने पैसा दिया है। बिजली वितरण कंपनियों में अडानी पावर भी है, जिसके ऊपर बिजली जेनरेशन और ट्रांसमिशन कंपनियों का 38 सौ करोड़ रुपए के करीब बकाया है। सरकार की मदद से वह बकाया चुकता हो जाएगा।
दूसरी ओर एमएसएमई को इससे बहु कम फायदा होगा। एक तो सरकार ने इनकी परिभाषा बदल दी। पहले कम से कम 25 लाख रुपए के निवेश वाली कंपनी को माइक्रो यानी सूक्ष्म उद्यम माना जाता था। अब इसकी सीमा एक करोड़ कर दी गई है। सो, तय मानें कि पैकेज का ज्यादा फायदा ज्यादा पूंजी वाली कंपनियां उठाएंगी। पर उनकी भी मुश्किल यह है कि बिना कोलैटरल यानी बिना गारंटी का बैंकों से कर्ज लेना बहुत मुश्किल काम होता है। बैंक या तो कंपनियों को टरकाएंगे या रिश्वतखोरी बढ़ेगी। ऊपर इस समय बाजार में किसी भी उत्पाद की बहुत मामूली मांग है, जिसमें अगले काफी समय तक तेजी आने की कोई संभावना नहीं दिख रही है। इसलिए ईमानदारी से काम करने वाली कंपनियां शायद ही इस समय किसी नए कर्ज के लिए जाएंगी। हां, जिन कंपनियों को कर्ज लेकर फरार होना होगा या डिफॉल्ट करना होगा उनके लिए यह स्वर्णिम मौका है। कहीं ऐसा न हो तीन लाख करोड़ रुपए के इस कर्ज की हालत मुद्रा लोन की तरह हो जाए। देश भर के लगभग सारे बैंक मुद्रा लोन लेने वालों की तलाश में घूम रहे हैं और इसका बड़ा हिस्सा एनपीए होने वाला है।

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