कोरोना वायरस का भारत में प्रकोप बढ़ता जा रहा है। बीमारी से पीड़ित लोगों और इस कारण होने वाली मौतों की संख्या बढ़ती जा रही है। इस महामारी के कारण देश में दो महीने से भी अधिक समय से लॉकडाउन लागू है। इस दौरान मानवीय त्रासदी की अनगिनत कहानियां सामने आई हैं। आने वाले दिन और भी कठिन हैं। अर्थव्यवस्था की तबाही की सीमा क्या है, इसका अभी अनुमान लगाना भी मुश्किल लग रहा है। मगर इससे एक जिस चीज पर फर्क नहीं पड़ा है, वो है सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी की सियासत और उसका सत्ता का जश्न। शनिवार यानी 30 मई को नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल की पहली सालगिरह मनाई जाएगी। इस के पर जश्न होगा। हालांकि यह आम तौर पर मनाए जाने वाले जश्नों से अलग होगा। इसमें भारतीय जनता पार्टी के नेता मंचों पर नजर नहीं आएंगे। ना ही बड़ी-बड़ी रैलियों का आयोजन होगा।
लॉकडाउन की वजह से भाजपा ने अपने जश्न से जुड़े कार्यक्रमों को वर्चुअल तरीके से मनाने का फैसला किया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में प्रचंड बहुमत हासिल किया था। उसने लोकसभा की 303 सीटें जीतें थी। उसके बाद मोदी सरकार तेजी से हिंदुत्व के एजेंडे को लागू करने की दिशा में आगे बढ़ी। कश्मीर से संबंधित धारा 370 को खत्म करना, जम्मू- कश्मीर और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाना, और उसके बाद नागरिकता संशोधन कानून को पारित करना इस दिशा में उसके महत्त्वपूर्ण कदम रहे। नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ जोरदार आंदोलन छिड़ा, लेकिन कोरोना महामारी की उस पर भारी मार पड़ी। लॉकडाउन लागू होने के साथ ही उस पर विराम लग गया। कहा जा सकता है कि हिंदुत्व के मामले में भाजपा ने अपने एजेंडे को सफलतापूर्वक लागू किया है। मगर बात अगर अर्थव्यवस्था, सामाजिक मेलजोल और वैदेशिक संबंधों की की जाए, तो वहां अधिकतर नाकामियां ही नजर आती हैं। इसके बावजूद भाजपा जश्न मनाएगी। वह मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल की पहली सालगिरह के मौके पर “वर्चुअल रैली” का आयोजन करने जा रही है। ये रैली कंप्यूटर और इंटरनेट के माध्यम से होगी। इसके साथ ही एक हजार से अधिक ऑनलाइन कॉन्फ्रेंस भी होंगी। राज्य इकाइयों को इनका धूमधाम से आयोजन करने को कहा गया है। अब इस पर विरोधी सवाल उठाएं तो उठाएं, आखिर उससे मोदी सरकार और भाजपा को क्या फर्क पड़ता है?

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