रविवार, 31 मई 2020

अनलॉक-1 के दिशा-निर्देश, तोड़ा तो विभिन्‍न धाराओं के तहत हो सकेगी कार्रवाई

 कोरोना संकट से जूझते देश में पिछले कुछ समय से लॉकडाउन जारी है। आखिरी बार लॉकडाउन 31 मई तक के लिए बढ़ाया गया था। हालांकि अब केंद्र सरकार ने इसे अनलॉक-1 का नाम दिया है, जो 30 जून तक के लिए मान्य होगा। केंद्र सरकार की ओर से इसके लिए दिशा निर्देश जारी किए गए हैं। इसमें ऐसी कई बातें हैं जो बेहद काम की है, जिन्हें सभी को ध्यान में रखना चाहिए। साथ ही गाइडलाइन में साफ बताया है कि लॉकडाउन का उल्लंघन करने पर आपको सजा भी हो सकती है।



कार्यस्थल के लिए दिशा निर्देश

वर्क फ्रॉम होम: जहां तक हो सके वर्क फ्रॉम होम को सुनिश्चित करें।

जांच और स्वच्छता: थर्मल स्कैनिंग, हैंडवॉश और सैनिटाइजर की उपलब्धता प्रवेश और निकास द्वारों के साथ ही कॉमन एरिया में सुनिश्चित करें।


लगातार सैनिटाइज: पूरे कार्यस्थल को सैनिटाइज करते रहें। सीधे मानव संपर्क में आने वाले दरवाजे के हैंडल आदि को सैनिटाइज करें।

शारीरिक दूरी: कार्यस्थल पर शारीरिक दूरी का पालन कराएं। दो शिफ्ट के मध्य और लंच ब्रेक के दौरान स्टॉफ के मध्य शारीरिक दूरी रहे।

कार्य समय का पालन करें: ऑफिस, कार्यस्थल, दुकानों, बाजारों और औद्योगिक और वाणिज्यिक संस्थान निर्धारित कार्य समय का पालन करें।

लॉकडाउन तोड़ा तो क्या होगा

लॉकडाउन का पालन करना हर व्यक्ति के लिए बेहद जरूरी है। यदि आप लॉकडाउन का जानबूझकर पालन नहीं करते हैं तो आपके खिलाफ आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के अनुसार कार्रवाई की जा सकती है। अधिनियम की धारा 51 से 60 के मध्य बताया गया है कि यदि आप लॉकडाउन का उल्लंघन करते हैं या फिर अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करते हैं तो आपके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है।


धारा 51: बाधा पहुंचाने के लिए सजा गृह मंत्रालय द्वारा जारी निर्देशों में बताया गया है कि इस अधिनियम के तहत केंद्र सरकार या राज्य सरकार अथवा संबंधित प्राधिकरण के निर्देशों का पालन नहीं करेंगे या अधिकारियों और कर्मचारियों के कार्यों में बांधा डालने की कोशिश करेंगे तो एक साल की जेल या जुर्माने या दोनों से दंडित किया जा सकता है।

धारा 52: झूठे दावे के लिए यदि कोई व्यक्ति किसी भी तरह का लाभ प्राप्त करने के लिए झूठा दावा करता है तो उसे अधिकतम दो साल की जेल हो सकती है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।


धारा 53: धन या सामग्री का गबन यदि कोई व्यक्ति आपदा के लिए आए धन अथवा किसी सामग्री का गबन करता है तो अधिकतम दो साल की सजा और जुर्माना लगाया जा सकता है।

धारा 54: झूठी चेतावनी देना यदि कोई व्यक्ति आपदा से जुड़ी किसी असत्य चेतावनी को फैलाता है तो उसे एक साल की सजा और जुर्माना हो सकता है।

धारा 55: सरकारी विभाग द्वारा अपराध यदि किसी सरकारी विभाग द्वारा अपराध होता है तो उस विभाग के प्रमुख को दोषी माना जाएगा और उसके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है। हालांकि यदि वो यह साबित कर देता कि अपराध उसकी जानकारी के बिना हुआ है और इसमें उसका कोई योगदान नहीं है तो वह बच सकता है।


धारा 56: ड्यूटी निभाने में विफल या अधिनियम के उल्लंघन पर मिलीभगत करने पर यदि किसी अधिकारी द्वारा अपनी ड्यूटी सही ढंग से नहीं निभा पाता या फिर खुद को इससे अलग कर लेता है तो उसे एक साल की जेल या फिर जुर्माना लगाया जा सकता है।

धारा 57: आदेशों की अवहेलना करने पर यदि कोई व्यक्ति धारा-65 के तहत दिए गए आदेशों की अवहेलना करता है तो उसे अधिकतम एक साल की जेल अथवा जुर्माने की सजा हो सकती है।


धारा 58: कंपनी द्वारा अपराध यदि किसी कंपनी द्वारा अपराध होता है तो कंपनी, प्रत्येक सदस्य जिसने अपराध किया है और जिसके पास उस वक्त जिम्मेदारी थी, इसके लिए जिम्मेदार समझे जाएंगे। साथ ही उन पर मामला चलाया जाएगा।

धारा 59: अभियोजन की मंजूरी इस अधिनियम की धारा 55 और 56 के तहत अपराधों के लिए अभियोजन प्राधिकृत अधिकारी की पूर्व मंजूरी के बिना नहीं लगाया जाएगा।


धारा 60: अपराधों का संज्ञान कोई भी कोर्ट इस अधिनियम के तहत की गई शिकायत के अलावा किसी अपराध का संज्ञान नहीं लेगा। हालांकि यह कुछ बातों पर निर्भर करता है।

मास्क से चेहरा ढकें:

सार्वजनिक स्थान, कार्यस्थलों और परिवहन के दौरान चेहरे को मास्क से ढकना अनिवार्य है।

सार्वजनिक स्थान पर थूकना:

सार्वजनिक और कार्यस्थल पर थूकना जुर्माने के साथ दंडनीय, जो कानून के अनुरूप और राज्य/केंद्रशासित प्रदेश द्वारा निर्धारित किया जा सकता है।


पान-मसाले का प्रयोग: 

शराब, पान, गुटखा, तंबाकू आदि का प्रयोग सार्वजनिक स्थान पर प्रतिबंधित है।

शारीरिक दूरी रखें:

सार्वजनिक स्थल पर कम से कम 6 फीट (दो गज की दूरी) रखें। दुकानों पर ग्राहकों के मध्य शारीरिक दूरी सुनिश्चित हो और 5 से अधिक लोग एक समय पर वहां न हों।

भीड़भाड:

बड़ी सार्वजनिक सभाओं प्रतिबंध जारी रहेगा। शादी से जुड़े समारोहों में अधिकतम 50 मेहमानों को अनुमति होगी,जबकि अंतिम संस्कार में अधिकतम 20 लोग जा सकेंगे।

आयुष्मान भारत योजना में है पोर्टेबिलिटी की सुविधा, पीएम मोदी ने बताई खासियत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को मन की बात रेडियो कार्यक्रम के जरिए देशवासियों को संबोधित किया। जिसमें उन्होंने आयुष्मान भारत योजना का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि किस तरह से इस योजना में पोर्टेबिलिटी की सुविधा उपलब्ध है। प्रधानमंत्री ने बताया कि आयुष्मान भारत योजना के साथ एक बड़ी विशेषता पोर्टेबिलिटी की सुविधा है।

पोर्टेबिलिटी ने देश को एकता के रंग में रंगने में मदद की है। मतलब यदि बिहार का कोई गरीब चाहे तो उसे कर्नाटक में भी वैसी ही सुविधा मिलेगी जो उसे अपने राज्य में मिलती है। ठीक इसी तरह महाराष्ट्र का कोई गरीब चाहे तो उसे इलाज की वही सुविधा तमिलनाडु में भी मिल सकती है।

इस योजना की वजह से किसी भी क्षेत्र में जहां स्वास्थ्य की व्यवस्था कमजोर है। वहां के गरीब को देश के किसी भी कोने में बेहतर इलाज की सुविधा मिल सकती है। आयुष्मान भारत योजना के बारे में प्रधानमंत्री ने कहा, 'हमारे देश में करोड़ों-करोड़ गरीब, दशकों से एक बहुत बड़ी चिंता में रहते आए हैं- अगर बीमार पड़ गए तो क्या होगा? इस चिंता को दूर करने के लिए ही करीब डेढ़ साल पहले आयुष्मान भारत योजना शुरू की गई थी। कुछ ही दिन पहले आयुष्मान भारत के लाभार्थियों की संख्या एक करोड़ के पार हो गई है।'

आयुष्मान भारत ने बचाए गरीब के पैसे

प्रधानमंत्री ने कहा, 'मैं आयुष्मान भारत के सभी लाभार्थियों के साथ-साथ मरीजों का उपचार करने वाले सभी डॉक्टरों-नर्सों और मेडिकल स्टाफ को बधाई देता हूं।' आयुष्मान भारत योजना के एक करोड़ लाभार्थियों में से लगभग 80 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों से हैं। इसमें से भी 50 प्रतिशत लाभार्थी महिलाएं और बेटियां हैं। इन लाभार्थियों में ज्यादातर ऐसी बीमारी से पीड़ित थे जिनका सामान्य दवाओं से इलाज संभव नहीं था।

चक्रवाती तूफान अम्फान का भी किया जिक्र

अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने पश्चिम बंगाल और ओडिशा में आए चक्रवाती तूफान अम्फान का जिक्र किया। उन्होंने कहा, ‘एक तरफ हम महामारी से लड़ रहें हैं, तो दूसरी तरफ हमें हाल में पूर्वी भारत के कुछ हिस्सों में प्राकृतिक आपदा का भी सामना करना पड़ा है। पिछले कुछ हफ्तों के दौरान हमने पश्चिम बंगाल, ओडिशा में चक्रवात अम्फान का कहर देखा। हालात का जायजा लेने के लिए मैं पिछले हफ्ते ओडिशा, पश्चिम बंगाल गया था। पश्चिम बंगाल और ओडिशा ने बड़ी ही हिम्मत और बहादुरी के साथ हालात का सामना किया है।’

बिहारः शराब पीने-बेचने पर गिरफ़्तार लोगों को पीएम केयर्स फंड में पैसे जमा कराने पर ज़मानत





पटना हाईकोर्ट ने शराब पीने या बेचने के अपराध में गिरफ्तार लोगों को पीएम केयर्स फंड में रुपये जमा कराने पर ही जमानत देने का आदेश दिया है।

 जस्टिस अंजनी कुमार शरण ने शनिवार को शराबबंदी से संबंधित कई जमानत याचिकाओं की सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया।

हाईकोर्ट ने निचली अदालत को आदेश दिया कि किसी आरोपी की जमानत याचिका तभी स्वीकार की जाए जब वो पीएम केयर्स फंड में जमा की गई राशि की रशीद दिखाए।

हालांकि, किसी आरोपी ने जमानत की ऐसी शर्त रखे जाने पर अपना विरोध नहीं जताया है।

अदालत ने अभियुक्तों के पास से बरामद शराब के बराबर की राशि पीएम केयर्स फंड में जमा कराने के बाद जमानत दी है।

अदालत द्वारा लगाए गए शर्त को मानने के बाद कई अभियुक्त जमानत पर रिहा किए गए हैं।

अनुमान है कि इस तरह से पीएम केयर्स फंड में कम से कम तीन लाख रुपये इकट्ठा हो सकते हैं।

बता दें कि कोरोना वायरस को रोकने के लिए देशभर में लागू लॉकडाउन के समय शराबबंदी के मामलों में पटना हाइकोर्ट ने यह फैसला दिया है।

मालूम हो कि इससे पहले पटना हाईकोर्ट ने फर्जीवाड़े के एक मामले में एक बिल्डर को इस शर्त पर जमानत दी थी कि वो कोरोना पीड़ितों की सेवा करेंगे।

1 जून से देश-प्रदेश में लॉकडाउन को अब अनलॉक फेज में बदल

जयपुर। केंद्र सरकार ने लॉकडाउन को अब अनलॉक फेज में बदल दिया है। 1 जून से छूट का दायरा और बढ़ा दिया है। राजस्थान में क्या छूटें दी जा सकती हैं, इसे लेकर गहलोत सरकार  फैसला लेगी।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि धार्मिक स्थल और स्कूल कैसे खोलने हैं और वहां सोशल डिस्टेंसिंग की पालना कैसे हो, इस पर विचार किया जाएगा। 1 जून से कंटेनमेंट के बाहर स्थित स्मारक खोले जा सकते हैं। 

केंद्र सरकार ने अब देश को अनलॉक करने की गाइडलाइंस जारी की हैं। रियायतें बढ़ाने के साथ ही सरकार ने मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग समेत कई ऐहतियात बरतने की सलाह दी है। लॉकडाउन की पाबंदी 30 जून तक सिर्फ कंटेनमेंट जोन में रहेंगी। इसके बाहर 8 तरह की गतिविधियों के अलावा सभी कार्यों को छूट है। ये 8 गतिविधियां 3 चरणों में अलग-अलग समय पर खुलेंगी।


शुरुआत 8 जून से धर्मस्थल, होटल, रेस्तरां और शॉपिंग मॉल्स के साथ होगी। स्कूल-कॉलेज खोलने की तारीख जुलाई में तय होगी। रियायतों पर अंतिम फैसला राज्य करेंगे। राज्य कंटेनमेंट के बाहर भी गतिविधियां रोक सकते हैं। 


राजस्थान 3 फीसदी ब्याज पर किसानों को रहन ऋण मिलेगा



जयपुर ।सहकारिता मंत्री  उदयलाल आंजना ने बताया कि एक जून को सभी जिलों मेंग्राम सेवा सहकारी समितियां किसानों को रहन ऋण वितरण करउपज रहन ऋण योजनाका शुभारंभ करेगी।कोविड-19 महामारी के दौर में किसानों को कम दामों पर फसल नही बेचनी पडे़ इसके लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 3 प्रतिशत ब्याज दर पर उपज रहन ऋण देने का फैसला किया है। इसे अमलीजामा देते हुएजून माह में 25 हजार किसानों को योजना के तहत लाभ प्रदान करने का लक्ष्य रखा हैं।

  आंजना ने बताया कि ग्राम सेवा सहकारी समितियों के सदस्य लघु एवं सीमान्त किसानों को 1.50 लाख रूपये तथा बड़े किसानों को 3 लाख रूपये रहन ऋण के रूप में मिलेंगे। किसान को अपनी उपज का 70 प्रतिशत ऋण मिलेगा। इससे किसान की तात्कालिक वित्तीय आवश्यकताएं पूरी होगी। बाजार में अच्छे भाव आने पर किसान अपनी फसल को बेच सकेगा। उन्होंने कहा कि प्रतिवर्ष कृषक कल्याण कोष से 50 करोड रूपये का अनुदान इस योजना के लिए किसानों को मिलेगा।

प्रमुख शासन सचिव, सहकारिता एवं कृषि  नरेश पाल गंगवार नेबतायाकि योजना में पात्र समितियों का दायरा बढ़ाकर इसे 5 हजार 500 से अधिक किया गया है। भारत में सबसे कम ब्याज दर 3 प्रतिशत पर किसान को रहन ऋण देने की राजस्थान की यह विशेष पहल है। जो किसानों एवं समितियों की आय में वृद्धि करेगी। अधिक से अधिक पात्र किसानों को उपज रहन ऋण देकर उनकी तात्कालिक आवश्यकतों को पूरा करने में सहकारी समितियां मदद करेगी।

 गंगवार ने बताया कि सरकार की मंशा है कि प्रतिवर्ष 2 हजार करोड़ रूपये रहन ऋण के रूप में किसानों की मदद की जाए। जिसे मूर्त रूप दिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि इस कार्य में लगे कार्मिकों के लिए भी प्रोत्साहन योजना लाई जाएगी। जिलों के प्रबंध निदेशकों को निर्देश दिए गए है कि रहन ऋण वितरण कर किसानों को लाभान्वित किया जाए।

नोटबंदी, जीएसटी से बचते हुए उपलब्धियों का जिक्र

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले साल के मौके पर देशवासियों के नाम एक चिट्ठी लिखी। इसमे उन्होंने अपने दोनों कार्यकाल के छह साल की उपलब्धियों और बड़े फैसलों का जिक्र किया है। ज्यादातर उपलब्धियां पहले कार्यकाल की ही है। जैसे उन्होंने बताया कि कैसे भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक करके अपनी ताकत दिखाई। उन्होंने स्वच्छता, आर्थिक समावेश, गैस सिलिंडर, सैनिकों के लिए वन रैंक वन पेंशन आदि के फैसलों का जिक्र किया। इसी क्रम में उन्होंने वन नेशन, वन टैक्स का भी जिक्र किया। हालांकि इसके लिए उन्होंने जीएसटी शब्द का जिक्र नहीं किया।

प्रधानमंत्री ने दूसरे कार्यकाल की उपलब्धियों में अनुच्छेद 370 हटाने और नागरिकता कानून में बदलाव के फैसले का जिक्र किया है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का फैसला सुनाए जाने का भी जिक्र किया है। उन्होंने अपनी चिट्ठी में लगभग हर छोटी बड़ी उपलब्धि का जिक्र किया है, सिवाए नोटबंदी के। प्रधानमंत्री ने एक लाइन में यह तो लिखा है कि उनकी सरकार बनने के बाद भ्रष्टाचार खत्म हुआ पर न तो नोटबंदी का जिक्र किया और न उसकी वजह से काला धन खत्म होने या लेन-देन में पारदर्शिता आने या नकली नोट पूरी तरह से खत्म हो जाने या नोटबंदी से हुए दूसरे किसी बदलाव का जिक्र नहीं किया।


गिरती विकास दर, फिर भी बढती समृद्धि!

यह अजीब संयोग है कि जिस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों को चिट्ठी लिख कर अपनी सरकार के दो कार्यकाल के छह साल की उपलब्धियों का वर्णन किया उसी दिन राष्ट्रीय सांख्यिकी विभाग पिछले वित्त वर्ष 2019-20 के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का आंकड़ा भी जारी किया। इसके मुताबिक पिछले वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही यानी जनवरी से मार्च में विकास दर महज 3।1 फीसदी रही और इसकी वजह से पूरे साल की विकास दर गिर कर 4।2 फीसदी रह गई। यह आंकड़ा नरेंद्र मोदी सरकार के पहले साल के कार्यकाल के विकास दर के आंकड़ें के ठीक आधा है।

मोदी 2014 की मई में प्रधानमंत्री बने थे और 2015-16 के वित्तीय वर्ष में देश की विकास दर 8।2 फीसदी थी। अगले वित्त वर्ष यानी 2016-17 में इसमें एक फीसदी की गिरावट आई और यह 7।2 फीसदी रह गई। ध्यान रहे उसी साल नोटबंदी लागू हुई थी और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने विकास दर में एक फीसदी गिरावट की आशंक जताई थी। हालांकि तब प्रधानमंत्री ने हार्वर्ड बनाम हार्डवर्क का जुमला बोल कर कहा था कि हार्वर्ड वाले सारे गलत साबित हो गए। पर विकास दर के बारे में मनमोहन सिंह की आशंका सही साबित हुई।

पर असली गिरावट उसके बाद शुरू हुई। नोटबंदी के अगले साल वाले वित्त वर्ष यानी 2017-18 में विकास दर गिर कर आधा फीसदी और गिर कर 6।7 फीसदी पर आ गई। उसी वित्त वर्ष में वस्तु व सेवा कर, जीएसटी लागू किया गया था। यह सिलसिला जारी रहा और वित्त वर्ष 2018-19 में विकास दर और गिर कर 6।1 फीसदी पर आ गई। इसके बाद का साल भारत की अर्थव्यवस्था के लिए कयामत का रहा। जिस साल में देश ने नरेंद्र मोदी को दूसरी बार प्रधानमंत्री चुना यानी 2019-20 में विकास दर गिर कर 4।2 फीसदी रह गई। यानी सीधे दो फीसदी की गिरावट आई।

वित्त वर्ष 2019-20 में हुई भारी गिरावट का कोरोना वायरस से कोई खास मतलब नहीं है क्योंकि देश में लागू लॉकडाउन का सिर्फ एक हफ्ता उस वित्त वर्ष में रहा। कोरोना वायरस का असली असर चालू वित्त वर्ष यानी 2020-21 में दिखेगा। भारतीय रिजर्व बैंक तक निगेटिव ग्रोथ की आशंक जता चुका है। यह तय है कि विकास दर शून्य से नीचे जाएगी। सो, यह भी कमाल की बात है कि एक तरफ विकास दर आठ से शून्य पहुंच रही है और दूसरी ओर प्रधानमंत्री देश के समृद्ध होने, सबसे विकास और तरक्की का दावा कर रहे हैं। मानना पड़ेगा, भारत चमत्कारों की भूमि है तभी जीडीपी घटती गई, लोगों की आमदनी गिरती गई और देश समृद्ध होता गया!


शनिवार, 30 मई 2020

अब हिंदू सम्राट शिवाजी को समाज से जोड़ेगा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

जयपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अब समाज को हिंदू साम्राज्य स्थापित करने वाले वीर शिरोमणि शिवाजी महाराज से जोड़ेगा। कोरोना संक्रमण काल में संघ डिजिटल माध्यम से समाज के विभिन्न वर्गों में शिवाजी महाराज से जुड़ाव बढ़ाने के कार्यक्रम करेगा। 

कोरोना संक्रमण के दौर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाएं मैदान पर नहीं, स्वयं सेवकों घरों पर नियमित रूप से लग रही हैं। स्वयंसेवक विभिन्न डिजिटल माध्यमों से संघ कार्य में जुटे हुए हैं। ऐसे में संघ की बैठक और उत्सव आदि कार्यक्रम भी डिजिटल माध्यमों से ही संपन्न हो रहे हैं। 

इसी क्रम में संघ के 6 उत्सवों में से एक हिंदू साम्राज्य दिनोत्सव के अवसर पर जयपुर प्रांत में हिंदू साम्राज्य दिनोत्सव सप्ताह मनाया जाएगा. इसके तहत कई कार्यक्रम आयोजित करके समाज को शिवाजी महाराज से जोड़ने का प्रयास किया जाएगा. 


प्रांत कार्यवाह गेंदालाल ने बताया कि 31 मई से 6 जून 2020 तक प्रान्त में 'हिंदू साम्राज्य दिनोत्सव सप्ताह' मनाने की योजना बनाई है। इस उत्सव का उत्साह निर्माण सम्पूर्ण हिंदू समाज में होना चाहिए, इसलिए हरेक दिन के अनुसार कुछ कार्यक्रम तय किए गए हैं। 

- पहले दिन 31 मई रविवार को उद्घाटन सत्र रहेगा। इसमें बौद्धिक वर्ग कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण दिया जाएगा। 

- 1 जून सोमवार को हिंदू परिवारों में बालकों को शिवाजी के बाल रूप से परिचित कराया जाएगा. शिवाजी के बाल्यकाल से संबंधित घटनाओं, कथाओं, फिल्मों, गीत-कविताओं का उपयोग करते हुए योजना बनाई जाएगी।


विद्यार्थी  स्वयंसेवको को ध्यान में रखते हुए कथा-कहानी के माध्यम से मैं हूं बाल शिवाजी' कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।

- 2 जून, मंगलवार को 'मैं हूं जीजामाता' कार्यक्रम से मातृशक्ति को जीजामाता बनने की प्रेरणा देने वाले प्रसंग, बौद्धिक, प्रश्नावली, फ़िल्म-गीत इत्यादि विद्याओं का उपयोग करते हुए जीजामाता के चरित्र से अवगत कराया जाएगा।

- 3 जून, बुधवार को 'मैं शिवाजी' कार्यक्रम में शिवाजी के तरूणवय से युवाओं को परिचित कराएंगे. इस उम्र में शिवाजी के साथी योद्धा रहे जैसे- बाजीप्रभु देशपाण्डे, तानाजी मालुसरे, येसाजी कंक, जीवा माल्हा, शिवा नाई इत्यादि की घटनाओं को फ़िल्म, गीत, नाटक, प्रश्न मंच, प्रश्नोत्तरी का आयोजन किया जाएगा।

- 4 जून, गुरुवार को हिंदू साम्राज्य दिनोत्सव का मुख्य कार्यक्रम आयोजित होगा। इसमें उपखण्ड, बस्ती, शाखा स्तर पर सपरिवार बौद्धिक वर्ग होगा। प्रत्येक हिंदू घर में शिवाजी के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की जाएगी।

- 5-6 जून को समाज के बुद्धिजीवी वर्ग (अधिवक्ता, चिकित्सक, प्राध्यापक, उद्योगपति, सीए, सामाजिक कार्यकर्ता, सामाजिक सद्भावना बैठक की जाएगी। इनको वेबिनार तथा अन्य साधनों के द्वारा शिवाजी महाराज द्वारा हिंदू साम्राज्य के उत्थान के लिए किए गए धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक सुधार/नवाचार बताए जाएंगे। 

आत्मविश्वास से जगमगाता आत्मनिर्भर भारत



विगत छः वर्षों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ओजस्वी नेतृत्व में भारतवर्ष की विकास यात्रा अद्भुत, अकल्पनीय और प्रशंसनीय रही है। 2014 से पहले की किंकर्तव्यविमूढ़ता, अकर्मण्यता और खोखले वादों के पिटारे पर मोदी कार्यकाल में जन-मानस ने नेतृत्व, विश्वास, सहयोग और आत्मबल के सहारे समय से पूर्व ही लक्ष्य को भेदने की क्षमता हासिल कर ली है। देश का इतिहास जब भी लिखा जाएगा, मोदी सरकार के अब तक के छः वर्षों के कार्यकाल स्वर्णाक्षरों में अंकित किए जाएंगे।

इसी तरह मोदी सरकार 2.0 का पहला वर्ष भी समय के शिलालेख पर भारत के कभी न मिटने वाले उन कालजयी पदचिह्नों की कहानी है जिसकी कल्पना किसी ने की भी नहीं थी। निस्संदेह मोदी सरकार ने छः वर्षों में छः दशक की खाई को पाट कर आत्मनिर्भर भारत की बुलंद बुनियाद खड़ी की है।

फ्रेजाइल फाइव से भारत को विश्व की सबसे प्रमुख अर्थव्यवस्था बनाना, आतंकवाद के साए से देश को निकालकर उसके खिलाफ निर्णायक लड़ाई के लिए तैयार करना, स्वच्छता को हर भारतवासी का संस्कार बनाना, सच्चे अर्थों में गांव-गरीब-किसानों का कायाकल्प करने का संकल्प और चुनौतियों को अवसरों में परिवर्तित करने की निपुणता तो भारत ने मोदी सरकार के पहले ही कार्यकाल में देख लिया था। दूसरे कार्यकाल के प्रथम वर्ष ने देश की जनता को सपनों के सच होने का यकीन भी दिला दिया।

कुछ करने का जज्बा और हौसला जब प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जैसा हो तो कुछ भी असंभव नहीं। भारतीय जनता पार्टी की केंद्र सरकार ने अपने घोषणापत्र के एक-एक वादे को जमीन पर उतार कर दिखाया है वरना चुनावी घोषणापत्र को तो देश की जनता महज झूठ का एक पुलिंदा भर ही समझती थी जो केवल कुछ पार्टियों द्वारा जनता को धोखा देने और उन्हें गुमराह करने के लिए लाया जाता था। केंद्र सरकार के संकल्प पत्र ने लोकतंत्र में घोषणापत्र की महत्ता को तो स्थापित किया ही, लोकतंत्र की जड़ों को भी मजबूत किया। 

जम्मू-कश्मीर से धारा 370 और 35A का उन्मूलन, श्रीराम मंदिर के निर्माण के मार्ग का प्रशस्तीकरण, मुस्लिम महिलाओं को ट्रिपल तलाक के अभिशाप से मुक्ति और नागरिकता संशोधन कानून के माध्यम से आजादी के 70 सालों से वंचितों को उनका अधिकार देने जैसे कई कालजयी निर्णयों से एक ओर मोदी सरकार ने आजादी के बाद की ऐतिहासिक गलतियों को सुधारा है तो वहीं दूसरी ओर विश्व की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना ‘आयुष्मान भारत' से देश के लगभग 50 करोड़ गरीबों को इलाज के बोझ से मुक्ति दिलाने, करोड़ों गरीब महिलाओं का उज्ज्वला योजना के माध्यम से सशक्तिकरण, किसानों को सालाना 6,000 रुपये की आर्थिक कृषि सहायता राशि, हर गरीब को छत और हर नागरिक की जन-धन खाते के माध्यम से बैंकों तक पहुँच जैसे सर्वस्पर्शी निर्णयों के माध्यम से नए भारत का सृजन किया है।

इस तरह मोदी सरकार सृजन और सुधार के समांतर समन्वय की अभूतपूर्व मिसाल बनी है। ध्यान में रखने वाली बात यह है कि सभी महत्वपूर्ण विधेयक संसद के दोनों सदनों से पारित हुए जबकि राज्य सभा में हमारा बहुमत भी नहीं था। यह दिखाता है कि हमारा लोकतंत्र कितना परिपक्व हुआ है।

भ्रष्टाचार पर मोदी सरकार के निर्णायक प्रहार ने देश में एक अलग तरह का आत्मविश्वास जगाया है। UAPA और एनआईए एक्ट में संशोधन कर आतंकवाद पर नकेल कसने को संबल मिला है। भारत की ऊर्जस्वी विदेश नीति और रक्षा नीति ने देश को अग्रिम कतार में खड़ा किया है और दुनिया का देश को देखने के प्रति नजरिये में आमूल-चूल बदलाव आया है।

मोदी सरकार के द्वितीय संस्करण के प्रथम वर्ष में ऐसे कई इनिशियेटिव लिए गए जिससे वैश्विक मंदी के बावजूद भारत की अर्थव्यवस्था को गति मिली जैसे कि नागरिक उड्डयन के क्षेत्र में FDI का मार्ग प्रशस्त करना, कार्पोरेट टैक्स को कम करना, बैंकों का विलय, NBFC लोन पर मोरोटोरियम, कम्पनी एक्ट में सुधार, MSME के विकास के लिए आसान ऋण की व्यवस्था आदि। वर्षों से लंबित ब्रू-रियांग शरणार्थी समस्या तथा बोडो समस्या का समाधान भी मोदी सरकार 2.0 के पहले साल में हुआ।

दशकों से लंबित चीफ ऑफ़ डिफेंस स्टाफ (CDS) का पद सृजित करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया गया। RCEP का विरोध करके देश के किसानों एवं व्यवसायियों के हितों की सुरक्षा की गई जिसकी महत्ता कोरोना वायरस के मामले में चीन की भूमिका के मद्देनजर और बढ़ जाती है। डिफेंस इंडस्ट्री कॉरीडोर बना कर न सिर्फ विदेशी निवेश को आकर्षित किया गया बल्कि इससे लाखों करोड़ की विदेशी मुद्रा की भी बचत हुई।

सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास के सिद्धांत पर काम करने वाली मोदी सरकार ने सामाजिक उत्थान को अपना मूल मंत्र बनाया। किसान, मजदूर एवं छोटे उद्यमियों के लिए पेंशन योजना, जल शक्ति मंत्रालय का गठन, एक देश - एक राशन कार्ड, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, फसलों की एमएसपी को डेढ़ गुना से अधिक करने का निर्णय, एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्स की विकास योजना, उज्ज्वला और सौभाग्य योजना के साथ-साथ स्वच्छ भारत अभियान के तहत खुले में शौच से मुक्ति के आंदोलन ने यह स्थापित किया कि गरीब कल्याण के सहारे भी जीडीपी ग्रोथ हासिल की जा सकती है। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने समस्याओं को चुनौती के रूप में लेकर उसे अवसरों में ढालना सीख लिया है। मोदी सरकार 2.0 का जिक्र कोरोना के खिलाफ निर्णायक लड़ाई के बगैर पूरा नहीं हो सकता। नरेंद्र मोदी के निर्णायक नेतृत्व ने दुनिया को इस दिशा में अलग राह दिखाई है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने कोरोना वायरस संक्रमण को रोकने के लिए लागू लॉकडाउन से प्रभावित लोगों, अर्थव्यवस्था, रोजगार, कृषि एवं उद्योगों के लिए 20 लाख करोड़ रुपये से अधिक के विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा करके ‘आत्मनिर्भर भारत’ के अभ्युदय का नया सूरज उगाया है। अब तक लगभग 60 हजार करोड़ रुपये से अधिक की राशि विभिन्न योजनाओं के माध्यम से केवल दो महीनों में गरीबों, मजदूरों, किसानों, विधवाओं, बुजुर्गों और दिव्यांगों के एकाउंट में हस्तांतरित किए जा चुके हैं।

गरीबों के लिए पांच महीने तक मुफ्त राशन की व्यवस्था की गई है और मनरेगा के तहत 60 हजार करोड़ के बजटीय आवंटन से अलावा 40 हजार करोड़ रुपये निर्धारित किए गए हैं। उन्होंने इसके माध्यम से न केवल सुदृढ़ ‘न्यू इंडिया' बल्कि ‘आत्मनिर्भर भारत’ के संकल्प को भी साकार करने खाका तैयार किया है।  इसके माध्यम से भारत के भाल पर नव-निर्माण का सुनहरा भविष्य लिखा जायेगा। 

आत्मनिर्भर भारत की झलक भी पिछले डेढ़ माह में दिख गई कि भारत किस तरह चुनौतियों से पार पाने में सक्षम है। अप्रैल की शुरुआत में हम जहां पीपीई किट, वेंटिलेटर और N-95 मास्क के लिए पूर्णतः आयात पर निर्भर थे, वहीं आज हम स्वयं बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन कर रहे हैं। आज देश में प्रतिदिन लगभग 3.2 लाख पीपीई किट (अब तक 1 करोड़ पीपीई किट भारत में बनाये गए हैं) और ढाई लाख N-95 मास्क बनाए जा रहे हैं। वेंटिलेटर का स्वदेशी संस्करण भी बाजार मूल्य से काफी कम कीमतों में देश के कई संस्थाओं ने तैयार कर लिया है। दस लाख से अधिक कोरोना बेड तैयार किए जा चुके हैं और हमें रोजाना डेढ़ लाख टेस्टिंग की क्षमता भी हासिल कर ली है।

संकट के समय हमने दुनिया के 55 से अधिक देशों को जरूरत की दवाइयों की आपूर्ति की है जिसकी सराहना दुनिया के सभी देशों ने की है। सही समय पर लॉकडाउन के चलते भारत ने कोरोना को काफी हद तक रोकने में सफलता पाई है। कोरोना संकट के दौर में देश की अर्थव्यवस्था को सुचारू करने के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वदेशी और स्वावलंबन का नारा देते हुए देश की आत्मा को जगाया है। साथ ही ‘लोकल के लिए वोकल' कह कर स्थानीय उद्यमों को बढ़ावा देने की वकालत की है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हम लगातार हर क्षेत्र में अपने कदम आगे बढ़ा रहे हैं जो भारत को सच्चे अर्थों में आत्मनिर्भर बनाएगा। उनकी अगुआई में भारत एक ऐसे राष्ट्र बनने की ओर कदम बढ़ा रहा है जहां न कोई शोषक होगा न शोषित, न कोई मालिक होगा न मजदूर, न अमीर होगा न गरीब। सबके लिए शिक्षा, रोजगार, चिकित्सा और उन्नति के समान और सही अवसर उपलब्ध होंगे।

ऑनलाइन आंदोलन, ऑनलाइन जश्न

कोरोना वायरस क बढ़ते संक्रमण ने सारी राजनीति को ऑनलाइन शिफ्ट कर दिया है। नेता सड़क पर उतर कर न तो राजनीति कर रहे हैं और कोरोना वायरस से पीड़ितों की मदद कर रहे हैं। वे अपने घरों या दफ्तरों में बैठ कर वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए मीडिया को ब्रीफ कर रहे हैं। ट्विट करके राजनीति कर रहे हैं और वीडियो जारी करके लोगों से जुड़ रहे हैं। इसी बीच केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की दूसरी सरकार की पहली सालगिरह आ गई है। 30 मई को सरकार के एक साल पूरे हो रहे हैं। इस मौके पर भाजपा को जश्न मनाना है और केंद्र सरकार को भी अपनी उपलब्धियां पेश करनी है। दूसरी ओर कांग्रेस को इस मौके पर सरकार के खिलाफ आंदोलन करना है। उसे सरकार की कमियां बतानी है। पर दोनों पार्टियां यह काम जनता के बीच जाकर नहीं कर सकती हैं। सो, एक तरफ ऑनलाइन जश्न की तैयारी हो रही है तो दूसरी ओर ऑनलाइन आंदोलन की तैयारी चल रही है।

भाजपा ने ऑनलाइन रैली करने की तैयारी की है। तीन हजार रैलियां की जाएंगी, ऐसा पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने तय किया है। पर राज्यों में अलग से ऑनलाइन रैलियों की तैयारी हो रही है। प्रदेश भाजपा ने मे एक हजार ऑनलाइन रैली की जाएगी। यह ऑनलाइन रैली भी देखने वाली होगी। जिस तरह से फेसबुक लाइव होता है उसी तरह से कोई नेता भाषण देगा और भाजपा के कार्यकर्ता उसके साथ जुड़ेंगे। पार्टी के जिला और प्रखंड मुख्यालयों से इस तरह की रैलियों का प्रसारण होगा। इसका कोई दूसरा स्वरूप भी हो सकता है। लेकिन यह भारतीय राजनीति में अनोखी बात होगी, जो ऑनलाइन रैलियां होंगी। वीडियो कांफ्रेंसिंग से ब्रीफिंग होगी और ऑनलाइन ही उपलब्धियों की रिपोर्ट कार्ड जारी होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सोशल मीडिया में करोड़ों फॉलोवर हैं और मीडिया उनकी हर बात को प्रमुखता से दिखाता है इसलिए भाजपा का ऑनलाइन जश्न हिट हो सकता है।

पर कांग्रेस का क्या होगा? उसका ऑनलाइन आंदोलन कैसे सफल होगा? कांग्रेस ने गुरुवार से स्पीक अप अभियान शुरू किया है। कोरोना वायरस से लड़ाई में सरकार की विफलता दिखाने के लिए कांग्रेस ने यह अभियान शुरू किया, जिसके तहत प्रभावित लोगों को सीधे इसके साथ जोड़ा जाएगा और वे अपनी मुश्किलें बताएंगे। कांग्रेस लोगों को बोलने का एक प्लेटफॉर्म दे रही है। इसी प्लेटफॉर्म से 30 मई को सरकार विरोधी आंदोलन भी चलेगा। कांग्रेस इसकी भी तैयारी कर रही है। कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार के विरोध में और उसके एक साल के कामकाज को खराब बताने के लिए कांग्रेस भी बड़ी संख्या में ऑनलाइन रैलियां करेंगी। कोरोना संकट के बीच ऑनलाइन रैली दिलचस्पी पैदा करने वाली चीज

जयपुर: भिक्षावृत्ति में लिप्त व्यक्तियों का होगा सर्वे, दी जाएगी स्किल ट्रेनिंग

जयपुर।  भिक्षावृत्ति में लिप्त लोगों को स्किल ट्रेनिंग दी जाएगी जिससे उनकों रोजगार तो मिलेगा ही साथ ही भीख मांगने के लिए बेबस नहीं होना पड़ेगा।  जयपुर शहर में भिक्षावृति में लिप्त व्यक्तियों के पुनर्वास के लिए उनकी वास्तविक संख्या और स्थिति के आकलन के लिए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग सर्वे करेगा।  सर्वे के बाद उनको स्थायी रूप से भिक्षावृत्ति से दूर करने के लिए एनजीओ और सामाजिक संस्थाओं के सहयोग से किसी संस्थान में रखकर उनकी देखभाल, स्किल डवलपमेंट जैसे प्रयास होंगे। 

वर्तमान परिस्थिति में उनके लिए भोजन और पेयजल की व्यवस्था करने के लिए भी उन्होंने अधिकारियों को निर्देशित किया।  जयपुर कलेेक्टर डाॅ.जोगाराम ने सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग, नगर निगम, पुलिस, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग एवं जिला प्रशासन के अधिकारियों के साथ बैठक कर शहर में भिक्षावृत्ति में संलग्न लोगों के सर्वे और स्वयं के आधार पर सर्वे कर सही संख्या का आकलन करने के निर्देश दिए। 

सर्वे का सत्यापन होने तक करें भोजन—पानी की व्यवस्था

सर्वे में सत्यापन होने के बाद भिक्षावृति में संलग्न लोगों के पुनर्वास के लिए योजनाबद्ध रूप से कार्य किया जाए।  निगम के अधिकारियों को कहा की योजना तय होने तक अस्पतालों, विभिन्न पुलियाओं, बाजारों चैराहों, रेलवे स्टेशन, बस स्टेण्ड और उनके मिलने की संभावना वाले स्थलों पर उनके लिए भोजन की व्यवस्था की जाए।   साथ ही भीषण गर्मी को देखते हुए पीएचईडी और नगर निगम द्वारा इन इलाकों में शीतल जल की चल प्याऊ और टेंकर की व्यवस्था रखी जाए।  बैठक में स्मार्ट सिटी प्राॅजेक्ट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी लोकबन्धु, सभी अतिरिक्त जिला कलेक्टर, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग, पुलिस विभाग के अधिकारी शामिल हुए। 


प्रारम्भिक पुनर्वास के लिए खाली भवन तलाशने के निर्देश

सर्वे के बाद भिक्षावृत्ति में संलग्न लोगों को एक स्थान पर रखकर उन्हें कौशल से जोड़ा जाएगा।  उन्होंने इस केन्द्र के लिए विद्यालयों के पुराने भवन जिनको अब उपयोग में नहीं लिया जा रहा या अन्य राजकीय खाली भवनों के चिन्हींकरण के लिए अधिकारियों को निर्देश दिए।  इन केन्द्रो में आने वाले लोगों में शारीरिक रूप से ज्यादा कमजोर लोगों को यहां से विभिन्न निर्धारित सेवाकेन्द्रों में भेजा जाएगा। 

कोरोना टेस्ट के बाद किया जाएगा पुनर्वास

यहां शरणार्थी शिविर में रखे गए करीब सवा सौ भिक्षावृति में संलग्न व्यक्तियों के पुनर्वास से पूर्व उनका कोरोना टेस्ट करने के चिकित्सा विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिए।  उन्होंने कहा कि इसके साथ ही उनकी जांच के बाद अन्य बीमारियों से ग्रस्त व्यक्तियों को सम्बन्धित चिकित्सकीय सहायता दी जाए। 

निःशुल्क राशन की व्यवस्था के निर्देश

जिला कलक्टर डाॅ.जोगाराम ने अधिकारियों को भिक्षावृति में संलग्न ऐसे लोगों के लिए निःशुल्क राशन व्यवस्था करने के निर्देश दिए हैं जो कच्ची बस्तियों में रहते हैं और उनके पास खाना पकाने की सुविधा है।  राशन देते समय पात्रता के साथ यह भी देखा जाए कि वह व्यक्ति फिर भिक्षावृति में संलग्न नहीं हो।  पात्रता होने पर ऐसे व्यक्ति को राज्य सरकार द्वारा 2500 रुपए प्रदान करने की योजना का लाभ भी दिया जा सकता है। 


शुक्रवार, 29 मई 2020

नियमों में एकरूपता की जरूरत

दुनिया के संभवतः किसी देश में ऐसा नहीं हुआ होगा कि मेडिकल का संकट इतनी बड़ी मानवीय त्रासदी में बदल जाए। भारत में कोरोना वायरस का संकट एक तरह से मानवाधिकार के संकट में तब्दील हो गया है और ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि केंद्र से लेकर राज्यों तक में अनाप-शनाप तरीके से नियम और कानून बनाए गए। हैरानी की बात है कि कहीं भी कानून या दिशा-निर्देशों की व्यावहारिकता पर अध्ययन नहीं किया गया। यह नहीं सोचा गया कि सरकारें जो काम करने जा रही हैं उनसे लोगों को फायदा होगा या उनकी जान और मुश्किल में फंसेगी।

दूसरा कारण यह है कि केंद्र से लेकर राज्यों तक में कानून और दिशा-निर्देशों में एकरूपता नहीं दिखाई दी। सोशल डिस्टेंसिंग से लेकर क्वरैंटाइन और इलाज से लेकर लॉकडाउन में छूट देने तक दस तरह के दिशा-निर्देश दिए गए, जिनसे सुविधा होने की बजाय आम लोगों की परेशानी बढ़ गई।

जान बचाने के लिए किए गए उपायों पर बाद में चर्चा करेंगे, पहले जहान बचाने के नाम पर लॉकडाउन खोलने का जो फैसला हुआ और उसके लिए दिशा-निर्देश बनाए गए उनकी विभिन्नता पर चर्चा करते हैं। सरकार ने बिना व्यावहारिकता का अध्ययन कराए मनमाने तरीके से इस मामले में दिशा-निर्देश जारी किए। इस बात का कोई ठोस आधार नहीं है कि एक सामान की दुकान खोलने और दूसरे सामान की दुकान बंद रखने से कोरोना वायरस फैलना रूक जाएगा। पर सरकार ने कुछ दुकानें खुलवा दीं और कुछ बंद रखीं। जिनकी दुकानें नहीं खोलने का फैसला किया गया उनके नुकसान की भरपाई की कोई व्यवस्था नहीं की गई। जरूरी और गैर जरूरी सामान या सेवा के नाम पर एक विभाजन किया गया, जो कभी भी वास्तविक नहीं था। 

इसी तरह सरकार ने सार्वजनिक परिवहन से जुड़े जो नियम बनाए उनमें भी एकरूपता नहीं दिखती है। जैसे ट्रेन सेवाएं चालू कर दी गईं लेकिन मेट्रो की सेवा शुरू नहीं की गई। अगर श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चल सकती हैं या दूसरी पूरी तरह से एसी कोच वाली ट्रेनें चल सकती हैं या हवाई सेवा शुरू की जा सकती है तो मेट्रो ट्रेन क्यों नहीं चलाई जा सकती है, इसका कोई जवाब नहीं है। फिर सार्वजनिक सेवाओं के लिए सोशल डिस्टेंसिंग के जो नियम बनाए गए वे बिना सिर-पैर के हैं।

सरकारों ने तय किया कि ट्रेनों में सभी सीटों पर यात्री बैठेंगे यानी एक कतार में तीन सीटें हैं तो तीनों पर यात्री बैठेंगे। यह नियम श्रमिक स्पेशल ट्रेन में भी है और दूसरी विशेष ट्रेनों में भी है। यहीं नियम हवाई उड़ानों के लिए भी लागू किया गया। वहां भी हर सीट पर यात्री बैठ रहे हैं। यानी वहां सोशल डिस्टेंसिंग के नियम का पालन नहीं करना है। पर हवाईअड्डों या स्टेशनों तक पहुंचने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग रखनी है। यहां तक की हवाईअड्डे पर इंतजार करने के दौरान भी सोशल डिस्टेंसिंग की पूरी व्यवस्था की गई है। वहां एक कतार की तीन में बीच की सीट को ब्लॉक किया गया है। उस पर कोई नहीं बैठ सकता है।

सोचें, हवाईअड्डे पर बीच की सीट खाली रखनी है पर हवाई जहाज के अंदर बीच की सीट पर भी आदमी बैठेगा। ऐसे ही हवाईअड्डा या स्टेशन पहुंचने के लिए अगर आप ऑटो या टैक्सी करते हैं तो उसमें सोशल डिस्टेंसिंग पूरी रखनी है। एक ऑटो में सिर्फ एक सवारी बैठ सकती है या एक टैक्सी में ड्राइव के अलावा सिर्फ दो लोग बैठ सकते हैं। ऑटो-टैक्सी वाले एक-एक पैसेंजर और बैठाने कि अनुमति मांग रहे हैं पर सरकार तैयार नहीं है। सरकार को लग रहा है कि ऑटो में दो लोग साथ बैठ गए तो कोरोना फैल जाएगा लेकिन ट्रेन में तीन लोग साथ बैठेंगे तो कोरोना नहीं फैलेगा।

इसी तरह क्वरेंटाइन के नियमों में भी कोई एकरूपता नहीं है। जिसे जैसे मन में आया वैसे नियम बना दिए हैं। श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से आने वाले मजदूरों को तो अनिवार्य रूप से क्वरैंटाइन में रहना है लेकिन दूसरी स्पेशल ट्रेनों से यात्रा करने वाले या हवाईजहाज से आने वालों के क्वरैंटाइन के नियम अलग हैं। कहीं उनको सात दिन रहना है तो कहीं 14 दिन और कहीं एक दिन भी नहीं रहना है। हवाई जहाज से उतर कर लोग सीधे घर जा सकते हैं और अपना अपना काम कर सकते हैं। अगर कोई आदमी किसी कामकाज के सिलसिले में किसी शहर गया है और उसे पांच दिन या एक हफ्ते में लौटना है तो उस पर भी क्वरैंटाइन के नियम नहीं लागू होते हैं।

इस तरह के भिन्नता का सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ है कि मजदूरों ने सोशल डिस्टेंसिंग और क्वरैंटाइन के नियमों को मानने से अघोषित रूप से इनकार कर दिया है। वे क्वरैंटाइन सेंटर से भाग रहे हैं या स्टेशनों से पहले ही ट्रेन से उतर कर भाग जा रहे हैं। जब तक सरकार ट्रेनों में बीच की सीट खाली रखती थी तब तक मजदूरों के मन में कोरोना वायरस का डर था, लेकिन जैसे ही सरकार ने सभी सीटों पर यात्री बैठाना शुरू किया, उनका डर निकल गया। दूसरी स्पेशल ट्रेनों और विमान यात्रियों को घर जाने देने से भी मजदूरों का डर खत्म हुआ। उन्होंने मान लिया कि जैसे दूसरी स्पेशल ट्रेनों के यात्री या हवाई यात्री सुरक्षित हैं और घर जा सकते हैं वैसे ही वे भी घर जा सकते हैं। आखिर कोरोना वायरस के 80 फीसदी से ज्यादा संक्रमित तो बिना लक्षण वाले हैं। सो, सोशल डिस्टेंसिंग या क्वरैंटाइन सबके लिए समान रूप से होता तब तो सभी इसका पालन करते। पर कुछ लोगों पर इसे लागू करने और कुछ लोगों को इससे छूट देने के नियमों की वजह से सरब इसका उल्लंघन करने लगे।

संकट में भी जश्न!

कोरोना वायरस का भारत में प्रकोप बढ़ता जा रहा है। बीमारी से पीड़ित लोगों और इस कारण होने वाली मौतों की संख्या बढ़ती जा रही है। इस महामारी के कारण देश में दो महीने से भी अधिक समय से लॉकडाउन लागू है। इस दौरान मानवीय त्रासदी की अनगिनत कहानियां सामने आई हैं। आने वाले दिन और भी कठिन हैं। अर्थव्यवस्था की तबाही की सीमा क्या है, इसका अभी अनुमान लगाना भी मुश्किल लग रहा है। मगर इससे एक जिस चीज पर फर्क नहीं पड़ा है, वो है सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी की सियासत और उसका सत्ता का जश्न। शनिवार यानी 30 मई को नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल की पहली सालगिरह मनाई जाएगी। इस के पर जश्न होगा। हालांकि यह आम तौर पर मनाए जाने वाले जश्नों से अलग होगा। इसमें भारतीय जनता पार्टी के नेता मंचों पर नजर नहीं आएंगे। ना ही बड़ी-बड़ी रैलियों का आयोजन होगा।

लॉकडाउन की वजह से भाजपा ने अपने जश्न से जुड़े कार्यक्रमों को वर्चुअल तरीके से मनाने का फैसला किया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में प्रचंड बहुमत हासिल किया था। उसने लोकसभा की 303 सीटें जीतें थी। उसके बाद मोदी सरकार तेजी से हिंदुत्व के एजेंडे को लागू करने की दिशा में आगे बढ़ी। कश्मीर से संबंधित धारा 370 को खत्म करना, जम्मू- कश्मीर और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाना, और उसके बाद नागरिकता संशोधन कानून को पारित करना इस दिशा में उसके महत्त्वपूर्ण कदम रहे। नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ जोरदार आंदोलन छिड़ा, लेकिन कोरोना महामारी की उस पर भारी मार पड़ी। लॉकडाउन लागू होने के साथ ही उस पर विराम लग गया। कहा जा सकता है कि हिंदुत्व के मामले में भाजपा ने अपने एजेंडे को सफलतापूर्वक लागू किया है। मगर बात अगर अर्थव्यवस्था, सामाजिक मेलजोल और वैदेशिक संबंधों की की जाए, तो वहां अधिकतर नाकामियां ही नजर आती हैं। इसके बावजूद भाजपा जश्न मनाएगी। वह मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल की पहली सालगिरह के मौके पर “वर्चुअल रैली” का आयोजन करने जा रही है। ये रैली कंप्यूटर और इंटरनेट के माध्यम से होगी। इसके साथ ही एक हजार से अधिक ऑनलाइन कॉन्फ्रेंस भी होंगी। राज्य इकाइयों को इनका धूमधाम से आयोजन करने को कहा गया है। अब इस पर विरोधी सवाल उठाएं तो उठाएं, आखिर उससे मोदी सरकार और भाजपा को क्या फर्क पड़ता है?

लॉकडाउन विफल होना क्या सच नहीं?

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने मंगलवार को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए प्रेस कांफ्रेंस की और कहा कि कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने के लिए लागू किया गया लॉकडाउन विफल हो गया है। उन्होंने और भी कई बातें कहीं पर मुख्य बात यह थी कि उन्होंने उस लॉकडाउन को विफल बताया, जिसके दम पर सरकार की ओर से लाखों लोगों को संक्रमित होने से बचाने और हजारों लोगो की जान की रक्षा करने का दावा किया जा रहा है, जिसके दम पर दुनिया के सबसे महान नेता के तौर पर प्रधानमंत्री की ब्रांडिंग हो रही थी।

तभी इसके अगले दिन रविशंकर प्रसाद ने जवाबी प्रेस कांफ्रेंस की। ध्यान रहे रविशंकर प्रसाद भाजपा के मौजूदा नेताओं में से सबसे पुराने प्रवक्ता हैं और केंद्रीय कानून व सूचना-प्रौद्योगिकी मंत्री हैं। सो, उन्हें राहुल का जवाब देने के लिए उतारने से ही लग रहा है कि राहुल ने जो कहा वह मामूली बात नहीं है। जाने-अनजाने में उन्होंने सच कह दिया है, जिसे कहने से विपक्ष के ज्यादातर नेता घबरा रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि संकट के समय में ऐसा सच कैसे कहा जाए! वे ‘न ब्रूयात सत्यं अप्रियम’ के अंदाज में राजनीति कर रहे हैं।

बहरहाल, रविशंकर प्रसाद ने अपना ट्रेडमार्क बन गई शैली यानी गुस्से में लाल-पीला होते हुए राहुल पर हमला किया और कहा कि राहुल गांधी ने ऐसा बयान देकर कोरोना वायरस से खिलाफ लड़ाई को कमजोर किया है। अब सबसे पहला सवाल तो यहीं है कि राहुल या किसी भी विपक्षी नेता के बयान देने भर से कोरोना की लड़ाई कैसे कमजोर हो जाएगी?अव्वल तो विपक्ष के किसी नेता के बयान से किसी भी चीज पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता है। वह भी आज के समय में जब कोई भी अखबार या चैनल विपक्ष के किसी नेता की कोई बात दिखाता ही नहीं है। दूसरे, भाजपा के मुताबिक कोरोना से लड़ाई नरेंद्र मोदी लड़ रहे हैं, जिनके सामने राहुल की हैसियत ‘पप्पू’ वाली है। सो, वे कैसे उस लड़ाई को कमजोर कर सकते हैं, जिसका नेतृत्व खुद नरेंद्र मोदी कर रहे हैं?

तभी यह कोरोना वायरस से लड़ाई को कमजोर करने वाली बात तो जनता को बताने के लिए है कि मोदी जी बहुत चौक-चौबंद तरीके से लड़ाई लड़ रहे हैं और अगर वह लड़ाई कहीं कमजोर हो रही है तो उसका कारण मोदी जी या उनकी सरकार की अक्षमता नहीं, बल्कि विपक्षी पार्टी के नेता का बयान है। राहुल के ऊपर इतने आक्रामक तरीके से हमले का मकसद इस तरह की बातों को फैलने से रोकना है कि लॉकडाउन विफल हो गया है। असल में सरकार इसका दूसरा नैरेटिव बनवा रही है। स्वास्थ्य मंत्रालय और आईसीएमआर के जरिए सरकार यह तथ्य स्थापित करना चाह रही है कि अगर लॉकडाउन नहीं हुआ होता तो लाखों लोग संक्रमित होते और हजारों लोगों की जान गई होती। यह अलग बात है कि ज्यादातर लोग इस तथ्य पर भरोसा करने की बजाय यह देख रहे हैं कि इतने सख्त लॉकडाउन के बावजूद संक्रमितों की संख्या डेढ़ लाख से ज्यादा हो गई और इस बीच सरकार ने सब कुछ खोल कर हालात सामान्य दिखाने का ढोंग शुरू कर दिया।

लॉकडाउन को सफल बताने के लिए सरकार की ओर से बार बार दुनिया के दूसरे देशों में संक्रमितों और मरने वालों की संख्या से तुलना की जा रही है। यह सही है कि अमेरिका में या रूस, ब्राजील, स्पेन, इटली, ब्रिटेन आदि में संक्रमितों की संख्या बहुत ज्यादा है और मरने वालों की तादाद भी भारत से ज्यादा है। पर उन देशों के साथ भारत की तुलना नहीं की जा सकती है। भारत की तुलना दक्षिण एशिया के देशों के साथ ही होनी चाहिए। क्योंकि जलवायु से लेकर आबादी के स्वरूप, बीसीजी के यूनिवर्सल टीकाकरण, उम्र के खांचे और जेनेटिक आधार पर भारत की ज्यादा समानता पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश के साथ है। यूनिवर्सिटी ऑफ मैसाचुसेट्स एम्हर्स्ट के दो अध्यापकों- दीपाकंर बसु और प्रियंका श्रीवास्तव ने दक्षिण एशिया के तीन देशों- पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका के साथ भारत के कोरोना केसेज की तुलना करते हुए एक लेख इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है।

दीपाकंर बसु और प्रियंका श्रीवास्तव ने सीधे सीधे तथ्य सामने रख कर दिए हैं। उन्होंने बताया है कि इन देशों में प्रति दस लाख की आबादी पर संक्रमितों की संख्या के लिहाज से सबसे ज्यादा केसेज बांग्लादेश में आए और सबसे कम मामले भारत में आए। लेकिन संक्रमितों की संख्या में मरने वालों की दर भारत में सबसे ज्यादा रही और बांग्लादेश में सबसे कम। यानी जहां प्रति दस लाख पर सबसे ज्यादा केसेज आए वहां मरने की दर सबसे कम है और जहां सबसे कम मामले आए वहां मृत्यु दर सबसे ज्यादा है। इस वस्तुनिष्ठ आकलन से यह निष्कर्ष निकलता है कि किसी देश ने लॉकडाउन लागू किया या नहीं किया और किसी देश के पास नरेंद्र मोदी जैसा नेता है या नहीं है, इसके कोई खास फर्क नहीं पड़ा है। इन चारों देशों में कमोबेश एक जैसी स्थिति है।

यह भी एक आधार बनता है यह कहने का कि लॉकडाउन सफल नहीं हुआ क्योंकि पहले दिन से कोरोना वायरस से लड़ने की भारत की रणनीति गलत रही। 23 जनवरी को वुहान में लॉकडाउन शुरू हुआ था और 27 जनवरी को वुहान से एक विमान केरल पहुंचा था, जिसमें तीन लोग बुखार से पीड़ित थे और 30 जनवरी को उनमें से एक व्यक्ति कोरोना से संक्रमित निकला। वह भारत का पहला केस था। उसी दिन तमाम अंतरराष्ट्रीय उड़ानों से आने वालों की जांच और क्वरैंटाइन का फैसला हुआ होता तो भारत में संक्रमण फैलता ही नहीं या अगर फैलता भी तो बहुत मामूली होता, जिसे रोका जा सकता था। लेकिन भारत में अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर रोक लगाने का फैसला मार्च के मध्य में हुआ। उस बीच दुनिया भर से लोग आते रहे, जिनसे देश भर में कोरोना फैला। सरकार की इस विफलता पर चर्चा होनी चाहिए कि उसने समय रहते वायरस को फैलने से रोकना का प्रयास नहीं किया। हवाईअड्डों को खुला रखा गया, नमस्ते ट्रंप से लेकर तमाम दूसरी राजनीतिक गतिविधियां होने दी गईं, इलाज और जांच की सुविधा नहीं बढ़ाई गई और एक दिन अचानक बिना तैयारी के समूचे देश में लॉकडाउन लागू कर दिया गया।

जिस तरह नोटबंदी बिना सोचे समझे और बिना तैयारी के लागू की गई, महीनों तक हर दिन नए दिशा-निर्देश जारी किए गए और फिर एक दिन पहले से ज्यादा नकदी बाजार में आ गई। उसी तरह लॉकडाउन बिना तैयारी के और बिना सोचे समझे लागू किया गया, उसके बाद से हर दिन नए दिशा-निर्देश जारी होने लगे और जिस दिन वायरस का संक्रमण नियंत्रण से बाहर हुआ उस दिन हाथ खड़े करके सब कुछ खोल दिया गया। यहीं कोरोना वायरस से भारत की लड़ाई का सच है, जिस पर निश्चित रूप से चर्चा होनी चाहिए।

गुरुवार, 28 मई 2020

विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस पर विशेष

विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस 28 मई को मनाया जाता है। यह दिन मासिक धर्म स्वच्छता  के बारे में जागरूकता बढ़ाने और आसपास मासिक धर्म को लेकर पाबंधियो को कम करने के लिए मनाया जाता है। मासिक धर्म एक शारीरिक प्रक्रिया है जो बच्चों को सहन करने की क्षमता के लिए सीधे तौर पर संबंधित और जिम्मेदार है। महिला के पीरियड  के पहले दिन से लेकर अगले पीरियड से पहले का समय मासिक धर्म होता है। लगभग 26-30 दिनों के इस चक्र में एक महिला के शरीर में गर्भावस्था  की तैयारी के लिए बहुत सारे बदलाव शामिल हैं।

एक मादा में मुख्य प्रजनन अंग गर्भाशय और दो अंडाशय होते हैं। महिला हार्मोन एस्ट्रोजन  और प्रोजेस्टेरोन चक्र के साथ बढ़ते और गिरते हैं, मध्य-चक्र के आसपास अंडाशय से एक अंडे की परिपक्वता और रिलीज को ऑर्केस्ट्रेट करने के लिए, जो तब शुक्राणु द्वारा निषेचित होने पर गर्भाशय में प्रत्यारोपित होता है। एल्स, गर्भाशय की मोटी अस्तर अवधि के रूप में चक्र के अंत में बहाया जाता है। चक्र के हार्मोनल परिवर्तनों की एक श्रृंखला से दिन के 14 दिन तक जाता है जब अंडाशय से एक अंडा निकलता है और गर्भाशय गर्भावस्था के लिए तैयार होता है। प्रजनन क्षमता  को मासिक धर्म चक्र पर निर्भर माना जाता है।




मासिक धर्म और प्रजनन क्षमता |

मासिक धर्म चक्र को दो चरणों में विभाजित किया जाता है: कूपिक या पहला आधा चरण और ल्यूटल चरण या दूसरा आधा। कूपिक चरण चक्र के 1 दिन से शुरू होता है, जिस समय के दौरान हार्मोन एस्ट्रोजन अंडाशय के विकास के लिए अंडाशय को उत्तेजित करता है, और एक अंडे के ओव्यूलेशन या रिलीज के साथ समाप्त होता है। ल्यूटल चरण ओव्यूलेशन के साथ शुरू होता है, जिसके दौरान प्रोजेस्टेरोन गर्भावस्था के मामले में गर्भाशय के अस्तर को तैयार करता है और गाढ़ा करता है और इस अस्तर के बहा के रूप में समाप्त होता है या निषेचन की अनुपस्थिति में पिघलता है।

कूपिक चरण की लंबाई भिन्न हो सकती है जबकि ल्यूटियल चरण 14 दिनों के आसपास होता है। जबकि मासिक धर्म चक्र की लंबाई एक महिला से दूसरे में भिन्न होती है, यह आमतौर पर 28 दिन 7 दिनों तक रहता है।

प्रत्येक मासिक धर्म चक्र में एक फर्टाइल विंडो होती है। यह वह अवधि है जिसके दौरान महिलाएं गर्भधारण कर सकती हैं। एक मानक चक्र में, फर्टाइल विंडो ओव्यूलेशन से 5 दिन पहले शुरू होती है और ओव्यूलेशन के दिन समाप्त होती है। जबकि ओव्यूलेशन होने पर यह ठीक से बता पाना मुश्किल है कि ज्यादातर महिलाएं आमतौर पर अगले पीरियड से 10 से 16 दिन पहले ओव्यूलेट हो जाती हैं। फर्टाइल विंडो चक्र में भिन्न होती हैं।

जायफल कई बीमारियों में है रामबाण, फायदे जानकर रह जाएंगे हैरान! पाचन और यौन रोगों में भी फायदेमंद

आपके मासिक धर्म चक्र की लंबाई बहुत कुछ कहती है। यह हार्मोनल असंतुलन के संभावित संकेतक के रूप में काम कर सकता है और क्या नियमित रूप से ओव्यूलेशन हो रहा है। एक सामान्य लंबाई चक्र नियमित ओव्यूलेशन को इंगित करता है जबकि एक छोटा या लंबा मासिक धर्म चक्र बताता है कि ओव्यूलेशन या तो अनियमित रूप से नहीं हो रहा है या नहीं हो रहा है। लंबी या अनियमित चक्र वाली महिलाओं की प्रजनन दर भी कम हो जाती है।

एक छोटा चक्र, आमतौर पर 21 दिनों से कम होता है, यह संकेत दे सकता है कि अंडाशय में कम अंडे हैं और आसन्न रजोनिवृत्ति की ओर इशारा कर सकते हैं। यह  भी सुझाव दे सकता है कि ओव्यूलेशन नहीं हो रहा है। अगर आगे के परीक्षण समान हैं, तो गर्भाधान मुश्किल हो सकता है। एक लंबा चक्र (> 35 दिन) यह भी बताता है कि ओव्यूलेशन नियमित रूप से नहीं हो रहा है या नहीं हो रहा है, इस प्रकार गर्भाधान मुश्किल हो जाता है। इसलिए मासिक धर्म के लक्षण प्रजनन क्षमता के साथ एक महत्वपूर्ण कड़ी है। सामान्य मासिक धर्म चक्र में ओव्यूलेशन और प्रजनन क्षमता के साथ एक मजबूत संबंध है। अगर आप प्रजनन आयु वर्ग में हैं और गर्भधारण की इच्छा रखते हैं लेकिन आप अनियमित मासिक धर्म चक्र से गुजर रहे हैं, तो आपको एक विशेषज्ञ से परामर्श करना चाहिए।



अनियमित या कोई ओव्यूलेशन चिकित्सा हस्तक्षेप के बिना गर्भाधान की बाधाओं को कम किया जा सकता है। सामान्य चक्रों वाली 35 वर्ष से कम उम्र की महिला जो एक साल की कोशिश के बाद गर्भधारण करने में असमर्थ हो गई हो उसे किसी विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए। एक सामान्य मासिक धर्म चक्र के साथ 35 से अधिक उम्र की महिला जो 6 महीने से कोशिश कर रही है और उसे कोई सफलता नहीं मिली है, उसे भी विशेषज्ञ की सलाह लेनी चाहिए। सामान्य मासिक धर्म नियमित ओव्यूलेशन को इंगित करता है, लेकिन गर्भधारण न कर पाने के अन्य कारण भी हो सकते हैं। अनियमित चक्र के रूप में, हम जानते हैं कि इस तरह के चक्रों में नियमित रूप से ओव्यूलेशन नहीं होता है और इस तरह चिकित्सा ध्यान देने की आवश्यकता होती है।

डॉ. वीणा अग्रवाल, एमडी आईजीसीपी ग्रुप ऑफ पब्लिकेशंस, मेडिकल एडवाइजर  वह साउथ दिल्ली में अपने क्लिनिक में प्रैक्टिस करती है)

अस्वीकरण: इस लेख के भीतर व्यक्त की गई राय लेखक की निजी राय है। जगजाहिर इस लेख की किसी भी जानकारी की सटीकता, पूर्णता, उपयुक्तता, या वैधता के लिए ज़िम्मेदार नहीं है। सभी जानकारी एक आधार पर प्रदान की जाती है। लेख में दिखाई देने वाली जानकारी, तथ्य या राय जगजाहिर के विचारों को नहीं दर्शाती है और जगजाहिर उसी के लिए कोई ज़िम्मेदारी या दायित्व नहीं मानता है।

कोरोना काल में भाजपा ने 23 मई तक 19 करोड़ गरीबों को कराया भोजन

भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) ने दावा किया है कि भारत सरकार ने कोविड-19 बीमारी से निपटने के लिए त्वरित एक्शन लिया है। ऐसे में भाजपा भी अपने करोड़ो कार्यकतार्ओं के जरिये जनसेवा में सर्मपित है । कोविड-19 संक्रमण के दौरान पार्टी द्वारा 23 मई तक जनसेवा के काम का ब्यौरा देते हुए भाजपा महासचिव भूपेंद्र यादव ने कहा, "पार्टी ने लॉकडाउन 4.0 तक सेवा के सभी कार्य को राष्ट्रीय कर्तव्य समझ कर किया। पार्टी द्वारा चलाये जा रहे 'फीड द नीडी' कार्यक्रम के तहत 11 लाख से अधिक कार्यकतरओ ने 586 जिलों के 9 हजार से अधिक मंडलो के 1.18 लाख गरीब बस्तियों में 10.30 लाख फूड पेकेट्स बांटे। इसके अलावा 8 लाख से अधिक कार्यकतार्ओं ने 19 करोड़ जरूरतमंदो को भोजन कराया गया और 4 करोड़ घरों तक सूखी खाद्य सामग्री पहुंचाई।"

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भाजपा कार्यकतार्ओं को दिये गए पंच आग्रह के अनुसार 5 करोड़ से ज्यादा लोगों तक फेस मॉस्क पहुचाये गये, कोरोना योद्धाओ के बीच 10 लाख 30 हजार धन्यवाद पत्र बांटे गये, आरोग्य सेतू डाउनलोड कराया गया। इसके साथ ही 53 लाख कार्यकतार्ओं ने पीएम केयर्स फंड में अपना योगदान भी दिया।

भाजपा महासचिव भूपेन्द्र यादव ने यह भी बताया कि संकट के इस समय में भाजपा अध्यक्ष जे. पी. नड्डा लगातार कार्यकतार्ओं से संपर्क में रहे और सेवा कार्य की निगरानी करते रहे। उन्होंने बताया कि इस दौरान 5 लाख भाजपा कार्यकतार्ओं से उन्होंने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये बात की और 150 से अधिक शिक्षाविद एवं वकील, सेवानिवृत्त अधिकारियं, कई सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों से उन्होंने संवाद किया।

भूपेंद्र यादव ने यह भी बताया, "मोदी सरकार पार्ट-2 के एक साल पूरे होने के मौके पर पार्टी देश भर में 1000 से अधिक वर्चुअल संवाद का कार्यक्रम कर रही है। पार्टी ने तय किया है कि देश के हर जिले में इस तरह का आयोजन हो। इसके जरिये सरकार के एक साल की उपलब्धियो को लोगों तक पहुंचाया जाएगा। इस मौके पर भाजपा अध्यक्ष जे. पी. नड्डा खुद फेसबुक लाइव के जरिये सरकार की उपलब्धियों को जनता तक पहुचाएंगे।"

’अंतर्राष्ट्रीय माहवारी स्वच्छता’ दिवस

महिलाएं स्वच्छ व स्वस्थ रहकर ही अपने परिवार को स्वस्थ रख पाएंगी - महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री 

जयपुर । महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री श्रीमती ममता भूपेश ने कहा कि अपने परिवार को स्वस्थ रखने के लिए महिलाओं को पहले स्वयं के स्वास्थ्य पर ध्यान देना होगा । उन्होंने कहा कि महिलाएं स्वच्छ व स्वस्थ रह कर ही अपने परिवार को स्वस्थ रख सकती है।

श्रीमती भूपेश गुरुवार को अन्तर्राष्ट्रीय माहवारी स्वच्छता दिवस पर अपने निवास पर महिला अधिकारिता विभाग द्वारा सोशल एवं फिजिकल डिस्टेंसिंग को ध्यान में रखते हुए आयोजित राष्ट्रीय कार्यक्रम में बोल रही थी। उन्होंने बताया कि 28 मई जो कि 28 दिन के अंतराल पर 5 दिवस के माहवारी दिवस के प्रतीक के रूप में महिलाओं के स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए जागरूकता हेतु आयोजित किया जाता है ।

 इस अवसर पर उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के चलते महिलाएं अपने स्वास्थ्य को नजरअंदाज नहीं करें । आज हमारा प्रदेश, देश एवं संपूर्ण विश्व जिन विषम परिस्थितियों से गुजर रहा है उनमें महिलाओं को अपने घर एवं परिवार जनों की देखभाल पहले की तुलना में अधिक सजग होकर करने की जरूरत है। ऎसी स्थिति में महिलाएं अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखेंगी तभी अपने परिवार को भी स्वस्थ रख पाऎंगी। इसके लिए जरूरी है कि महिलाएं अपने 5 दिनों में स्वच्छता विधियों एवं साधनों का प्रयोग करें।

 श्रीमती भूपेश ने यह भी कहा कि आगामी समय में निसंदेह हमारे लिए वित्तीय परिस्थितियां चुनौतीपूर्ण रहेंगी इसलिए हमारे प्रदेश की बेटियां और बहनें मजबूती से अपने को संभाले एवं परिवार को स्वस्थ एवं सुरक्षित रखें और एक स्वस्थ भारत का निर्माण करें ।

इस अवसर पर उपस्थित पांच महिला लाभार्थियों को जागरूकता संदेश के साथ सेनेटरी नैपकिन तथा साबुन का वितरण किया गया एवं कार्यक्रम समाप्ति के पश्चात जयपुर जिले की विभिन्न जगहों पर लाभार्थी महिलाओं को भी सैनेटरी नैपकिन तथा साबुन का वितरण करवाया गया। कार्यक्रम में उपस्थित सभी महिलाओं ने संकल्प भी लिया कि वे अपने आसपास की प्रत्येक 10 महिलाओं को इसके लिए जागरूक करेंगी।

  इस मौके पर विभाग के शासन सचिव  के के पाठक, निदेशक समेकित बाल विकास सेवाएं डॉ. प्रतिभा सिंह, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना की ब्रांड एंबेसडर अनुपमा सोनी ,महिला सुरक्षा एवं सलाह केंद्र की राज्य स्तरीय स्टीयरिंग कमेटी की सदस्य श्रीमती निशा सिद्धू ,मीनाक्षी माथुर एवं डॉक्टर मेनका व विभाग के अन्य अधिकारी भी उपस्थित थे।

राजस्थान स्ट्राइड कान्फ्रेंस वेबिनार 30 एवं 31 मई को होगी

भारत सरकार के 3 सचिव एवं विशेषज्ञ कान्फ्रेंस को संबोधित करेंगे
जयपुर। शासन सचिव विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी श्रीमती मुग्धा सिन्हा ने बताया कि राजस्थान स्ट्राइड (STRIDE½  कान्फ्रेंस वेबिनार का आयोजन 30 एवं 31 मई को प्रातः 10ः00 बजे से किया जाएगा।कॉन्फ्रेंस में विज्ञान एवं तकनीकी, बौद्धिक सम्पदा अधिकार, वैज्ञानिक पत्रकारिता, उद्यमिता, नवाचार, शोधार्थियों के लिए शोध संस्थानों में उपलब्ध अवसर आदि विषयों पर नीति निर्धारकों, वैज्ञानिकों, तकनिकीविदों, वैज्ञानिक पत्रकारों के द्वारा व्याख्यान दिये जायेंगे।

 श्रीमती सिन्हा ने बताया कि स्ट्राइड वेबिनार के माध्यम से विज्ञान, तकनीक, शोध, नवाचार, डिजाइन एवं उद्यमिता को ध्यान में रखते हुए विशेषज्ञों द्वारा इस पर चर्चा की जाएगी। उन्होंने बताया कि कोविड़-19 महामारी से वैश्विक परिवर्तन के कारण वर्तमान समय में विज्ञान एवं उससे जुड़े नवाचारों, तकनीक से उद्यमिता विकास को किस प्रकार आगे ले जा सकते है, पर विशेषज्ञों द्वारा चर्चा की जाएगी।

उन्होंने बताया कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के सचिव प्रो. आशुतोष शर्मा विज्ञान एवं तकनीकी सत्र पर तथा बायोटेक्नोलोजी विभाग, की सचिव डॉ. रेणु स्वरूप भारत में जैव प्रौद्योगिकी में नवाचार विषय पर चर्चा करेंगी। इसी प्रकार उद्योग आतंरिक व्यापार संवर्धन विभाग के सचिव डॉ. गुरूप्रसाद महापात्रा स्टार्टअप्स, बौद्धिक संपदा के क्षेत्र में प्रतिभागियों से चर्चा करेंगे एवं उनके लिए उपलब्ध संभावनाओं पर विचार व्यक्त करेंगे।

श्रीमती सिन्हा ने बताया कि आई.आई.टी. जोधपुर के निदेशक भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों द्वारा स्टार्टअप्स एवं नवाचार को बढ़ावा देने के लिए तकनीकी सत्र में व्याख्यान देंगे। राज्य नवप्रर्वतन प्रतिष्ठान के निदेशक डॉ. विपिन कुमार ग्रास रूट इनोवेटर्स, स्कूल के विद्यार्थियों, तकनिकी शिक्षा के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध अवसरों के बारे में बतायेंगे।

कान्फ्रेंस वेबिनार मेंविज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार में वरिष्ठ वैज्ञानिक रश्मि शर्मा शोधार्थियों के लिए प्रारम्भ किये गये ‘‘अवसर’’ कार्यक्रम के बारे में शोधार्थियों से चर्चा करेंगी। भारतीय विज्ञान अकादमी, बैंगलुरू एवं भारतीय राष्ट्रीय युवा वैज्ञानिक अकादमी के प्रमुख विज्ञान अकादमियों के माध्यम से शोधार्थियों को मिलने वाले अवसर पर चर्चा करेंगे।

इसी प्रकार बायोटेक्नोलोजी विभाग के अन्तर्गत कार्यरत वरिष्ठ अधिकारी डॉ. मनीष दीवान एवं डॉ पूर्णिमा शर्मा जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में युवाओं को उपलब्ध स्कीमों के बारे में जानकारी देंगे। स्ट्राइड कॉन्फ्रेंस वेबिनार में ड्रोन उपयोग पर एक विशेष सत्र भी आयोजित होगा जिसमें तकनीकी विशेषज्ञ, कृषि, स्वास्थ्य, रिमोट सेंसिंग के क्षेत्र में ड्रोन की उपयोगिता पर प्रकाश डालेंगे।

धारणा की लड़ाई हारती सरकार!

कोरोना वायरस के संक्रमण को लेकर तेजी से धारणाएं बदल रही हैं। ऐसा लग रहा है कि राजनीति में अपने मनमाफिक धारणा बनवाने की हर लड़ाई जीतने वाली मोदी सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी कोरोना के मामले में अपने माफिक धारणा के स्तर पर लड़ाई हार रही है। हर सच के बरक्स एक वैकल्पिक सचाई तैयार कर देने और असुविधाजनक तथ्यों को छिपा कर गढ़े हुए तथ्यों को फैलाना फेल हो रहा है। वैकल्पिक सचाई के जरिए झूठा नैरेटिव खड़ा करने में माहिर भाजपा की आईटी सेल भी धारणा की इस लड़ाई में असरदार नहीं है। केंद्र सरकार के तमाम दावों और खुद प्रधानमंत्री के भरोसा दिलाने के बावजूद आम लोगों के मन में धीरे धीरे यह धारणा बैठ रही है कि सरकार कोरोना वायरस से नहीं लड़ पा रही है या वह जो बात कह रही है वह पूरी तरह से सही नहीं है। हकीकत अलग है।

इसके कई कारण हैं, जिनमें से एक कारण तो यह है कि हर दिन होने वाली केंद्रीय मंत्रालयों की साझा प्रेस कांफ्रेंस बंद कर दी गई। पिछले करीब दो हफ्ते से रोजाना की ब्रीफिंग बंद है। सोचें, अमेरिका में लगभग हर दिन राष्ट्रपति की प्रेस कांफ्रेंस होती है और कोरोना से लड़ने के लिए बने टास्क फोर्स के प्रभारी उनके साथ होते हैं। ब्रिटेन में भी प्रधानमंत्री या स्वास्थ्य मंत्री नियमित रूप से कोरोना वायरस का अपडेट लोगों को देते हैं। भारत में यह काम स्वास्थ्य और गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारियों को दिया गया था पर वे भी अब हर दिन अपडेट नहीं दे रहे हैं।

यह बात अपने आप में संदेह पैदा करने वाली है। अगर सब कुछ ठीक है तो लोग चाहते हैं कि यह बात सरकार के शीर्ष स्तर से बताई जाए या अगर चीजें नियंत्रण में नहीं हैं, संक्रमितों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, कोरोना टेस्टिंग की रफ्तार नहीं बढ़ पा रही है या सरकार के पास आईसीयू बेड्स व वेंटिलेटर की संख्या कम पड़ रही है तो यह सच भी शीर्ष स्तर से लोगों को बता कर उन्हें आश्वस्त करना चाहिए। पर अफसोस की बात है कि यह काम भी नहीं हो रहा है। धारणा के स्तर पर केंद्र सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी के हारने का एक कारण यह भी है कि लोग समझने लगे हैं कि सरकार ने उनको भगवान के भरोसे छोड़ दिया है। यह सवाल आम लोगों के मन में उठ रहा है कि आखिर जब देश में पांच सौ मामले थे तब पूरा देश बंद कर दिया गया और अब जब डेढ़ लाख से ज्यादा केसेज हो गए तो पूरा देश क्यों खोला जा रहा है? इससे अपने आप यह मैसेज गया है कि सरकार ने हाथ खड़े कर दिए हैं।

सरकार का यह दावा लोगों को आश्वस्त नहीं कर पा रहा है कि 25 मार्च को लॉकडाउन करके 14 से 29 लाख लोगों को संक्रमित होने से बचाया गया और 38 से 78 हजार लोगों को मरने से बचाया गया। जिन लोगों को इस आंकड़े पर भरोसा है वे भी पूछ रहे हैं तो अब आगे क्या होगा? जब देश में पांच सौ मामले थे तब अगर लॉकडाउन नहीं किया गया होता तो दो महीने में अधिकतम 29 लाख लोग संक्रमित हुए होते और अधिकतम 78 हजार लोगों की जान गई होती। तो उनका सवाल है कि अब जबकि डेढ़ लाख संक्रमित हो गए हैं और लॉकडाउन में छूट दे दी गई है तो अगले दो महीने में कितने लोग संक्रमित हो सकते हैं? बिना लॉकडाउन के पांच सौ का आंकड़ा 29 लाख पहुंचता तो डेढ़ लाख का आंकड़ा दो महीने में कितने तक पहुंचेगा? क्या सरकार के पास इसका जवाब है? सरकार भले जवाब न दे पर लोग अंदाजा लगा रहे हैं। वे लोग भी जो अपने कामधंधे की चिंता में बाहर निकल रहे हैं वे भी अंदाजा लगा रहे हैं कि आने वाले दिनों में भारत में संक्रमण कितना बढ़ने वाला है।  

धारणा के स्तर पर सरकार इसलिए भी हारी क्योंकि अब तक जितने दावे किए गए सब गलत साबित हो गए हैं। प्रधानमंत्री से लेकर कोरोना वायरस से लड़ने के लिए बने अधिकार प्राप्त समूह के अध्यक्ष तक ने जो दावे किए वे गलत साबित हो गए। इससे लोगों का भरोसा टूटा। प्रधानमंत्री ने 24 मार्च को पूरे देश में लॉकडाउन की घोषणा करने के एक दिन बाद अपने चुनाव क्षेत्र वाराणसी के लोगों से संवाद करते हुए कहा कि जिस तरह महाभारत की लड़ाई 18 दिन में जीती गई थी उसी तरह कोरोना के खिलाफ लड़ाई 21 दिन में जीत ली जाएगी। प्रधानमंत्री ने बड़े संकल्प और प्रतिबद्धता के साथ यह बात कही थी और उनकी हर बात को ब्रह्म वाक्य मानने वाले इस देश के भोले-भाले लोगों ने इसे स्वीकार करके अपने को घरों में बंद कर लिया था।

लेकिन 21 दिन के बाद क्या हुआ? प्रधानमंत्री ने इसे 19 दिन और बढ़ाया। तब लोगों का विश्वास थोड़ा हिला था। पर अगली बार लॉकडाउन बढ़ाने की घोषणा करने जब प्रधानमंत्री आए ही नहीं, तब लोगों का भरोसा पूरी तरह से खत्म हो गया। रही सही कसर सरकार की इस बात से पूरी हो गई कि लोगों को अब कोरोना के साथ रहना सीखना होगा। सो, लोग समझ गए कि लड़ाई जीती नहीं जा सकती। सवाल है कि क्या प्रधानमंत्री यह दावा करते समय खुद नहीं जानते थे कि कोरोना से लड़ाई 21 दिन में नहीं जीती जा सकती है? ध्यान रहे जिस दिन उन्होंने 21 दिन में लड़ाई जीतने का दावा किया उस दिन यानी 25 मार्च को चीन के वुहान में लागू लॉकडाउन के 60 दिन पूरे हुए थे। ऐसा नहीं हो सकता कि प्रधानमंत्री या उनकी टीम इस तथ्य को नहीं जानती हो।

इसी तरह देश के दूसरे नंबर के कानूनी अधिकारी यानी सॉलिसीटर जनरल ने मार्च के आखिर में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा कि अब सड़कों पर एक भी प्रवासी मजदूर नहीं है। उसके दो महीने बाद तक देश के सारे राजमार्ग थके, हारे मजदूरों से भरा रहा। लाखों मजदूर पैदल चले, साइकिल और तिपहिया से, सीमेंट मिक्सर में या ट्रकों में भेड़-बकरियों की तरह अपने घरों की ओर जाते दिखे। सॉलिसीटर जनरल के दावे और उसकी हकीकत के इतने बड़े फर्क ने धारणा के स्तर पर सरकार को कमजोर किया।

इसके बाद आया कोरोना से लड़ने के लिए बने अधिकार प्राप्त समूह के प्रमुख डॉक्टर वीके पॉल का ऐतिहासिक ऐलान कि मई के शुरू में मामले कम होने लगेंगे और 16 मई को कोरोना का जीरो केस हो जाएगा। असलियत में इसका उलटा हुआ। मई शुरू होने के साथ ही मामले बढ़ने लगे और 16 मई को संक्रमितों की संख्या का रोजाना औसत पांच हजार तक पहुंच गया। इस किस्म की तमाम सरकारी घोषणाएं, दावे और आश्वासन जैसे जैसे गलत साबित हो रहे हैं वैसे वैसे धारणा की लड़ाई में सरकार पिछड़ती जा रही है। सरकार के धारणा की लड़ाई हारने का सबसे पहला असर सब कुछ मुमकिन कर देने वाले नेता के रूप में प्रधानमंत्री की छवि पर होगा।

नेताओं ने मिसाल बनने का मौका गंवाया



किसी भी महामारी, आपदा या संकट के समय नेतृत्व की परीक्षा होती है। यह बात हर स्तर के नेतृत्व पर लागू है। नेतृत्व का सिर्फ यह मतलब नहीं है कि जो सत्ता में बैठा है, बल्कि जो भी व्यक्ति सार्वजनिक जीवन में है उसकी परीक्षा संकट के समय में होती है। भुज में आए भूकंप के समय हुए संकट प्रबंधन ने तब के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व को स्थापित किया। कोशी में आई भीषण बाढ़ के समय हुए राहत व बचाव के काम ने नीतीश कुमार की छवि को एक बड़ी ऊंचाई दी थी। आजादी से पहले 1934 में बिहार में आए भीषण भूकंप में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद और जेबी कृपलानी के किए काम को इतिहास में दर्ज किया गया है। कोरोना वायरस के संकट में भी कुछ नेता अपने शानदार काम से तारीफ हासिल कर रहे हैं और उन्हें इतिहास में भी बहुत सम्मान के साथ याद किया जाएगा। पर देश का ज्यादातर नेतृत्व खामोश है या घर बैठा हुआ है।

प्राकृतिक या मानवीय आपदा का समय नेता के लिए सबसे अधिक सक्रियता का होना चाहिए। उसे आम लोगों से जुड़ना चाहिए। आम लोगों के दुख-तकलीफ का भागीदार बनना चाहिए और जहां तक संभव हो उसे दूर करने का प्रयास करना चाहिए। पर अफसोस की बात है कि पिछले करीब तीन महीने से चल रहे कोरोना वायरस के संकट के समय लगभग सारे नेता घरों में बैठ गए। चाहे सत्ता पक्ष के नेता हों या विपक्ष के नेता सबने चुप्पी साधे रखी। जो केंद्र या राज्यों में सत्ता में हैं वे मजबूरी में जरूर काम करते रहे पर थोड़े से अपवादों को छोड़ कर उनका काम भी बला टालने वाला था। ऐसा नहीं लगा कि नेता आम जनता के दुख, उसकी समस्या और परेशानियों में भागीदार बन रहे हैं।

कोरोना वायरस का संकट शुरू होने के बाद से ही पहली जरूरत इस बात की थी कि नेता आम जनता की समस्याओं को समझें। यह जानने का प्रयास करें कि लोगों को किस चीज की सबसे ज्यादा जरूरत है और वह जरूरत पूरी करने का प्रयास करें। संकट के समय में नेतृत्व को जनता की जरूरत के हिसाब से काम करना होता न कि सरकार, आर्थिकी और राजनीति की जरूरत के हिसाब से। संकट के समय में राजनीतिक जरूरतें हो सकती हैं या आर्थिकी की जरूरतें भी हो सकती हैं पर वह प्राथमिकता नहीं है। प्राथमिकता जनता और उसकी जरूरतें होती हैं। पर पहले दिन से इसे नहीं समझा गया है।

हर नेता दूसरे को सलाह दे रहा है कि इस पर राजनीति न हो। असल में ‘इस पर राजनीति न हो’ से ज्यादा राजनीतिक बयान कुछ नहीं हो सकता है। जब भारत में संसदीय प्रणाली राजनीति के हिसाब से चलती है तो राजनीति क्यों नहीं होनी चाहिए! नेताओं ने राजनीति को क्या समझा हुआ है, जो कहते हैं कि इस पर राजनीति न हो? क्या वे मान रहे हैं कि राजनीति बहुत खराब चीज है और संकट के समय यह खराब काम नहीं किया जाना चाहिए? अगर राजनीति अच्छी चीज है और इसी से देश व इसके करोड़ों नागरिकों का जीवन तय होता है तो संकट के समय राजनीति क्यों नहीं होनी चाहिए? क्या राजनीति सिर्फ चुनाव के समय होनी चाहिए?

कोरोना वायरस के संकट का यह दौर राजनीति के लिए बेहतरीन समय है। जो सचमुच नेता है या राजनीति को एक अच्छा काम और लोकतंत्र की जरूरत मानता है वह इस समय राजनीति करेगा। वह इस समय जनता के साथ खड़ा होगा। उनकी समस्या सुनेगा और उसे दूर करने का प्रयास करेगा। पर अफसोस की बात है कि देश का कोई भी नेता इस समय यह काम नहीं कर रहा है। राहुल गांधी एक दिन मजदूरों के साथ बैठे तो एक केंद्रीय मंत्री ने कहा कि राहुल मजदूरों का समय बरबाद कर रहे थे। इस एक अपवाद और बेहद असंवेदनशील बयान के अलावा कहीं पर कोई नेता नेतृत्व करता नहीं दिख रहा है। माफ करें, प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री जो अभी काम कर रहे हैं, वह उनका प्रशासनिक दायित्व है और उसे नेतृत्व करना नहीं कहा जा सकता है।

कोरोना वायरस के इस संकट के समय में फिल्म अभिनेता सोनू सूद ने जिस तरह से काम किया क्या आपने किसी नेता को वैसे काम करते देखा है? क्या नेता वह काम नहीं कर सकते हैं? जिन पार्टियों के पास सैकड़ों, हजारों करोड़ रुपए का जनता के पैसे का ही फंड इकट्ठा है क्या वे अपने उस खजाने का मुंह खोल कर सड़क पर नहीं खड़े हो सकते थे? सरकारें विफल हैं तो पार्टियां या नेता अपने फंड से लोगों के लिए बसें या दूसरे साधन मुहैया नहीं करा सकते थे? पिछले तीन हफ्ते से लाखों लोगों ने भयावह यातना झेल कर ट्रेनों में यात्रा की है, क्या कहीं कोई नेता इन ट्रेन यात्रियों की मदद के लिए खड़ा दिखा? ट्विटर पर आंसू बहाने के अलावा नेताओं ने कुछ नहीं किया। बिहार की एक किशोर उम्र की बेटी अपने बीमार पिता को लेकर 12 सौ किलोमीटर तक साइकिल चला कर दरभंगा चली गई। वह भाजपा के शासन वाले तीन राज्यों से होकर गुजरी पर किसी की नजर उस पर नहीं पड़ी। अगर कोई रास्ते में उसे साइकिल से उतार कर उसे घर पहुंचाने की व्यवस्था करता तो वह राजनीति अच्छी होती। लेकिन वह तो किसी ने नहीं किया और जब वह घर पहुंच गई तो भाजपा के स्थानीय नेता साइकिल खरीद कर उसे देने पहुंच गए। यह घटिया राजनीति है, जो नहीं होनी चाहिए।

संकट के इस समय में राजनीति लोगों की मदद करने की होनी चाहिए। पर पहले पार्टियां और उसके नेता कोरोना की छुट्टी के मोड में चले गए। और जब सरकारें छूट देने लगीं तो वे राजनीति करने लौटे और एक दूसरे के खिलाफ धरना, प्रदर्शन शुरू कर दिया और एक-दूसरे की कमियां निकालने लगे। इस किस्म की राजनीति का समय अभी नहीं है पर नेतृत्व दिखाने का, मिसाल बनने का तो बेहतरीन समय है यह।