सोमवार, 7 जनवरी 2019

जाट अब किस कोटे में जाएंगे

चार महीने के बाद होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले  नरेंद्र मोदी ने सवर्ण आरक्षण के रूप में बड़ा दांव खेल दिया है। इस बीच जाटों के आरक्षण का मसला भी फिर से खड़ा होने लगा है।जाट अब किस कोटे में जाएंगे। उन्हें सवर्ण आरक्षण कोटे में शामिल किया जाएगा या फिर ओबीसी कोटे में।


जयपुर  । चार महीने के बाद होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले  नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से सवर्ण आरक्षण को लेकर खेले गए बड़े दांव के बाद से सियासत सुर्ख है। हर किसी की नजर इस आरक्षण की घोषणा को जमीनी रूप देने के लिए उठाए जाने वाले कदम पर टिकी हुई है। सवर्णों को 10  फीसदी आरक्षण को लेकर तेज हुई सियासी चर्चाओं के बीच जाट का मसला भी उभरकर सामने आ गया है। साथ ही ये सवाल भी खड़ा हो गया है कि जाट अब किस कोटे में जाएंगे। उन्हें सवर्ण आरक्षण कोटे में शामिल किया जाएगा या फिर ओबीसी कोटे में।


चुनाव से पहले मोदी सरकार की ओर से खेले गए दांव को राजनीतिक रूप से गेमचेंजर के रूप में देखा जा रहा है। सवर्णों को आरक्षण देने को लेकर सालों पुरानी मांग पर मोदी सरकार की ओर से फैसला करने के बाद से राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। लेकिन, इसके साथ ही जाट समुदाय के आरक्षण का मसला भी एक बार फिर खड़ा होने लगा है। दरअसल, मोदी सरकार की ओर से सवर्णों को आर्थिक आधार पर 10 फीसदी आरक्षण की घोषणा की गई है। इस घोषणा के बाद जाटों को किस कोटा में शामिल किया जाएगा  इस पर स्थिति साफ करने की मांग होने लगी है। ऑल इंडिया जाट आरक्षण संघर्ष समिति  ने कहा कि है कि जाट किस कोटे में शामिल होंगे ये साफ होना चाहिए। दरअसल, जाटों को ओबीसी कोटे में राज्य स्तर पर ओबीसी में आरक्षण दिया गया है। समुदाय के लोगों को राजस्थान (भरतपुर-धौलपुर को छोड़कर),  दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड, बिहार और गुजरात में आरक्षण है। लेकिन, केंद्रीय स्तर पर ये ओबीसी में शामिल नहीं हैं। ऐसे में सवाल खड़ा होने लगा है कि केंद्रीय स्तर जाट को 10 फीसदी सवर्ण आरक्षण में शामिल किया जाएगा या फिर इन्हें ओबीसी कोटे में शामिल किया जाएगा। 


 चुनाव से पहले मोदी सरकार ने केबिनेट की बैठक के दौरान सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण देने पर मुहर लगा दी है। इस संबंध में संविधान संशोधन का बिल संसद में पेश किया जाना है। इसके दायरे में आर्थिक रूप से कमजोर सवर्ण की सभी जातियां शामिल होंगी। इस आरक्षण का आधार आर्थिक कमजोरी को रखा गया है। सूत्रों का कहना है कि  आरक्षण के लाभ के लिए ग्रामीण और शहरी क्षेत्र की अलग-अलग पात्रता निर्धारित की गई है। जिसमें ग्रामीण क्षेत्र में पांच एकड़ से कम जमीन और 1000  स्क्वायर फीट से कम का मकान होने के साथ ही कुल  आय (सभी स्रोतों) 8 लाख रुपए सालाना होनी चाहिए। वहीं, शहरी क्षेत्र में म्यूनिसिपल एरिया में 100 वर्गगज से कम का मकान होने या शहरी क्षेत्र से बाहर गैर म्यूनिसिपल एरिया में 200 वर्गगज से कम का मकान होने पर आरक्षण का लाभ मिल सकेगा।


दरअसल, पिछले वर्ष एससी/एसटी एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद जिस तरह से सरकार ने फैसला बदल दिया था। उससे सवर्णों में खासी नाराजगी बनी हुई थी। माना जा रहा है कि इस नाराजगी को देखते हुए मोदी सरकार ने लोकसभा चुनाव 2019 से पहले सवर्णों के लिए आरक्षण की घोषणा करके बड़ा दांव खेल दिया है।  आरक्षण का कोटा मौजूदा 49.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 59 प्रतिशत कर दिया जाएगा। इसमें से 10 फीसदी कोटा आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए होगा। इससे पहले मंडल कमिशन के बाद पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने भी इस तरह की कोशिश की थी। लेकिन, आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत होने के कारण उस समय इस मुद्दे पर आगे कोई कार्रवाई नहीं हो पाई थी। लेकिन, इस बार मोदी सरकार आरक्षण के बेसिक स्ट्रक्चर में बदलाव की तैयारी कर ली है।

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