शुक्रवार, 4 जनवरी 2019

वसुंधरा राजे नेता प्रतिपक्ष नहीं होंगी

राजस्थान सहित तीन बड़े राज्यों में विधानसभा चुनाव हार चुकी भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने काफी कड़ा फैसला किया है। दिल्ली के इस फैसले के बाद से पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के खेमे में बेचैनी बढ़ गई है।

जयपुर।  विधानसभा चुनाव में राजस्थान सहित तीन राज्यों में सत्ता गंवा चुकी भाजपा के भीतर नेता प्रतिपक्ष को लेकर चल रही सियासी चर्चाओं के बीच दिल्ली ने कड़ा फैसला लिया है. दिल्ली केंद्रीय नेतृत्व ने तय किया है कि राजस्थान में नेता प्रतिपक्ष पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे नहीं होंगी. इसी तरह एमपी और छत्तीसगढ़ में भी पूर्व सीएम के कद को छांटा जाएगा. दिल्ली के इस फैसले के बाद से पार्टी के भीतर सियासी तूफान खड़ा हो गया है। वहीं,  दिल्ली के इस निर्णय के बाद राज्य में नेता प्रतिपक्ष की दौड़ में अब सैकेण्ड लाइन में रहे नेता फ्रंट पर आ गए हैं।



पार्टी के उच्च सूत्रों ने बताया कि हाल में भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक में ये फैसला लिया गया है।  पार्टी की ओर से लिए गए निर्णय को अमल में लाने का काम भी छत्तीसगढ़ से शुरू हो चुका है. छत्तीसगढ़ में पूर्व सीएम रमन सिंह के बजाए धर्मपाल कौशिक को नेता प्रतिपक्ष बनाते हुए दिल्ली ने अपनी मंशा भी साफ कर दी है। वहीं, दिल्ली के इस फैसले के बाद से पार्टी के भीतर सियासी पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया है। खासतौर पर वसुंधरा राजे खेमे में बेचैनी बढ़ गई है। पूरा खेमा भी एक्टिव होने लगा है। माना जा रहा है कि तीनों राज्यों में मिली हार के बाद अब पार्टी यहां किसी एक नेता के भरोसे आगे चलने के मूड़ में नहीं है. साथ ही इस हार के बाद वसुंधरा को नेता प्रतिपक्ष नहीं बनाकर दिल्ली कड़ा संदेश भी देना चाहती है।  विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद भी नेता प्रतिपक्ष के नाम पर अब तक केवल वसुंधरा राजे का नाम ही सबसे आगे रहा है। साफतौर पर माना जाता रहा है कि वसुंधरा राजे का नेता प्रतिपक्ष बनना लगभग तय है। अगर खुद वसुंधरा ही पीछे हटी तो ही किसी  और नेता इस दौड़ में शामिल होगा।


लेकिन, इस बीच दिल्ली आलाकमान की ओर से लिए गए निर्णय के बाद से हर कोई हैरान है। इस निर्णय के बाद राजस्थान में नेता प्रतिपक्ष की दौड़ में पार्टी के वरिष्ठ नेता गुलाबचंद कटारिया, राजेंद्र सिंह राठौड़, नरपत सिंह राजवी सहित कई अन्य नाम शामिल हो गए हैं। लेकिन, इनमें सबसे आगे कटारिया को दौड़ में माना जा रहा है। हालांकि, पार्टी के जानकारों का कहना है कि  दिल्ली ने जिस कड़े मन से ये निर्णय किया है, उसे उसी के अनुरूप लागू कर पाना इतना आसान नहीं है। क्योंकि, पार्टी के निचले से लेकर शीर्ष स्तर पर बैठे नेता अच्छे से जानते हैं कि वसुंधरा  राजे की बिना सहमति के कुछ कर पाना काफी मुश्किल है। ऐसे में माना जा रहा है कि किसी को भी नेता प्रतिपक्ष बनाने से पहले पार्टी के नेता वसुंधरा की सहमति लेंगे, जिससे नेता प्रतिपक्ष का चुनाव बिना किसी राजनीतिक विवाद के हो सके। सूत्रों का कहना है कि आलाकमान की मंशा है कि वसुंधरा राजे सहित तीनों राज्यो के पूर्व मुख्यमंत्रियों को केंद्र में नई जिम्मेदारी दी जाए। साथ ही राज्य में नया नेता खड़ा किया जाए। राजनीति के जानकारों का कहना है कि दिल्ली अब राजस्थान में वसुंधरा राजे सहित तीनों राज्यों में पिछले 15 साल से एक नेता की मुट्ठी में बंद पार्टी को बाहर निकालना चाहता है। 


तीनों राज्यों में विधानसभा चुनाव के दौरान मिली हार ने पार्टी आलाकमान अमित शाह को ये मौका दे दिया है। यही वजह है कि अब दिल्ली बैठे शाह तीनों नेताओं की जगह नए नेता के लिए जमीन तैयार करने में जुट गए हैं। खासतौर पर राजस्थान में विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेशाध्यक्ष से लेकर टिकट बंटवारे के दौरान जिस तरह से वसुंधरा राजे और  शाह के बीच खींचतान चली। उसके बाद अब शाह इस मौके को गंवाना नहीं चाहते हैं। लेकिन, दूसरी तरफ जानकारों का यह भी कहना है कि वसुंधरा राजे के तेवर को पहले भी दिल्ली देख चुकी है। उनके तेवर के आगे हर बार दिल्ली को ही अपने कदम पीछे लेना पड़ा है। ऐसे में वसुंधरा के बिना खुद की इच्छा के कुछ कर पाना इतना आसान भी नजर नहीं आता है।

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