शुक्रवार, 11 जनवरी 2019

वसुंधरा बोली फैसले का स्वागत

राजस्थान की राजनीति में पिछले 16 साल से भाजपा के प्रमुख चेहरे के रूप में स्थापित रही वसुंधरा राजे और पीएम नरेंद्र मोदी के बीच जारी शह-मात के खेल में इस बार मोदी का दांव भारी रहा है. जिसकी चर्चा सियासी गलियारों में बनी हुई है।


जयपुर ।'भाजपा मतलब वसुंधरा और वसुंधरा मतलब भाजपा' की कहावत को इस बार दिल्ली ने एक निर्णय से बदल दिया है। राजस्थान में भाजपा के प्रमुख चेहरे के रूप में 16 साल तक राज करने वाली पूर्व सीएम वसुंधरा राजे अब राष्ट्रीय राजनीति में भाग लेंगी। जबकि, राज्य की राजनीति में सालों से बनी पकड़ से पार्टी अब बाहर निकलेगी। भाजपा केंद्रीय नेतृत्व के इस  फैसले के बाद से राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का बाजार गरम है, साथ ही कई कयास लगाए जा रहे हैं। वहीं, वसुंधरा ने खामोशी से केंद्र के इस निर्णय को स्वीकार करते हुए  फैसले का स्वागत किया है।



साल 2002 में प्रदेश भाजपा की कमान अपने हाथ में लेते हुए वसुंधरा ने समय के साथ संगठन से लेकर प्रदेश भर में अपनी राजनीतिक पकड़ को बेहद मजबूत बनाती चली गई। संगठन पर शीर्ष से लेकर निचले इकाई तक उनकी पकड़ का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दिल्ली से चलने वाला कोई भी आदेश बिना वसुंधरा की सहमति के जमीनी रूप नहीं ले पाया। क्षत्रप राजनेता के रूप में राजस्थान में रहकर राजनीति करने वाली वसुंधरा राजे ने 16 साल के भीतर कई बार दिल्ली को अपने फैसले बदलने के लिए मजबूर किया है। खास तौर पर 2009, 2012 और  2018 के दौरान उनके तेवर के आगे दिल्ली को अपने कदम पीछे लेना पड़ा है। लेकिन, इस बार विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद बदले समीकरण के दौरान शह-मात के खेल में पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह का दांव भारी पड़ गया। चुनावी हार के बाद दिल्ली से चलने वाले हर आदेश के बीच वसुंधरा खामोश हैं। एक के बाद एक निर्णय करते हुए दिल्ली ने राज्य में अपनी मजबूती का संदेश दिया है। 



शाह और मोदी की ओर से किए निर्णय के बाद वसुंधरा को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया है। वसुंधरा ने केंद्रीय नेतृत्व  के इस फैसले को स्वीकार करते हुए दोनों नेताओं का आभार जताया है। राजनीति के जानकारों का कहना है कि चुनावी हार ने मोदी और शाह को वसुंधरा राजे को राज्य की जमीन से हटाते हुए उनकी जगह नए नेता को तैयार करने का मौका दे दिया है। शाह ने भी इस मौके पर बिना गंवाए वसुंधरा को दिल्ली बुला लिया है। जानकारों का कहना है कि 2004 से 2014 के बीच दिल्ली के कमजोर होने के चलते वसुंधरा राजे राज्य में अपनी पकड़ को मजबूत बनाती रही। 2008 में विधानसभा और उसके बाद 2009 में जब पार्टी को लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। तब भी पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने वसुंधरा सहित सभी प्रदेशाध्यक्षों को  इस्तीफा देने को कहा था। सभी ने इस्तीफा दे भी दिया लेकिन,वसुंधरा ने दिल्ली के निर्देश को अनसुना करते हुए 2010 में पद को छोड़ा था। इस दौरान भी दिल्ली सीधे तौर पर कोई कार्रवाई नहीं कर पाया  था। वसुंधरा ने पद अपनी ही इच्छा के अनुरूप ही छोड़ा था। इसके बाद 2012 में जब पार्टी के वरिष्ठ नेता गुलाबचंद कटारिया ने रथयात्रा निकालने की बात कही तब पार्टी के एक धड़े ने इसका समर्थन किया था। 



उस समय भी वसुंधरा ने दिल्ली को चुनौती देते हुए अपने समर्थन में विधायकों को लेकर दिल्ली पहुंच गई थी। तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी के सामने वसुंधरा ने विधायकों की परेड कराने के साथ ही पार्टी से इस्तीफा देने तक की धमकी दे दी थी। तमाम माथापच्ची के बीच आखिर वहीं निर्णय दिल्ली आलाकमान को करना पड़ा जो वसुंधरा चाहती थी। 2014 के बाद पार्टी की कमान जब पीएम मोदी और शाह के हाथों में आया तो भी वसुंधरा एक समय तक अपने तेवर से दिल्ली को फैसले बदलने पर मजबूर करती रही। खासतौर पर प्रदेशाध्यक्ष के मुद्दे पर शाह को सीधी चुनौती वसुंधरा की ओर से देने के बाद 74 दिन तक मामला लटका रहा। आखिरकार में शाह को ही बीच का रास्ता निकालना पडा़ था। लेकिन, विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद बदले समीकरण के बाद दिल्ली का दांव इस बार भारी हो गया है। राजनीति के जानकारों का कहना है कि विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद इस बार वसुंधरा राजनीतिक रूप से उस मजबूती में नहीं हैं, जैसा कि पहले रही हैं। 



इस बार दिल्ली मजबूत है। यही वजह है कि पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और पीएम नरेंद्र मोदी के निर्णय के आगे वसुंधरा इस बार खामोश हैं। हालांकि, जानकारों का यह भी कहना है कि राज्य से केंद्र तक पहुंचने के बाद वसुंधरा की फिर से राज्य की राजनीति में वापसी नहीं हो पाएगी। इसे पुख्ता नहीं कहा जा सकता। क्योंकि, राजनीति हमेशा संभावनाओं का खेल रहा है। जानकारों की मानें तो राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के तौर पर नियुक्त हुई वसुंधरा राजे की चुप्पी के पीछे उनका अपना समीकरण है। माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव के परिणाम का इंतजार वसुंधरा कर रही हैं। लोकसभा चुनाव में आने वाला परिणाम यदि मोदी के पक्ष में मजबूती से गया तो वसुंधरा को राजनीतिक रूप से दिल्ली के दिखाए राह पर ही आगे बढ़ना होगा। लेकिन, यदि ये परिणाम कमजोर करने वाला रहा तो फिर वसुंधरा का नया रूप और तेवर सामने देखने को मिल सकता है। 

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