बुधवार, 16 जनवरी 2019

नाटक जलता हुआ रथ से किए 1983 के दंगाें के कारणाें पर गहरे कटाक्ष


सिस्टम में व्याप्त विद्रूपताओं से खिन्न राजेंद्र सिंह गहलाेत ने फुटपाथी यतीम काे बनाया नाटक का मुख्य अतिथि ।





सर्वेश भट्ट, वरिष्ठ कला समीक्षक
संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के तत्वावधान में रंगकर्मी राजेंद्र सिंह गहलोत ने बुधवार को रविंद्र मंच पर स्वदेश दीपक लिखित नाटक जलता हुआ रथ का मंचन किया। जलता हुआ रथ पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए दंगों में सिखों के नरसंहार से उपजे दर्द की कहानी है। गहलाेत का कहना है कि जनता के वाेट से बनने वाले सिस्टम के आगे आम आदमी याचक बनकर रह जाता है, वहां व्यक्तिगत रूप से उसकी काेई हैसियत नहीं हाेती है। सिस्टम में व्याप्त इसी विद्रूपता का प्रतिकार करने के लिए उन्हाेंने अजमेरी गेट के फुटपाथ पर जीवन बसर करने वाले कर्नाटक के सुरेंद्र से इस नाटक का उद्घाटन करवाया। इतना ही नहीं उन्हाेंने इस व्यक्ति काे सम्मान में उन्हें माणक अलंकरण में मिला शाॅल ओढ़ाया, उसे नकद राशि और लंच मुहैया करवाया। इसके बाद सम्मानपूर्वक उसे उसके स्थान पर छुड़वाया भी। 





ये है नाटक की कहानी




नाटक अधेड़ बाबा नामक एक व्यक्ति की मनाेदशा पर आधारित है। दंगाें के दाैरान उपजे राजनीतिक उन्माद में ये बाबा अपना एक मात्र बेटा भी गंवा देता है। हादसे के बाद वाे पागल हाेकर भिखारियाें के बीच जाकर रहने लगता है। वहां वाे भिखारियाें की जीवन शैली से रूबरू हाेता है तब उसे पता चलता है कि नेता वाेटाें के लालच में उनके पास भी पहुंचते हैं बाद में मकसद पूरा हाेने पर उन पर भी लाठीचार्ज करने से नहीं चूकते। 







ये थे नाटक के कुछ संवेदनशील संवाद





इस दर्द का प्रतिनिधित्व कर रहा अधेड़ बाबा जब कहता है इस पगड़ी वाले ने गले में टायर क्यों डाल रखा है, इसका सब्जी का थैला नीचे गिर गया, मूलियों को तो मिट्टी लग गई, इस टायर में आग क्यों लगा ली, बेचारा पागल जल मरेगा, इस लड़के को इतने सारे लोग क्यों मार रहे हैं, इसकी तो अभी दाढ़ी भी नहीं आई, किसने गिरा दी इसकी पगड़ी सड़क पर, किसने खून किया इस बच्ची का। प्रधानमंत्री का कत्ल हुआ, पुलिस ने उनको उसी वक्त पकड़ लिया, फिर इन को क्यों मार रहे हैं लोग। 



संवादाें की अदायगी ने की आंखें नम





नाटक में अधेड़ बाबा की मुख्य भूमिका राजेंद्र सिंह गहलाेत ने निभाई। हादसे के दाैरान जीवंत हुए मंजर से और उसके बाद बेटे की हत्या से पगलाए व्यक्ति के किरदार काे गहलाेत ने बहुत ही मार्मिक अंदाज में जिया। उनकी आंखाें से टपकती लाचारी और चेहरे पर आते-जाते हाव-भाव ही इस नाटक का सबसे बेहतरीन पक्ष थे। नाटक में मुकेश धर दुबे, डाॅ. चंद्रदीप हाड़ा, करण सिंह गहलाेत और सीतादेवी लेटानी सहित करीब एक दर्जन कलाकाराें ने अभिनय किया।

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