मीडिया का रोल इस पूरे चुनावी अभियान में हमेशा की तरह विज्ञापन मिलने या न मिलने के कारण या स्पेस परचेज के कारण ऐसा हो गया है मानों अवाम की जिंदगी की सार्थकता ही किसी भी पार्टी की सरकार बन जाने में है। चुनावों का तमाशा मीडिया के लिये विज्ञापनों का त्यौहार है, दीपावली का त्यौहार, जिसमें उसे गरीब अवाम के घर का अंधेरा दिखाई ही नहीं देता।
जयपुर । राजस्थान विधानसभा चुनाव की ग्राउंड रिपोर्ट । राजस्थान के चुनाव में इस बार भाजपा को बहुमत के जादुई आंकड़ें से दूर रखने में मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे की भूमिका अहम होगी जिसे राजस्थान की जनता अब किसी भी सूरत में मुख्यमंत्री के रूप में बर्दाश्त नहीं करना चाहती, इसीलिये भाजपा को हराने में जादूगर अशोक गहलोत का कोई जादू काम कर रहा हो ऐसा कहना ठीक नहीं है।
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| राजेन्द्र सिंह गहलोत |
जब अशोक गहलोत का जादू ही काम नहीं कर रहा तो सचिन पायलट की तो बात ही छोड़ दें, क्योंकि कांग्रेस आलाकमान के भले ही सचिन पायलट खास हों, लेकिन कांग्रेस आलाकमान के विश्वसनीय सलाहकारों का मानना है कि वर्तमान में सचिन पायलट को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करने से जातिगत गणित बिगड़ जायेगा, और अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करने से सचिन पायलट का खेमा ही कांग्रेस को ले डूबेगा।
इसलिये भले ही कांग्रेस आलाकमान के छिपे संकेत हों कि मुख्यमंत्री सचिन पायलट बनेंगे, लेकिन पर्दे के पीछे अशोक गहलोत और सचिन पायलट की दिलों की दूरियां कांग्रेस के लिये बेहद नुकसानदायक है, इसलिये कांग्रेस आलाकमान ने मुख्यमंत्री का चेहरा प्रोजेक्ट नहीं किया है, क्योंकि असल में भीतरघात की इस स्थिति के चलते सर्वमान्य मुख्यमंत्री का चेहरा कांग्रेस के पास है ही नहीं, और यही पेंच कांग्रेस को बहुमत के जादुई आंकड़ें से दूर रखेगा।
दोनो ही पार्टियों के पास आंकड़ों की बात छोड़ दें तो 'आमजन हिताय' की अपनी उपलब्धियां गिनानें के नाम पर ज्यादा कुछ नहीं है, इसलिये दोनो ही पार्टियों के नेता एक—दूसरे के खिलाफ बयानबाजी और आरोप—प्रत्यारोप पर हमेशा की तरह उतर आये हैं, दोनों की पार्टियों की लड़ाई एक—दूसरे से भी है, और अपनी ही पार्टी के भीतर छिपी आन्तरिक घात से भी है।
इसके लिये दोनों ही पार्टियों को बहुमत का जादुई आंकड़ा छूने के लिये तीसरे मोर्चे के समर्थन की जरूरत होगी।
मीडिया का रोल इस पूरे चुनावी अभियान में हमेशा की तरह विज्ञापन मिलने या न मिलने के कारण या स्पेस परचेज के कारण ऐसा हो गया है मानों अवाम की जिंदगी की सार्थकता ही किसी भी पार्टी की सरकार बन जाने में है।
इस बात पर मीडिया खामोश है कि चाहे सरकार किसी की भी बनें, अवाम को तो हमेशा की तरह महंगाई, गरीबी, बेकारी, बेरोजगारी, अच्छी चिकित्सा, अच्छी शिक्षा से महरूम जीवन ही जीना पड़ेगा, आम जन अभिशप्त है वोट डालने के बाद नारकीय जीवन जीने के लिये। चुनावों का तमाशा मीडिया के लिये विज्ञापनों का त्यौहार है, दीपावली का त्यौहार, जिसमें उसे गरीब अवाम के घर का अंधेरा दिखाई ही नहीं देता।


ये तो साफ है कि भाजपा पुनः सत्ता में नहीं लौटेगी लेकिन कांग्रेस के लिए भी सत्ता की राह इतनी आसान नहीं है जैसा वो समझ रही है। अर्थात थर्ड फ्रंट की मदद की दोनो दलों को जरूरत पड़ेगी।
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