प्रदेश की राजनीतिक जमीन पर अभी तक कोई भी तीसरी शक्ति पनप नहीं पाई है। इसके लिए कोशिशें कई बार हुई, लेकिन किसी भी राजनीतिक दल तीसरे मोर्चे के रुप में भाजपा-कांग्रेस को चुनौती देने में अब तक नाकाम ही रहे हैं
जयपुर । प्रदेश की राजनीतिक जमीन पर भाजपा और कांग्रेस विशाल वृक्ष की तरह सालों से खड़े हैं, लेकिन इनके सामने तीसरे मोर्चे के रुप में कभी पौधा भी नहीं पनप पाया। तीसरे मोर्चे की आहट वर्ष 2008 के बाद से लगातार हो रही है, लेकिन कभी कोई शक्ति उभर ही नहीं पाई। ऐसा नही है कि इसके लिए कोशिशें नहीं हुई, लेकिन भाजपा-कांग्रेस की तरह जमीनी पकड़ नहीं होने के चलते हर बार सारी कवायदें धरी की धरी रह जाती हैं।
चार महीने के बाद होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले इस बार खींवसर विधायक हनुमान बेनीवाल तीसरे मोर्चे को आधार देने के काम में जुटे हुए हैं। तीसरे मोर्चे का झण्डा बुलंद करने के लिए बेनीवाल जगह-जगह रैलियां करके लोगों का समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इस झण्डे की छांव में अन्य दलों को लाकर खड़ा करना एक चुनौती ही है। ये चुनौती मीणा समाज के प्रमुख नेता किरोड़ी लाल मीणा के वापस भाजपा में शामिल होने के बाद से और बढ़ गई है। इससे पहले के सालों पर नजर डालें तो पता चलता है कि राजस्थान की सरजमीं पर भाजपा-कांग्रेस के सामने खड़ा होने के लिए पार्टी स्तर बसपा, राजपा. माकपा जैसी पार्टियों ने जोर लगाया है। लेकिन, उनका आधार कुछ सीटों और क्षेत्र तक ही रह गया।
जानकारों का कहना है कि राज्य में तीसरे मोर्चे के गठन में सबसे बड़ा रोड़ा किसी भी दल का बूथ स्तर तक संगठन का फैलाव नहीं होना है। जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं की पकड़ नहीं होने और बूथ स्तर पर लोगों को एजेंडे की जानकारी नही होने से लोग कभी जुड़ ही नही पाए। साथ ही तीसरे मोर्चे की कवायद में जुटने वाले दलों का प्रभाव केवल एक समाज या क्षेत्र तक ही रहा है, यही वजह है कि ये दल कभी भी राजस्थान में सर्वमान्य नहीं हो पाए। प्रदेश के राजनीतिक इतिहास में झांक कर देखें तो समझ में आता है कि तीसरे मोर्चे के लिए सर्वमान्य नेता और सोच पहली आवश्यकता है। राजस्थान की राजनीतिक जमीन पर फसल उपजाने के लिए बसपा की तरफ से कोशिशें हुई जिसका परिणाम 2008 में 6 सीटों के रुप में मिला।
लेकिन इन विधायकों को कांग्रेस ने अपनी तरफ मिला लिया था। इसके बाद पार्टी को 2013 में 3 सीटें मिली हैं। पार्टी का प्रभाव विशेष वोट बैंक के साथ ही कुछ ही क्षेत्रों तक रहा है। वहीं, वर्ष 2008 में पार्टी से मतभेद होने के बाद किरोड़ालाल मीणा ने राजस्थान जनता पार्टी के नाम से नया दल का गठन किया था । मीणा समाज के प्रमुख नेता के रुप में पहचाने जाने वाले किरोड़ी लाल मीणा हमेशा समाज के लिए खड़े रहते हुए समाज में जमीनी पकड़ रखते हैं। तत्कालीन कांग्रेस शासन में उनकी पत्नी गोलमा देवी को राजस्थान में मंत्री बना दिया था। दस साल तर विपरीत राह पर चलने के बाद किरोड़ी वापस भाजपा में शामिल हो गए।
इसी प्रकार माकपा गंगानगर जैसे क्षेत्र में सक्रिय रही है। पार्टी किसान, एमएसपी आदि मुद्दों को लेकर चलती है। पार्टी ने 2008 के चुनाव में तीन सीटों पर जीत हासिल की थी। बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार भी अपनी पार्टी के लिए राजस्थान की राजनीति में जमीन तलाश रहे हैं। पार्टी मुख्य रुप से बांसवाड़ा क्षेत्र में ही सक्रिय रहे। इससे पहले जदयू राज्य में पैर जमाने की कोशिश कर चुका है, लेकिन सफलता नहीं मिली। हाल में राजस्थान में आए मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने फिर से कार्यकर्ताओं में जोश जगाने की कोशिश की है।
सर्वहारा नेता नहीं होने से रही दिक्कत
राज्य में तीसरे मोर्चे की कवायद बार-बार फेल होने के पीछे सबसे बड़ा कारण सर्वहारा नेता नहीं होना भी है। अभी तक तीसरे मोर्चे की कवायद जिन नेताओं ने की है, वे एक समाज या फिर क्षेत्र तक सीमित रहे हैं। पूरे राज्य में जनता के बीच मान्य नहीं होने के कारण भी लोगों की ओर से समर्थन नही मिल पाया है।
भारत वाहिनी पार्टी को राजनीतिक दल का दर्जा दे दिया है और अब यह पार्टी घनश्याम तिवाड़ी के नेतृत्व में प्रदेश की सभी 200 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी।
घनश्याम तिवाड़ी के पुत्र और पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष अखिलेश तिवाड़ी ने बताया कि 11 दिसम्बर 2017 को भारत निर्वाचन आयोग को पार्टी के विधिवत पंजीकरण के लिए प्रार्थना पत्र दिया गया था। निर्वाचन आयोग ने भारत के संविधान के लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 29 के अधीन समस्त प्रक्रिया को पूरा करते हुए भारत वाहिनी पार्टी के पंजीकरण का कार्य पूरा किया। निर्वाचन आयोग ने भारत वाहिनी पार्टी के संविधान, दर्शनए,लक्ष्य तथा उद्देश्य संगठन के प्रारूप को विस्तार पूर्वक देखकर अपनी मान्यता प्रदान की। निर्वाचन आयोग ने पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश तिवाड़ी तथा महामंत्री अशोक यादव की ओर से 5 जून को आयोग के समक्ष दी गयी प्रस्तुति पर विचार करने के बाद तथा यह ध्यान में रख कर कि समाचार पत्रों में आवेदक दल द्वारा प्रकाशित सार्वजनिक सूचना के जवाब में किसी भी व्यक्ति द्वारा कोई आपत्ति दर्ज नहीं की गयी है। इसके बाद बुधवार को भरत वाहिनी पार्टी को राजनीतिक दल के रूप में पंजीकृत कर लिया। पार्टी अध्यक्ष को इसकी सूचना निर्वाचन आयोग द्वारा पत्र के माध्यम से प्रेषित की गई। पार्टी के पंजीकरण के इस कार्य में पूरा छह माह का समय लगा।
जयपुर । प्रदेश की राजनीतिक जमीन पर भाजपा और कांग्रेस विशाल वृक्ष की तरह सालों से खड़े हैं, लेकिन इनके सामने तीसरे मोर्चे के रुप में कभी पौधा भी नहीं पनप पाया। तीसरे मोर्चे की आहट वर्ष 2008 के बाद से लगातार हो रही है, लेकिन कभी कोई शक्ति उभर ही नहीं पाई। ऐसा नही है कि इसके लिए कोशिशें नहीं हुई, लेकिन भाजपा-कांग्रेस की तरह जमीनी पकड़ नहीं होने के चलते हर बार सारी कवायदें धरी की धरी रह जाती हैं।
चार महीने के बाद होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले इस बार खींवसर विधायक हनुमान बेनीवाल तीसरे मोर्चे को आधार देने के काम में जुटे हुए हैं। तीसरे मोर्चे का झण्डा बुलंद करने के लिए बेनीवाल जगह-जगह रैलियां करके लोगों का समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इस झण्डे की छांव में अन्य दलों को लाकर खड़ा करना एक चुनौती ही है। ये चुनौती मीणा समाज के प्रमुख नेता किरोड़ी लाल मीणा के वापस भाजपा में शामिल होने के बाद से और बढ़ गई है। इससे पहले के सालों पर नजर डालें तो पता चलता है कि राजस्थान की सरजमीं पर भाजपा-कांग्रेस के सामने खड़ा होने के लिए पार्टी स्तर बसपा, राजपा. माकपा जैसी पार्टियों ने जोर लगाया है। लेकिन, उनका आधार कुछ सीटों और क्षेत्र तक ही रह गया।
जानकारों का कहना है कि राज्य में तीसरे मोर्चे के गठन में सबसे बड़ा रोड़ा किसी भी दल का बूथ स्तर तक संगठन का फैलाव नहीं होना है। जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं की पकड़ नहीं होने और बूथ स्तर पर लोगों को एजेंडे की जानकारी नही होने से लोग कभी जुड़ ही नही पाए। साथ ही तीसरे मोर्चे की कवायद में जुटने वाले दलों का प्रभाव केवल एक समाज या क्षेत्र तक ही रहा है, यही वजह है कि ये दल कभी भी राजस्थान में सर्वमान्य नहीं हो पाए। प्रदेश के राजनीतिक इतिहास में झांक कर देखें तो समझ में आता है कि तीसरे मोर्चे के लिए सर्वमान्य नेता और सोच पहली आवश्यकता है। राजस्थान की राजनीतिक जमीन पर फसल उपजाने के लिए बसपा की तरफ से कोशिशें हुई जिसका परिणाम 2008 में 6 सीटों के रुप में मिला।
लेकिन इन विधायकों को कांग्रेस ने अपनी तरफ मिला लिया था। इसके बाद पार्टी को 2013 में 3 सीटें मिली हैं। पार्टी का प्रभाव विशेष वोट बैंक के साथ ही कुछ ही क्षेत्रों तक रहा है। वहीं, वर्ष 2008 में पार्टी से मतभेद होने के बाद किरोड़ालाल मीणा ने राजस्थान जनता पार्टी के नाम से नया दल का गठन किया था । मीणा समाज के प्रमुख नेता के रुप में पहचाने जाने वाले किरोड़ी लाल मीणा हमेशा समाज के लिए खड़े रहते हुए समाज में जमीनी पकड़ रखते हैं। तत्कालीन कांग्रेस शासन में उनकी पत्नी गोलमा देवी को राजस्थान में मंत्री बना दिया था। दस साल तर विपरीत राह पर चलने के बाद किरोड़ी वापस भाजपा में शामिल हो गए।
इसी प्रकार माकपा गंगानगर जैसे क्षेत्र में सक्रिय रही है। पार्टी किसान, एमएसपी आदि मुद्दों को लेकर चलती है। पार्टी ने 2008 के चुनाव में तीन सीटों पर जीत हासिल की थी। बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार भी अपनी पार्टी के लिए राजस्थान की राजनीति में जमीन तलाश रहे हैं। पार्टी मुख्य रुप से बांसवाड़ा क्षेत्र में ही सक्रिय रहे। इससे पहले जदयू राज्य में पैर जमाने की कोशिश कर चुका है, लेकिन सफलता नहीं मिली। हाल में राजस्थान में आए मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने फिर से कार्यकर्ताओं में जोश जगाने की कोशिश की है।
सर्वहारा नेता नहीं होने से रही दिक्कत
राज्य में तीसरे मोर्चे की कवायद बार-बार फेल होने के पीछे सबसे बड़ा कारण सर्वहारा नेता नहीं होना भी है। अभी तक तीसरे मोर्चे की कवायद जिन नेताओं ने की है, वे एक समाज या फिर क्षेत्र तक सीमित रहे हैं। पूरे राज्य में जनता के बीच मान्य नहीं होने के कारण भी लोगों की ओर से समर्थन नही मिल पाया है।
भारत वाहिनी पार्टी को राजनीतिक दल का दर्जा दे दिया है और अब यह पार्टी घनश्याम तिवाड़ी के नेतृत्व में प्रदेश की सभी 200 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी।
घनश्याम तिवाड़ी के पुत्र और पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष अखिलेश तिवाड़ी ने बताया कि 11 दिसम्बर 2017 को भारत निर्वाचन आयोग को पार्टी के विधिवत पंजीकरण के लिए प्रार्थना पत्र दिया गया था। निर्वाचन आयोग ने भारत के संविधान के लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 29 के अधीन समस्त प्रक्रिया को पूरा करते हुए भारत वाहिनी पार्टी के पंजीकरण का कार्य पूरा किया। निर्वाचन आयोग ने भारत वाहिनी पार्टी के संविधान, दर्शनए,लक्ष्य तथा उद्देश्य संगठन के प्रारूप को विस्तार पूर्वक देखकर अपनी मान्यता प्रदान की। निर्वाचन आयोग ने पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश तिवाड़ी तथा महामंत्री अशोक यादव की ओर से 5 जून को आयोग के समक्ष दी गयी प्रस्तुति पर विचार करने के बाद तथा यह ध्यान में रख कर कि समाचार पत्रों में आवेदक दल द्वारा प्रकाशित सार्वजनिक सूचना के जवाब में किसी भी व्यक्ति द्वारा कोई आपत्ति दर्ज नहीं की गयी है। इसके बाद बुधवार को भरत वाहिनी पार्टी को राजनीतिक दल के रूप में पंजीकृत कर लिया। पार्टी अध्यक्ष को इसकी सूचना निर्वाचन आयोग द्वारा पत्र के माध्यम से प्रेषित की गई। पार्टी के पंजीकरण के इस कार्य में पूरा छह माह का समय लगा।

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