रविवार, 24 जून 2018

राष्ट्रपति डा राजेंद्र प्रसाद ने ऐसी परंपरा कायम की थी जिससे सब प्रेरणा ले सकते थे

ये सब हमारे सर्वदलीय नेताओं की हीनता व लालच का परिचायक है जबकि देश के पहले राष्ट्रपति डा राजेंद्र प्रसाद ने ऐसी परंपरा कायम की थी जिससे सब प्रेरणा ले सकते थे।

बिहार का गौरव कहे जाने वाले डा राजेंद्र प्रसाद ने इस देश में कई मिसाल बनाई। पहला सबसे अहम मुद्दा यह है कि वे दो बार, वह भी लगातार राष्ट्रपति बनने वाले इस देश के एकमात्र व्यक्ति थे। वह भी प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की हैसियत व वजूद के बावजूद। उनके बारे में विस्तार से बाद में बताऊंगा मगर राष्ट्रपति पद से रिटायर होने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा उनको बदहाल करने व उनके द्वारा गरिमामय चुप्पी साध लेने की कहानी कहीं सुनने को नहीं मिलेगी।

उन्होंने लगातार दो बार राष्ट्रपति बनने के बाद 1962 में तीसरी बार इस पद के लिए खड़े नहीं होने का फैसला किया था। जब वे राष्ट्रपति पद से हटे तो आज के पूर्व राष्ट्रपतियो की तरह उन्हें दिल्ली में कोई बंगला नहीं दिया गया। हालांकि वे इसके हकदार थे। नियमों की अनदेखी करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें अपने गृहराज्य पटना तक में सरकारी आवास नहीं दिया और वे कांग्रेंस के दफ्तर सदाकत आश्रम में रहने लगे क्योंकि उनका वहां अपना कोई मकान नहीं था।

वे पटना के सदाकत आश्रम के एक छोटे से कमरे में रहते थे जिसकी हालत बहुत खराब थी। उसमें नमी की भरमार थी। डा प्रसाद दमे के रोगी थे व उनकी खांसी के लिए नमी बहुत हानिकारक थी। उनका महज एक साल बाद ही 28 फरवरी 1963 को निधन हो गया। जब उनकी मृत्यु हुई तो तत्कालीन राष्ट्रपति डा एस राधाकृष्णन को नेहरू ने पटना जाने से मना कर दिया।

उनका कहना था कि वे खुद जयपुर जाने के कारण वहां नहीं जा पाएंगे व उनका मानना था कि राष्ट्रपति होने के नाते उन्हें भी वहां नहीं जाना चाहिए। जवाब में राधाकृष्णन ने उन्हें लिखा कि मैं वहां जा रहा हूं व मेरा मानना है कि आपको भी मेरे साथ आना चाहिए मगर नेहरू नहीं आए।

यह वह व्यक्ति था कि जब महात्मा गांधी अपनी चंपारण यात्रा के लिए बिहार गए थे तो उनके वहां ही ठहरे थे क्योंकि उनके पास वहां ठहरने का कोई और ठिकाना ही नहीं था। नेहरू की बेशर्मी का इस बात से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब इस घटना के बाद पटना के गांधी मैदान में उनकी एक सार्वजनिक सभा हुई तो उन्होंने बेहद बेहयाई के साथ कहा कि अखबार वाले मुझसे पूंछ रहे हैं कि मैं डा प्रसाद के अंतिम संस्कार में क्यों नहीं शामिल हुआ? उस दिन तो मैं जयपुर में था।

यहां यह बताना जरूरी हो जाता है कि नेहरू कभी नहीं चाहते थे कि डा प्रसाद राष्ट्रपति बने। उन्होंने इस बारे में उन्हें पत्र लिख कर कहा था कि मेरी सरदार वल्लभ भाई पटेल से बात हो गई है कि सी़ राजगोपालाचारी को राष्ट्रपति बनना चाहिए। राजेंद्र प्रसाद ने नेहरू को जवाब में लिखा कि मैं कांग्रेंस पार्टी का वरिष्ठ वफादार सदस्य हूं व आपको मुझसे उसी के अनुरूप बर्ताव करना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने इस पत्र की प्रति सरदार पटेल को भेज दी जिन्होंने नेहरू की बात को झूठा करार देते हुए राजाजी के नाम पर सहमति होने से साफ इंकार कर दिया।

डा प्रसाद को नापसंद करने की नेहरू की कुछ खास वजहें थी। बुजुर्ग पत्रकार व डा प्रसाद के निधन से ठीक एक दिन पहले उनसे मिलने वाले पत्रकार डा मनमोहन शर्मा बताते है कि जवाहर लाल नेहरू का मानना था कि राजाजी उनकी ही तरह से विदेशियों की तरह व बर्ताव करने वाले नेता हैं जबकि वे डा प्रसाद को गंवार मानते थे जो कि अपनी गांव की भाषा में आम लोगों से बाते करना पसंद करते थे। धोती कुर्ता पहनते, खैनी खाते व धार्मिक व्यक्ति थे।

वे बताते हैं कि जहां नेहरू कश्मीरी ब्राह्मण होने के बावजूद हर तरह के मांस मदिरा के शौकीन थे व विदेशी सिगरेट पीते तो उनके कपड़े पेरिस से धुलकर आने की चर्चाएं हुआ करती थी। विदेशी कंपनी उनके नाम की सिगरेट बनाती थी। वे समाजवाद में विश्वास रखने वाले नास्तिक थे। जबकि डा प्रसाद जाति से कायस्थ होने के बावजूद पूरी तरह से शाकाहारी व पूजा-पाठ में विश्वास रखने वाले थे। जब वे सोमनाथ मंदिर जाना चाहते थे तो नेहरू ने उन्हें वहां जाने से रोका। जब वे वहां गए व उन्होंने पंडितो के चरण धोए तो नेहरू ने तब एकमात्र प्रसारक ऑल इंडिया रेडियो को निर्देश दिया था कि उनकी यात्रा का प्रसारण न किया जाए।

इसके साथ ही उनकी यात्रा को निजी करार देते हुए उनसे वहां जाने के लिए सरकारी विमान का किराया व दूसरे खर्च भी वसूले गए। बिहार के जाने-माने नेता श्याम नारायण सिंह जोकि उनके बेहद करीबी थे, उनके बेटे कुमुद नारायण सिंह बताते है कि एक बार वे नालंदा के बिंद गांव में स्थित टोडरमल द्वारा बनवाए गए चित्रगुप्त मंदिर में आए तो उन्होंने उनके पिता से स्थानीय भाषा में कहा कि श्याम बाबू तुम कुर्मी हो तुम मेरे साथ बैठो। इसके बाद उन्होंने क के नाम वाले, क से शुरू होने वाले स्थान पर रहने वाले तमाम प्रयोग करते हुए तमाम धर्म जाति के लोगों को अपने साथ बैठा लिया। वे खुद कायस्थ होने के कारण राज्य के तमाम धर्म व जाति के लोगों को जोड़ना चाहते थे।  आज हमारे नेता धर्म व जाति की राजनीति कर रहे हैं। अजीत सिंह द्वारा जबरन काबिज घर खाली करवाने पर उनके सामने उनके समर्थक दिल्ली आकर घेराव करते हैं और जिस सीवान में डा राजेंद्र प्रसाद का जन्म हुआ था उसे आज शहाबुद्दीन के नाम से जाना जाता है।

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