शनिवार, 23 जून 2018

गहलोत ने दिखाये राजनीति के जादू

जयपुर। राजस्थान में विधानसभा चुनाव नजदीक आने के साथ ही सियासत परवान चढ़ने लगी है। कांग्रेस में दो गुट बनने की कहानी को अब पंख लग चुके हैं। पार्टी सूत्रों के अनुसार इन दिनों प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट घूमने के लिए विदेश दौरे पर गए हुए हैं। जिसका फायदा उठाते हुए राजस्थान की राजनीति के जादूगर कहे जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने फिर अपनी सियासी चाल चल दी है। यह चाल न केवल सचिन पायलट के समर्थकों को परेशान कर रही है, बल्कि साढ़े चार में तक प्रदेश कांग्रेस में अध्यक्ष रहते पार्टी हित में काम करने के दम पर मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे पायलट की राह में रोडा भी बन सकती है।

 कांग्रेस के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री अशोक गहलोत ने  एक आदेश निकालकर सबको चौंका दिया है। उन्होंने राज्यसभा सांसद कुमारी शैलजा को राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए टिकट स्क्रीनिंग कमेटी का मुखिया बना दिया है। कुमारी शैलजा को सियासत में अशोक गहलोत की करीबी माना जाता है। इससे पहले भी शैलजा राजस्थान में टिकट स्क्रीनिंग कमेटी की मुखिया रह चुकी हैं। उनको कांग्रेस ने साल 2014 में लोकसभा चुनाव के दौरान राजस्थान में टिकट स्क्रीनिंग कमेटी की चेयरमैन नियुक्त किया गया था।

कुमारी शैलजा को इस कमेटी का मुखिया बनाए जाने के बाद सचिन पायलट खेमे में खलबली है, लेकिन गहलोत के संगठन महामंत्री होने के कारण कोई विरोध भी नहीं कर सकता। कुमारी शैलजा वर्तमान में हरियाणा से राज्यसभा सांसद हैं और साल 2009 से 2014 तक संप्रग सरकार वाले केन्द्रीय मंत्रीमंडल में आवास एवं गरीबी उन्मूलन मंत्रालय की राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रह चुकीं हैं। उन्होंने अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत वर्ष 1990 में महिला कांग्रेस की अध्यक्षा बनने से की थी। शैलजा 10वीं लोकसभा के लिए चुनाव में हरियाणा के सिरसा लोकसभा क्षेत्र से चुनी गईं थीं। तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव की सरकार में वह शिक्षा एवं संस्कृति मामलों की राज्यमंत्री बनीं। इसके बाद साल 1996 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के काफी खराब प्रदर्शन के बावजूद कुमारी शैलजा फिर से चुनी गईं। साल 2004 के आम चुनावों में उन्होंने पंजाब के अंबाला लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया और बाद में केन्द्रीय राज्य मंत्री बनीं।

कांग्रेस केंद्रीय आलाकमान में अच्छी पैठ रखने वाली शैलजा को न केवल अशोक गहलोत का करीबी माना जाता है, बल्कि यहां तक बताया जाता है कि पूर्व में 1998 और 2008 में राज्य का मुख्यमंत्री बनने के लिए कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्षा सोनिया गांधी के समक्ष गहलोत के लिए लॉबिंग भी कर चुकीं हैं। सचिन पायलट विदेश दौरे पर हैं और ऐसे वक्त में शैलजा की नियुक्ति उनके समर्थकों को परेशान करने वाली खबर हो सकती है।

अब बताते हैं कैसे होगा विधानसभा चुनाव और उसके बाद कुमारी शैलजा व गहलोत की सियासी मिलीभगत से मुख्यमंत्री के चयन का खेल! इसमें कोई दोहराय नहीं है कि स्क्रीनिंग कमेटी की चेयरमैन बनने के बाद टिकट बंटवारे में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होगी। पहले से ही शीतयुद्ध के दौर से गुजर रहे पायलट व गहलोत के रिश्तों के लिए यह नियुक्ति आग में घी का काम करेगी। माना जाता है कि विधानसभा चुनाव के वक्त प्रत्याशियों को टिकट बंटवारे में जिस नेता की अधिक चलती है, बाद में सरकार बनाने के वक्त पार्टी में उसी के समर्थन में विधायकों की लॉबिंग करने की संभावना ज्यादा होती है।

राजस्थान कांग्रेस में मुख्यमंत्री को लेकर इन दोनों नेताओं के बीच पिछले करीब दो साल से दावेदारी के लिए अघोषित शीतयुद्ध चल रहा है। कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री की दौड़ में जहां एक ओर पीसीसी चीफ सचिन पायलट हैं, तो दूसरे पाले में खड़े पूर्व सीएम अशोक गहलोत भी परोक्ष रूप से दावा ठोक रहे हैं। राज्य में फिलहाल पार्टी को पूर्ण बहुमत मिलेगा, इसको लेकर कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन जब विधानसभा के चुनाव परिणाम आएंगे और सरकार बनाने की बारी आएगी, तो यही टिकट बंटवारे के वक्त अपने चहेतों को सेट करने की रणनीति सीएम कंडीडेट बनाने में लॉबिंग करने के काम आएगी।

सचिन पायलट भले ही साढ़ेे चार साल से अध्यक्ष हों, लेकिन बीते एक साल से गहलोत की राज्य राजनीति में तेजी से बढ़ती सक्रियता और आलाकमान के समक्ष उनका बढ़ता कद पायलट के लिए राज्य का अगला मुख्यमंत्री बनने की राह में खतरे की घंटी बनता जा रहा है। चुनाव से पूर्व सीएम कंडीडेट का चेहरा तय नहीं होने के कारण परिणाम के बाद मुख्यमंत्री चुनने का समय आता है, तो नेता अपने पक्ष के विधायकों की केंद्रीय आलाकमान के समक्ष लॉबिंग करवाने का काम करते हैं। ऐसे वक्त में जब पार्टी के उपरी पदों पर जिस नेता के करीबी अधिक होंगे, वहीं अपनी बात मनवाने में कामयाब हो जाएगा।
शैलजा की राज्य कांग्रेस में टिकट स्क्रीनिंग कमेटी में मुखिया के पद पर नियुक्ति अशोक गहलोत की उसी रणनीति का हिस्सा बताया जा रहा है।

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