शुक्रवार, 22 जून 2018

सुन्दर सिंह भण्डारी

सुंदर सिंह भंडारी की 13वीं पुण्यतिथि पर विशेष
सुन्दर सिंह जी भंडारी को लोग जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी के नेता के रूप में  जानते हैं , यह भी सच है कि वे राष्ट्रिय स्वंयसेवक संघ के प्रचारक थे.., उनका स्तुत्य कार्य संघ के प्रचारक रहते हुए राजस्थान बोर्डर से आ रहे सिंध - पाकिस्तान से प्रताड़ित हिन्दुओं को व्यवस्थित रूप से वसानें का था ..,भोजन से लेकर उन्हें उपयुक्त जगह तक भिजवानें का प्रवंध करने में भंडारी जी और उनके साथ संघ के अनेकों स्वंयसेवको का स्तुत्य कार्य अविस्मरनीय है ..!


श्री सुन्दर सिंह भण्डारी का जन्म 12 अप्रैल 1921 को उदयपुर के एक जैन परिवार (राजस्थान) में हुआ। मूलतः उनका परिवार भीलवाड़ा के मण्डलगढ़ से संबंध रखता था, परन्तु उनके दादा वहां से उदयपुर चले गए थे। श्री भण्डारी जी के पिता डा. सुजान सिंह भण्डारी डाक्टरी पेशे से संबंद्ध थे। इस कारण उन्हें सदैव घूमते रहना पड़ता था। श्री भण्डारी की शिक्षा कई स्थानों पर हुई। उन्होंने उदयपुर से सिरोही से इंटरमीडिएट परीक्षा पास की और डीएवी काॅलेज, कानपुर से बीए और एम.ए. किया। उन्होंने अर्थशास्त्र में एम.ए. पास किया और बाद में लाॅ का अध्ययन किया।
श्री भण्डारी ‘सरल जीवन और उच्च विचारों’ के प्रतीक थे। शांत भाव के भण्डारी जीवन भर अविवाहित रहे और राष्ट्र की सेवा में अपना जीवन समर्पित किया। 1942 मंे अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद मेवाड़ उच्च न्यायालय मंे लीगल प्रेक्टिस शुरू की। 1937 में उन्होंने एस.डी. काॅलेज, कानपुर में प्रवेश लिया, जहां पं. दीनदयाल उपाध्याय उनके सहपाठी थे। 1937 (दिसम्बर) में इंदौर के बालू महाशब्दे ने उन्हें कानपुर के निकट नवाबगंज की आर.एस.एस शाखा में ले गए थे। तब से वे सदैव अपनी अंतिम सांस तक आरएसएस की विचारधारा के प्रति वचनबद्ध रहे।
1951 में जब भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई, उनका नाम प्रमुख रूप से शामिल किया गया था। 1951 से 1965 तक श्री भण्डारी ने राजस्थान जनसंघ में महामंत्री का दायित्व निभाया। इसके अलावा वे 1963 में जनसंघ के अखिल भारतीय मंत्री बने थे। पं. दीनदयाल उपाध्याय की मृत्यु के बाद 1968 में श्री भण्डारी जी को अखिल भारतीय महामंत्री (संगठन) बनाया गया।
उन्हांेने 1977 तक जनसंघ महामंत्री के पद पर कार्य किया। वह 1966-1972 के समय राजस्थान से राज्यसभा के सदस्य भी निर्वाचित हुए जब वह उस समय ‘मीसा’ के अन्तर्गत हिरासत में थे। 1998 में उनका राज्य सभा का कार्यकाल समाप्त हुआ, तब उन्हें बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया गया था। 1999 में उन्हंे गुजरात का राज्यपाल नियुक्त किया गया। भण्डारी जी ने कार्यकर्ताओं के सामने सरलता, सहनशीलता और मितव्ययता का उदाहरण पेश किया। लोगों ने भी ही उनकी जीवन शैली पर चलना कठिन समझा हो, परन्तु वे प्रकृति से बहुत नरम दिल इंसान थे।
उन्होंने अनुशासित पार्टी की छवि कायम रखी। उन्होंने कार्यकर्ताओं से जीवन शैली की गरिमा बनाए रखने का आह्वान किया। वह एक ऐसे मूर्तिकार और कार्यकुशल क्राफ्टस्मैन थे जिन्होंने  मानव, समाज और संगठन की प्रतिमा बनाई। वह कभी भी ‘कलश’ नहीं बनना चाहते थे। इसी कारण वे अत्यंत स्पष्टवादी थे। अपनी प्रकृति के कारण वे कार्यकर्ताओं में ‘हैडमास्टर’ के नाम से सुप्रसिद्ध हो गए।
22 जून 2005 को उनका स्वर्गवास हो गया। श्री भण्डारी जी ने अपने कालकाजी निवास पर प्रातः पांच बजे अंतिम सांस ली। उन्होंने अपना सारा जीवन मातृभूमि को समर्पित किया तथा जीवन भर के रा.स्व.सं. प्रचारक बने रहे। उनकी मृत्यु से एक प्रखर राष्ट्रवादी समाप्त हो गया। देश ने एक असाधारण राष्ट्रवादी गंवा दिया। भाजपा ने उनकी मृत्यु से एक कुशल संगठक, चिंतक और मार्ग-निर्देशक खो दिया।





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