संघ मुख्यालय, नागपुर में आरएसएस कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा, ‘हमारा राष्ट्रवाद किसी क्षेत्र, भाषा या धर्म विशेष के साथ बंधा हुआ नहीं है.’
‘राष्ट्र, राष्ट्रवाद और देशप्रेम’ के बारे में आरएसएस मुख्यालय में अपने विचार साझा करते हुए पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि भारत की आत्मा ‘बहुलतावाद एवं सहिष्णुता’ में बसती है.
मुखर्जी ने आरएसएस कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि भारत में हम अपनी ताकत सहिष्णुता से प्राप्त करते हैं और बहुलवाद का सम्मान करते हैं. हम अपनी विविधता का उत्सव मनाते हैं. उन्होंने प्राचीन भारत से लेकर देश के स्वतंत्रता आंदोलत तक के इतिहास का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारा राष्ट्रवाद ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ तथा ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:..’ जैसे विचारों पर आधारित है.
उन्होंने कहा कि हमारे राष्ट्रवाद में विभिन्न विचारों का सम्मिलन हुआ है. उन्होंने कहा कि घृणा और असहिष्णुता से हमारी राष्ट्रीयता कमजोर होती है. मुखर्जी ने राष्ट्र की अवधारणा को लेकर सुरेंद्र नाथ बनर्जी तथा बालगंगाधर तिलक के विचारों का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारा राष्ट्रवाद किसी क्षेत्र, भाषा या धर्म विशेष के साथ बंधा हुआ नहीं है. उन्होंने कहा कि हमारे लिए लोकतंत्र सबसे महत्वपूर्ण मार्गदशर्क है.
उन्होंने कहा कि हमारे राष्ट्रवाद का प्रवाह संविधान से होता है. ‘भारत की आत्मा बहुलतावाद एवं सहिष्णुता में बसती है.’ उन्होंने कौटिल्य के अर्थशास्त्र का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्होंने ही लोगों की प्रसन्नता एवं खुशहाली को राजा की खुशहाली माना था. पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि हमें अपने सार्वजनिक विमर्श को हिंसा से मुक्त करना होगा. साथ ही उन्होंने कहा कि एक राष्ट्र के रूप में हमें शांति, सौहार्द्र और प्रसन्नता की ओर बढ़ना होगा.
मुखर्जी ने कहा कि हमारे राष्ट्र को धर्म, हठधर्मिता या असहिष्णुता के माध्यम से परिभाषित करने का कोई भी प्रयास केवल हमारे अस्तित्व को ही कमजोर करेगा.
इससे पहले पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी आरएसएस के संस्थापक सरसंघचालक केशव बलिराम हेडगेवार की जन्मस्थली पर गए और उन्होंने उन्हें भारत माता का महान सपूत बताया.
मुखर्जी ने हेडगेवार की जन्मस्थली पर आंगुतक पुस्तिका में लिखा, ‘आज मैं भारत माता के महान सपूत को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने आया हूं.’ सूत्रों ने बताया कि इस मौके पर सुभाष चंद्र बोस के परिवार के सदस्य मौजूद थे जिन्हें विशेष अतिथि के रुप में निमंत्रित किया गया था.
मुखर्जी तंग गलियों से गुजरते हुए उस मकान तक पहुंचे जहां हेडगेवार पैदा हुए थे. मकान में प्रवेश से पहले उन्होंने अपने जूते उतारे. वहां आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने उनका स्वागत किया.
सूत्रों के अनुसार हेडगेवार को श्रद्धांजलि देने से जुड़ी मुखर्जी की यह यात्रा उनके निर्धारित कार्यक्रम का हिस्सा नहीं थी और पूर्व राष्ट्रपति ने अचानक ऐसा करने का निर्णय लिया.
मुखर्जी बुधवार शाम नागपुर पहुंचे थे.
यह संघ के स्वयंसेवकों के लिए आयोजित होने वाला तीसरे वर्ष का वार्षिक प्रशिक्षण है. आरएसएस अपने स्वयंसेवकों के लिए प्रथम, द्वितीय और तृतीय वर्ष का प्रशिक्षण शिविर लगाता है.
गौरतलब है कि आरएसएस के कार्यक्रम में जाने के मुखर्जी के फैसले से पहले ही राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया है. कई कांग्रेस नेताओं ने उनके फैसले की निंदा की है. वरिष्ठ कांग्रेस नेता अहमद पटेल ने पूर्व राष्ट्रपति द्वारा नागपुर में आरएसएस मुख्यालय जाने के प्रति अपनी नाखुशी प्रकट की और कहा कि उनसे उन्हें ऐसी उम्मीद नहीं थी.
मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने कहा था कि उनके पिता आरएसएस के कार्यक्रम में भाषण देने के अपने फैसले से भाजपा और आरएसएस को झूठी खबरें फैलाने का मौका दे रहे हैं. उन्होंने ट्वीट किया था कि उनका भाषण भुला दिया जाएगा केवल तस्वीर ही बची रह जाएगी. उन्होंने उम्मीद की कि पूर्व राष्ट्रपति अहसास करेंगे कि भाजपा का ‘डर्टी ट्रिक्स डिपार्टमेंट’ कैसे काम करता है और उन्होंने ऐसे कार्यक्रम में शामिल होने के परिणामों को लेकर उन्हें चेताया.
जयराम रमेश, सी के जाफर शरीफ समेत कई कांग्रेस नेताओं ने भी उन्हें लिखा जबकि आनंद शर्मा समेत कुछ नेता मुखर्जी को वहां नहीं जाने के लिए उन्हें मनाने भी गये थे. कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता आनंद शर्मा ने ट्वीट कर कहा, ‘वरिष्ठ नेता और विचारक प्रणब मुखर्जी की आरएसएस मुख्यालय में तस्वीरों से कांग्रेस के लाखों कार्यकर्ता और भारतीय गणराज्य के बहुलवाद, विविधता एवं बुनियादी मूल्यों में विश्वास करने वाले लोग दुखी हैं.’
उन्होंने कहा, ‘संवाद उन्हीं लोगों के साथ हो सकता है जो सुनने, आत्मसात करने और बदलने के इच्छुक हों. यहां ऐसा कुछ नहीं जिससे पता चलता हो कि आरएसएस अपने मुख्य एजेंडा से हट चुका है. संघ वैधता हासिल करने की कोशिश में है.’
कांग्रेस ने ट्विटर पर एक वीडियो जारी कर कहा कि ‘यह नहीं भूलना चाहिए कि आरएसएस क्या है?’
पार्टी ने कहा, ‘लोगों को याद दिलाने का अच्छा मौका है कि वास्तव में आरएसएस क्या है. अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में आरएसएस ने कभी भाग नहीं लिया. वह ब्रिटिशकाल में हमेशा औपनिवेशिक ताकत के अधीन रहा. 1930 में गांधी जी ने नमक सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया तो हेडगेवार ने यह सुनिश्चित किया कि संघ का इस आंदोलन से कोई लेनादेना नहीं हो.’
पार्टी ने दावा किया कि आरएसएस ने कभी भी तिरंगे का सम्मान नहीं किया और हाल के समय में उन्होंने अपने मुख्यालय पर तिरंगा फहराना शुरू किया.
कांग्रेस ने यह भी दावा किया, ‘गांधी जी की हत्या के बाद आरएसएस के लोगों ने खुशियां मनाईं और मिठाइयां बांटीं थी …..विनायक दामोदर सावरकर ने ब्रिटिश सरकार से माफी मांगी थी और उनके प्रति वफादारी जताई थी. जेल में रहते हुए उन्होंने कई बार दया के लिए लिखा था.’
संघ के लिए कोई बाहरी नहीं, प्रणब को निमंत्रण को लेकर विवाद निरर्थक: भागवत
पूर्व राष्ट्रपति और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर हुए विवाद के बीच संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि यह ‘निरर्थक’ बहस है और उनके संगठन के लिए कोई भी बाहरी नहीं है.
मुखर्जी के भाषण के मद्देनजर भागवत ने कहा कि कार्यक्रम के बाद मुखर्जी वही बने रहेंगे जो वह हैं और संघ भी वही बना रहेगा जो वह है. भागवत ने कहा कि उनका संगठन पूरे समाज को एकजुट करना चाहता है और उसके लिए कोई भी बाहरी नहीं है.
उन्होंने कहा कि लोगों के पास अलग-अलग विचार हो सकते हैं लेकिन वे सभी भारत माता के बच्चे हैं. इस कार्यक्रम में शामिल लोगों में पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के पुत्र सुनील शास्त्री और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के रिश्तेदार अर्द्धेन्दु बोस अपनी पत्नी और बेटे के साथ मौजूद थे.
‘राष्ट्र, राष्ट्रवाद और देशप्रेम’ के बारे में आरएसएस मुख्यालय में अपने विचार साझा करते हुए पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि भारत की आत्मा ‘बहुलतावाद एवं सहिष्णुता’ में बसती है.
मुखर्जी ने आरएसएस कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि भारत में हम अपनी ताकत सहिष्णुता से प्राप्त करते हैं और बहुलवाद का सम्मान करते हैं. हम अपनी विविधता का उत्सव मनाते हैं. उन्होंने प्राचीन भारत से लेकर देश के स्वतंत्रता आंदोलत तक के इतिहास का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारा राष्ट्रवाद ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ तथा ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:..’ जैसे विचारों पर आधारित है.
उन्होंने कहा कि हमारे राष्ट्रवाद में विभिन्न विचारों का सम्मिलन हुआ है. उन्होंने कहा कि घृणा और असहिष्णुता से हमारी राष्ट्रीयता कमजोर होती है. मुखर्जी ने राष्ट्र की अवधारणा को लेकर सुरेंद्र नाथ बनर्जी तथा बालगंगाधर तिलक के विचारों का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारा राष्ट्रवाद किसी क्षेत्र, भाषा या धर्म विशेष के साथ बंधा हुआ नहीं है. उन्होंने कहा कि हमारे लिए लोकतंत्र सबसे महत्वपूर्ण मार्गदशर्क है.
उन्होंने कहा कि हमारे राष्ट्रवाद का प्रवाह संविधान से होता है. ‘भारत की आत्मा बहुलतावाद एवं सहिष्णुता में बसती है.’ उन्होंने कौटिल्य के अर्थशास्त्र का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्होंने ही लोगों की प्रसन्नता एवं खुशहाली को राजा की खुशहाली माना था. पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि हमें अपने सार्वजनिक विमर्श को हिंसा से मुक्त करना होगा. साथ ही उन्होंने कहा कि एक राष्ट्र के रूप में हमें शांति, सौहार्द्र और प्रसन्नता की ओर बढ़ना होगा.
मुखर्जी ने कहा कि हमारे राष्ट्र को धर्म, हठधर्मिता या असहिष्णुता के माध्यम से परिभाषित करने का कोई भी प्रयास केवल हमारे अस्तित्व को ही कमजोर करेगा.
इससे पहले पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी आरएसएस के संस्थापक सरसंघचालक केशव बलिराम हेडगेवार की जन्मस्थली पर गए और उन्होंने उन्हें भारत माता का महान सपूत बताया.
मुखर्जी ने हेडगेवार की जन्मस्थली पर आंगुतक पुस्तिका में लिखा, ‘आज मैं भारत माता के महान सपूत को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने आया हूं.’ सूत्रों ने बताया कि इस मौके पर सुभाष चंद्र बोस के परिवार के सदस्य मौजूद थे जिन्हें विशेष अतिथि के रुप में निमंत्रित किया गया था.
मुखर्जी तंग गलियों से गुजरते हुए उस मकान तक पहुंचे जहां हेडगेवार पैदा हुए थे. मकान में प्रवेश से पहले उन्होंने अपने जूते उतारे. वहां आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने उनका स्वागत किया.
सूत्रों के अनुसार हेडगेवार को श्रद्धांजलि देने से जुड़ी मुखर्जी की यह यात्रा उनके निर्धारित कार्यक्रम का हिस्सा नहीं थी और पूर्व राष्ट्रपति ने अचानक ऐसा करने का निर्णय लिया.
मुखर्जी बुधवार शाम नागपुर पहुंचे थे.
यह संघ के स्वयंसेवकों के लिए आयोजित होने वाला तीसरे वर्ष का वार्षिक प्रशिक्षण है. आरएसएस अपने स्वयंसेवकों के लिए प्रथम, द्वितीय और तृतीय वर्ष का प्रशिक्षण शिविर लगाता है.
गौरतलब है कि आरएसएस के कार्यक्रम में जाने के मुखर्जी के फैसले से पहले ही राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया है. कई कांग्रेस नेताओं ने उनके फैसले की निंदा की है. वरिष्ठ कांग्रेस नेता अहमद पटेल ने पूर्व राष्ट्रपति द्वारा नागपुर में आरएसएस मुख्यालय जाने के प्रति अपनी नाखुशी प्रकट की और कहा कि उनसे उन्हें ऐसी उम्मीद नहीं थी.
मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने कहा था कि उनके पिता आरएसएस के कार्यक्रम में भाषण देने के अपने फैसले से भाजपा और आरएसएस को झूठी खबरें फैलाने का मौका दे रहे हैं. उन्होंने ट्वीट किया था कि उनका भाषण भुला दिया जाएगा केवल तस्वीर ही बची रह जाएगी. उन्होंने उम्मीद की कि पूर्व राष्ट्रपति अहसास करेंगे कि भाजपा का ‘डर्टी ट्रिक्स डिपार्टमेंट’ कैसे काम करता है और उन्होंने ऐसे कार्यक्रम में शामिल होने के परिणामों को लेकर उन्हें चेताया.
जयराम रमेश, सी के जाफर शरीफ समेत कई कांग्रेस नेताओं ने भी उन्हें लिखा जबकि आनंद शर्मा समेत कुछ नेता मुखर्जी को वहां नहीं जाने के लिए उन्हें मनाने भी गये थे. कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता आनंद शर्मा ने ट्वीट कर कहा, ‘वरिष्ठ नेता और विचारक प्रणब मुखर्जी की आरएसएस मुख्यालय में तस्वीरों से कांग्रेस के लाखों कार्यकर्ता और भारतीय गणराज्य के बहुलवाद, विविधता एवं बुनियादी मूल्यों में विश्वास करने वाले लोग दुखी हैं.’
उन्होंने कहा, ‘संवाद उन्हीं लोगों के साथ हो सकता है जो सुनने, आत्मसात करने और बदलने के इच्छुक हों. यहां ऐसा कुछ नहीं जिससे पता चलता हो कि आरएसएस अपने मुख्य एजेंडा से हट चुका है. संघ वैधता हासिल करने की कोशिश में है.’
कांग्रेस ने ट्विटर पर एक वीडियो जारी कर कहा कि ‘यह नहीं भूलना चाहिए कि आरएसएस क्या है?’
पार्टी ने कहा, ‘लोगों को याद दिलाने का अच्छा मौका है कि वास्तव में आरएसएस क्या है. अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में आरएसएस ने कभी भाग नहीं लिया. वह ब्रिटिशकाल में हमेशा औपनिवेशिक ताकत के अधीन रहा. 1930 में गांधी जी ने नमक सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया तो हेडगेवार ने यह सुनिश्चित किया कि संघ का इस आंदोलन से कोई लेनादेना नहीं हो.’
पार्टी ने दावा किया कि आरएसएस ने कभी भी तिरंगे का सम्मान नहीं किया और हाल के समय में उन्होंने अपने मुख्यालय पर तिरंगा फहराना शुरू किया.
कांग्रेस ने यह भी दावा किया, ‘गांधी जी की हत्या के बाद आरएसएस के लोगों ने खुशियां मनाईं और मिठाइयां बांटीं थी …..विनायक दामोदर सावरकर ने ब्रिटिश सरकार से माफी मांगी थी और उनके प्रति वफादारी जताई थी. जेल में रहते हुए उन्होंने कई बार दया के लिए लिखा था.’
संघ के लिए कोई बाहरी नहीं, प्रणब को निमंत्रण को लेकर विवाद निरर्थक: भागवत
पूर्व राष्ट्रपति और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर हुए विवाद के बीच संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि यह ‘निरर्थक’ बहस है और उनके संगठन के लिए कोई भी बाहरी नहीं है.
मुखर्जी के भाषण के मद्देनजर भागवत ने कहा कि कार्यक्रम के बाद मुखर्जी वही बने रहेंगे जो वह हैं और संघ भी वही बना रहेगा जो वह है. भागवत ने कहा कि उनका संगठन पूरे समाज को एकजुट करना चाहता है और उसके लिए कोई भी बाहरी नहीं है.
उन्होंने कहा कि लोगों के पास अलग-अलग विचार हो सकते हैं लेकिन वे सभी भारत माता के बच्चे हैं. इस कार्यक्रम में शामिल लोगों में पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के पुत्र सुनील शास्त्री और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के रिश्तेदार अर्द्धेन्दु बोस अपनी पत्नी और बेटे के साथ मौजूद थे.


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