जब कोई विवादास्पद व प्रभावशाली रहा नेता अपनी किताब लिखने का ऐलान करता है तो सबकी नजर उस पर लग जाती हैं कि वह कही क्या कोई नए खुलासे करने वाला है? इनमें कांग्रेंस के दिवंगत नेता अर्जुन सिंह से लेकर पूर्व दिवंगत प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव तक शामिल हैं। इन्होंने अपनी किताबें लिखी और सबको निराश किया। वे ऐसा कोई भी खुलासा नहीं कर पाए थे कि जिससे किसी नेता का खुलासा करके देश में नया विवाद खड़ा होता।
मगर हाल में एक ऐसी किताब बाजार में आई जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। आम तौर पर गुप्तचर एजेंसी से जुड़े अधिकारी अपनी आप बीती पर आधारित किताब लिखने से कतराते हैं। मगर दो कट्टर दुश्मन देशों की सबसे सक्रिय मानी जाने वाली गुप्तचर एजेंसियों रॉ (भारतीय) व आईएसआई (पाकिस्तान) के दो पूर्व प्रमुखों अमरजीत सिंह दुल्लत व असद दुर्रानी ने मिलकर एक किताब लिखी। हंगामा खड़ा होना ही था।
मेरा मानना है कि भारतीय पूर्व अधिकारी द्वारा किताब लिखना इतना अहम नहीं है जितना कि पाकिस्तानी आईएसआई के पूर्व प्रमुख द्वारा तमाम खुलासे करना। भारत में पूरी तरह से लोकतंत्र है व कोई भी कुछ भी कहने के लिए स्वतंत्र है। हमारे नेता व अधिकारी वह भी कह सकते हैं जोकि उन्हें नहीं कहना चाहिए।
एएस दुल्लत एक आईपीएस अधिकारी थे जिन्हे कि कश्मीर मामलो का विशेषज्ञ माना जाता था। वे आर्मी में रहे। रॉ के प्रमुख बने। 1990 के दशक में रिटायर हुए व उसके बाद प्रधानमंत्री दफ्तर में सलाहकार बनाए गए जबकि असद दुर्रानी को जब अगस्त 1990 में सेना ने आईएसआई का प्रमुख बनाया तो वे लेफ्टीनेंट जनरल थे।
संयोग से आज कल दोनों ही लोग रिटायर होने के बाद 'ट्रैक टू' डिप्लोमेंसी में व्यस्त हैं व एक दूसरे से उसकी सभाओं में मिलते रहते हैं। उन्होंने जो अहम खुलासे किए हैं उनके मुताबिक पाकिस्तान को मुंबई में हुए आतंकवादी हमले की पूरी जानकारी थी व वहां की सेना व आईएसआई ने इसको सफल बनाने में आतंकवादियों की पूरी मदद की थी। उनके मुताबिक पाकिस्तान हमेशा से ही कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा देने में मदद देता आया है।
दुर्रानी का सबसे अहम खुलासा यह है कि पाकिस्तान में आतंकवादी बिन लादेन पर हुए हमले की देश के हुक्मरानो को पूरी जानकारी थी। वे लिखते हैं कि तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री युसुफ रजा गिलानी ने अमेरिका से कहा था कि हम लोग उसे निशाना नहीं बना सकते हैं क्योंकि पाकिस्तानी जनता उसकी कट्टर समर्थक है व उसे निशाना बनाने पर हमारे खिलाफ विद्रोह हो सकता है। इस घटना के बाद अमेरिका ने उसे मारने के लिए खुद ही भूमिका अदा करने का फैसला किया।
इसके बदले में पाकिस्तानी सरकार व सेना ने अपना सहयोग देने के लिए बहुत मोटी रकम ली। जब अमेरिकी नेवी ने एबटाबाद में बिन लादेन के घर पर हमला किया तो वे लोग अनजान बने रहे। असद दुर्रानी पूछते हैं कि ऐसे कैसे हो सकता है कि पाकिस्तान के इतने अहम सैन्य इलाके में हमला होता रहे और हमें पता भी न चले? करीब आधे घंटे तक चले इस हमले में अमेरिकी सैनिक बिन लादेन को मारने के बाद उसकी लाश तक ले गए और वहां की सरकार ने पूरे प्रकरण पर चुप्पी साध ली।
सत्ता में न होने व मौजूदा सरकारों से दूरी होने के कारण दोनों ही जासूस प्रमुखों ने कुछ खुलकर टिप्पणियां की है। जैसे कि दुल्लत का मानना है कि भारत सरकार द्वारा पाकिस्तान सरकार से बात करने का कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि वहां की विदेश नीति सेना तय करती है व सेना प्रमुख कमर बाजवा से ही सीधे बात करनी चाहिए। वे कहते हैं कि नवाज शरीफ को रायविंद्र जाकर जन्मदिन की मुबाकरकवाद देने के बाद जब पठानकोट का कांड हुआ तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ढीले पड़ गए। आज की तारीख में उनके सबसे बड़े सलाहकार राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डोभाल जोकि मोदी को खुश रखने की पूरी कोशिश करते हैं।
उनका कहना है कि जब किम जोंग व डोनाल्ड ट्रंप साथ-साथ आ सकते हैं तो भारत व पाक साथ-साथ क्यों नहीं आ सकते? वे बताते हैं कि जब मुंबई कांड हुआ तो असद दुर्रानी का बेटा जोकि जर्मन कंपनी में नौकरी करता था वहां किसी काम से आया हुआ था। पुलिस ने सभी पाक नागरिको को हिरासत में ले लिया। तभी उन्हें दुर्रानी ने फोन करके अपनी समस्या बताई और उन्होंने इंटेलीजेंस ब्यूरो (आईबी) में अपने एक परिचित अफसर को फोन किया व कुछ समय बाद उसे छोड़ दिया गया।
वे कहते हैं कि आखिर हमें अपने दोस्त की मदद तो करनी ही थी। उनके मुताबिक अगर पाक सरकार को अपनी सीमा की सुरक्षा और नाकारा होने के आरोप में से किसी एक को चुनना हो तो वह नाकारा कहलाना ज्यादा पसंद करेगी। दुर्रानी कहते हैं कि दोनों देश शतरंज के दो खिलाडि़यों जैसे हैं। उनका मानना है कि कुलभूषण जाधव के मामले में पाक सरकार ने गलती की।
अपना मानना है कि कुछ भी हो पर दोनों देशों में बहुत अंतर है। तमाम खुलासे करने व मोदी की आलोचना करने के बाद भी दुल्लत मजे से रह रहे हैं जबकि दूसरी और खुलासे करने के कारण पाकिस्तानी सेना ने दुर्रानी का नाम 'नो एक्जिट लिस्ट' में डाल दिया है और वे देश नहीं छोड़ सकते हैं।
विपक्ष के नेता रजा रब्बानी उन्हें देशद्रोही करार देने की मांग कर रहे हैं और भारत द्वारा एकतरफा संघर्ष विराम किए जाने के बाद से पाक समर्पित आतंकवादियों कश्मीर में रमजान के दौरान सेना के एक मुस्लिम जवान व मुस्लिम पत्रकार की हत्या कर देते है।
मगर हाल में एक ऐसी किताब बाजार में आई जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। आम तौर पर गुप्तचर एजेंसी से जुड़े अधिकारी अपनी आप बीती पर आधारित किताब लिखने से कतराते हैं। मगर दो कट्टर दुश्मन देशों की सबसे सक्रिय मानी जाने वाली गुप्तचर एजेंसियों रॉ (भारतीय) व आईएसआई (पाकिस्तान) के दो पूर्व प्रमुखों अमरजीत सिंह दुल्लत व असद दुर्रानी ने मिलकर एक किताब लिखी। हंगामा खड़ा होना ही था।
मेरा मानना है कि भारतीय पूर्व अधिकारी द्वारा किताब लिखना इतना अहम नहीं है जितना कि पाकिस्तानी आईएसआई के पूर्व प्रमुख द्वारा तमाम खुलासे करना। भारत में पूरी तरह से लोकतंत्र है व कोई भी कुछ भी कहने के लिए स्वतंत्र है। हमारे नेता व अधिकारी वह भी कह सकते हैं जोकि उन्हें नहीं कहना चाहिए।
एएस दुल्लत एक आईपीएस अधिकारी थे जिन्हे कि कश्मीर मामलो का विशेषज्ञ माना जाता था। वे आर्मी में रहे। रॉ के प्रमुख बने। 1990 के दशक में रिटायर हुए व उसके बाद प्रधानमंत्री दफ्तर में सलाहकार बनाए गए जबकि असद दुर्रानी को जब अगस्त 1990 में सेना ने आईएसआई का प्रमुख बनाया तो वे लेफ्टीनेंट जनरल थे।
संयोग से आज कल दोनों ही लोग रिटायर होने के बाद 'ट्रैक टू' डिप्लोमेंसी में व्यस्त हैं व एक दूसरे से उसकी सभाओं में मिलते रहते हैं। उन्होंने जो अहम खुलासे किए हैं उनके मुताबिक पाकिस्तान को मुंबई में हुए आतंकवादी हमले की पूरी जानकारी थी व वहां की सेना व आईएसआई ने इसको सफल बनाने में आतंकवादियों की पूरी मदद की थी। उनके मुताबिक पाकिस्तान हमेशा से ही कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा देने में मदद देता आया है।
दुर्रानी का सबसे अहम खुलासा यह है कि पाकिस्तान में आतंकवादी बिन लादेन पर हुए हमले की देश के हुक्मरानो को पूरी जानकारी थी। वे लिखते हैं कि तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री युसुफ रजा गिलानी ने अमेरिका से कहा था कि हम लोग उसे निशाना नहीं बना सकते हैं क्योंकि पाकिस्तानी जनता उसकी कट्टर समर्थक है व उसे निशाना बनाने पर हमारे खिलाफ विद्रोह हो सकता है। इस घटना के बाद अमेरिका ने उसे मारने के लिए खुद ही भूमिका अदा करने का फैसला किया।
इसके बदले में पाकिस्तानी सरकार व सेना ने अपना सहयोग देने के लिए बहुत मोटी रकम ली। जब अमेरिकी नेवी ने एबटाबाद में बिन लादेन के घर पर हमला किया तो वे लोग अनजान बने रहे। असद दुर्रानी पूछते हैं कि ऐसे कैसे हो सकता है कि पाकिस्तान के इतने अहम सैन्य इलाके में हमला होता रहे और हमें पता भी न चले? करीब आधे घंटे तक चले इस हमले में अमेरिकी सैनिक बिन लादेन को मारने के बाद उसकी लाश तक ले गए और वहां की सरकार ने पूरे प्रकरण पर चुप्पी साध ली।
सत्ता में न होने व मौजूदा सरकारों से दूरी होने के कारण दोनों ही जासूस प्रमुखों ने कुछ खुलकर टिप्पणियां की है। जैसे कि दुल्लत का मानना है कि भारत सरकार द्वारा पाकिस्तान सरकार से बात करने का कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि वहां की विदेश नीति सेना तय करती है व सेना प्रमुख कमर बाजवा से ही सीधे बात करनी चाहिए। वे कहते हैं कि नवाज शरीफ को रायविंद्र जाकर जन्मदिन की मुबाकरकवाद देने के बाद जब पठानकोट का कांड हुआ तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ढीले पड़ गए। आज की तारीख में उनके सबसे बड़े सलाहकार राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डोभाल जोकि मोदी को खुश रखने की पूरी कोशिश करते हैं।
उनका कहना है कि जब किम जोंग व डोनाल्ड ट्रंप साथ-साथ आ सकते हैं तो भारत व पाक साथ-साथ क्यों नहीं आ सकते? वे बताते हैं कि जब मुंबई कांड हुआ तो असद दुर्रानी का बेटा जोकि जर्मन कंपनी में नौकरी करता था वहां किसी काम से आया हुआ था। पुलिस ने सभी पाक नागरिको को हिरासत में ले लिया। तभी उन्हें दुर्रानी ने फोन करके अपनी समस्या बताई और उन्होंने इंटेलीजेंस ब्यूरो (आईबी) में अपने एक परिचित अफसर को फोन किया व कुछ समय बाद उसे छोड़ दिया गया।
वे कहते हैं कि आखिर हमें अपने दोस्त की मदद तो करनी ही थी। उनके मुताबिक अगर पाक सरकार को अपनी सीमा की सुरक्षा और नाकारा होने के आरोप में से किसी एक को चुनना हो तो वह नाकारा कहलाना ज्यादा पसंद करेगी। दुर्रानी कहते हैं कि दोनों देश शतरंज के दो खिलाडि़यों जैसे हैं। उनका मानना है कि कुलभूषण जाधव के मामले में पाक सरकार ने गलती की।
अपना मानना है कि कुछ भी हो पर दोनों देशों में बहुत अंतर है। तमाम खुलासे करने व मोदी की आलोचना करने के बाद भी दुल्लत मजे से रह रहे हैं जबकि दूसरी और खुलासे करने के कारण पाकिस्तानी सेना ने दुर्रानी का नाम 'नो एक्जिट लिस्ट' में डाल दिया है और वे देश नहीं छोड़ सकते हैं।
विपक्ष के नेता रजा रब्बानी उन्हें देशद्रोही करार देने की मांग कर रहे हैं और भारत द्वारा एकतरफा संघर्ष विराम किए जाने के बाद से पाक समर्पित आतंकवादियों कश्मीर में रमजान के दौरान सेना के एक मुस्लिम जवान व मुस्लिम पत्रकार की हत्या कर देते है।

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