शुक्रवार, 27 अक्टूबर 2017

नरेंद्र मोदी सत्यवादी है और बाकि झूठे !

मसला इसलिए विचारणीय है क्योंकि नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री है! भारत का प्रधानमंत्री किसी से फोन पर निजी बात करें और फिर उसे मीडिया में प्लांट कर यह दर्शाने के लिए चलवाया जाए कि वे सत्यवादी है और बाकि झूठे तो उसे क्या प्रधानमंत्री स्तर की शोभादायी मार्केटिंग माना जाए? वैसे चुनाव को जंग मानते हुए उसमें प्रपंच, छल, कपट सबकुछ जायज माना जा सकता है। मगर प्रधानमंत्री का पद सवा सौ करोड लोगों की गरिमा भी लिए हुए होता हैं! कल्पना में क्या कभी सोचा कि अटलबिहारी वाजपेयी या राजीव, इंदिरा, देवगौडा में किसी ने चुनाव जीतने के लिए प्रधानमंत्री की कुर्सी पर रहते यह किया हो कि किसी से हुई अपनी निजी बात खुद टेप करें। उसे फिर मीडिया में भी चलवाएं ताकि बातचीत को सुन लोग फिदा हो! मार्केटिंग का यह नया नुस्खा अकल्पनीय है। तभी इसे सुन और टिवटर पर यह रिएक्शन समझा जा सकता है कि उफ! प्रधानमंत्री मार्केटिंग के लिए क्या कुछ नहीं कर दे रहे है। रेखांकित शब्द ‘प्रधानमंत्री’ है। चुनाव के लिए प्रधानमंत्री और प्रधानमंत्री दफ्तर के स्तर पर ऐसा प्रायोजन हो, यह आजाद भारत के सत्तर साल की न केवल अनहोनी बात है बल्कि अकल्पनीय भी!

इस अकल्पनीय अनुभव को मीडिया सूमह इंडिया टुडे ने प्रचारित किया। जाहिर है उसे यह टेप प्रधानमंत्री दफ्तर ने ही मुहैया कराया होगा। बाततीच जितनी साफ सुनाई दी है उससे जाहिर है नरेंद्र मोदी ने अपनी बातचीत को खुद रिकार्ड कराया होगा। वडौदरा के उस मामूली कारोबारी के बस में नहीं हो सकता जो इतनी अच्छी रिकार्डिंग कर वह फिर मीडिया में लीक करें। यह भी संभव नहीं है कि इंडिया टुडे को पहले पता पड़े कि नरेंद्र मोदी फंला से निजी बात करने वाले है और वह उस व्यक्ति के यहां उसके फोन के साथ अपनी मशीन लगा उसे रिकार्ड करें। सो जो कुछ है वह प्रधानमंत्री मोदी के अपने स्तर पर है।

इंडिया टुडे ने खबर के साथ दावा किया है कि प्रधानमंत्री मोदी की भाजपा कार्यकर्ता के साथ यह प्रायवेट बातचीत है। यदि निजी की जगह चुनावी मकसद या सार्वजनिक रूप वाली यह होती तो मामला अलग बनता। मगर निजी बातचीत से चुनावी मार्केटिंग का यह नया तरीका क्या अजूबा नहीं बनता?

बहरहाल इस बातचीत से नरेंद्र मोदी और भाजपा की गुजरात चिंता साफ झलकी है। उनकी तकलीफ या मर्म आज जनता का मीडिया है। मतलब व्हाट्सअप जैसा सोशल मीडिया!  उस नाते मुख्य मीडिया याकि अखबार, टीवी चैनल बनाम सोशल मीडिया का अंतर आज कैसा है इसका पता भी इस मामले से झलकता है। भारत के मुख्य मीडिया का प्रतिनिधी संगठन इंडिया टुडे है जिसने उनकी निजी प्रायोजित बात को बेशर्मी के साथ प्रचारित किया और उसमें झलकी हुई चिंता व्हाटसअप की है जिस पर फिलहाल सरकार का नियंत्रण नहीं है और जिसके जरिए गुजरात की जनता मोदी सरकार, भाजपा के खिलाफ दबाकर लोग बोल रहे है। इससे कितनी भारी चिंता पैदा हुई है उसका प्रमाण है यह कथित निजी बातचीत।

खबर अनुसार प्रधानमंत्री मोदी ने अपने मोबाइल से 19 अक्टूबर को वडोदरा के गोपालभाई गोहिल को फोन किया। उसे दिपावली की मुबारक देते हुए उससे उन्होने कोई दस मिनट बात की।

जाहिर है मीडिया समूह को प्रधानमंत्री या उनके पीएमओ याकि सरकार से बातचीत की फोन क्लीपिंग मिली होगी। आखिर न मीडिया समूह की या किसी प्राइवेट जासूस एजेंसी की औकात है जो वह प्रधानमंत्री द्वारा की गई बात का फोन टेप कर सके। इससे अपने आप साबित होता है कि नरेंद्र मोदी ने सोच विचार कर भाजपा कार्यकर्ता से बात की। उन्होने सोचा हुआ था कि इस बातचीत को बाद में सार्वजनिक करना है ताकि गुजरात के लोगों को अलग नए अंदाज में मोहित किया जा सकें कि वे कितने भले, सत्यवादी इंसान है।

सोचें, प्रधानमंत्री की दस मिनट की बात गुजरात के एक भाजपा कार्यकर्ता गोहिल से हुई! जिन नरेंद्र मोदी के लिए आडवाणी, डा जोशी या भाजपा के मार्गदर्शक मंडल से बात करने का, उनके साथ विचार करने का साढ़े तीन वर्षों में समय नहीं निकला उन्होने वडोदरा के कार्यकर्ता से बात करने का दस मिनट का समय निकाला तो मकसद अपने आप झलकता है। सामने वाले के लिए फोन कॉल प्रायोजित था या आक्समिक इसका जवाब बात शुरू होते ही कार्यकर्ता के नरेंद्र मोदी से पूछे इस सवाल से झलकता है – कांग्रेस बहुत कुप्रचार कर रही है कैसे उससे अपने कार्यकर्ताओं को प्रभावित होने से रोंके?

जवाब में प्रधानमंत्री मोदी ने मन को छू लेने वाला यह जवाब दिया- अरे भाई, जबसे जनसंघ पैदा हुई है तब से हम लोग गालियां सुनने की नियति लिए हुए है। गालियों और झूठ के हमले झेलते रहे है। इसलिए मेरी सलाह है कि नेगेटिविटी की चिंता न करों। क्या कोई एक भी चुनाव हुआ जिसमें इन्होने झूठ और गाली नहीं दी। मौत का सौदागर तक कहां। याद है?
हां,हां, सर

इससे ज्यादा क्या कोई और खराब गाली हो सकती कि हत्यारा, खून से सने हाथ! मगर लोग समझदार है सच जानते है।
हा,सर

पहले ये अफवाहे मुंह जुबानी फैलाते थे। अब उसकी जगह एप्लीकेशनस जैसे व्हाट्सअप ने ले ली है। फैलाने दो इनको झूठ। लोग समझदार है। इसलिए चिंता मत करों अफवाहों की, नेगेटिव कैंपेनिंग की।
हा, सर

झूठ, गप, अफवाहों का अपने दिमाग पर असर मत होने दों। इनकी बजाय अपना फोकस सही बात, अपने विजन को फैलाने पर बनाए रखों।

हा, सर

इन छोटी-छोटी बातों की अनदेखी करना पहली जरूरत है। इनको फोलो मत करों। होता यह है कि इन झूठे मैसेजेज को लोग बिना सोचे-विचारे आगे कर देते है। हमें चिंता नहीं करनी है इसलिए कि हम अच्छे काम कर रहे है और सत्य मार्ग पर चले हुए है।
हा, सर

मैं फिर कह रहा हूं। अपना फोकस बनाओं सही बात फैलाने पर, नेगेटिव की चिंता नहीं करते हुए। हमने जनता की भलाई के लिए खून-पसीना बहाया है। इतने सालों से भाजपा राज में है लेकिन कोई आरोप नहीं लगा हमारे खिलाफ।
बिल्कुल सही सर

झूठ की चिंता नहीं करें। हम पारदर्शिता से काम करते है। सही रहे है। इसलिए सत्य का प्रचार करों। सत्य का प्रचार करना ही जरूरी है।
बिल्कुल सर

बहुत अच्छा लगा बात करके। अगली बार आऊंगा तो मैं निश्चित ही तुम्हारी तरफ हाथ हिलाऊंगा। सबको मेरा नमस्कार कहें!

अब विचारे निजी बातचीत के इन वाक्यों का लबोलुआब क्या निकलता है? सीधा सादा यह कि व्हाट्सअप मतलब लोगों की झूठ फैलाने की मशीन का खतरा गंभीर है!

ध्यान रहे प्रधानमंत्री ने पूरी बात गुजराती में की। सो इंडिया टुडे ने निजी फोन की क्लीप जारी की नहीं कि उसे भाजपा ने गुजरात में दबा कर फैलाया होगा। क्या उससे विकास गांडो थायों छे या कि विकास पागल हो गया के हल्ले की वहा नेगिटीवी बह गई होगी? अपना मानना है कि नरेंद्र मोदी, अमित शाह गुजरातियों की नब्ज के क्योंकि पारखी डाक्टर है इसलिए जन-जन के सोशल मीडिया  मूड को उन्होने जान लिया है। तभी उसकी काट में उन्होने मार्केटिंग का यह नया तरीका अपनाया। पर क्या यह प्रायोजन अपने आप में जनता के बीच में मजाक बनवाने वाला, घबराहट झलकाने वाला नहीं हुआ है? सोशल मीडिया पर कमेंट तो ऐसे ही दिखे है।

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