सोमवार, 2 अक्टूबर 2017

गांधी को महात्मा उनके महान कार्यो के लिए कहा जाता है

महात्मा गांधी को (महात्मा) उनके महान कार्यो और महानता के लिए कहा जाता है जो की उन्होंने जीवन भर किया। गांधीजी का पूरा जीवन ही अहिंसात्मक तरीके से सत्य के प्रयोगों की प्रयोगशाला रहा है। गांधी का सत्याग्रह कोई आसान काम नहीं है न ही कमजोर दिल वालों का काम है। सत्याग्रह केवल बहुत ही साहसी व बहादुर लोग ही कर सकते हैं। गांधीजी ने अपने सत्याग्रह की परिभाषा कुछ इसी तरह से दी थी कि सत्याग्रह, सत्य का आग्रह है। यदि आपको लगता है कि आप सत्य की तरफ हैं, तो जीवन की परवाह किए बिना भी सत्य की रक्षा कीजिए और यदि सत्य के पक्ष में रहने से आपको मृत्यु भी प्राप्त होती है, तब भी अपनी अन्तिम सांस तक सत्य के पक्ष में खडा रहना ही सत्याग्रह है। जबकि उस सत्य का आग्रह करते समय किसी भी तरह की हिंसा नहीं होनी चाहिए।
भारतीय समाज में विवाह के समय लड़कियों का कन्यादान यानी दान किया जाता है। गाँधी ने इस विचारधारा की काफी आलोचना की है। उनके अनुसार एक बेटी को किसी की संपत्ति समझा जाना सही नहीं है।
सुनील कु. गुप्ता
      गाँधी पुत्र और पुत्री के साथ एक समान व्यवहार करने में विश्वास करते थे। महिलाओं से संबंधित मुद्दों को उठाने वाले महात्मा गाँधी पहले व्यक्ति नहीं थे। आमतौर पर भारतीय - समाज में एक धारणा यह व्याप्त है कि पुरूष स्त्रियों से हमेशा सर्वश्रेष्ठ होते है। यह स्त्रियों की दयनीय स्थिति होती है कि उन्हें अपने से कम बौद्धिक क्षमता वाले पुरूष के साथ रहना पड़ता है। महिला पुरूष की साथी है जिसे ईश्वर ने एक समान मानसिक वृत्ति दी है। उसे भी पुरूष की तरह हर कार्य में हिस्सा लेने का अधिकार है। फिर भी समाज में मौजूद रीति-रिवाजों के कारणों एक अज्ञानी और अयोग्य पुरूष भी महिलाओं पर अपना प्रभुत्व बनाए रखता है। पुरूष स्त्री पर अपना पूर्ण अधिकार रखता है। महिलाओं के प्रति सहानुभूति रखते हुए गाँधी कहते है कि- यदि मैं स्त्री के रूप में पैदा होता तो मैं पुरूषों द्वारा थोपे गए किसी भी अन्याय का जमकर विरोध करता तथा उनके खिलाफ विद्रोह का झंडा बुलंद करता। एक समाज-सुधारक के रूप में, गाँधी ने स्त्री- उत्थान के लिए भरसक प्रयत्न किए। उन्होंनेे बार- बार यही स्पष्ट करनेे का प्रयत्न किया कि स्त्रियाँ किसी भी दृष्टि में पुरूषों से हीन नहीं है। महात्मा - गाँधी को यह भलीभाँति ज्ञात था कि अगर किसी देश की आधी जनता देश के बड़े आंदोलन से दूर रहेगी तो देश का आंदोलन कभी सफल नहीं हो सकता
गाँधी जी दहेज- प्रथा के खिलाफ थे। दहेज- प्रथा एक ऐसी सामाजिक बुराई है जिसने भारतीय- महिलाओं के जीवन के पददलित बना दिया। गाँधी इसे (खरीद- बिक्री) का कारोबार मानते है। उनके अनुसार कोई भी युवक, जो दहेज को विवाह की शर्त रखता है, अपनी शिक्षा को कलंकित करता है, अपने देश को कलंकित करता है और नारी- जाति का अपमान करता है।  गाँधी जी ने अपने वक्तव्य में कहा यदि मेरे पास मेरी देख- रेख में कोई लड़की होती तो मैं उसे जीवन - भर कुंवारी रखना पसंद करता बजाय इसके कि उसे ऐसे व्यक्ति को सौंपता जो उसे अपनी पत्नी बनाने के एवज में एक पाई जाने की अपेक्षा रखता।
बाल - विवाह भारतीय समाज की ऐसी कुप्रथा है जिसने लड़कियों का बचपन छीन लिया। जिस आयु में लड़कियों को विवाह का अर्थ भी नहीं पता होता उस आयु में वह विवाह के परिणय- सूत्र में बांध दी जाती है। गाँधी जी बाल- विवाह के विरोधी थे। शारदा अधिनयम में शादी की उम्र 14 साल तक बढ़ाने का प्रस्ताव रखा गया तब गाँधी को महसूस हुआ कि यह 16 या 18 साल तक बढ़ा देनी चाहिए। वहीं गाँधी का एक आग्रह है कि अगर बेटी बाल- विधवा हो जाए तो दूसरी शादी करा देनी चाहिए। जब कोई स्त्री पुनर्विवाह करना चाहती थी तो उसे जाति से बाहर कर दिया जाता था। किन्तु गाँधी पुनर्विवाह के पक्षधर थे। उन्होंने विभिन्न समुदायों को संबोधित करते हुए कहा था कि यदि कोई बाल - विधवा पुनर्विवाह की इच्छुक हो तो उसे जातिच्युत या बहिष्कृत नहीं करें।

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