जाने माने स्वतंत्र पत्रकार, साहित्यकार और कला समीक्षक राधेश्याम तिवारी का रविवार तड़के यहां संतोकबा दुर्लभजी अस्पताल में निधन हो गया। हैं। विगत कुछ समय से वे अस्पताल में भर्ती थे। उनके निधन के समाचार से जयपुर के साहित्य जगत में शोक व्याप्त हो गया। अनेक पत्रकारों, साहित्यकारों, रंगकर्मियों ने उनके निधन पर संवेदनाएं प्रकट की हैं। jagjahir परिवार की ओर से दिवंगत आत्मा को सादर श्रद्धासुमन…
मृदभाषी और हंसमुख प्रवृत्ति के धनी तिवारी का जन्म 25 जुलाई, 1944 को बिहार में हुआ था। तिवारी लंबे समय तक दिल्ली और मुम्बई में अखबार, टीवी और फिल्मों के लिए लिखते रहे।
बाद में उन्होंने जयपुर को अपनी कर्मस्थली बना लिया, पिछले दो दशक में शायद ही देश का कोई ऐसा प्रमुख अखबार या मेगजीन हो जिसमें उनका लेख प्रकाशित नहीं हुआ हो। उन्होंने देश के तमाम नामचीन अखबारों और मेगजीनों में चर्चित कॉलम भी लिखे। तिवारी नवोदित कलाकारों और साहित्यकारों का संबल थे।
उन्होंने अपने रंगकर्म से पटना और बिहार को रंगमंच की आधुनिकता से परिचित करवाया था। उन्होंने सन् 1970 में ‘‘अरंग’’ नामक संस्था बनाई और ‘तीन अपाहिज’, ‘कूड़े का पीपा’ तथा ‘वह एक कुरूप ईश्वर’ जैसे असंगत नाटकों का भी मंचन किया। तिवारी जी ने कुछ फिल्मों में भी अभिनय किया था। कुछ समय पहले उन्हें दिल का दौरा पड़ा था, ठीक होने के बाद उन्होंने जवाहर कला केंद्र में जाने और वहां अपने युवा मित्रों से मिलने-जुलने का सिलसिला फिर से शुरू कर दिया था। उन्हें युवाओं से मिलना अच्छा लगता था या युवाओं को उनसे। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्हें फोटो खिंचवाना बहुत पसंद था। वे अक्सर जवाहर कला केंद्र में फोटो शूट करवाते रहते।
तिवारी ने अनेक नाटक लिखे जिन्हें एनएसडी के लोगों ने सराहा और मंचित किया। उनकी कहानियां देश की बेहतरीन मेगजीन में छपीं। राजनीति, कला और फिल्म पर लेखन के अलावा कुछ किताबें और अनुवाद भी उनके नाम से जुडे हैं। उनके असामयिक निधन के बाद अब शहर के बुद्धिजीवियों को जवाहर कला केंद्र, जयपुर कॉफी हाउस और साहित्यिक कार्यक्रमों में उनकी कमी खलेगी।
मृदभाषी और हंसमुख प्रवृत्ति के धनी तिवारी का जन्म 25 जुलाई, 1944 को बिहार में हुआ था। तिवारी लंबे समय तक दिल्ली और मुम्बई में अखबार, टीवी और फिल्मों के लिए लिखते रहे।
बाद में उन्होंने जयपुर को अपनी कर्मस्थली बना लिया, पिछले दो दशक में शायद ही देश का कोई ऐसा प्रमुख अखबार या मेगजीन हो जिसमें उनका लेख प्रकाशित नहीं हुआ हो। उन्होंने देश के तमाम नामचीन अखबारों और मेगजीनों में चर्चित कॉलम भी लिखे। तिवारी नवोदित कलाकारों और साहित्यकारों का संबल थे।
उन्होंने अपने रंगकर्म से पटना और बिहार को रंगमंच की आधुनिकता से परिचित करवाया था। उन्होंने सन् 1970 में ‘‘अरंग’’ नामक संस्था बनाई और ‘तीन अपाहिज’, ‘कूड़े का पीपा’ तथा ‘वह एक कुरूप ईश्वर’ जैसे असंगत नाटकों का भी मंचन किया। तिवारी जी ने कुछ फिल्मों में भी अभिनय किया था। कुछ समय पहले उन्हें दिल का दौरा पड़ा था, ठीक होने के बाद उन्होंने जवाहर कला केंद्र में जाने और वहां अपने युवा मित्रों से मिलने-जुलने का सिलसिला फिर से शुरू कर दिया था। उन्हें युवाओं से मिलना अच्छा लगता था या युवाओं को उनसे। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्हें फोटो खिंचवाना बहुत पसंद था। वे अक्सर जवाहर कला केंद्र में फोटो शूट करवाते रहते।
तिवारी ने अनेक नाटक लिखे जिन्हें एनएसडी के लोगों ने सराहा और मंचित किया। उनकी कहानियां देश की बेहतरीन मेगजीन में छपीं। राजनीति, कला और फिल्म पर लेखन के अलावा कुछ किताबें और अनुवाद भी उनके नाम से जुडे हैं। उनके असामयिक निधन के बाद अब शहर के बुद्धिजीवियों को जवाहर कला केंद्र, जयपुर कॉफी हाउस और साहित्यिक कार्यक्रमों में उनकी कमी खलेगी।

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें