राजस्थान सरकार द्वारा एक दिन पहले राज्य विधानसभा में पेश किए गए बिल पर भले ही सरकार पीछे हट गई हों, लेकिन विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। बिल के विरोध में राजस्थान के विभिन्न पत्रकार संगठनों के बैनर तले पत्रकारों ने पैदल मार्च किया। विधानसभा के पास पुलिस के रोके जाने पर पत्रकारों ने गिरफ्तारियां दी।
पिंकसिटी प्रेस क्लब से रवाना होकर पत्रकार विधानसभा पहुंचने ही वाले थे, लेकिन उससे पहले ही पत्रकारों को पुलिस ने रोक लिया। जहां पर पत्रकारों ने पुलिस के आला अधिकारियों के माध्यम से सरकार के पास वार्ता प्रस्ताव भेजा। राजस्थान श्रमजीवी पत्रकार संघ हरीश गुप्ता, पिंकसिटी प्रेस क्लब से एलएल शर्मा, मुकेश मीणा, अभय जोशी, राजस्थान पत्रकार संघ, राजस्थान पत्रकार परिषद से रोहित सोनी और रोशन शर्मा, कौंसिल आॅफ जर्नालिस्ट से अनिल त्रिवेदी, आईएफडब्ल्यूजे से प्रेम शर्मा, आरएफडब्ल्यूजे से अशोक भटनागर और मांगीलाल पारीक, पत्रकार ट्रस्ट आॅफ इंडिया सत्यनारायण गोतम के नेतृत्व में पत्रकारों ने यह पैदल मार्च निकला।
सदन चलने के कारण सरकार की तरफ से कोई मंत्री नहीं आया। ऐसे में पत्रकार उग्र हो गए और सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। इस विवादित बिल को लेकर पत्रकारों का रोष देखने लायक था।
पत्रकारों के बढ़ते रोष के बाद पुलिस ने और जाप्ता मंगवाया गया। सैकंड़ों की संख्या में मौजूद पत्रकारों को पुलिस ने गिरफ्तार कर गांधी नगर थाने ले गई। तीन बसों ने भरे पत्रकारों ने बसों में भी नारेबाजी की।
आपको बता दें कि राजस्थान सरकार दंड़ प्रक्रिया सहिंता की धारा 153 और 190 में संसोधन के लिए विधेयक लेकर आई है। इसके लिए राज्य सरकार ने बीते माह की 7 तारीख को ही एक अध्यादेश जारी किया था।
इस विधेयक के अनुसार किसी भी लोकसेवक के खिलाफ उसपर ड्यूटी के दौरान कोई मुकदमा दर्ज नहीं करवाया जा सकता है। किसी भी सांसद, विधायक, पार्षद, सरपंच, मजिस्ट्रेट, आईएएस, आईपीएस, आरएएस, आरपीएस अधिकारी या कर्मचारी के खिलाफ सरकार की मंजूरी के बाद भी मुकदमा दर्ज करवाया जा सकता है।
यदि सरकार अनुमति नहीं देती है तो भी मजिस्ट्रेट के यहां पर इस्तगासा पेश कर भी एफआईआर नहीं करवाई जा सकती। सरकार ने मुकदमा दर्ज करने के लिए कम से कम 180 दिन का समय रखा है।
यदि सरकार 180 दिन तक मंजूरी नहीं देती है तो उसके बाद स्वत: ही एफआईआर दर्ज करवाने के लिए अनुमति मान ली जाएगी। इस बिल को लेकर पत्रकार, वकील और राजस्थान में कांग्रेस सहित पूरा विपक्ष ने एकजुट होकर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है।
इस बिल के पारित होने पत्रकार भी एफआईआर दर्ज नहीं होने की स्थिति में किसी लोकसेवक की खबर प्रकाशित नहीं कर सकते। यदि किसी लोकसेवक की खबर प्रकाशित की जाती है तो ऐसे में पत्रकार को 2 साल की सजा का प्रावधान किया गया है।
आज वकीलों ने भी जोधपुर होईकोर्ट में वकालत कार्य का बहिष्कार कर रखा है। इससे पहले सोमवार को जैसे ही सदन में विधेयक को पारित करवाने के लिए रखा गया, वैसे ही विपक्ष ने जोरदार हंगामा किया। यह हंगामा मंगलवार को भी जारी रहा।
हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट ए.के. जैन ने विधेयक के विरोध में कोर्ट में अपील दायर की है। जिसपर 27 तारीख को सुनवाई का समय तय हुआ है। हालांकि सरकार ने उसके बाद सोमवार को ही देर रात कैबिनेट बैठक में इस विधेयक पर पुनर्विचार करने का फैसला किया है।
मंगलवार को सदन की कार्यवाही शुरू होने के साथ ही विपक्ष ने फिर हंगामा किया। इसके बाद गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने विधेयक प्रवर समिति को भेजने का ऐलान कर दिया। सरकार के इस कृत्य पर बीजेपी के विधायक घनश्याम तिवाड़ी ने सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि ‘पहले थूंका क्यूं, थूंका तो फिर चाटा क्यूं?
पिंकसिटी प्रेस क्लब से रवाना होकर पत्रकार विधानसभा पहुंचने ही वाले थे, लेकिन उससे पहले ही पत्रकारों को पुलिस ने रोक लिया। जहां पर पत्रकारों ने पुलिस के आला अधिकारियों के माध्यम से सरकार के पास वार्ता प्रस्ताव भेजा। राजस्थान श्रमजीवी पत्रकार संघ हरीश गुप्ता, पिंकसिटी प्रेस क्लब से एलएल शर्मा, मुकेश मीणा, अभय जोशी, राजस्थान पत्रकार संघ, राजस्थान पत्रकार परिषद से रोहित सोनी और रोशन शर्मा, कौंसिल आॅफ जर्नालिस्ट से अनिल त्रिवेदी, आईएफडब्ल्यूजे से प्रेम शर्मा, आरएफडब्ल्यूजे से अशोक भटनागर और मांगीलाल पारीक, पत्रकार ट्रस्ट आॅफ इंडिया सत्यनारायण गोतम के नेतृत्व में पत्रकारों ने यह पैदल मार्च निकला।
सदन चलने के कारण सरकार की तरफ से कोई मंत्री नहीं आया। ऐसे में पत्रकार उग्र हो गए और सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। इस विवादित बिल को लेकर पत्रकारों का रोष देखने लायक था।
पत्रकारों के बढ़ते रोष के बाद पुलिस ने और जाप्ता मंगवाया गया। सैकंड़ों की संख्या में मौजूद पत्रकारों को पुलिस ने गिरफ्तार कर गांधी नगर थाने ले गई। तीन बसों ने भरे पत्रकारों ने बसों में भी नारेबाजी की।
आपको बता दें कि राजस्थान सरकार दंड़ प्रक्रिया सहिंता की धारा 153 और 190 में संसोधन के लिए विधेयक लेकर आई है। इसके लिए राज्य सरकार ने बीते माह की 7 तारीख को ही एक अध्यादेश जारी किया था।
इस विधेयक के अनुसार किसी भी लोकसेवक के खिलाफ उसपर ड्यूटी के दौरान कोई मुकदमा दर्ज नहीं करवाया जा सकता है। किसी भी सांसद, विधायक, पार्षद, सरपंच, मजिस्ट्रेट, आईएएस, आईपीएस, आरएएस, आरपीएस अधिकारी या कर्मचारी के खिलाफ सरकार की मंजूरी के बाद भी मुकदमा दर्ज करवाया जा सकता है।
यदि सरकार अनुमति नहीं देती है तो भी मजिस्ट्रेट के यहां पर इस्तगासा पेश कर भी एफआईआर नहीं करवाई जा सकती। सरकार ने मुकदमा दर्ज करने के लिए कम से कम 180 दिन का समय रखा है।
यदि सरकार 180 दिन तक मंजूरी नहीं देती है तो उसके बाद स्वत: ही एफआईआर दर्ज करवाने के लिए अनुमति मान ली जाएगी। इस बिल को लेकर पत्रकार, वकील और राजस्थान में कांग्रेस सहित पूरा विपक्ष ने एकजुट होकर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है।
इस बिल के पारित होने पत्रकार भी एफआईआर दर्ज नहीं होने की स्थिति में किसी लोकसेवक की खबर प्रकाशित नहीं कर सकते। यदि किसी लोकसेवक की खबर प्रकाशित की जाती है तो ऐसे में पत्रकार को 2 साल की सजा का प्रावधान किया गया है।
आज वकीलों ने भी जोधपुर होईकोर्ट में वकालत कार्य का बहिष्कार कर रखा है। इससे पहले सोमवार को जैसे ही सदन में विधेयक को पारित करवाने के लिए रखा गया, वैसे ही विपक्ष ने जोरदार हंगामा किया। यह हंगामा मंगलवार को भी जारी रहा।
हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट ए.के. जैन ने विधेयक के विरोध में कोर्ट में अपील दायर की है। जिसपर 27 तारीख को सुनवाई का समय तय हुआ है। हालांकि सरकार ने उसके बाद सोमवार को ही देर रात कैबिनेट बैठक में इस विधेयक पर पुनर्विचार करने का फैसला किया है।
मंगलवार को सदन की कार्यवाही शुरू होने के साथ ही विपक्ष ने फिर हंगामा किया। इसके बाद गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने विधेयक प्रवर समिति को भेजने का ऐलान कर दिया। सरकार के इस कृत्य पर बीजेपी के विधायक घनश्याम तिवाड़ी ने सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि ‘पहले थूंका क्यूं, थूंका तो फिर चाटा क्यूं?

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