सोमवार, 30 अक्टूबर 2017

BJP के विजन में नहीं दिखे बंदर और जंगली जानवर के आतंक

कुर्सी की जंग में कूदने वाले राजनीतिक दलों के घोषणा पत्र पर सभी की नजरें रहती हैं। हिमाचल चुनाव में मिशन फिफ्टी प्लस का सपना देख रही भाजपा ने हाईटेक तरीके से अपना विजन डॉक्यूमेंट जारी किया है।
भाजपा ने मेनिफेस्टो इसे बेशक स्वर्णिम दृष्टि पत्र (विजन डॉक्यूमेंट) का नाम दिया है, परंतु पार्टी की दृष्टि प्रदेश के सबसे महत्वपूर्ण तबके किसानों और बागवानों की दुखती रग पर नहीं पड़ी है। जी हां, हिमाचल के किसान बंदरों व जंगली जानवरों के आतंक से त्रस्त हैं। बंदर व जंगली जानवर साल भर में खेती और बागवानी को करीब पांच सौ करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचाते हैं। हालांकि भाजपा ने अपने विजन डॉक्यूमेंट में किसानों और बागवानों से कई वायदे किए हैं, लेकिन जिस समस्या से परेशान होकर किसान खेती छोड़ रहे हैं, उसे लगभग नजर अंदाज किया है।
हिमाचल प्रदेश की 3,226 पंचायतों में से 2,300 से अधिक पंचायतें बंदरों व जंगली जानवरों द्वारा फसल उजाड़े जाने से परेशान हैं। पिछले दो चुनाव में किसान संगठन इस मसले को चुनावी मुद्दा बनाने में कामयाब तो जरूर हुए हैं, लेकिन कोई भी राजनीतिक दल इस समस्या के समाधान के लिए सक्रिय और गंभीर नहीं है। भाजपा के 28 पन्नों के घोषणा पत्र में 2022 तक किसानों और बागवानों की आय को दोगुना किए जाने की बात कही गई है। किसानों-बागवानों के लिए 39 बिंदुओं पर विभिन्न ऐलान किए गए हैं।
इसमें हिमाचल को एप्पल स्टेट के अलावा फ्लावर स्टेट बनाने का वादा है। अलबत्ता किसानों की दुखती रग बंदर व जंगली जानवरों के उत्पात से बचाव को लेकर रस्मी तौर पर जिक्र किया गया है। विजन डॉक्यूमेंट में कहा गया है कि भाजपा सौर बाड़ के लिए नब्बे फीसदी अनुदान देगी और मौजूदा वाइल्ड लाइफ सेंक्चुरी में सौर बाड़ लगाई जाएगी। न तो बंदरों की साइंटिफिक कलिंग को लेकर कोई आश्वासन है और न ही बंदरों के निर्यात पर लगी रोक हटाने के लिए कदम उठाने का जिक्र है। इसके अलावा किसान संगठनों की मदद से समस्या के समाधान का आश्वासन भी नहीं है।
 हिमाचली किसानों के लिए आफत हैं बंदर
शिमला, सिरमौर, सोलन, कांगड़ा सहित अन्य जिलों के किसान बंदरों व जंगली जानवरों द्वारा फसल उजाड़े जाने से परेशान हैं। ये समस्या किस कदर गंभीर है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कई किसान परिवार खेती छोड़ चुके हैं और उनकी जमीन बंजर हो गई है।
हिमाचल में नौ लाख से अधिक किसान परिवार हैं। देश में वर्ष 1972 में बंदरों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया था। निर्यात पर प्रतिबंध से पहले रिसर्च के लिए भारत विदेशों को हर साल 60 हजार बंदर निर्यात करता था। इससे विदेशी मुद्रा भी मिलती थी और बंदरों की संख्या भी नियंत्रित रहती थी।
पशु प्रेमी संगठनों के हस्तक्षेप से बंदरों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया। कई किसान संगठन इस प्रतिबंध को हटाने की मांग उठाते आए हैं। हिमाचल की बात की जाए तो यहां अस्सी फीसदी से अधिक आबादी खेती व बागवानी पर निर्भर है। बंदरों की संख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी के कारण वे फसलें उजाड़ने लगे हैं। ऐसा नहीं है कि बंदर केवल फसल ही उजाड़ते हैं। वे शहरी इलाकों में लोगों पर जानलेवा हमले भी कर रहे हैं। विधानसभा में ये मसला कई बार गूंजा है, लेकिन कोई समाधान नहीं हो पाया।
सरकारी स्तर पर कई उपाय, रिजल्ट जीरो
वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने मौजूदा कार्यकाल में खेती को बंदरों से बचाने के लिए उत्पाती बंदरों के लिए वन वाटिकाएं बनाने से लेकर करंट के झटके देने वाली बाड़ लगाने के उपाय तो जोर-शोर से किए, लेकिन इसका असर नहीं दिखाई दे रहा। सोलर फैंसिंग के लिए सरकार ने साठ फीसदी तक का अनुदान देने का ऐलान भी किया है। इसके अलावा बंदर पकड़ने में सरकार ने 3.25 करोड़ खर्च किए।
यही नहीं, केंद्र से बंदरों को वर्मिन (इनसान व फसलों के लिए खतरनाक) घोषित कर उन्हें मारने की अनुमति ली गई, परंतु एक भी बंदर को मारा नहीं जा सका। बंदरों को मारने की लड़ाई किसानों से लेकर वन्य प्राणी विभाग और प्रशासन के बीच खींचतान में अटक गई। नतीजतन अभी तक कोई भी बंदर नहीं मारा गया। ये अलग बात है कि सरकार ने एक बंदर (जो वर्मिन इलाकों के हैं) को मारने के लिए पांच सौ रुपए के इनाम का ऐलान तक किया था।
सरकारी आंकड़े के अनुसार हिमाचल में 2.60 लाख बंदर हैं और इनमें से 90 हजार की नसबंदी का जा चुकी है। वहीं, किसान सभा का दावा है कि हिमाचल में 6 लाख से अधिक बंदर व लंगूर हैं। फिलहाल भाजपा का घोषणा पत्र तो आ गया, जिसमें बंदरों व जंगली जानवरों से फसलों को होने वाले नुकसान पर कुछ खास नहीं है। अब देखना है कि कांग्रेस अपने घोषणा पत्र में इस समस्या पर कितना फोकस करती है। 

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