मंगलवार, 31 अक्टूबर 2017

जनवरी में जुटेंगे देश के 800 औद्योगिक राजस्थान में

राजस्थान सरकार के एमएसएमई विभाग व लघु उद्योग भारती जयपुर में करेंगे होस्ट
Photo --Surendra Jain Paras

जयपुर। सूक्ष्म, लघु एवं मध्य उद्योगों का देष का सबसे बड़ा इण्डिया इंडस्ट्रीयल फेयर जनवरी में जयपुर के सीतापुरा स्थित जेईसीसी प्रांगण में आयोजित होगा। प्रमुख शासन सचिव एमएसएमई डॉ. सुबोध अग्रवाल ने मंगलवार को उद्योग भवन में यह जानकारी देते हुए बताया कि इण्डिया इंडस्ट्रीयल फेयर का आयोजन राजस्थान सरकार के एमएसएमई विभाग और लघु उद्योग भारती के संयुक्त तत्वावधान में किया जाएगा। उन्होंने बताया कि फेयर का मुख्य फोकस देष के एमएसएमई उद्योगों के उत्पादों को सामने लाने, देषी-विदेषी उपभोक्ताओं को उत्पादों से रुबरु कराने, बाजार में आ रहे बदलाव को समझने, अनुभवांे का आदान प्रदान, नई तकनीक को साझा करने, उत्पादकों और उपभोक्ताओं के बीच साझा मंच उपलब्ध कराना, स्टार्ट अप्स को प्रोत्साहित करने, निर्यात को बढ़ावा देने और देष के एमएसएमई उद्योग को आगे बढ़ाने के समन्वित प्रयास करने का अवसर उपलब्ध कराना है। उन्होंने बताया कि देष के आर्थिक विकास में एमएसएमई उद्योगों की भूमिका को भी इस फेयर के माध्यम से रेखांकित किया जा सकेगा।
प्रमुख सचिव एमएसएमई डॉ. सुबोध अग्रवाल, आयुक्त उद्योग  कुंजीलाल मीणा, लघु उद्योग भारती के निवर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष ओ.पी. मित्तल और फेयर संयोजन  महेन्द्र खुराना के साथ संवाददाताओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने बताया कि इण्डिया इंडस्ट्रीयल फेयर 8 कोर सेक्टरों पर आधारित होगा और प्रत्येक कोर सेक्टर की 100-100 स्टॉल्स होंगी। 8 कोर सेक्टरों में टेक्सटाइल्स व होम डेकोर, फर्नीचर, षिल्प ग्राम और हैण्डीक्राफ्ट, कृषि और खाद्य प्रसंस्करण, इंजीनियरिंग और माइनिंग, एनर्जी और इलेक्ट्र्ोनिक्स, प्लास्टिक, रबर और पैकेजिंग एवं बिल्डिंग व हार्डवेयर उद्योग अपने उत्पादों का प्रदर्षन करेंगे।
डॉ. अग्रवाल ने बताया कि इस फेयर की खासबात यह होगी इसमें देष के जाने माने राजकीय उपक्रम, केन्द्र सरकार की डिफेंस मिनिस्ट्री के साथ ही एक दर्जन सेे अधिक प्रदेषों के औद्योगिक प्रतिष्ठान हिस्सा लेेंगे। उन्होंने बताया कि फेयर के दौरान प्रमोषनल गतिविधियों का भी आयोजन होगा जिसमें वेंडर डव्लपमेंट प्रोग्राम, बी2बी और बी2सी मीट, फैषन शो, तकनीकी सेमिनार, एक्सपोर्ट प्रमोषनल सेमिनार, राजस्थानी कला संस्कृृति से जुड़े कार्यक्रम सहित प्रतिदिन इस तरह की प्रमोषनल गतिविधियों का भी आयोजन होगा। उन्होंने बताया कि फेयर में करीब 600 उद्योगांे के भाग लेने की संभावना है।
उद्योग आयुक्त  कुंजी लाल मीणा ने बताया कि इण्डिया इंडस्ट्रीयल फेयर के जयपुर में आयोजित होने से प्रदेष क एमएसएमई उद्योगों व युवा एंटरप्रोन्योर को समझने और अपने उत्पादों को प्रदेषवासियों के साथ ही अन्य प्रदेषों के उद्योगों के सामने रखने का अवसर मिलेगा। उन्होंने कहा कि इससे उद्यमियों को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बाजार भी मिल सकेगा।
लघु उद्योग भारती के निवर्तमान अध्यक्ष ओम प्रकाष मित्तल ने बताया कि फेयर के दौरान ब्रिक्स देषोें के उद्यमियों के साथ भी परस्पर संवाद प्रस्तावित है। इसके अलावा फेयर में अन्य देषों के उद्यमों की भागीदारी तय करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
इस अवसर पर अतिरिक्त निदेषक पीके जैन, लघु उद्योग भारती के प्रदेष अध्यक्ष श्री ताराचंद गोयल, राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष  योगेष गौतम  और मीडिया प्रभारी विमल कटियार भी उपस्थित थे

बिहार महादलित विकास मिशन में बड़े घोटाले

बिहार के भागलपुर में हुए सृजन घोटाले के बाद सूबे में  एक और घोटाला सामने आ रहा है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा शुरू किये गये महादलित विकास योजना में गड़बड़ी का खुलासा हुआ है.निगरानी विभाग ने महादलित विकास मिशन से जुड़े तीन IAS अधिकारियों सहित 10 लोगों के खिलाफ FIR दर्ज कर ली गयी है. यह मामला महादलित विकास मिशन में ट्रेनिंग घोटाले के रूप में सामने आया है. इस मामले की शिकायत निगरानी विभाग को 2016 में मिली थी. जांच के बाद निगरानी विभाग ने एफआईआर दर्ज की है.
-बिहार दलित विकास मिशन में हुए ट्रेनिंग घोटाला मामले में तीन आईएएस अधिकारी समेत दस लोगों पर प्राथमिकी दर्ज किये जाने के बाद मुख्य आरोपित आइएएस एसएम अपने विभाग और आवास से गायब हो गये हैं. सामान्य प्रशासन विभाग ने आइएएस एसएम राजू को उपस्थित होकर नोटिस लेने और जवाब देने का निर्देश दिया है.
-साथ ही विभाग ने चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर वह उपस्थित नहीं होते हैं, तो विभाग एकतरफा कार्रवाई करेगा.मालूम हो कि एससी-एसटी छात्रवृत्ति घोटाले के आरोप में आइएएस एसएम राजू को निलंबित कर दिया गया है. उसके बाद से न तो वह कार्यालय आ रहे हैं और न ही सरकारी आवास पर हैं.
-बिहार दलित विकास मिशन में ट्रेनिंग घोटाले की शिकायत वर्ष 2016 में निगरानी ब्यूरो को मिली थी. इसमें अब तक चार करोड़ 25 लाख रुपये से ज्यादा की गड़बड़ी सामने आ चुकी है. आशंका जतायी गयी है कि राशि और भी ज्यादा हो सकती है.
-निगरानी की जांच में दोषी पाये जाने के बाद एसएम राजू समेत दो आइएएस और अन्य सात के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है. मामले में एससी-एसटी कल्याण विभाग के तत्कालीन प्रधान सचिव एसएम राजू को भी मुख्य अभियुक्त बनाया गया है. एसएम राजू एससी-एसटी छात्रवृत्ति घोटाले में भी मुख्य अभियुक्त हैं और वर्तमान में फरार चल रहे हैं.
-अन्य दो आइएएस अधिकारी तत्कालीन सचिव रवि मनुभाई परमार और मिशन के तत्कालीन मुख्य कार्यपालक निदेशक केपी रमैय्या शामिल हैं. केपी रमैय्या ने आईएएस के पद से वीआरएस ले लिया है. वर्तमान में वह बिहार भूमि न्याय अधिकरण में सदस्य (प्रशासनिक) के पद पर हैं. इन तीन आईएएस के अलावा एक प्रोन्नत आईएएस रामाशीष पासवान तथा मिशन के अन्य अधिकारियों और निजी एजेंसी शामिल हैं.
-सभी आरोपितों के खिलाफ जालसाजी, फरेबी, धांधली, घपले से जुड़ी सभी धाराओं के अलावा भ्रष्टाचार निवारण निरोध अधिनियम की दो अहम धाराओं 120बी, 13(2)डी और 13(1)डी के तहत मामले दर्ज किये गये हैं.
-आरोपितों में एसएम राजू : बीडीडीएम के तत्कालीन मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी सह तत्कालीन सचिव एससी-एसटी विभाग, रवि मनु भाई परमार : बीडीडीएम के तत्कालीन मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी. 
-के पी रमैय्या : बीडीडीएम के तत्कालीन मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी, रामाशीष पासवान : बीडीडीएम के तत्कालीन मिशन निदेशक, प्रभात कुमार : बीडीडीएम के तत्कालीन मिशन निदेशक
देवजानी कर- बीडीडीएम के राज्य परियोजना निदेशक, उमेश मांझी : बीडीडीएम के राज्य परियोजना प्रबंधक, शरद कुमार झा : निदेशक, कोलकाता स्थित ट्रेनिंग एजेंसी आईआईआईएम लिमिटेड.
-सौरभ वसु : नयी दिल्ली स्थित एसआरएनएच कंपनी के वाइस प्रेसिडेंट (ऑपरेशन) जयदीप कर : जगत अमरावती अपार्टमेंट, बेली रोड (हड़ताली मोड़ के नजदीक). इसने मुख्य रूप से सेटिंग और दलाली का काम किया है. इसमें अन्य अज्ञात लोगों को भी  अिभयुक्त बनाया गया है.
 -बिहार राज्य महादलित विकास मिशन दलित समुदाय के छात्रों को 16 से ज्यादा ट्रेडों में कौशल विकास के तहत मुफ्त ट्रेनिंग देता है. ट्रेनिंग का पूरा खर्च राज्य सरकार देती है. इसके लिए निजी एजेंसियों का चयन किया जाता है.
- इन ट्रेनिंग कार्यक्रमों को संचालित कराने के लिए मिशन निजी एजेंसियों को कई स्तर पर निर्धारित मानकों पर इनका चयन करता है. इस पूरे मामले में हुई अब तक की जांच में तीन तरह से की गयी धांधली सामने आयी है.
-जिन ट्रेनिंग सेंटरों में दलित छात्रों का नामांकन एक जिले में किया गया है, उन्हीं छात्रों का नाम दूसरे, तीसरे और चौथे ट्रेनिंग में दर्ज करवा कर पैसे निकाल लिये गये. इस तरह एक छात्र के नाम पर कई बार रुपये निकाले लिये गये.
-इसके अलावा कई ऐसी एजेंसियों को ट्रेनिंग सेंटर दे दी गयी, जो सिर्फ कागज पर ही मौजूद हैं. इनका हकीकत में कोई अता-पता ही नहीं है. कई ऐसी एजेंसियों को भुगतान कर दिया गया, जिनमें कभी कोई ट्रेनिंग हुई ही नहीं है.
- इस तरह से पूरे ट्रेनिंग कार्यक्रमों को कागजी तौर पर संचालित करके सवा चार करोड़ से ज्यादा सरकारी राशि का गबन किया गया है, जिसमें बड़े अधिकारी से लेकर सभी स्तर के सरकारी कर्मचारियों की मिलीभगत है.
-जांच में अभी कई लोगों के नाम सामने आने और घोटाले की राशि बढ़ने की आशंका जतायी गयी है.

एलईडी बल्ब को लगाना खतरे से खाली नहीं है

अगर आप घर में बिजली बचाने के लिए एलईडी बल्ब का इस्तेमाल करते हैं तो थोड़ा सा सावधान हो जाइये। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत में बिकने वाले 76 फीसदी एलईडी बल्ब को लगाना खतरे से खाली नहीं है। इससे आपके परिवार को स्वास्थ्य संबंधी शिकायत हो सकती है।
तीन चौथाई बल्ब नहीं करते मानकों को पूरा
नीलसन द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार, देश भर में बिकने वाले तीन चौथाई से अधिक एलईडी बल्ब सरकार की तरफ से जारी ग्राहक सुरक्षा मानकों को पूरा नहीं करते हैं। इससे लोगों की जान का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है। एलईडी बल्ब से निकलने वाली गैस कई लोगों का स्वास्थ्य बिगाड़ रही है।
दिल्ली में सबसे ज्यादा बुरा हाल
सर्वे में देश भर के 200 से अधिक रिटेल आउटलेट्स पर मुंबई, हैदराबाद, अहमदाबाद और दिल्ली में किए गए सर्वे के अनुसार, ज्यादातर बल्ब मानकों पर खरे नहीं उतरे हैं। सबसे ज्यादा बुरा हाल राजधानी दिल्ली में है, जहां पर ऐसे बल्ब बड़ी संख्या में बिकते हैं, जो कि मानकों को पूरा नहीं करते हैं।
नॉन ब्रांडेड एलईडी बल्ब का बिकने से सरकार के मेक इन इंडिया को झटका लग रहा है, क्योंकि सस्ते बल्ब के बिकने से आर्थिक नुकसान भी हो रहा है।
अगस्त में जारी किए गए थे मानक
भारतीय मानक ब्यूरो ने अगस्त में एलईडी बल्ब बनाने वाली सभी कंपनियों को आदेश दिया था कि वो अपने उत्पाद को ब्यूरो के साथ रजिस्टर करें, ताकि उनका सेफ्टी चेक किया जा सके। देश भर में चीन से चोर रास्ते से मंगाए गए सस्ते बल्ब ज्यादा बिक रहे हैं।
चीन के बल्ब सबसे ज्यादा हानिकारक
चीन में बने एलईडी बल्ब सबसे ज्यादा हानिकारक हैं, क्योंकि इनके उत्पादन में किसी प्रकार के मानकों का ध्यान नहीं रखा जाता है। इससे सरकार को टैक्स भी नहीं मिलता है। सर्वे में पता चला है कि 48 फीसदी बल्ब में बनाने वाली कंपनी का पता नहीं था, तो 31 फीसदी में बल्ब बनाने वाली कंपनी का नाम ही नहीं था। 

राजद की रैलियों के सवाल पर रामविलास ने कहा कि कानून अपना काम करेगा। रैलियां करने से कोई फायदा होने वाला नहीं है

केन्द्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद पर एक बार हमला बोला है। उन्होंने कहा कि लालू परिवार के पास सीबीआई छापे के बाद अकूत संपत्ति पाई गई है, और जांच ब्यूरो के दुरुपयोग की बातें निराधार हैं। पासवान ने गुरमीत राम रहीम का उदाहरण दिया और कहा कि जो जैसा करेगा वैसा पाएगा।
कटिहार में पत्रकारों से बात करते हुए पासवान ने कहा कि वह खुद सन् 1977 से सक्रिय राजनीति में हैं लेकिन उनके पास पटना या दिल्ली में अपना घर नहीं है। लालू को चारा घोटाले मामले में आड़े हाथों लेते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा सीबीआई छापे के बाद न जाने कहां से इनके परिवार के पास दिल्ली में तीन-तीन फार्महाउस होने की बात सामने आई है।
रेलवे में भी अनोखा कार्यकाल !
केन्द्रीय खाद्य, उपभोक्ता मामले और सार्वजनिक वितरण मंत्री रामविलास पासवान ने तल्ख़ लहजे में लालू के रेल मंत्रित्व पर सवाल खड़े किए और कहा कि वह उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में पहली बार देखा कि रेलवे में नौकरी के बदले में जमीन का मालिकाना हक मिलता है।
रैलियां करने से निर्दोष साबित नहीं होंगे
राजद की रैलियों के सवाल पर रामविलास ने कहा कि कानून अपना काम करेगा। रैलियां करने से कोई फायदा होने वाला नहीं है। गुरमीत राम रहीम की गिरफ्तारी का हवाला देते हुए पासवान ने कहा कि दोषी पाए जाने पर हर व्यक्ति पर कार्रवाई की जाएगी और जो जैसा करेगा, वैसा पायेगा।
राबड़ी पर भी बोला हमला
केंद्रीय मंत्री ने राबड़ी देवी द्वारा सीबीआई के सामने हाजिर न होने पर भी सवाल खड़े किए और कहा कि ईडी ने राबड़ी देवी को अब तक चार बार नोटिस दिया है, लेकिन वह हाजिर नहीं हुईं, अगर वह पाक साफ हैं तो ईडी के सामने अपना पक्ष रखना चाहिए।

सोमवार, 30 अक्टूबर 2017

जब इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान को सबक सिखाने का फैसला किया था.

आज देश की पहली महिला प्रधानमंत्री और जवाहर लाल नेहरु की बेटी श्रीमती इंदिरा इंदिरा गांधी के शासनकाल के दौरान 1971 में भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ ऐतिहासिक लड़ाई लड़ी थी और उसे धूल चटाई.  भारत -पाकिस्तान के बीच हुए 1971 की जंग की दास्तां  जब गांधी ने पाकिस्तान को सबक सिखाने का फैसला किया था.

1971- भारत का सबसे सफल युद्ध
तारीख 25 अप्रैल साल 1971, तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक बड़ी मीटिंग में देश के थलसेनाध्यक्ष से कहा कि पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए जंग करनी पड़े तो करें. उन्हें इसकी परवाह नहीं. इंदिरा गांधी को ऐसा इसलिए कहना पड़ा था क्योंकि उस वक्त भारत के पूर्व में बसा पाकिस्तान का वो हिस्सा जिसे अब बांग्लादेश कहा जाता है, वहां ऐसा कुछ हो रहा था जिसका सीधा असर भारत पर पड़ रहा था.
पाकिस्तान की सरकार और सेना पूर्वी पाकिस्तान में रहने वाले अपने ही देश के लोगों पर जुल्म कर रही थी. बेगुनाह लोगों की हत्या कर रही थी और ये सब सिर्फ इसलिए क्योंकि पूर्वी पाकिस्तान के लोग पाकिस्तान की सेना के जुल्म के खिलाफ आवाज उठा रहे थे. उनकी आवाज दबाने के लिए पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान में नरसंहार शुरू कर दिया था. अपनी जान बचाने के लिए लोग वहां से भागने लगे. ये शरणार्थी पूर्वी पाकिस्तान की सीमा से लगे भारतीय राज्यों में पहुंच गए. पूर्वी पाकिस्तान के करीब 10 लाख लोग भारत में शरणार्थी बनकर आ गए. भारत की प्रधानमंत्री होने के नाते इंदिरा पर इस बात का दबाव बढ़ रहा था कि वो जल्द से जल्द इस मसले का हल निकालें और जरूरी कार्रवाई करें. इसीलिए इंदिरा ने एक तरफ भारतीय फौज को युद्ध की तैयारी करने का आदेश दे दिया और दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान पर दबाव बनाने की कोशिश शुरू कर दी.
अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर के साथ हुई इस बैठक में इंदिरा ने साफ कर दिया कि अगर अमेरिका पाकिस्तान को नहीं रोकेगा तो भारत पाकिस्तान पर सैनिक कार्रवाई के लिए मजबूर होगा. पूर्वी पाकिस्तान की समस्या को पाकिस्तान अपना अंदरूनी मामला बता रहा था लेकिन इंदिरा ने साफ कर दिया पूर्वी पाकिस्तान में जो हो रहा है वो पाकिस्तान का अंदरूनी मामला नहीं है. उसकी वजह से भारत के कई राज्यों में शांति भंग हो रही थी. इंदिरा ने पूर्वी पाकिस्तान पर उठ रहे हर सवाल का पूरी मजबूती से जवाब दिया. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी एक तरफ पाकिस्तान की डिप्लोमैटिक घेराबंदी कर रही थीं और दूसरी तरफ दुनियाभर में भारत के पक्ष में समर्थन जुटा रही थीं. पाकिस्तान की तरफ अमेरिका के नरम रवैए को देखते हए इंदिरा ने 9 अगस्त 1971 को सोवियत संघ के साथ एक ऐसा समझौता किया जिसके तहत दोनो देशों ने एक दूसरे की सुरक्षा का भरोसा दिया.
उधर पूर्वी पाकिस्तान में हालात बद से बदतर होते जा रहे थे. वहां पुलिस, पैरामिलिट्री फोर्स, ईस्ट बंगाल रेजिमेंट और ईस्ट पाकिस्तान राइफल्स के बंगाली सैनिकों ने पाकिस्तानी फौज के खिलाफ बगावत कर खुद को आजाद घोषित कर दिया था. ये लोग भारत से मदद की उम्मीद कर रहे थे. भारत की तरफ से वहां के लोगों को फौजी ट्रेनिंग दी जाने लगी जिससे वहां मुक्ति वाहिनी सेना का जन्म हुआ. वहीं पाकिस्तान चीन और अमेरिका के दम पर लगातार भारत को उकसा रहा था. नवंबर के आखिरी हफ्ते में पाकिस्तान के विमानों ने बार-बार भारतीय हवाई सीमा में दाखिल होना शुरु कर दिया. इस पर भारत की तरफ से पाकिस्तान को चेतावनी दी गयी लेकिन बजाय संभलने के पाकिस्तानी राष्ट्रपति याया खान ने 10 दिन के अंदर युद्ध की धमकी दे डाली. पाकिस्तान को उस वक्त ये अंदाजा भी नहीं था कि भारतीय सेना पहले ही अपनी तैयारी शुरू कर चुकी है.
इंदिरा के इरादे पक्के थे, युद्ध का माहौल बनता जा रहा था सवाल ये था कि पहला हमला कौन करेगा. पाकिस्तान भारत की तैयारी का अंदाजा नहीं लगा पाया 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी विमानों ने भारत के कुछ शहरों पर बमबारी करने की गलती कर दी. हमले की खबर मिलते ही इंदिरा सीधे मैप रूम पहुंची. जहां उन्हें हालात का ब्यौरा दिया गया. उस वक्त रात के 11 बज चुके थे. सेना के अफसरों से बैठक के बाद इंदिरा ने कैबिनेट बैठक बुलाई और फिर विपक्ष के नेताओं से मुलाकात कर उन्हें भी पूरे हालात की जानकारी दी. आधी रात हो चुकी थी जब इंदिरा ने ऑल इंडिया रेडियो के जरिए पूरे देश को संबोधित किया.
इंदिरा ने भारतीय सेना को ढाका की तरफ बढ़ने का हुक्म दे दिया. वहीं भारतीय वायुसेना ने पश्चिमी पाकिस्तान के अहम ठिकानों और हवाई अड्डों पर बम बरसाने शुरू कर दिये. भारत की तीनों सेनाओं ने पाकिस्तान की जबरदस्त नाकेबंदी की थी . 3 दिसंबर के हमले का जवाब भारत ने आपरेशन ट्राइडेंट शुरु करके दिया था . चार दिसंबर, 1971 को आपरेशन ट्राइडेंट शुरू हुआ. भारतीय नौसेना ने भी युद्ध के दो मोर्चे संभाल रखे थे. एक था बंगाल की खाड़ी में समुद्र की ओर से पाकिस्तानी नौसेना को टक्कर देना और दूसरा पश्चिमी पाकिस्तान की सेना का मुकाबला करना. 5 दिसंबर को भारतीय नौसेना ने कराची बंदरगाह पर जबरदस्त बमबारी कर पाकिस्तानी नौसैनिक मुख्यालय को तबाह कर दिया. पाकिस्तान पूरी तरह घिर चुका था. इसी बीच इंदिरा ने बांग्लादेश को मान्यता देने का एलान कर दिया.
इंदिरा की इस घोषणा का मतलब था कि बांग्लादेश अब पाकिस्तान का हिस्सा नहीं बल्कि एक स्वंत्रत्र राष्ट्र होगा. भारत ने युद्ध में जीत से पहले ही ये फैसला इसलिए किया जिससे युद्धविराम की स्थिति में बांग्लादेश का मामला यूनाइटेड नेशन्स में लटक न जाए. उधर अमेरिका ने पाकिस्तान की मदद के लिए अपनी नौसेना का सबसे शक्तिशाली सातवां बेड़ा बंगाल की खाड़ी की तरफ भेज दिया जिसके जवाब में इंदिरा ने सोवियत संघ के साथ हुई संधि के तहत उन्हें अपने जंगी जहाजों को हिंद महासागर में भेजने के लिए कहा. इस तरह से दो महाशक्तियां अप्रत्यक्ष रूप से इस युद्ध में शामिल हो चुकी थीं. इंदिरा गांधी ने फैसला लिया कि अमेरिकी बेड़े के भारत के करीब पहुंचने से पहले पाकिस्तानी फौज को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर करना होगा. जिसके बाद थल सेनाध्यक्ष जनरल सैम मानेक शॉ ने तुरंत पाकिस्तानी फौज को आत्मसमर्पण की चेतावनी जारी कर दी.
पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तान की सेना के कमांडर जनरल ए ए के नियाजी ने अमेरिका और चीन के दम पर सरेंडर से इंकार कर दिया. उस वक्त तक भारतीय सेना ढाका को 3 तरफ से घेर चुकी थी. 14 दिसंबर को भारतीय सेना ने ढाका में पाकिस्तान के गवर्नर के घर पर हमला किया. उस वक्त वहां पाकिस्तान के सभी बड़े अधिकारी गुप्त मीटिंग के लिये इकट्ठा हुये थे . इस हमले से पाकिस्तानी फौज के हौसले पस्त हो गए. जनरल नियाजी ने तुरंत युद्ध विराम का प्रस्ताव भिजवा दिया. लेकिन भारतीय थलसेनाध्यक्ष सैम मानेकशॉ ने साफ कर दिया कि अब युद्ध विराम नहीं बल्कि सरेंडर होगा.
मेजर जनरल जे एफ आर जैकब को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई. इसके बाद कोलकाता से भारत के पूर्वी कमांड के प्रमुख लेफिटेनेंट जेनरल जगजीत सिंह अरोड़ा ढाका पहुंचे. अरोडा और नियाज़ी एक मेज़ के सामने बैठे और 16 दिसंबर 1971 को दोपहर के 2.30 बजे सरेंडर की प्रक्रिया शुरू हुई.
पाकिस्तानी कमांडर नियाजी ने पहले लेफ्टिनेंट जनरल अरोड़ा के सामने सरेंडर के कागज पर दस्तखत किए और फिर अपने बिल्ले उतारे. सरेंडर के प्रतीक के तौर पर नियाजी ने अपना रिवॉल्वर जनरल अरोड़ा के हवाले कर दिया. पाकिस्तान के सरेंडर के साथ ही प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ये एलान कर दिया. भारत ने सिर्फ 14 दिन में पाकिस्तानी फौज को हथियार डालने के लिए मजबूर कर दिया और इस तरह इंदिरा ने पाकिस्तान को तोड़ दिया उसके 2 टुकड़े कर दिए.

सरदार वल्लभ भाई पटेल तो राजनीति के कबीर थे

कई बार लगता है सरदार वल्लभ भाई पटेल तो मानो राजनीति के कबीर थे। कबीर के बारे में कहा जाता है कि उनके शिष्यों में हिंदू व मुसलमान दोनों ही शामिल थे। उनके मरने के बाद उनके अनुयायियों में इस बात को लेकर विवाद खड़ा हो गया कि उनका अंतिम संस्कार हिंदू रीति रिवाज से किया जाए या इस्लाम को मानने वाले उन्हें दफनाए। जब वे लोग उनके शव के पास पहुंचे और उस से चादर हटायीं तो वहां पार्थिव शरीर की जगह फूल पड़े मिले। बताते हैं कि हिंदु अनुयायी ने अपने हिस्से के फूलों को जला दिया व मुसलमानों ने अपने हिस्से में आए फूलों को दफना दिया।
सरदार पटेल के न रहने के बाद आज कांग्रेस व भाजपा में भी ऐसा ही कुछ हो रहा है। जहां एक ओर भाजपा नेता व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनको लपकने में देर नहीं कि वहीं कांग्रेसी यह दावा कर रहे हैं कि वे तो हमारे नेता थे जिनको अब भाजपाई अपना बता रहे हैं। जिस देश में आजादी के 60 दशकों से ज्यादा साल बाद भी ताजमहल, टीपू सुल्तान को लेकर सांप्रदायिक आधार पर विवाद खड़े किए जा रहे हैं उस देश में आजादी के बाद 565 रियासतों और शासकों के बीच बंटे भारत को एकजुट करना कितना मुश्किल रहा होगा, इसकी सहज कल्पना की जा सकती है।
आखिर यह वह समय था जब न केवल देश में सांप्रदायिकता अपने चरम सीमा पर रही थी बल्कि राजे-रजवाड़े तक अपने निहित स्वार्थों को सर्वोपरि रखते आए थे और हिंदू व मुसलमान दोनों ने ही अपने धर्म को मानने वाले प्रतिद्वंदियों से अंग्रेजों के साथ मिलकर दगा किया था। क्या अनोखा संयोग है कि जहां एक ओर 31 अक्तूबर को इंदिरा गांधी की शहादत का दिवस मनाया जाता है वहीं उस दिन सरदार पटेल का जन्म दिन पड़ता है और सत्ता में आने के बाद नरेंद्र मोदी ने उसे राष्ट्रीय एकता दिवस घोषित किया।
जिस सरदार पटेल को कांग्रेस ने भी ज्यादा अहमियत नहीं दी, उसी नेता की गुजरात में दुनिया की सबसे उंची 182 फुट की मूर्ति मोदी सरकार स्थापित करवा रही है। जिस नेता का कद जवाहर लाल नेहरु के बराबर था व जिसने महज महात्मा गांधी की इच्छा को ध्यान में रखते हुए बहुमत होने के बावजूद 1946 में खुद को कांग्रेस अध्यक्ष पद की दौड़ से बाहर कर लिया था उसे कांग्रेसी सरकारों ने भारत रत्न से समय रहते सम्मानित करने का प्रयत्न नहीं किया। उन्हें 1991 में वी पी सिंह सरकार ने भारत रत्न से सम्मानित किया। जवाहर लाल नेहरु व इंदिरा गांधी के बाद।
इंदिरा गांधी ने तो खुद सत्ता में रहते हुए अपने आप को भारत रत्न दे दिया था। सरदार पटेल देश के पहले उप प्रधानमंत्री व गृह मंत्री थे। जब देश आजाद होने वाला था तो तत्कालीन वायसराय ने अविभाजित भारत की तमाम रियासतों व शासकों को दो विकल्प दिए थे कि वे या तो भारत में शामिल हो जाएं अथवा पाकिस्तान को अपना देश मान ले। उस समय छह रियासतों ने ऐसा करने में ना नुकुर की थी। यह थी जूनागढ़, हैदराबाद, जम्मू-कश्मीर, त्रवाणकोर, भोपाल व जोधपुर।
पहले बड़ी रियासतों का मामला ले। सरदार पटेल जूनागढ़ को लेकर बहुत चिंतित थे क्योंकि यह सौराष्ट्र में आता था व सोमनाथ का मंदिर भी यही था जिस को लूटने के लिए महमूद गजनी ने 17 बार आक्रमण किया था। इस राज्य की अधिसंख्य जनता हिंदू थी मगर शासक मुसलमान था जो कि पाकिस्तान के दबाव में आकर उसके साथ जाना चाहता था। बताते हैं कि जिन्ना ने तो एक खाली कागज उसके सामने रख कर कहा था कि इस पर जो शर्ते चाहे लिख लो मैं उन्हें मान लूंगा। पर तुम पाकिस्तान में आ जाओ।
जब सरदार पटेल को इसका पता चला तो उन्होंने वहां की नाकेबंदी करवा कर तुरंत सेना भेज दी। मुंबई में महात्मा गांधी के एक दूर के रिश्तेदार को वहां का शासक बनाने का ऐलान करते हुए अंग्रेजी हुकूमत (अस्थायी सरकार) बना दी। फिर वहां जनमत संग्रह करवाया जिसमें 95 फीसदी लोगों ने भारत के साथ विलय के पक्ष में मतदान किया। नवाब पाकिस्तान भाग गया व पाकिस्तान इस मामले को संयुक्तराष्ट्र संघ में ले गया। जहां आज तक इस पर कोई फैसला नहीं हुआ।
यही हालात हैदराबाद रियासत का भी था। हैदराबाद तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र सभी हैदराबाद का ही हिस्सा थे। उसका निजाम दुनिया का सबसे अमीर आदमी था। उसका निजाम उस्मान अली था। उसने कासिम रिजवी के नेतृत्व में रजाकारों की सेना बनायी। पहले निजाम ने भारत में शामिल होने का ऐलान किया मगर वह बाद में पलट गया। जवाहर लाल नेहरु वहां किसी भी तरह की सैनिक कार्रवाई किए जाने के खिलाफ थे। संयोग से वे जब योरोप के दौरे पर गए थे व सरदार पटेल उस समय उनकी जगह सरकार के प्रभारी थे तो उन्होंने वहां सैनिक कार्रवाई करने का आदेश दिया क्योंकि रजाकार हिंदू लोगों पर जुल्म ढा रहे थे। उनकी गैर मौजूदगी में सरदार पटेल ने वहां सेना भेजी और अंततः निजाम की सेना को समर्पण करना पड़ा।
यह निजाम टर्की के असफ खानदान से था। मुगलों ने उसे अपना सूबेदार निजाम उल मुल्क नियुक्त किया था और वह दक्षिण में उनके गवर्नर की तरह काम करता था। मगर जब मुगल कमजोर होने लगे तो उसने खुद को निजाम घोषित कर दिया और अंग्रेजों के साथ दोस्ती कर ली। उस्मान अली खान पर टाइम पत्रिका ने उस समय कवर स्टोरी छापी थी जिसमें उसे दुनिया का सबसे अमीर आदमी बताया गया।
त्रवाणकोर के दीवान सीपी रामास्वामी तो अपने राज्य को आजाद देश घोषित करते हुए यहां तक कह गए थे कि कांग्रेस कैसे अंग्रेजों की जगह ले सकती है? मगर बाद में वे सरदार पटेल के कहने पर मान गए। ऐसे ही भोपाल के नवाब हमीदुल्ला खान, लार्ड माउंटबैटन के बचपन के दोस्त थे। उन्होंने इस संबंध में उन्हें पत्र लिखा व उनके समझाने पर वे भारत में शामिल होने को तैयार हुए। जोधपुर का शासक पाकिस्तान के साथ विलय चाहता था क्योंकि उसका मानना था कि उसका राज्य पाक के ज्यादा करीब था अंततः पटेल के धमकाने पर वह भारत में विलय के लिए राजी हुआ।
सरदार पटेल की कई मुद्दों पर अपनी ही पार्टी के नेताओं से नहीं बनती थी। वे महात्मा गांधी द्वारा पाकिस्तान को 55 करोड़ दिलवाने के लिए हड़ताल पर बैठने के खिलाफ थे। वे कश्मीर मसले को संयुक्त राष्ट्र में ले जाने के खिलाफ थे। वे गोवा में सैनिक कार्रवाई करना चाहते थे जिसकी नेहरु ने अनुमति नहीं दी। वे संघ को कट्टरपंथी संगठन मानते थे व महात्मा गांधी की हत्या के बाद उन्होंने संघ पर प्रतिबंध लगाया था हालांकि उन्होंने नेहरु से कहा था कि जो लोग यह सोचते है कि वे सत्ता में रहते हुए किसी संगठन को कुचल देंगे वे गलत है। उनका कहना था कि डंडा चोर, डकैतों के लिए होता है।
सरदार पटेल संघ को कट्टरपंथी व विभाजनकारी संगठन मानते थे। हालांकि महात्मा गांधी की हत्या में उसका कोई हाथ न होने की बात कहते थे। जब कश्मीर में पाकिस्तान ने हमला किया तो उन्होंने 6 मार्च 1948 को लखनऊ में रैली में मुसलमानों से कहा था कि आप लोगों ने अभी तक पाकिस्तान के हमले की भर्त्सना क्यों नहीं की? आप दो घोड़ों पर सवार नहीं हो सकते। एक घोड़ा चुन लीजिए। चाहे तो पाकिस्तान चले जाइए और वहां शांति से रहिए। क्या विरोधाभास है कि आज वही संघी नरेंद्र मोदी उनके गुणगान कर रहे है। उन्हें अपना बता रहे हैं। वैसे दूर क्यों जाना? भाजपा ने तो आपातकाल के तमाम खलनायकों को अपना नायक माना। यह सब वक्त और राजनीति का तकाजा जो है।

राजगीर के विभिन्न वार्डो मे समस्याओं का लगा है अंबार

 नगर पंचायत, राजगीर
 राजगीर के विभिन्न वार्डो मे व्याप्त समस्याओं के निराकरण की योजना के अभाव में लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। समस्याओं के कारण वार्ड संख्या 13 की जनता का हाल-बेहाल है। यहां पेयजल, नाली, गली व सफाई के अलावा मुख्यमंत्री सात निश्चय योजना अंतर्गत दी जाने वाली सुविधाओं का घोर अभाव है। वहीं वृद्धापेंशन के मद में पिछले कई महीनों से राशि लाभुकों को निर्गत नहीं कराये जाने से बुजुर्गों को कठिनाई हो रही है । जिसमें से वृद्धापेंशन के अलावा विभिन्न मदों क्रमश: विधवा, रानी लक्ष्मी बाई व दिव्यांग पेंशनरों के कुल 80 मे से 40 को पिछले एक साल से कोई राशि नहीं मिल पाई है।
वार्ड के कुल पांच टोले यादव टोला, नाई टोला, उपाध्याय टोला, माली टोला व मिश्रा टोला है। जहां समस्याओं का अंबार है। नाई टोले में वुडको द्वारा सेवरेज ट्रीटमेंट प्लांट के तहत एक्सटेंशन कनेक्शन मे गलियों की खुदाई कर छोड़ दिए जाने से आए दिन दुर्घटना होने लगी है। वहीं नाई टोले मे बिजली के कवर तार व नए पोल के लगाने की प्रक्रिया के तहत विद्युत विभाग द्वारा कुछ समय पूर्व पुराने पोल हटाने के बाद इस पर पहल नहीं होने से आम लोगों को लगभग पांच सौ फीट की दूरी से वैकल्पिक व्यवस्था कर अपने घरों तक बिजली का कनेक्शन लाना पड़ रहा है। जो कभी भी दुर्घटना का कारण बन सकता है। इस वार्ड में सन् 1955 में ही पेयजलापूर्ति के लिए पाइप लाइन बिछाया गया था जो जर्जर हो चुका है। पेयजल की जगह अब इन पाइपों से गंदा जल निकलने लगा है। लोगों की मानें तो माली टोला, उपाध्याय टोला मे पेयजलापूर्ति लगभग तीन साल से नियमित नही है। इन टोलों में चापाकल की स्थिति भी असंतोषजनक दिखी। वहीं उपाध्याय टोला व अन्य मे भौगोलिक ऊंचाई के कारण समस्याओं की मार झेल रहा है। यहां सफाई व प्रकाश व्यवस्था की स्थिति असंतोषजनक दिखी। नियमित सफाई कर्मियों के नहीं आने के कारण टोले मे सफाई का जिम्मा लोगों ने स्वयं उठाया है। इस क्रम मे निचली बाजार के विभिन्न नालियों की सफाई के दौरान घरों के दरवाजों के सामने से हटाए गए स्लैब को पुन: नालियों को नहीं ढ़के जाने से दुर्घटना की संभावना बनी रहती है। जबकि उपाध्याय टोले के विभिन्न गलियों मे प्रकाश व्यवस्था नहीं है। वहीं नाई व यादव टोले मे सेवरेज के पाईप लाईन बिछाने के क्रम मे खुदाई होने से यातायात प्रभावित है।
क्या कहते हैं लोग -

हमारे घरों के आगे की नालियों की सफाई के बाद सफाई कर्मियों द्वारा हटाये गये स्लैब को पुन: नाली को नहीं ढकने से बच्चों व महिलाओं के मन में दुर्घटना का भय बना रहता है। वहीं नालियों की सफाई के बाद निकासी की गई गंदगी का समय से उठाव नही होने से परेशानी है बनी रहती है। संजय कुमार गुप्ता
हमारे मोहल्ले की गली में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट के तहत पाइप लाइन बिछाने के लिए खुदाई तो हुई। परंतु न तो पाइप लाइन बिछा और ना ही गली को मरम्मत की गई। वहीं पेयजल की समस्या से इस टोले के लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। जिसके निराकरण पर पहल की कवायद दिखाई नहीं देती। संजू देवी
हमारे टोले के विभिन्न बिजली खंभों पर प्रकाश व्यवस्था के तहत बल्ब की व्यवस्था का अभाव है। वहीं सीवरेज के लिए पाइप लाइन बिछाने के क्रम मे हुई खुदाई से उबड़-खाबड़ की स्थिति बन गई है। दो कदम भी आसानी से चलना मुश्किल है। रात के अंधेरे मे गुजरते लोगों को भारी फजीहत का सामना करना पड़ रहा है। उदय शंकर उपाध्याय
पानी की समस्या तो है ही। कई सालों से इस मुहल्ले मे विभागीय पेयजलापूर्ति की सुविधा का घोर अभाव है। जिनके घरों मे वैकल्पिक तौर पर सबमरसेवल व अन्य है। उनके घरों से उनके पड़ोसियों को पानी के लिए निवेदन करते देखा जा सकता है। इस समस्या का निदान आवश्यक है। शोभा देवी
खुले नालियों की हालत और गलियों की दुर्दशा ने आम जन जीवन को बेहद प्रभावित कर रखा है। वहीं विभिन्न मदों मे दी जाने वाली लाभूकों को पेंशन की राशि का नियमित न होना इस वार्ड की पहचान बन चुकी है। जबकि पेयजल व प्रकाश व्यवस्था की समस्या मुंह चिढ़ाती नजर आती है। विजय कुमार चंद्रवंशी
हमारे टोले के मार्ग की हालत काफी खराब है। आवागमन करते स्कूली बच्चों व दैनिक कार्यों मे लगे लोगों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। पानी के लिए दो मे से मात्र एक चालू चापाकल के बल पर पूरे मुहल्ले के निवासियों के पेयजल से संबंधित कष्टों का निवारण बमुश्किल हो रहा है। सुलोचना देवी
माली टोला मे खराब व जर्जर हो चुके रास्ते के वजह से आवागमन करते लोगों को परेशानी उठानी पड़ रही है। वहीं पेयजलापुर्ति की समस्या लगभग तीन साल से बनी हुई है । जिसमें एक चापाकल से लोगों की प्यास बुझा पाना कठिन हो रहा है। इस पर पहल होना अतिआवश्यक है। निरंजन मालाकार
 पिछले चार माह से हम बूढों को वृद्धा पेंशन का लाभ नहीं मिल पाया है। जिससे हमारा दैनिक जीवन बुरी तरह प्रभावित है। दवाईयों के अलावा इस उम्र मे अपने जरूरत संबंधी संसाधनों का जुगाड़ कर पाना बेहद मुश्किल हो रहा है।इस लाभांश को नियमित व समय पर किया जाना चाहिए। जानकी देवी
क्या कहतीं है वार्ड पार्षद
  वार्ड पार्षद ज्योति देवी ने कहा कि हमने अपने वार्ड के विभिन्न समस्याओं की सूची बना रखी है। समस्याओं का निराकरण क्रमबद्ध किया जा रहा है। मुख्यमंत्री सात निश्चय योजनाओं के क्रियान्वयन पर पहल की कवायद प्रारंभ कर दी है। जिसके प्रति संवेदनशील व गंभीरतापूर्वक नगर पंचायत बोर्ड की अगली होने वाली बैठक मे इसका मसौदा तैयार कर अतिशीघ्र कई मूलभूत व बुनियादी सुविधाओं को बहाल करने पर जोर दिया जाएगा।

BJP के विजन में नहीं दिखे बंदर और जंगली जानवर के आतंक

कुर्सी की जंग में कूदने वाले राजनीतिक दलों के घोषणा पत्र पर सभी की नजरें रहती हैं। हिमाचल चुनाव में मिशन फिफ्टी प्लस का सपना देख रही भाजपा ने हाईटेक तरीके से अपना विजन डॉक्यूमेंट जारी किया है।
भाजपा ने मेनिफेस्टो इसे बेशक स्वर्णिम दृष्टि पत्र (विजन डॉक्यूमेंट) का नाम दिया है, परंतु पार्टी की दृष्टि प्रदेश के सबसे महत्वपूर्ण तबके किसानों और बागवानों की दुखती रग पर नहीं पड़ी है। जी हां, हिमाचल के किसान बंदरों व जंगली जानवरों के आतंक से त्रस्त हैं। बंदर व जंगली जानवर साल भर में खेती और बागवानी को करीब पांच सौ करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचाते हैं। हालांकि भाजपा ने अपने विजन डॉक्यूमेंट में किसानों और बागवानों से कई वायदे किए हैं, लेकिन जिस समस्या से परेशान होकर किसान खेती छोड़ रहे हैं, उसे लगभग नजर अंदाज किया है।
हिमाचल प्रदेश की 3,226 पंचायतों में से 2,300 से अधिक पंचायतें बंदरों व जंगली जानवरों द्वारा फसल उजाड़े जाने से परेशान हैं। पिछले दो चुनाव में किसान संगठन इस मसले को चुनावी मुद्दा बनाने में कामयाब तो जरूर हुए हैं, लेकिन कोई भी राजनीतिक दल इस समस्या के समाधान के लिए सक्रिय और गंभीर नहीं है। भाजपा के 28 पन्नों के घोषणा पत्र में 2022 तक किसानों और बागवानों की आय को दोगुना किए जाने की बात कही गई है। किसानों-बागवानों के लिए 39 बिंदुओं पर विभिन्न ऐलान किए गए हैं।
इसमें हिमाचल को एप्पल स्टेट के अलावा फ्लावर स्टेट बनाने का वादा है। अलबत्ता किसानों की दुखती रग बंदर व जंगली जानवरों के उत्पात से बचाव को लेकर रस्मी तौर पर जिक्र किया गया है। विजन डॉक्यूमेंट में कहा गया है कि भाजपा सौर बाड़ के लिए नब्बे फीसदी अनुदान देगी और मौजूदा वाइल्ड लाइफ सेंक्चुरी में सौर बाड़ लगाई जाएगी। न तो बंदरों की साइंटिफिक कलिंग को लेकर कोई आश्वासन है और न ही बंदरों के निर्यात पर लगी रोक हटाने के लिए कदम उठाने का जिक्र है। इसके अलावा किसान संगठनों की मदद से समस्या के समाधान का आश्वासन भी नहीं है।
 हिमाचली किसानों के लिए आफत हैं बंदर
शिमला, सिरमौर, सोलन, कांगड़ा सहित अन्य जिलों के किसान बंदरों व जंगली जानवरों द्वारा फसल उजाड़े जाने से परेशान हैं। ये समस्या किस कदर गंभीर है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कई किसान परिवार खेती छोड़ चुके हैं और उनकी जमीन बंजर हो गई है।
हिमाचल में नौ लाख से अधिक किसान परिवार हैं। देश में वर्ष 1972 में बंदरों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया था। निर्यात पर प्रतिबंध से पहले रिसर्च के लिए भारत विदेशों को हर साल 60 हजार बंदर निर्यात करता था। इससे विदेशी मुद्रा भी मिलती थी और बंदरों की संख्या भी नियंत्रित रहती थी।
पशु प्रेमी संगठनों के हस्तक्षेप से बंदरों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया। कई किसान संगठन इस प्रतिबंध को हटाने की मांग उठाते आए हैं। हिमाचल की बात की जाए तो यहां अस्सी फीसदी से अधिक आबादी खेती व बागवानी पर निर्भर है। बंदरों की संख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी के कारण वे फसलें उजाड़ने लगे हैं। ऐसा नहीं है कि बंदर केवल फसल ही उजाड़ते हैं। वे शहरी इलाकों में लोगों पर जानलेवा हमले भी कर रहे हैं। विधानसभा में ये मसला कई बार गूंजा है, लेकिन कोई समाधान नहीं हो पाया।
सरकारी स्तर पर कई उपाय, रिजल्ट जीरो
वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने मौजूदा कार्यकाल में खेती को बंदरों से बचाने के लिए उत्पाती बंदरों के लिए वन वाटिकाएं बनाने से लेकर करंट के झटके देने वाली बाड़ लगाने के उपाय तो जोर-शोर से किए, लेकिन इसका असर नहीं दिखाई दे रहा। सोलर फैंसिंग के लिए सरकार ने साठ फीसदी तक का अनुदान देने का ऐलान भी किया है। इसके अलावा बंदर पकड़ने में सरकार ने 3.25 करोड़ खर्च किए।
यही नहीं, केंद्र से बंदरों को वर्मिन (इनसान व फसलों के लिए खतरनाक) घोषित कर उन्हें मारने की अनुमति ली गई, परंतु एक भी बंदर को मारा नहीं जा सका। बंदरों को मारने की लड़ाई किसानों से लेकर वन्य प्राणी विभाग और प्रशासन के बीच खींचतान में अटक गई। नतीजतन अभी तक कोई भी बंदर नहीं मारा गया। ये अलग बात है कि सरकार ने एक बंदर (जो वर्मिन इलाकों के हैं) को मारने के लिए पांच सौ रुपए के इनाम का ऐलान तक किया था।
सरकारी आंकड़े के अनुसार हिमाचल में 2.60 लाख बंदर हैं और इनमें से 90 हजार की नसबंदी का जा चुकी है। वहीं, किसान सभा का दावा है कि हिमाचल में 6 लाख से अधिक बंदर व लंगूर हैं। फिलहाल भाजपा का घोषणा पत्र तो आ गया, जिसमें बंदरों व जंगली जानवरों से फसलों को होने वाले नुकसान पर कुछ खास नहीं है। अब देखना है कि कांग्रेस अपने घोषणा पत्र में इस समस्या पर कितना फोकस करती है। 

विश्व में अंधाधुंध ढांचागत विकास विनाशकारी'

 विश्व के सभी देश विकास की अलग-अलग परिभाषाएं गढ़कर अंधाधुंध तरीके से सड़क निर्माण और ढांचागत परियोजनाओं का विकास करने में जुटे हैं, जो मानव जाति को आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय खतरों की ओर ले जा रहा है। क्वींसलैंड की जेम्स क्रुक यूनिवर्सिटी में प्राध्यापक विलियम लॉरेंस ने कहा, "हमने दुनिया भर में प्रमुख सड़कों और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की जांच-पड़ताल की है।"
उन्होंने कहा, "यह देखना हैरत भरा रहा कि इनके पीछे कितने खतरे छुपे हुए हैं।"
उच्च-वर्षा वाले क्षेत्रों और एशिया-प्रशांत, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के विकासशील देशों में सबसे जरूरी प्राथमिकता लाखों किलोमीटर लंबी नई सड़कों की योजनाओं व उनके निर्माण तक सीमित है।
लॉरेंस ने कहा, "बारिश के कारण सड़कों पर गढ्ढे, बड़ी-बड़ी दरारें और भूस्खलन जैसी समस्याएं बहुत तेजी से होती हैं। ये परियोजनाएं शीघ्र ही बड़े धन अपव्यय में बदल जाती हैं।"
अगले तीन सालों में एशिया के विकासशील देशों में पक्की सड़कों की लंबाई दोगुनी होने की संभावना है।
उन्होंने कहा, "गीले, दलदली या पहाड़ी क्षेत्रों के लिए योजनाबद्ध नई सड़कों का निर्माण नहीं किया जाना चाहिए, इससे केवल नुकसान होगा और यह केवल आर्थिक मानदंडों पर आधारित है।"
कोस्टा रिका में अलॉयंस ऑफ लीडिंग एनवायरमेंटल रिसचर्स एंड थिंकर्स (एएलईआरटी) के शोधार्थी व अध्ययन के सह-लेखक इरीन बर्गयूस ने कहा, "अगर आप पर्यावरण और सामाजिक लागतों को जोड़ते हैं, तो निष्कर्ष नई सड़कों के खिलाफ ही सामने निकलकर आएगा। खासकर वन क्षेत्रों में, जहां उच्च पर्यावरणीय मानक मौजूद हैं।"
लॉरेंस के अनुसार, "जनता अक्सर खराब सड़कों के भारी कर्ज का हर्जाना भुगतती है। कुछ सड़क निर्माणकर्ता और राजनेता समृद्ध होते हैं और वास्तविक विकास के अवसर आसानी से गंवा दिए जाते हैं।"

रविवार, 29 अक्टूबर 2017

नालंदा में होगा ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट का निर्माण !

केंद्रीय नागरिक विमानन मंत्री अशोक गजपति राजू पटना आयेंगे. उनकी मुख्यमंत्री के साथ संवाद कक्ष में बैठक होगी.  नालंदा में ग्रीनफील्ड  एयरपोर्ट के निर्माण और  बिहटा व  पटना एयरपोर्ट के विकास पर नीतीश व गजपति राजू में विचार विमर्श होगा.
 पटना एयरपोर्ट के टर्मिनल भवन का लेआउट भी फाइनल होगा. गजपति राजू तीन ले आउट ले कर आयेंगे, जिन पर मुख्यमंत्री के साथ व्यापक विचार विमर्श के बाद समवेत रूप से किसी एक का चयन किया जायेगा. बिहटा एयरपोर्ट के रनवे के विस्तार पर भी चर्चा होगी. इसके लिए राज्य सरकार को लगभग डेढ़ सौ एकड़ जमीन अधिग्रहीत करनी होगी. गजपति राजू के साथ एआइआई के अध्यक्ष गुरुप्रसाद महापात्रा और कई वरिष्ठ अधिकारी भी पटना आ रहे हैं.
 ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट 
 पूरी तरह नये एयरपोर्ट को ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट कहते हैं. पटना एयरपोर्ट के निदेशक आरएस लाहौरिया ने कहा कि इसका निर्माण इंटरनेशनल सिविल एविएशन आर्गेनाइजेशन के द्वारा तय मानदंडों के आधार पर किया जाता है. और सबकुछ अंतरराष्ट्रीय स्तर का होता है. रनवे का विस्तार 12 हजार फीट से अधिक होता है.
 ऐसे एयरपोर्ट निर्माण में चार पांच हजार करोड़ रुपये खर्च करने पड़ेंगे. यदि सोमवार को मुख्यमंत्री के साथ गजपति राजू की बातचीत सफल रहती है और नालंदा मेंं ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट के परियोजना को मंजूरी मिलती है तो यह पटना का छठा एयरपोर्ट होगा. वर्तमान में पटना व गया दो ही एेसे एयरपोर्ट हैं. बिहटा को विकसित करने की स्वीकृति मिल चुकी है जबकि पूर्णिया व दरभंगा के एयरफोर्स बेस स्टेशन को नागरिक उड्डयन के लिए खोलने का प्रस्ताव अग्रिम चरण में है.

नीतीश सरकार की जीरो टॉलरेन्स की नीति को लेकर निगरानी विभाग ने कसी कमर

भ्रष्टाचार के विरुद्ध मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जीरो टॉलरेन्स नीति के तहत भ्रष्टाचार को लेकर निगरानी विभाग ने कमर को कस लिया है. नीतीश सरकार की जीरो टॉलरेन्स की नीति पर चलते हुए निगरानी विभाग के प्रधान सचिव ने पहल करते हुए आमलोगों से अपील की है कि 'भ्रष्टाचारी के दबाव में न रहें, निगरानी विभाग से मिल कर कहें. पैसे के बल पर काम कराना अपराध है. काम सही हो तो मुफ्त होगा.'
नीतीश सरकार की जीरो टॉलरेन्स की नीति को आगे बढ़ाते हुए निगरानी विभाग ने विज्ञापन भी जारी किया है. निगरानी विभाग ने कहा है कि पुलिस, प्रशासन एवं अन्य सरकारी महकमों में रिश्वत की मांग से संबंधित भ्रष्टाचार की शिकायत, तकनीकी मामलों एवं निर्माण संबंधी कार्यों की शिकायत, भ्रष्टाचार से संबंधित आय के ज्ञात श्रोत से अधिक संपत्ति जमा करनेवालों के विरुद्ध ठोस सूचना देने एवं रिश्वतखोर को रंगेहाथ पकड़वाने समेत भ्रष्टाचार की अन्य शिकायत के लिए फोन नंबर, मोबाइल नंबर और कार्यालय में संपर्क करें. मोबाइल या फोन नंबर पर सूचना देने के बाद कार्यालय में लिखित शिकायत भी करने की अपील प्रधान सचिव ने की है.
पुलिस, प्रशासन और अन्य सरकारी महकमों में रिश्वत की मांग से संबंधित भ्रष्टाचार की शिकायत के लिए पटना के 06, सर्कुलर रोड स्थित निगरानी अन्वेषण ब्यूरो के कार्यालय में संपर्क किया जा सकता है. साथ ही कार्यालय के फोन नंबर 0612-2215344 / 2215043 या मोबाइल नंबर 7765953261 पर संपर्क करें.
वहीं, तकनीकी मामलों एवं निर्माण संबंधी कार्यों की शिकायतों के लिए मुख्य सचिवालय, पटना के ब्लॉक-2  स्थित तकनीकी परीक्षक कोषांग में संपर्क कर सकते हैं. साथ ही फोन नंबर 0612-2215081 या मोबाइल नंबर 85444 19040 पर संपर्क कर अपनी शिकायत दर्ज कर सकते हैं.
भ्रष्टाचार से संबंधित अन्य शिकायतों के लिए पटना के बेली रोड के सूचना भवन की चौथी मंजिल पर स्थित निगरानी विभाग में संपर्क कर अपनी शिकायत दर्ज कर सकते हैं. साथ ही फोन नंबर 0612-2217048 या svccvd@nic.in पर ई-मेल कर अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं.

पटना नगर निगम फाइलों में ही मार रहा मच्छर

पटना : शहर में डेंगू के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है. राजधानी में लगभग एक हजार मरीजों की संख्या पहुंच गयी है. शहर के कई मुहल्ले ऐसे हैं जहां मरीजों की संख्या सैकड़ों में हैं. वहीं दिन प्रतिदिन मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है, लेकिन मच्छरों से बचाव के लिए नगर निगम केवल फाइलों में ही फॉगिंग करा रहा है. लगभग 10 बड़ी मशीनों को एक बार चलाने में 60 हजार रुपये के लगभग खर्च किया जा रहा है. निगम का दावा है कि एक मशीन से प्रतिदिन दो वार्डों में रोस्टर के आधार पर फॉगिंग की जा रही है. लेकिन मुहल्लों में कहीं भी निगम की मशीनें चलती नहीं दिखती हैं.
 यहां अधिक है डेंगू का प्रकोप: नूतन राजधानी अंचल में शिवपुरी, कर्पूरी ठाकुर लेन, विवेकानंद मार्ग, विंध्येश्वरी नगर में डेंगू की स्थिति भयावह है. वहीं महेंद्रू, टिकिया टोली, कदमकुआं, सब्जी बाग, पूर्वी व पश्चिमी लोहानीपुर, चित्रगुप्त नगर, पोस्टल पार्क, चिरैयांटाड़,  नवरत्नपुर, आनंदपुरी, अशोक नगर, श्रीकृष्णापुरी, इंद्रपुरी, बोरिंग कैनाल रोड  सहित दर्जनों मुहल्ले विशेष रूप से प्रभावित हैं.
 पुरानी हैंड मशीनें खराब, पांच करोड़ की लागत से खरीदी 10 बड़ी मशीनें : नगर  निगम के 75 वार्डों में नियमित फॉगिंग नहीं हो रही थी. इसको लेकर चार वर्ष  पहले  स्थायी समिति व निगम बोर्ड से  स्वीकृति के आलोक में निगम प्रशासन ने 20 लाख की लागत से 59 फॉगिंग मशीनें  लोकल एजेंसी से खरीदीं, लेकिन खरीदारी की सेवा-शर्त में रख-रखाव नहीं  था. इस कारण सभी मशीनें एक वर्ष बाद ही खराब हो गयीं. निगम प्रशासन ने  मेंटेनेंस भी नहीं कराया और मशीनों को जर्जर स्थिति में छोड़ दिया गया. वहीं अब लगभग पांच करोड़ की लागत से दस बड़ी मशीनों को खरीदा गया है.
 1 मशीन पर खर्च होनेवाली राशि 
 प्रतिदिन एक बड़ी मशीन में 80 लीटर डीजल, पांच लीटर पेट्रोल व एक लीटर मैलेथियाॅन डाला जाता है. इसमें क्रमश: 52 सौ, 375 व 300 रुपये खर्च किये जाते हैं, यानी कुल मिला कर एक फाॅगिंग करनेवाली मशीन व वाहन पर 5875 रुपये का खर्च आता है. इस हिसाब से 10 वाहनों पर लगभग 60 हजार रुपये की राशि खर्च होती है.

अब बिहार राज्य सरकार बेचेगी सब्जी

 सुधा दूध की तरह अब राज्य में आउटलेट पर सब्जियां भी बिकेंगी. इसके लिए प्रखंड से लेकर राज्य स्तर पर सब्जी उत्पादकों का फेडरेशन बनेगा. सहकारिता विभाग इसकी तैयारी में जुट गया है. पायलट प्रोजेक्ट के तहत पांच जिलों  पटना, बेगूसराय, नालंदा, वैशाली और समस्तीपुर में इसकी शुरुआत होगी.
 इन जिलों में सब्जी की खेती बड़े पैमाने पर होती है. सबकुछ ठीक रहा तो जनवरी से सब्जियों के आउटलेट खुल जायेंगे. सब्जियों का प्रसंस्करण और उसकी बिक्री मुख्यमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट है. राज्य मंत्रिपरिषद ने भी इसकी मंजूरी दे दी है. पूरा सिस्टम कंफेड की तरह होगा. जिस तरह  सुधा दूध का कलेक्शन, उसका प्रसंस्करण और वितरण होता है उसी तर्ज पर सब्जियों का भी कलेक्शन, प्रसंस्करण और वितरण होगा. इन पांचों जिलों में सब्जी उत्पादकों की सहकारी समिति बनाने की प्रक्रिया शुरू हो गयी है.
तीन स्तरों पर होगा समिति का गठन 
 प्रखंड स्तर पर सब्जी उत्पादकों की प्राथमिक समिति होगी. इसके बाद जिला स्तर पर समिति बनेगी. राज्य स्तर पर फेडरेशन बनेगा. फेडरेशन बिक्री का काम करेगा. इसके लिए जगह-जगह आउटलेट खोले जायेंगे.  इन पांचों जिलों में 98 प्रखंड हैं. सभी प्रखंड में सब्जी उत्पादकों की सहकारी समिति बनेगी, सब्जी उत्पादकों के लिए आधारभूत संरचनाओं का निर्माण होगा. अधिक दिन तक सब्जी ताजी रहे इसके लिए कोल्ड चेन के तहत कोल्ड स्टोरेज का निर्माण होगा. 
 एक हाट का निर्माण होगा, जहां किसान अपने उत्पाद को बेच सकेंगे. यहां पर सब्जियों की शाॅर्टिंग और ग्रेडिंग की व्यवस्था होगी. इस व्यवस्था का एक लाभ यह भी होगा कि किसानों को उनके उत्पाद की सही कीमत मिलेगी. बिचौलियों के हाथ सब्जी बेचने से वो बच जायेंगे. अभी किसानों से बिचौलिये औने-पौने दाम में सब्जी खरीद लेते हैं. वहीं, आम लोगों को यह लाभ होगा कि उचित कीमत पर और ताजी सब्जियां मिल जायेंगी.
मंत्री ने कहा राज्य सरकार सब्जी उत्पादकों और आम लोगों को लाभ देने के लिए यह व्यवस्था कर रही है. पहले चरण में पांच जिलों में इसकी शुरुआत होगी. इसके बाद इसे पूरे राज्य में लागू किया जायेगा.

जदयू-भाजपा आमने-सामने, कहा- गठबंधन सिर्फ बिहार में

गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा और जदयू दोनों गठबंधन के इतर अलग-अलग दांव आजमा रहे हैं। दोनों आमने सामने हैं। इस बात को लेकर बिहार में भी राजनीति गरमाने लगी है। इसके लिए दोनों पार्टी के नेता एक दूसरे को जिम्‍मेवार ठहरा रहे हैं। एक नेता ने तो यहां तक कह दिया कि हमारा समझौता सिर्फ बिहार के लिए है।
बिहार के जदयू नेता और मंत्री महेश्वर हजारी ने गुजरात में भाजपा और जदयू के अलग-अलग चुनाव लड़ने के लिए बीजेपी को जिम्‍मेवार बताया है। उन्‍होंने कहा कि चुनाव के मद्देनजर बीजेपी ने जदयू से कोई बात नहीं की। बड़ी पार्टी होने के नाते पहले बात करने का बीजपी का कर्तव्य था।
जदयू के 1-2 विधायक गुजरात मे चुनाव जीतते रहे हैं। इसलिए हमारी पार्टी चुनाव लड़ रही है। जदयू भले ही एनडीए में शामिल है, लेकिन गुजरात चुनाव में सीटों के समझौते के लिए कोई बात नहीं की गई है। हमारा समझौता सिर्फ बिहार में है।
वहीं, गुजरात चुनाव को लेकर जदयू के बयान पर बीजेपी ने पलटवार किया है। बीजेपी नेता नवल किशोर यादव ने कहा कि नीतीश कुमार ने खुद कहा था जदयू क्षेत्रिय पार्टी है। जब जदयू क्षेत्रिय पार्टी तो उसका गुजरात मे क्या काम। जदयू  का बयान तर्क संगत नहीं है। जब जदयू सिर्फ बिहार में है तो इधर उधर ताक झांक क्यों कर रहा है।
बता दें कि गुजरात विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद जनता दल यूनाइटेड ने गुजरात विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। जदयू राज्य की कुछ सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। इस बाबत जदयू के प्रवक्ता केसी त्यागी ने कहा कि पार्टी राज्य की सिर्फ उन्हीं सीटों पर चुनाव लड़ेगी जिन सीटों पर वो सालों से लड़ती आ रही है। इसके साथ ही उन्होंने गुजरात में भाजपा के साथ गठबंधन के सवाल पर कहा कि हम राज्य में अपने परंपरागत सीट और परंपरागत मतदाताओं को बनाए रखना चाहते हैं।
गौरतलब है कि गुजरात की 182 विधानसभा सीटों पर दो चरणों में 9 और 14 दिसंबर को वोटिंग होनी है। जबकि 18 दिसंबर को मतगणना की जाएगी।

27 नवंबर से बिहार विधानसभा का शीतकालीन सत्र

पटना। बिहार विधानसभा के शीतकालीन सत्र की शुरुआत 27 नवंबर से होगी। सरकार ने 5 दिन तक चलने वाले इस सत्र को लेकर प्रस्ताव मंजूर कर लिया है। कैबिनेट ने भी औपचारिक तौर पर सत्र को लेकर अपनी मुहर लगा दी है।
शीतकालीन सत्र 27 नवंबर से शुरू होकर 1 दिसंबर तक चलेगा। शीतकालीन सत्र के दौरान सरकार की ओर से द्वितीय अनुपूरक बजट पेश किए जाएंगे। शीतकालीन सत्र के हंगामेदार होने की पूरी संभावना है। सृजन घोटाले को लेकर विपक्ष लगातार सरकार पर हमला बोल रही है। विपक्ष घोटाले को लेकर सरकार को सदन के अंदर और सदन के बाहर घेरने की तैयारी में है।
इसके साथ ही रोहतास में जहरीली शराब से हुई मौत के मुद्दे को भी विपक्ष सदन में उठाएगी। गौरतलब है कि इन मुद्दों को लेकर विपक्ष ने मानसून सत्र को भी सही से नहीं चलने दिया था। 

25 हजार रुपये दहेज के लिए विवाहिता की हत्या

मृतका का शव
नालंदा। महज 25 हजार रुपए नहीं देने पर ससुरालवालों ने विवाहिता की गला दबाकर हत्या करने के बाद शव को जमीन में दफना दिया। जिसे पुलिस ने करीब आठ दिनों बाद हिलसा थाना इलाके के जूनियर खंधा से जमीन के नीचे से सड़ी- गली अवस्था में बरामद किया है।
 महिला की पहचान थरथरी थाना इलाके के बस्ता गांव निवासी अलखदेव चौहान की पत्नी अशरफिया देवी के रूप में की गई है। मृतका के परिजनों ने बताया कि पांच वर्ष पूर्व शादी हुई थी। शादी के बाद से ही पति द्वारा बार- बार दहेज के लिए उसे प्रताड़ित और मारपीट किया जाता था।
वहीं, पिछले 10 दिन पूर्व ही वह ससुराल गई थी। पति और सास ने उससे 25 हजार रुपए की मांग की। जब उसके माता- पिता ने रुपए नहीं दिए तो 23 अक्टूबर को ससुरालवालों ने उसकी गला दबाकर हत्या करने के बाद साक्ष्य छिपाने के लिए शव को हिलसा थाना इलाके के जूनियर खंधा में ले जाकर जमीन में गाड़ दिया।
बता दें कि जब जानवर शव की पैर को खाने लगे, तब ग्रामीणों की नजर पड़ी। और  इसकी सूचना पुलिस को दी गई। मृतका के परिजनों ने कपड़े और चूड़ी से महिला कि पहचान की। इस संबंध में मृतका के पिता शिव कुमार चौहान ने पति, सास, ससुर सहित 6 लोगों के खिलाफ थरथरी थाना में दहेज हत्या का मामला दर्ज कराया है। पुलिस मामला दर्ज कर अनुसंधान में जुट गई है। वहीं, घटना के बाद से ससुरालवाले गांव छोड़ कर फरार हैं।

बिहार कैबिनेट की बैठक में लगी मुहर, भूदान की जमीनें बांटने की होगी जांच

बिहार कैबिनेट की बैठक में  कुल 30 एजेंडों पर मुहर लगायी गयी. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में  संपन्न कैबिनेट की बैठक में भूदान यज्ञ समिति के कामकाज की जांच के लिए एक उच्‍चस्‍तरीय आयोग के गठन के प्रस्ताव को भी मंजूरी दी गयी है. उच्चस्तरीय जांच आयोग भूदान यज्ञ अधिनियम, 1954 के तहत दान स्वरूप मिली जमीन के प्रबंधन एवं वितरण में बिहार भूदान यज्ञ समिति द्वारा की गयी अनियमितताओं की जांच करेगा.
अनियमितताओं की जांच के लिए 4 सदस्यीय आयोग गठित
राज्य सरकार भूदान में मिली जमीन को बांटने में हुई गड़बड़ी की जांच के लिए अवकाशप्राप्त भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी की अध्यक्षता में चार सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया गया है. इसमें दो सदस्य बिहार प्रशासनिक सेवा के संयुक्त सचिव या उससे ऊपर के अवकाश प्राप्त अधिकारी होंगे. अध्यक्ष व दो सदस्यों की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा की जायेगी. जांच आयोग के संयोजक बिहार प्रशासनिक सेवा के पदाधिकारी अथवा बिहार सचिवालय सेवा के अवर सचिव स्तर के कार्यरत पदाधिकारी होंगे जिनकी प्रतिनियुक्ति राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग द्वारा की जायेगी. इसका कार्यकाल दो वर्षों के लिए निर्धारित किया गया है. इसका मुख्यालय पटना में होगा.
आयोग की जिम्मेवारी
आयोग की जिम्मेवारी है कि वह बिहार भूदान यज्ञ समिति को आगे कार्यरत रखने का औचित्य तथा समिति भंग किये जाने की स्थिति में भूदान से प्राप्त भूमि के रख रखाव एवं रेगूलेशन के लिए वैकल्पिक व्यवस्था के संबंध में सुझाव दे. कैबिनेट के प्रधान सचिव ब्रजेश मेहरोत्रा ने कैबिनेट की बैठक के बाद प्रेस कांफ्रेंस में बताया कि जांच आयोग का विषय भूदान यज्ञ अधिनियम 1954 के तहत दान स्वरूप प्राप्त जमीन के प्रबंधन एवं वितरण में बिहार भूदान यज्ञ समिति द्वारा बरती गयी अनियमितताएं शामिल हैं.
जांच के विषय
आयोग के जांच के विषय में भूदान यज्ञ समिति को दान से प्राप्त भूमि, उसकी स्थिति, क्या जमीन वितरित हुआ अथवा नहीं और यदि वितरित नहीं हुआ है तो वर्तमान में उसकी स्थिति की जांच, दान पत्रों की संपुष्टि की स्थिति एवं संपुष्टि नहीं होने के कारणों की जांच करना.
- क्या भूदान भूमि का वितरण बिहार भूदान यज्ञ अधिनियम 1954 के प्रावधानों तथा इससे संबंधित नियमों के अनुसार हुआ है? 
- भूदान यज्ञ समिति द्वारा वितरित भूमि पर प्रमाण पत्र धारकों का दखल कब्जा की स्थिति क्या है?
- क्या भूमिहीन व्यक्तियों एवं अन्य को आवंटित भूमि का आवंटन बिहार भूदान यज्ञ समिति द्वारा बिना संबंधित राजस्व पदाधिकारी का पूर्वानुमोदन प्राप्त किये अपने स्तर से रद्द कर दिया गया तथा ऐसी भूमि के पुनर्वितरण में स्थापित प्रावधानों का अनुसरण किया गया है? 
- दान पत्रों के संपुष्टि कराये बिना भूदान यज्ञ समिति द्वारा सरकारी भूमि के वितरण तथा इससे उत्पन्न विवादों की स्थित क्या है? 
- आयोग जांच कार्य के लिए सरकारी विभागों विभागों के मुख्यालयों एवं क्षेत्रीय कार्यालयों अथवा अन्य किसी संस्था की सहायता ले सकती है.
मालूम हो कि भूधारियों द्वारा 1951 में जमीन दान का काम शुरू किया गया. इसके तहत राज्य भर में छह लाख 48 हजार 593.14 एकड़ जमीन दान में प्राप्त हुआ. कुल भूमि में से अब तक समिति द्वारा दो लाख 56 हजार 658.94 एकड़ भूमि वितरित की गयी. अभी 5749.73 एकड़ भूमि का वितरण शेष है. दान में प्राप्त 3866184.47 एकड़ भूमि वितरण के अयोग्य बतलायी गयी है

अब सर्कस से गायब हो जाएंगे हाथी

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की ओर से देश भर के सभी 23 सर्कसों में हाथियों के रखने की मान्यता रद्द कर दिए जाने के बाद अब इनके द्वारा दिखाए जाने वाले करतब बीते जमाने की बात हो गई है। केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण ने वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत नियमों का उल्लंघन और अत्यधिक क्रूरता करने के मद्देनजर सभी सर्कसों में हाथी रखने की मान्यता हाल रद्द कर दी है। प्राधिकरण की टीम ने पशु अधिकार समूहों, पशु चिकित्सकों की सहायता से अपने नवीनतम मूल्यांकन में हाथियों के खिलाफ क्रूरता और दुरुपयोग का पर्याप्त प्रमाण पाया है। भारतीय हाथी वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची एक के तहत सूचीबद्ध है। प्राधिकरण के सदस्य सचिव डी एन सिंह ने बताया कि हाथियों को रखने के लिए जो नियम-कायदे बनाए गए थे उस पर कोई भी सर्कस खरा नहीं उतरा। प्राधिकरण की ओर से सर्कस के मालिकों द्वारा हाथियों के रख-रखाव में की जारी मनमानी और लापरवाही के बारे में समय-समय पर सचेत किया गया। प्राधिकरण के अधिकारियों ने सर्कसों का निरीक्षण भी किया और मालिकों को इसमें सुधार को लेकर तमाम हिदायतें भी दीं लेकिन उनकी कार्य प्रणाली में कोई सुधार नहीं आया। सिंह ने बताया कि लंबी जांच के बाद हाथियों के रखने की मान्यता रद्द करने की प्रक्रिया शुरू की गई थी। सर्कस में हाथियों के साथ ठीक व्यवहार नहीं किया जा रहा था। उन्हें ठीक से नहीं रखा जा रहा था। निरीक्षण के दौरान सर्कस नियमों की अवहेलना करते पाए गए। इसलिए हाथी रखने की मान्यता रद्द कर दी गई।
इससे पहले सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने 1998 में सभी सर्कसों से अन्य जानवरों भालू, बंदर, शेर, तेंदुआ और बाघों को हटाने के लिए अधिसूचना जारी किया था। इस अधिसूचना के बाद प्राधिकरण ने 1999-2001 के दौरान अलग-अलग राज्यों के सर्कसों से 375 बाघों, 96 शेरों, 21 तेंदुओं, 37 भालूओं तथा 20 बंदरों को निकाला। इन जानवरों के लिए सात केंद्र की स्थापना की गई जिसमें इनके जीवन भर देखभाल करने की व्यवस्था की गई। ये केंद्र जयपुर, भोपाल, चेन्नई, विशाखापट्टनम, तिरुपति, बेंगलुरु और साउथ खैराबाड़ी बनाए गए। वर्तमान में इन राहत केंद्रों में 51 शेर और 12 बाघ बचे हैं।  सिंह ने कहा कि इन जानवरों को किसी चिड़ियाघर में नहीं रखने की सबसे बड़ी वजह ये संकरित (हाइब्रिड) थे तथा इनके प्राकृतिक स्वभाव भी काफी अलग थे। 

नरेंद्र मोदी और अमित शाह की भाजपा--हार रही है

सारे हिंदुस्तान की बिसात पलटने की शुरुआत अब गुजरात से नहीं तो और कहां से होगी गुजरात तो भारतीय जनता पार्टी के हाथ से गया।  पिछले 27 साल से वहां की 182 सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस 33 से 60 सीटों के बीच ही झूल रही है और ऐसे में 92 का राजतिलक-आंकड़ा हासिल करना उसके लिए कोई खाला का खेल नहीं है। मगर दिसंबर के तीसरे सोमवार यह होने जा रहा है। टेलीविजन के परदों और अख़बारों के पन्नो पर भाजपा गुजरात में भले ही दो तिहाई बहुमत पाती रहे, साबरमती की लहरें उलटी बह रही हैं। उनके भीतर के उफान का जायज़ा लेने से आज कतरा रहे लोग 9 और 14 दिसंबर के मतदान के बाद अपने को हकबकाया पाएंगे। गुजरात जितना धधक रहा है, उसका अंदाज ही किसी को नहीं है। वहां यह मुद्दा ही नहीं है कि कौन जीतेगा। वहां भाजपा--नरेंद्र भाई मोदी और अमित भाई शाह की भाजपा--हार रही है।

गुजरात में कांग्रेस के अच्छे दिन कोई तब थोड़े ही लदे थे, जब 3 अक्टूबर 2001 को नरेंद्र मोदी अपने गुरू केशूभाई पटेल को धक्का दे कर मुख्यमंत्री बने थे। कांग्रेस तो उससे एक दशक पहले आठवीं विधानसभा के लिए हुए चुनावों में ही 33 सीटों पर सिमट गई थी। तब जनता दल के 70 और भाजपा के 67 यानी कुल 137 विधायकों ने मिल कर चिमनभाई पटेल को मुख्यमंत्री बनाया था। 1990 के उस चुनाव से गांधी के गुजरात की सियासत में ऐसी अमावस की शुरुआत हुई कि पूरे दस साल टप्पेबाज़ी होती रही और आठवीं विधानसभा में ही कांग्रेस के छबीलदास मेहता ने मुख्यमंत्री बनने की जादूगरी दिखा दी।  उठापटक के इस दौर में हालत यह हो गई कि 1995 में नौवीं विधानसभा के लिए हुए चुनावों में भाजपा को अकेले 121 सीटें मिल गईं और कांग्रेस 45 पर थम गई। लेकिन भाजपा के ढोल में ऐसी पोल थी कि तीन साल के भीतर ही दोबारा चुनाव कराने पड़ गए और इस बीच भी चार चेहरे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर जा बैठे। केशूभाई पटेल, सुरेश मेहता, शंकरसिंह वाघेला और दिलीप पारीख की सोहबत ने प्रादेशिक मुखिया के सिंहासन को कहीं का नहीं छोड़ा।
1998 में दसवीं विधानसभा के लिए चुनाव हुए तो भाजपा की 117 सीटों के साथ केशूभाई पटेल मुख्यमंत्री बने। झरोखे में बैठ कर बेसब्री से इंतज़ार कर रहे नरेंद्र भाई ने ढाई बरस बीतते-बीतते केशूभाई को सियासी-कूचे से विदा कर दिया। तब से तब तक वे जमे रहे, जब तक कि प्रधानमंत्री की उम्मीदवारी उन्होंने भाजपा में जबरन छीन नहीं ली और फिर भारी बहुमत से चुन कर दिल्ली नहीं पहुंच गए। वे जानबूझ कर अपने पीछें आनंदीबेन पटेल का कमज़ोर चेहरा गांधीनगर में छोड़ कर आए थे। बाद में उनसे भी पांच पायदान नीचे के विजय रूपानी से आनंदीबेन की विदाई करा कर उन्होंने अपनी समझ से तो बहुत बड़ा दांव खेला था, लेकिन यही इस चुनाव में भाजपा की उलटबांसी बन गया है।
नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री बनने के बाद 2002 में गुजरात की ग्यारहवीं विधानसभा के लिए चुनाव हुए तो भाजपा की सीटें दस बढ़ गईं, लेकिन कांग्रेस की सीटें सिर्फ़ दो ही कम हुईं और 51 रह गईं। फिर मोदी की ही अगुआई में जब 2007 का चुनाव हुआ तो भाजपा की सीटें दस घट गईं और कांग्रेस की आठ बढ़ गईं। बारहवीं विधानसभा के लिए यह मतदान जब हुआ तो बहुत-से घाव हरे थे और समाज के दो तबके अपनी-अपनी खुशी और ग़म से बाहर नहीं आ पाए थे। बहुमत के ध्रुवीकरण के बावजूद भाजपा अपनी लुढ़कन नहीं थाम पाई।
2012 में, यानी इस बार हो रहे चुनावों के ऐन पहले तेरहवीं विधानसभा के लिए हुए चुनाव में मोदी-महिमा की वह चढ़ाई शुरू हो चुकी थी, जिसका चरम हमने 2014 में देखा। लेकिन राज्य के चुनावों में भाजपा की एक सीट कम हो गई और कांग्रेस की एक बढ़ गई। भाजपा के 116 विधायक चुन कर आए और कांग्रेस के 60। आज साम-दाम-दंड-भेद की कृपा से भाजपा के पास 120 सीटें हैं और कांग्रेस के पास 43।
कइयों को इस बात में कुछ ख़ास नहीं लगेगा कि मोदी के नेतृत्व में हुए गुजरात के पिछले तीन विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का वोट प्रतिशत तक़रीबन स्थिर रहा है और भाजपा का नीचे आया है। 2002 में कांग्रेस को 39.45 प्रतिशत वोट मिले थे, 2007 में 39.63 प्रतिशत और 2012 में 38.9 प्रतिशत। भाजपा को इन चुनावों में 49.8, 49.1 और 47.9 प्रतिशत वोट मिले। मोदी-लहर की ज़मीनी सच्चाई यह भी है कि उनके मुख्यमंत्री रहते स्थानीय निकायों के चुनाव में भाजपा हर बार हारी और अब प्रधानमंत्री बनने के बाद भी राजनीति के इस हलके में मतदाताओं ने एक बार भी उनका साथ नहीं दिया है।
साल भर पहले नरेंद्र भाई का नोटबंदी-करतब देखने के बाद से हतप्रभ लोग अब उन्हें हतप्रभ करने का मन बनाए बैठे हैं। जीएसटी से देश कराह रहा है तो गुजरात कौन-सा प्रसन्न-वदन है? सो, भाजपा और कांग्रेस के बीच दस प्रतिशत मतों का फ़र्क पिछले एक साल में इतना कम तो ज़रूर हो गया है कि इन सर्दियों में भाजपा के पसीने छुड़ा दे। रही-सही कसर सामुदायिक समीकरण पूरी कर देंगे।
अगर दृश्य ऐसा नहीं होता तो नरेंद्र भाई हर छटे दिन दौड़ कर गुजरात नहीं जा रहे होते। निर्वाचन आयोग गुजरात चुनाव की तारीख़ों का ऐलान करने के पहले इतने हीले-हवाले नहीं कर रहा होता। प्रधानमंत्री के पिटारे से गुजरात के लिए इतने लुभावने खरगोश नहीं निकल रहे होते। अमित भाई शाह का नाम ले-ले कर अलग-अलग समुदायों के नेताओं को ललचाने की कोशिशें नहीं हो रही होतीं। केंद्रीय और प्रादेशिक गुप्तचर विभागों का दुरुपयोग होटलों के सीसीटीवी फुटेज खंगाल कर टेलीविजन चैनलों तक पहुंचाने के लिए नहीं हो रहा होता। घबराहट से बौखलाहट उपतजी है और बौखलाहट में एक-के-बाद-एक ग़लती तो होती ही है।
नक्षत्रों की चाल पर निग़ाह रखने वाले पंडितों का गुणा-भाग मानता है कि दो दिन पहले वृश्चिक राशि से विदा ले कर धनु में प्रवेश कर गए शनि महाराज दिसंबर के दूसरे शनिवार से शुरू हो रहे गुजरात चुनाव में जन-मानस को उलटने का अपना कर्तव्य पूरा किए बिना नहीं मानेंगे। मैं मानता हूं कि शनिदेव जो करेंगे, सो, करेंगे; गुजरात इस बार अपना अगला-पिछला हिसाब ज़रूर बराबर करेगा। इसलिए कि उसने अपना बेटा गंगा को और केदारनाथ को इसलिए नहीं सौंपा था कि गुजरात के पांच करोड़ स्वाभिमानी नागरिकों को सब-कुछ होते-सोते हाथ फैलाने पर मजबूर होना पड़े। नरेंद्र भाई और अमित भाई को मालूम है या नहीं, मालूम नहीं, लेकिन मुझे मालूम है कि जिंदगी में ऐसे मौक़े भी आते हैं, जब न नज़रें मिलती हैं और न होंठ हिलते हैं और पूरी बात हो जाती है। 

शनिवार, 28 अक्टूबर 2017

वृद्धावस्था पेंशन खातों में न्यूनतम बैलेंस न रखने पर भी नहीं लगेगा कोई चार्ज

हाई कोर्ट ने भारतीय रिजर्व बैंक, भारतीय स्टेट बैंक और केंद्रीय संयुक्त वित्त सचिव व अन्य के पास नोटिस भेजकर जवाब मांगा है

 मद्रास हाई कोर्ट ने वृद्धावस्था पेंशन वाले खातों में न्यून
तम बैलेंस की शर्त पूरी न होने पर देय शुल्क लगाने से बैंकों को रोक दिया है। मुख्य न्यायाधीश इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति निशा भानु की पीठ इस संबंध में एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका एडवोकेट एस. लुईस ने दायर की थी। पीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए अंतरिम आदेश दिया है।
हाई कोर्ट ने भारतीय रिजर्व बैंक, भारतीय स्टेट बैंक और केंद्रीय संयुक्त वित्त सचिव व अन्य के पास नोटिस भेजकर जवाब मांगा है। मामले की अगली सुनवाई दो सप्ताह के बाद होगी। याचिकाकर्ता का कहना था कि ऐसे खातों पर जुर्माना लगाने से वृद्धावस्था पेंशन योजना का असली उद्देश्य प्रभावित होगा। इस योजना का लक्ष्य 65 वर्ष से ज्यादा की आयु वाले ऐसे लोगों की सहायता करना है, जिनके पास अन्य कोई वित्तीय सहयोग नहीं है या जो किसी शारीरिक व मानसिक समस्या से पीड़ित हैं। उन्होंने बताया कि भारतीय स्टेट बैंक की अलंगुलम शाखा ने 75 वर्षीय वृद्धा की 1,000 रुपये की पेंशन राशि में से जुर्माने के तौर पर 350 रुपये काट लिए थे। इस संबंध में याचिकाकर्ता ने शाखा प्रबंधक को पत्र लिखकर वृद्धावस्था पेंशन से जुड़े खातों में न्यूनतम बैलेंस न होने पर देय जुर्माना न काटने का अनुरोध किया लेकिन उस पर बैंक की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। उन्होंने कहा कि बहुत से वृद्ध इन खातों का इस्तेमाल केवल अपनी पेंशन पाने के लिए ही करते हैं, ऐसे में उन्हें न्यूनतम बैलेंस रखने के लिए बाध्य करना व्यावहारिक नहीं है।
एसबीआई ने न्यूनतम बैलेंस नहीं रखने वाले 388.74 लाख खातों से 235.06 करोड़ रुपये वसूलने की बात कही है। याचिकाकर्ता ने कहा कि वृद्धावस्था पेंशन से जुड़े खातों से इस तरह वसूली गई रकम वापस की जानी चाहिए।

'मन की बात' में मोदी ने किया सरदार पटेल और नेहरू-इंदिरा को याद

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 37वें 'मन की बात' कार्यक्रम में देश को संबोधित कर रहे हैं। उन्‍होंने कहा कि मन की बात की सराहना भी होती है और आलोचना भी होती है। लेकिन इसके प्रभाव से पता चलता है कि मन की बात लोगों से बंध चुकी है। इस दौरान उन्‍होंने जवाहरलाल नेहरू जी के जन्मदिन पर मनाए जाने वाले बालदिवस की बधाई दी। साथ ही श्रीमती इंदिरा गांधी जी, सरदार पटेल जी, कैप्टेन गुरुवचन सिंह सलारिया, भगिनी निवेदिता और वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बसु जैसी महान हस्तियों को याद किया।
प्रकृति की उपासना से जुड़ा छठ पर्व
पीएम मोदी ने कहा कि दीपावली के छह दिन बाद मनाया जाने वाला छठ पर्व हमारे देश में सबसे अधिक नियम और निष्ठा के साथ मनाए जाने वाले त्योहारों में से एक है। यह प्रकृति की उपासना से जुड़ा हुआ। आस्था के इस महापर्व में उगते और अस्त होते सूर्य की आराधना होती है। दुनिया उगते हुए लोगों की पूजा में लगी रहती है लेकिन यह पर्व डूबते की पूजा का भी संदेश देता है। इस मौके पर सब मिलकर सफाई करते हैं। यह रोग निवारण और अनुशासन का पर्व है। छठ पर्व में प्रसाद मांगकर खाने की भी परंपरा रही है। कहा गया है कि इससे अहंकार नष्ट होता है।
खादी और हैंडलूम में बिक्री में बढ़ोतरी
उन्‍होंने बताया कि खादी और हैंडलूम में बिक्री में बढ़ोतरी हुई है। दिल्ली के एक खादी के स्टोर में बहुत बढ़ोतरी हुई है। खादी की बिक्री में करीब 90 फीसदी की बढ़ोतरी देखने को मिली है। खादी ग्रामीण विकास का साधन बनकर उभर रहा है। यह खादी फोर नेशन और खादी फोर फैशन के बाद खादी फोर ट्रांसफॉर्मेशन बन रहा है। धनतेरस के दिन दिल्‍ली के खादी स्‍टोर में 1 करोड़ रूपये से ऊपर की बिक्री हुई। 
फिर सुरक्षाबलों के साथ मनाई दिवाली
प्रधानमंत्री ने बताया, 'मुझे दिवाली पर एक बार फिर सुरक्षाबलों के साथ त्योहार मनाने का मौका मिला। यह अविस्मरणीय रहा। जवानों के संघर्ष और समर्पण के लिए मैं उनका आदर करता हूं। हमारे सुरक्षाबल के जवान न सिर्फ सीमा पर बल्कि दुनियाभर में शांति के लिए काम कर रहे हैं।
महिला सुरक्षाबलों ने भी पूरी दुनिया में शांति स्थापित करने में मदद की
24 अक्टूबर को संयुक्त राष्ट्र दिवस मनाया गया। भारत शुरू से ही यूएन के साथ काम करता रहा है। भारत में नारी समानता में हमेशा जोर दिया है और यूएन डिक्लेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट भी इसका प्रमाण है। 18000 से अधिक सुरक्षाबलों ने दुनियाभर में शांति स्थापित करने में अपनी सेवाएं दी हैं। यह पूरे विश्व में तीसरी सबसे बड़ी संख्या है। महिला सुरक्षाबलों ने भी पूरी दुनिया में शांति स्थापित करने में मदद की है। आपको गर्व होगा कि भारत की भूमिका 85 देशों को प्रशिक्षण देने का भी काम में भी है।
भगिनी निवेदिता और वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बसु संवेदना के बड़े उदाहरण
कैप्टेन गुरुवचन सिंह सलारिया को कौन भूल सकता है। उन्होंने कॉन्गो में खुद को कुर्बान कर दिया। भारत शांति दूत के रूप में हमेशा से एकता का संदेश देता रहा है। हमारी पुण्यभूमि ऐसे महान लोगों से सुशोभित रही है जिन्होंने निस्वार्ण भाव से लोगों की सेवा की है। भगिनी निवेदिता भी उनमें से एक थी। उन्होंने नाम के अनुरूप खुद को सिद्ध करके दिखाया। कल उनकी 150वीं जयंती थी। वह स्वामी विवेकानंद से प्रभावित थीं। गिनी निवेदिता और वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बसु संवेदना के बड़े उदाहरण हैं। वह चाहतीं तो आरमदायक जीवन जी सकती थीं लेकिन लोगों की सेवा में उन्होंने जीवन समर्पित कर दिया।
खानपान और दिनचर्या पर ध्यान देने की जरूरत
समाज और परिवार को खानपान और दिनचर्या पर ध्यान देने की जरूरत है। परिवारीजन जागरूकता पूर्वक बच्चों को शिक्षा दें। उन्हें स्वस्थ्य रहने के तरीके सिखाएं।
एशिया कप जीतने की बधाई
दस साल बाद भारत ने एशिया कप जीता। मैं पूरी हॉकी टीम को बधाई देता हूं। मैं शटलर किदांबी श्रीकांत को भी डेनमार्क ओपन जीतने और देश को गौरवान्वित करने के लिए बधाई देता हूं।
नानक जी ने पैदल ही 28 हजार किलोमीटर की यात्रा की
किले और धरोहरों की साफ सफाई और देखभाल की जिम्मेदारी हम सबकी है। आने वाले 4 नवंबर को गुरुनानक जयंती है। हम उन्हें याद करते हैं। नानक जी ने पैदल ही 28 हजार किलोमीटर की यात्रा की और लोगों को बराबरी का संदेश दिया। 2019 में हम गुरुनानक देव जी का 550वां प्रकाश पर्व मनाएंगे।
सरदार पटेल जी ने भारत को एक सूत्र में पिरोया
31 अक्टूबर को श्रीमती इंदिरा गांधी जी इस दुनिया को छोड़कर चली गईं। सरदार पटेल जी ने भारत को एक सूत्र में पिरोने की बागडोर संभाली। पटेल जी ने एक उद्देश्य निश्चित कर लिया और उसपर वह बढ़ते ही गए। उन्होंने कहा था कि जाति और पंथ का कोई भेद हमें रोक नहीं सकेगा। हम सभी को अपने देश को प्रेम करना चाहिए। मैं देश वासियों को शुभकामनएं देता हूं कि उनके सभी सपने साकार हों। 31 अक्टूबर को सरदार पटेल की जयंती है और इस दिन 'रन फॉर यूनिटी' का आयोजन होगा।
पिछली बार मन की बात में पीएम मोदी ने स्‍वच्‍छता को लेकर चलाए जा रहे अभियान के बारे में जिक्र किया था। उन्होंने लोगों को अपील करते हुए जागरूक किया था और कहा कि वे आगे बढ़कर स्वच्छता अभियान में हिस्सा लें। बता दें कि पिछली बार मन की बात को तीन साल पूरे हुए थे।

एकाग्रता से होता है मनुष्य में सदविचारों का अवतरण- श्री सुधांशु जी महाराज

जयपुर । विश्व जागृति मिशन जयपुर मण्डल के तत्वावधान में विराट भक्ति सत्संग महोत्सव के तीसरे दिन मिशन प्रमुख आचार्य श्री सुधांशु जी महाराज ने राजस्थानवासियों से नयी पीढ़ी पर समुचित ध्यान देने की प्रेरणा दी और कहा कि राष्ट्र के कर्णधार बच्चे और युवा ही इस देश को ऊँचाई की ओर ले जाएँगे। किशोरों एवं युवाओं को दिशा बोध के कार्य को वर्तमान समय का सबसे बड़ा कार्य बताते हुये इन दोनों शक्तियों को विशेष सन्देश दिया। उन्होंने कहा कि इनमें अपार ऊर्जा भरी होती है, जिसे यदि सही और सकारात्मक दिशा दे दी जाए तो न केवल व्यक्ति वरन परिवार, समाज, प्रदेश एवं देश का कायाकल्प किया जा सकता है।
श्री सुधांशु जी महाराज ने अपने उदबोधन में कहा कि जीवन के किसी भी क्षेत्र में ऊँचाइयाँ छूने के लिए एकाग्रता बहुत ज़रूरी है, जिसे अभ्यास द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। एकाग्रता लाने के लिए को उन्होंने त्राटक का अभ्यास कराया और बताया कि रूप, गन्ध, ध्वनि, स्पर्श और स्वाद इन पाँचों माध्यमों से एकाग्रता के ताक़तवर विज्ञान से जुड़ा जा सकता है। आचार्यश्री ने कहा कि एकाग्रता के सदगुण को जीवन में आत्मसात करने पर व्यक्ति में सदविचारों का अवतरण होता है। चूँकि विचार ही कर्म के प्रेरक होते हैं, इसलिए इसके बल पर मनुष्य न केवल उच्चतम सफल व्यक्ति बन जाता है, बल्कि वह ऊँचाइयां पाते हुये व्यक्तित्व से भी काफ़ी गहरा बन जाता है।
आचार्य श्री सुधांशु जी महाराज ने जयपुर एवं राजस्थान के विभिन्न अंचलों  से आए अध्यात्म-जिज्ञासुओं को योग एवं ध्यान सिखाया। उन्होंने कहा कि यहाँ सीखी गयीं व्यक्तित्व विकास की तकनीकों का दैनन्दिन जीवन में नियमित अभ्यास करें तथा अन्य अनेकों लोगों तक इस ज्ञान सम्पदा का प्रसार व्यक्तिगत स्तर पर करें।
आचार्य सुधांशु जी महाराज ने विश्व जागृति मिशन के जयपुर मण्डल के आदर्श नगर स्थित सत्संग भवन की गतिविधियों से जुड़ने का आहवान जयपुरवासियों से किया। उन्होंने परिवार के सदस्यों के सभी संस्कार तथा जन्मदिन व विवाह दिन आदि यज्ञीय वातावरण में मनाने को कहा। बताया कि प्रत्येक रविवार को सत्संग भवन में आध्यात्मिक प्रवचन, यज्ञ, संस्कार, भजन आदि की गतिविधियाँ चलाई जाती है।
प्रदेश के गृहमन्त्री  गुलाब चंद कटारिया सदगुरू श्री सुधांशु जी महाराज का अभिनंदन करने सूरज मैदान पहुँचे। उन्होंने राजस्थान की मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे की ओर से भी राज्य का सम्मान उनके प्रति व्यक्त किया। उन्होंने वीरभूमि राजस्थान को निष्कलुष सरकार देने और सर्वहितकारी जनसेवा करने का आशीष हिमालय की ऋषिसत्ताओं से माँगा। जयपुर के सांसद  राम चरण वोहरा ने भी भारतीय संसद और केन्द्र सरकार के लिए आशीर्वाद की याचना ज्ञानयज्ञ भगवान से की। विश्व जागृति मिशन की अन्तरराष्ट्रीय समिति के प्रधान एवं दुबई में भारत (जयपुर-राजस्थान) के प्रख्यात उद्योगपति  नरेन्द्र ओडरानी, मिशन के महामन्त्री  देवराज कटारिया, कोषाध्यक्ष  राज कुमार अरोड़ा एवं मुख्य संयोजक  मनोज शास्त्री ने गृहमन्त्री एवं जयपुर सांसद का स्वागत ज्ञानयज्ञ सभागार में किया।
इस अवसर पर श्री सुधांशु जी महाराज ने सुखी, समृद्ध एवं समुन्नत राजस्थान की कामना की और प्रदेशवासियों से कहा कि यह समृद्धि शिक्षा, संस्कार, आत्मविश्वास, आत्मविश्लेषण, मनस्विता एवं आत्म-नियंत्रण के ज़रिए प्राप्त की जा सकती है। उन्होंने इस सन्दर्भ में देश-विदेश के चुने हुए सफल व्यक्तियों, समाजों एवं राजनीतिज्ञों के उदाहरण दिए और भारतीय अध्यात्म विज्ञान का सहारा लेकर ऊँचे उठने की विविध-विधि प्रेरणाएँ सबको दीं। उन्होंने इन्द्रिय संयम, विचार संयम, वाणी संयम एवं अर्थ संयम के सूत्र समझाए और ऊँचा उठने और आगे बढ़ने का आह्वान देशवासियों से किया। आज गोपाष्टमी के दिवस  महाराजश्री ने गाय पर केवल दया ही न करके उनके लिए ‘चारा’ की व्यवस्था करके ‘बेचारा’ बनने से बचने की सलाह उपस्थित जनसमुदाय को दी।
विराट भक्ति सत्संग महोत्सव का सभा संचालन विश्व जागृति मिशन के निदेशक एवं प्रवक्ता राम महेश मिश्र ने किया। इस ज्ञान यज्ञ समारोह के मुख्य संयोजक एवं जयपुर मण्डल के प्रबन्धक मनोज शास्त्री ने बताया कि विराट भक्ति सत्संग महोत्सव का समापन उपरान्त जयपुर ज्ञान यज्ञ समारोह का समापन हो जाएगा।

जयपुर नगर निगम में घुसने से पहले और शाम निकलने से पहले राष्ट्रगान गाया जाऐगा

जयपुर। राजधानी का नगर निगम बनेगा देश का पहला सरकारी ऑफिस जहां कर्मचारियों द्वारा ऑफिस में घुसने से पहले और शाम निकलने से पहले राष्ट्रगान गाया जाऐगा। 31 अक्टूबर से नगर निगम मुख्यालय में इसकी शुरूआत हो जायेगी।
राजस्थान में इन दिनों कुछ न कुछ ऐसे आदेश निकल रहें है जिनसे ना चाहते हुए भी विवाद उत्पन्न हो रहा हैं। अभी दो दिन पहले ही आरएसएस के प्रताप गौरव संस्थान में सभी कॉलेज छात्रों के जाने के निर्देश जारी हुए थे। इन सब के ​बीच में हिंदू नेता की छवि बना रहे जयपुर के महापौर अशोक लाहोटी भी पीछे कैसे रहते अब वो भी नगर निगम में एक ऐसी परम्परा स्थापित करने जा रहे है।
दरअसल महापौर लाहोटी ने तय किया है कि नगर निगम में काम करने वाले तमाम अधिकारी कर्मचारी ऑफिस में अन्दर आने से पहले राष्ट्रगान गायेंगे इसके बाद जब शाम को ऑफिस से निकलेंगे उस समय राष्ट्रगीत वंदे मातरम गायेंगे। हालांकी इसके लिए अभी तक ऑर्डर जारी नहीं हुए है। इसके लिए नोटशीट बन गयी है। लाहोटी की मंशा है कि जयपुर नगर निगम के मुख्यालय में पहले ये व्यवस्था शुरू हो जाये इसके बाद जयपुर ​नगर निगम के जोन ऑफिसों में ये परम्परा शुरू होगी।
देश में ये पहला मामला होगा जब किसी सरकारी कार्यालय में इस तरह के नियम बनेंगे। इसके लिए तैयारियां शुरू कर दी गयी है। इस काम के लिए नगर निगम में स्पीकर लगाये जाने का काम शुरू होने वाला है सम्भवत इसके आदेश भी सोमवार तक जारी हो जायेंगे और 31 अक्टूबर से नगर निगम मुख्यालय में इसकी शुरूआत हो जायेगी।

थूक कर चाटने की सजा देने का मुख्य आरोपी गिरफ्तार


बिहार के नालंदा के नूरसराय थाना क्षेत्र में एक व्यक्ति को भरी पंचायत में महिलाओं द्वारा चप्पल से पिटाई कराने और जमीन पर थूककर चटवाने की सजा के मामले में पुलिस ने बुधवार को मुख्य आरोपी धर्मेन्द्र यादव सहित तीन अन्य आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। इस मामले में अब तक छह लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। 

नूरसराय के थाना प्रभारी राजन मालवीय ने बताया कि अजयपुर गांव निवासी 55 वर्षीय अजय मांझी को भरी पंचायत में महिलाओं द्वारा चप्पल से पिटवाया गया। साथ ही जमीन पर थूक को चाटने पर बाध्य किया गया था। मामले में पुलिस ने तीन आरोपियों धर्मेन्द्र यादव, रामरूप यादव और संजय यादव को गिरफ्तार किया है। उन्होंने बताया कि मुखिया सहित दो अन्य आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए छापेमारी की जा रही है।
इस मामले में पहले अरुण कुमार, रामवृक्ष प्रसाद और नरेंद्र प्रसाद को गिरफ्तार किया गया था। अजयपुर गांव निवासी अजय मांझी 19 अक्टूबर को गांव के ही दबंग धर्मेन्द्र यादव के घर में बिना दरवाजा खटखटाए प्रवेश कर गए थे जिसकी वजह से उसका परिवार नाराज हो गया। पीड़ित का आरोप है कि मुखिया दयानंद मांझी ने धर्मेन्द्र के कहने पर गांव में पंचायत बुलाई और भरी पंचायत में महिलाओं द्वारा चप्पल से पिटवाया और जमीन पर थूक कर उसे चटवाया गया।
पीड़ित का कहना है कि इसके बाद इसका वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया गया। पीड़ित मांझी ने इस मामले में नूरसराय थाना में एक प्राथमिकी दर्ज कराई, जिसमें मुखिया दयानंद मांझी, धर्मेन्द्र यादव सहित आठ लोगों को नामजद आरोपी बनाया गया।

बिहार के अनाथालय को शेरीन की मौत के पीछे साजिश का संदेह

बिहार के नालंदा जिले के जिस अनाथालय से पिछले साल शेरीन मैथ्यूज को गोद लिया गया था शुक्रवार उसने तीन वर्षीय बच्ची की हाल में हुई मौत के पीछे साजिश की आशंका जतायी है. मदर टेरेसा ऑर्फनेज एंड चिल्ड्रेन्स होम की सचिव बबीता कुमारी ने दावा किया कि वेस्ले मैथ्यूज के बयानों में कथित तौर पर विरोधाभास हैं. मैथ्यूज ने ही शेरीन को गोद लिया था. बबीता ने कहा कि  उन्हें शक है कि बच्ची की हत्या की गयी. उन्होंने कहा, मैं सरस्वती, जिसे बाद में शेरीन का नाम दिया गया, के पालक माता-पिता से बात करना चाहती हूं, क्योंकि मुझे शक है कि खुद का बच्चा होने के बाद हो सकता है कि बच्ची उनके लिये गौण हो गयी हो.
शेरीन सात अक्तूबर को लापता हो गयी थी और रिचर्डसन के टेक्सन शहर की पुलिस ने करीब एक पखवाड़े तक तलाश के बाद इस हफ्ते की शुरुआत में उसकी मौत की पुष्टि की थी. शेरिन की मौत के सिलसिले में उसके पालक पिता को पुलिस ने गिरफ्तार किया है.

भारत में 29 लाख बच्चों को खसरे का टीका नहीं लग पाता है

भारत में लगभग 29 लाख बच्चों को खसरे का टीका नहीं लग पाता है। पूरी दुनिया में इस बीमारी से हर साल लगभग 90,000 बच्चों की जान चली जाती है।यह बात अग्रणी स्वास्थ्य संगठनों की एक नयी रिपोर्ट में कही गई है। रिपोर्ट में कल कहा गया कि विश्‍व अभी भी खसरे को मिटाने के क्षेत्रीय लक्ष्यों पर पहुंचने से दूर है क्योंकि दो करोड आठ लाख बच्चे अब भी खसरे के टीके की पहली खुराक से दूर हैं। इनमें से आधे से ज्यादा बच्चे छह देशों-नाइजीरिया (33 लाख), भारत (29 लाख), पाकिस्तान (20 लाख), इंडोनेशिया (12 लाख), इथियोपिया (9 लाख) और कांगो गणराज्य (7 लाख) में हैं।
वर्ष 2016 में खसरे से करीब 90 हजार बच्चों की मौत हो गई। यह आंकडा वर्ष 2000 के मुकाबले 84 प्रतिशत कम है। उस साल खसरे से 5,50,000 बच्चों की मौत हुई थी।यह रिपोर्ट विश्‍व स्वास्थ्य संगठन, यूनिसेफ, सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन तथा गावी-द वैक्सीन एलायंस ने तैयार की है।

पत्रकारों से बोले PM मोदी देश में लोकतंत्र की मजबूती के लिए आलोचक की जरूरत है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज कहा कि देश में लोकतंत्र की मजबूती के लिए राजनीतिक दलों में भी लोकतांत्रिक मूल्यों को और मजबूत करने की जरूरत है। मोदी ने यहां भारतीय जनता पार्टी मुख्यालय में पत्रकारों के साथ दिवाली मिलन कार्यक्रम में कहा कि मैं समझता हूं कि देश के भविष्य और लोकतंत्र के लिए यह काफी महत्तवपूर्ण है। उन्होंने उम्मीद जताई कि राजनीतिक दलों में लोकतंत्र की मजबूती के मुद्दे पर एक दिन मीडिया तथा अन्य मंचों पर व्यापक बहस होगी।
पीएम ने कहा कि पहले पत्रकारों को खोजना पड़ता था। पहले इस बिरादरी में संख्या कम होती थी लेकिन अब मीडिया का दायरा बढ़ गया है। आज पुराने दिनों की यादें ताजा हो गई हैं। उन्होंने कहा कि मीडिया कितना बड़ा रोल प्ले कर सकता है यह मैंने पिछले दिनों देखा। सरकार में बैठे लोगों की आलोचना से आधा अखबार भरा होगा लेकिन स्वच्छता की बात पर सब एकजुट हो जाएंगे। मीडिया के सभी माध्यमों ने इसमें सकारात्मक रोल प्ले किया है। मुझे विश्वास है कि जिस मिशन के साथ लोग इसमें जुटे हैं लगता है कि यह काम तय समय से पहले पूरा हो जाए।
भाजपा के दिवाली मंगल मिलन समारोह में प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बड़े चेहरों के अलावा भाजपा कवर करने वाले पत्रकारों को आमंत्रित किया गया। इस समारोह में पीएम मोदी पत्रकारों से साथ देश की अर्थव्यवस्था और चुनाव के हालातों पर चर्चा की। प्रधानमंत्री कार्यक्रम के शुरू में दिवाली मिलन की शुभकामनाओं को लेकर एक छोटा सा वक्तव्य देते हैं। इसके बाद वह प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकारों से मुलाकात करते हैं और हाल-चाल पूछते हैं।

शुक्रवार, 27 अक्टूबर 2017

कमाई के लिहाज से क्षेत्रीय दलों अव्वल,

देश में इस वक्त कई ऐसी क्षेत्रीय पार्टियां हैं जिन्होंने 2015-16 में न सिर्फ खूब पैसे कमाए बल्कि उनमें से कुछ ने तो अपनी पूरी आमदनी खर्च भी नहीं की। एक विश्लेषण और रिपोर्ट के अनुसार 2015-16 में 32 क्षेत्रीय पार्टियों को कुल 221.48 करोड़ रुपए की आमदनी विभिन्न स्त्रोतों से हुई। कुल आमदनी में से 110 करोड़ रुपए खर्च भी नहीं किए जा सके जो कि लगभग 49 फीसदी से भी अधिक है। सभी क्षेत्रीय पार्टियों में 77.63 करोड़ की आय के साथ कमाई के लिहाज से डीएमके अव्वल है।
आंकड़े और विश्लेषण असोसिएशन ऑफ डेमोक्रैटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की तरफ से 2015-16 के लिए आंकड़े जारी किए गए। डीएमके को इस दौरान सबसे अधिक 77.63 करोड़ रुपए की आमदनी हुई जो सभी क्षेत्रीय पार्टियों में सबसे अधिक है। इसके बाद दूसरा नंबर एआईएडीएमके का है जिसकी कुल आय 54.93 करोड़ रही और तीसरे नंबर पर टीडीपी है जिसे कुल 15.97 करोड़ रुपए की आमदनी हुई।
एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार, 2015-16 में जिन 3 क्षेत्रीय पार्टियों ने सबसे अधिक खर्च किया है वो जेडीयू, टीडीपी और आम आदमी पार्टी हैं। जेडीयू ने 23.46 करोड़, टीडीपी ने 13.10 करोड़ और आप ने 11.09 करोड़ रुपए खर्च किए। 32 में से 14 ऐसी भी पार्टियां हैं जिन्होंने अपनी कुल आय से भी अधिक खर्च किया है। झारखंड विकास मोर्चा-प्रजातांत्रिक, जेडीयू और आरएलडी तीन ऐसी पार्टियां हैं जिन्होंने अपनी आय से 200 फीसदी तक अधिक खर्च किया है।
दक्षिण की 3 ऐसी पार्टियां भी हैं जिन्होंने अपनी कुल आय से कम खर्च किया है। तमिलनाडु की दोनों प्रमुख पार्टियां डीएमके और एआईडीएमके और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम की कुल आय में 80 फीसदी से अधिक खर्च नहीं किया गया। एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार, '2015-16 में डीएमके की आमदनी 32 सभी क्षेत्रीय पार्टियों की कुल इनकम में से 35.05 फीसदी थी।' 

गर्भपात के लिए पत्नी को पति की रजामंदी की जरूरत नहीं- सुप्रीम कोर्ट

गर्भपात को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने
एक बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के मुताबिक अब किसी भी महिला को अबॉर्शन यानी गर्भपात कराने के लिए अपने पति की सहमति लेना जरूरी नहीं है। एक याचिका की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने ये फैसला लिया है। कोर्ट ने कहा कि किसी भी बालिग महिला को बच्चे को जन्म देने या गर्भपात कराने का अधिकार है। गर्भपात कराने के लिए महिला को पति से सहमति लेना जरूरी नहीं है। बता दें कि पत्नी से अगल हो चुके एक पति ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दी थी।  पति ने अपनी याचिका में पूर्व पत्नी के साथ उसके माता-पिता, भाई और दो डॉक्टरों पर 'अवैध' गर्भपात का आरोप लगाया था। पति ने बिना उसकी सहमति के गर्भपात कराए जाने पर आपत्ति दर्ज की थी।
इससे पहले पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने भी याचिकाकर्ता की याचिका ठुकराते हुए कहा था कि गर्भपात का फैसला पूरी तरह से महिला का हो सकता है। अब गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस ए.एम खानविलकर की बेंच ने ये फैसला सुनाया है। फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गर्भपात का फैसला लेने वाली महिला वयस्क है, वो एक मां है ऐसे में अगर वह बच्चे तो जन्म नहीं देना चाहती है तो उसे गर्भपात कराने का पूरा अधिकार है। ये कानून के दायरे में आता है।
जानें क्या है पूरा मामला:
जिस व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी उसकी शादी सन् 1995 में हुई थी। लेकिन उसके और उसकी पत्नी के रिश्ते में खटास आने लगी जिसके बाद पत्नी अपने बेटे के साथ चंडीगढ़ में अपने मायके चली गई। सन् 1999 से महिला अपने मायके में रह रही थी। नवंबर 2002 से दोनों ने फिर साथ रहने का फैसला लिया। लेकिन फिर बात नहीं बनी और 2003 में दोनों की बीच तनाव हुआ और तलाक हो गया।
2003 में जब दोनों ने तलाक लिया उस समय महिला प्रेगनेंट थी। लेकिन महिला इस बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती थी और गर्भपात करवाना चाहती थी। लेकिन पति ने इस बात का विरोध किया और उसके परिवारवालों से इस बारे में बात की।   बाद में महिला ने अपने परिवार से संपर्क किया, जिसके बाद माता-पिता महिला को लेकर चंडीगढ़ के अस्पताल ले गए यहां पति ने अस्पताल के दस्तावेज जिसमें गर्भपात की इजाजत मांगी गई थी पर भी हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया।
इस पूरे मामले के बाद पति ने कोर्ट में महिला के माता-पिता, उसके भाई और डॉक्टर्स पर 30 लाख रुपए के मुआवजे का केस कर दिया। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज करते हुए कहा कि विवाद के बाद दोनों के बीच शारीरिक संबंध की इजाजत है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि महिला गर्भ धारण करने के लिए भी राजी हुई है, यह पूरी तरह से महिला पर निर्भर है कि वह बच्चे को जन्म देना चाहती है या नहीं। पति उसे बच्चे को पैदा करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता। 

नरेंद्र मोदी सत्यवादी है और बाकि झूठे !

मसला इसलिए विचारणीय है क्योंकि नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री है! भारत का प्रधानमंत्री किसी से फोन पर निजी बात करें और फिर उसे मीडिया में प्लांट कर यह दर्शाने के लिए चलवाया जाए कि वे सत्यवादी है और बाकि झूठे तो उसे क्या प्रधानमंत्री स्तर की शोभादायी मार्केटिंग माना जाए? वैसे चुनाव को जंग मानते हुए उसमें प्रपंच, छल, कपट सबकुछ जायज माना जा सकता है। मगर प्रधानमंत्री का पद सवा सौ करोड लोगों की गरिमा भी लिए हुए होता हैं! कल्पना में क्या कभी सोचा कि अटलबिहारी वाजपेयी या राजीव, इंदिरा, देवगौडा में किसी ने चुनाव जीतने के लिए प्रधानमंत्री की कुर्सी पर रहते यह किया हो कि किसी से हुई अपनी निजी बात खुद टेप करें। उसे फिर मीडिया में भी चलवाएं ताकि बातचीत को सुन लोग फिदा हो! मार्केटिंग का यह नया नुस्खा अकल्पनीय है। तभी इसे सुन और टिवटर पर यह रिएक्शन समझा जा सकता है कि उफ! प्रधानमंत्री मार्केटिंग के लिए क्या कुछ नहीं कर दे रहे है। रेखांकित शब्द ‘प्रधानमंत्री’ है। चुनाव के लिए प्रधानमंत्री और प्रधानमंत्री दफ्तर के स्तर पर ऐसा प्रायोजन हो, यह आजाद भारत के सत्तर साल की न केवल अनहोनी बात है बल्कि अकल्पनीय भी!

इस अकल्पनीय अनुभव को मीडिया सूमह इंडिया टुडे ने प्रचारित किया। जाहिर है उसे यह टेप प्रधानमंत्री दफ्तर ने ही मुहैया कराया होगा। बाततीच जितनी साफ सुनाई दी है उससे जाहिर है नरेंद्र मोदी ने अपनी बातचीत को खुद रिकार्ड कराया होगा। वडौदरा के उस मामूली कारोबारी के बस में नहीं हो सकता जो इतनी अच्छी रिकार्डिंग कर वह फिर मीडिया में लीक करें। यह भी संभव नहीं है कि इंडिया टुडे को पहले पता पड़े कि नरेंद्र मोदी फंला से निजी बात करने वाले है और वह उस व्यक्ति के यहां उसके फोन के साथ अपनी मशीन लगा उसे रिकार्ड करें। सो जो कुछ है वह प्रधानमंत्री मोदी के अपने स्तर पर है।

इंडिया टुडे ने खबर के साथ दावा किया है कि प्रधानमंत्री मोदी की भाजपा कार्यकर्ता के साथ यह प्रायवेट बातचीत है। यदि निजी की जगह चुनावी मकसद या सार्वजनिक रूप वाली यह होती तो मामला अलग बनता। मगर निजी बातचीत से चुनावी मार्केटिंग का यह नया तरीका क्या अजूबा नहीं बनता?

बहरहाल इस बातचीत से नरेंद्र मोदी और भाजपा की गुजरात चिंता साफ झलकी है। उनकी तकलीफ या मर्म आज जनता का मीडिया है। मतलब व्हाट्सअप जैसा सोशल मीडिया!  उस नाते मुख्य मीडिया याकि अखबार, टीवी चैनल बनाम सोशल मीडिया का अंतर आज कैसा है इसका पता भी इस मामले से झलकता है। भारत के मुख्य मीडिया का प्रतिनिधी संगठन इंडिया टुडे है जिसने उनकी निजी प्रायोजित बात को बेशर्मी के साथ प्रचारित किया और उसमें झलकी हुई चिंता व्हाटसअप की है जिस पर फिलहाल सरकार का नियंत्रण नहीं है और जिसके जरिए गुजरात की जनता मोदी सरकार, भाजपा के खिलाफ दबाकर लोग बोल रहे है। इससे कितनी भारी चिंता पैदा हुई है उसका प्रमाण है यह कथित निजी बातचीत।

खबर अनुसार प्रधानमंत्री मोदी ने अपने मोबाइल से 19 अक्टूबर को वडोदरा के गोपालभाई गोहिल को फोन किया। उसे दिपावली की मुबारक देते हुए उससे उन्होने कोई दस मिनट बात की।

जाहिर है मीडिया समूह को प्रधानमंत्री या उनके पीएमओ याकि सरकार से बातचीत की फोन क्लीपिंग मिली होगी। आखिर न मीडिया समूह की या किसी प्राइवेट जासूस एजेंसी की औकात है जो वह प्रधानमंत्री द्वारा की गई बात का फोन टेप कर सके। इससे अपने आप साबित होता है कि नरेंद्र मोदी ने सोच विचार कर भाजपा कार्यकर्ता से बात की। उन्होने सोचा हुआ था कि इस बातचीत को बाद में सार्वजनिक करना है ताकि गुजरात के लोगों को अलग नए अंदाज में मोहित किया जा सकें कि वे कितने भले, सत्यवादी इंसान है।

सोचें, प्रधानमंत्री की दस मिनट की बात गुजरात के एक भाजपा कार्यकर्ता गोहिल से हुई! जिन नरेंद्र मोदी के लिए आडवाणी, डा जोशी या भाजपा के मार्गदर्शक मंडल से बात करने का, उनके साथ विचार करने का साढ़े तीन वर्षों में समय नहीं निकला उन्होने वडोदरा के कार्यकर्ता से बात करने का दस मिनट का समय निकाला तो मकसद अपने आप झलकता है। सामने वाले के लिए फोन कॉल प्रायोजित था या आक्समिक इसका जवाब बात शुरू होते ही कार्यकर्ता के नरेंद्र मोदी से पूछे इस सवाल से झलकता है – कांग्रेस बहुत कुप्रचार कर रही है कैसे उससे अपने कार्यकर्ताओं को प्रभावित होने से रोंके?

जवाब में प्रधानमंत्री मोदी ने मन को छू लेने वाला यह जवाब दिया- अरे भाई, जबसे जनसंघ पैदा हुई है तब से हम लोग गालियां सुनने की नियति लिए हुए है। गालियों और झूठ के हमले झेलते रहे है। इसलिए मेरी सलाह है कि नेगेटिविटी की चिंता न करों। क्या कोई एक भी चुनाव हुआ जिसमें इन्होने झूठ और गाली नहीं दी। मौत का सौदागर तक कहां। याद है?
हां,हां, सर

इससे ज्यादा क्या कोई और खराब गाली हो सकती कि हत्यारा, खून से सने हाथ! मगर लोग समझदार है सच जानते है।
हा,सर

पहले ये अफवाहे मुंह जुबानी फैलाते थे। अब उसकी जगह एप्लीकेशनस जैसे व्हाट्सअप ने ले ली है। फैलाने दो इनको झूठ। लोग समझदार है। इसलिए चिंता मत करों अफवाहों की, नेगेटिव कैंपेनिंग की।
हा, सर

झूठ, गप, अफवाहों का अपने दिमाग पर असर मत होने दों। इनकी बजाय अपना फोकस सही बात, अपने विजन को फैलाने पर बनाए रखों।

हा, सर

इन छोटी-छोटी बातों की अनदेखी करना पहली जरूरत है। इनको फोलो मत करों। होता यह है कि इन झूठे मैसेजेज को लोग बिना सोचे-विचारे आगे कर देते है। हमें चिंता नहीं करनी है इसलिए कि हम अच्छे काम कर रहे है और सत्य मार्ग पर चले हुए है।
हा, सर

मैं फिर कह रहा हूं। अपना फोकस बनाओं सही बात फैलाने पर, नेगेटिव की चिंता नहीं करते हुए। हमने जनता की भलाई के लिए खून-पसीना बहाया है। इतने सालों से भाजपा राज में है लेकिन कोई आरोप नहीं लगा हमारे खिलाफ।
बिल्कुल सही सर

झूठ की चिंता नहीं करें। हम पारदर्शिता से काम करते है। सही रहे है। इसलिए सत्य का प्रचार करों। सत्य का प्रचार करना ही जरूरी है।
बिल्कुल सर

बहुत अच्छा लगा बात करके। अगली बार आऊंगा तो मैं निश्चित ही तुम्हारी तरफ हाथ हिलाऊंगा। सबको मेरा नमस्कार कहें!

अब विचारे निजी बातचीत के इन वाक्यों का लबोलुआब क्या निकलता है? सीधा सादा यह कि व्हाट्सअप मतलब लोगों की झूठ फैलाने की मशीन का खतरा गंभीर है!

ध्यान रहे प्रधानमंत्री ने पूरी बात गुजराती में की। सो इंडिया टुडे ने निजी फोन की क्लीप जारी की नहीं कि उसे भाजपा ने गुजरात में दबा कर फैलाया होगा। क्या उससे विकास गांडो थायों छे या कि विकास पागल हो गया के हल्ले की वहा नेगिटीवी बह गई होगी? अपना मानना है कि नरेंद्र मोदी, अमित शाह गुजरातियों की नब्ज के क्योंकि पारखी डाक्टर है इसलिए जन-जन के सोशल मीडिया  मूड को उन्होने जान लिया है। तभी उसकी काट में उन्होने मार्केटिंग का यह नया तरीका अपनाया। पर क्या यह प्रायोजन अपने आप में जनता के बीच में मजाक बनवाने वाला, घबराहट झलकाने वाला नहीं हुआ है? सोशल मीडिया पर कमेंट तो ऐसे ही दिखे है।