शनिवार, 1 फ़रवरी 2020

संसद में विपक्ष रहेगा बिखरा

संसद के बजट सत्र में इस बार भाजपा के संसदीय प्रबंधकों को ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं पड़ने वाली है। विपक्षी पार्टियों ने अपने इरादे पहले ही साफ कर दिए हैं। ज्यादातर बड़ी विपक्षी पार्टियां अकेले अपनी राजनीति करने वाली हैं। सो, यह तय दिख रहा है कि विपक्ष में एकता नहीं बनेगी। जिस तरह से पिछले सत्र में नागरिकता कानून पास करने के मौके पर विपक्ष बंटा रहा, वैसे ही इस सत्र में भी विपक्ष अलग अलग ही रहेगा। असल में सपा, बसपा से लेकर आप जैसी कई पार्टियां हैं, जो नागरिकता कानून का विरोध तो कर रही हैं पर उसके विरोध में खुल कर और खास कर कांग्रेस के साथ नहीं दिखना चाहती हैं।

सत्र के पहले ही दिन विपक्षी पार्टियों का बिखराव दिख गया। बजट सत्र के पहले दिन शुक्रवार को विपक्षी पार्टियों ने नागरिकता कानून, जनसंख्या रजिस्टर और नागरिकता रजिस्टर के विरोध में संसद भवन परिसर में प्रदर्शन किया। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी इस प्रदर्शन में शामिल हुईं। पर तृणमूल कांग्रेस के सांसद इससे दूर रहे। बाद में उन्होंने कहा कि इस प्रदर्शन में शामिल होने के लिए उनको बुलाया नहीं गया था। पर असल में यह एक बहाना था। बताया जा रहा है कि ममता बनर्जी ने अपने सांसदों को सख्त निर्देश दिया है कि वे कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों के नेताओं के साथ नहीं दिखें। बताया जा रहा है कि यहीं स्थिति संसद की कार्यवाही में भी दिखाई देगी। 

समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के नेता कुछ दिन पहले सोनिया गांधी की ओर से बुलाई विपक्षी पार्टियों की बैठक में भी शामिल नहीं हुए थे। उस बैठक में जिन 13 पार्टियों के नेता शामिल हुए थे वहीं नेता शुक्रवार के प्रदर्शन में भी शामिल हुए। कुल मिला कर कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए के अलावा सिर्फ कम्युनिस्ट पार्टियों का साथ कांग्रेस को मिला हुआ है। गैर यूपीए और गैर एनडीए विपक्षी पार्टियां इससे दूर हैं।

यहां तक कि लोकसभा चुनाव से पहले तक विपक्ष की एकजुटता के लिए भागदौड़ कर रहे चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी भी इससे दूर है। तेलंगाना में सत्तारूढ़ टीआरएस और आंध्र प्रदेश की वाईएसआर कांग्रेस भी विपक्षी एकजुटता में शामिल नहीं है। सवाल है कि जब तृणमूल कांग्रेस, सपा, बसपा, वाईएसआर कांग्रेस, टीआरएस, टीडीपी जैसी पार्टियां विपक्ष के साथ एकजुट नहीं होंगी तो विपक्ष के विरोध प्रदर्शन को धार कैसे मिलेगी? तभी सरकार के संसदीय प्रबंधकों को इस बार ज्यादा चिंता नहीं है। वे नागरिकता मामलों से ज्यादा आर्थिक मुद्दों को लेकर चिंतित हैं, जिस पर विपक्ष का विरोध ज्यादा मुखर होगा और उस पर लोगों का समर्थन भी उनको मिल सकता है।

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