जयपुर। बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष के नाम को लेकर बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व और वसुंधरा राजे के बीच जंग छिड़ी हुई है। इस जंग से बीजेपी को नुकसान होगा लेकिन फायदा किसे होगा। इस लड़ाई से फायदा बसपा को होगा या फिर कांग्रेस को। क्यों कि कर्नाटक चुनाव के बाद जो आंकड़े आए हैं उसमें राजस्थान में भाजपा के वोट फीसदी कम होते नजर आ रहे हैं।
एक सर्वे के मुताबिक भाजपा के 6 प्रतिशत वोट घटे हैं। ये घटे वोट या तो बसपा के खाते में जाएंगे या फिर कांग्रेस के। बसपा के इतिहास पर अगर नजर डालें तो 3 से 6 एमएलए इनके जीतते हैं। वो भी जीतने के बाद टिक नहीं पाते हैं और किसी बड़ी पार्टी के साथ मिल जाते हैं। पिछली बार भी बसपा के एमएल जीत के बाद गहलोत के साथ चले गए थे।
बसपा अकेले लड़े या फिर कांग्रेस के साथ अलायंस में दोनों में फायदा हो सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जो लोकप्रियता है उससे सारी विपक्ष की पार्टियां सकते में हैं। देश में मोदी-शाह की जुगलबंदी के आगे एक के बाद एक राज्य में पस्त होने वाली कांग्रेस को अब क्षेत्रीय पार्टियों की जरूरत और ताकत का एहसास होने लगा है । ऐसे में कांग्रेस अब बिना मौका गंवाए गठबंधन करते हुए सत्ता के कुर्सी का रास्ता तय करने लगी है। इसे देश में कांग्रेस की नई राजनीतिक अंदाज के रूप में देखा जा रहा है। कांग्रेस के गठबंधन सियासत को यदि इस बार 'हाथी' (बसपा) का साथ मिल गया तो साल के अंत में होने वाले तीन राज्यों के चुनाव में कमल 'मुरझाता' हुआ ही नजर आएगा।
बात राजस्थान की करें तो यहां वर्ष 2003 में भाजपा का वोट शेयर 39.20 फीसदी रहा है, वहीं कांग्रेस-बसपा को जोड़कर देखें तो इनका वोट शेयर 39.62 फीसदी रहता है। 2008 में कांग्रेस+बसपा के वोट शेयर 44.42 फीसदी तथा भाजपा के 34.27 फीसदी रहा है। 2013 में भाजपा का वोट शेयर 45.17 फीसदी व कांग्रेस-बसपा के 36.44 फीसदी रहा है।
वहीं लेकिन इस के बाद भी अगर अलायंस की बात करें तो कांग्रेस को कई बार नुकसान का फायदा उठाना पड़ा है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की बात करें तो कांग्रेस ने यहां पर समाजवादी पार्टी के साथ अलायंस किया था। जिसका खामियाजा ने ऐतिहासिक हार के साथ उठाना पड़ा। लेकिन वहीं कर्नाटक की बात करें तो यहां जीत के बाद अलायंस किया जिसका फायदा यह मिला कि वहां पर कांग्रेस ने गठबंधन कर सरकार बना ली।
कर्नाटक में सीएम के शपथ ग्रहण के दौरान जिस तरह से सारी विपक्षी पार्टियां एक दूसरे के साथ मिल रहे थे। उससे तो लगता है कि आने वाले चुनावों में पूरा का पूरा विपक्ष एक साथ मिलकर मोदी के खिलाफ मैदान में उतरेगा। खैर बीजेपी के लिए यह थोड़ी चिंत का विषय है वोट फीसदी का कम होना। लेकिन अमित शाह भी मंझे हुए खिलाड़ी हैं। उन्हें भी पता है कि अब उन्हें क्या करना है।
एक सर्वे के मुताबिक भाजपा के 6 प्रतिशत वोट घटे हैं। ये घटे वोट या तो बसपा के खाते में जाएंगे या फिर कांग्रेस के। बसपा के इतिहास पर अगर नजर डालें तो 3 से 6 एमएलए इनके जीतते हैं। वो भी जीतने के बाद टिक नहीं पाते हैं और किसी बड़ी पार्टी के साथ मिल जाते हैं। पिछली बार भी बसपा के एमएल जीत के बाद गहलोत के साथ चले गए थे।
बसपा अकेले लड़े या फिर कांग्रेस के साथ अलायंस में दोनों में फायदा हो सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जो लोकप्रियता है उससे सारी विपक्ष की पार्टियां सकते में हैं। देश में मोदी-शाह की जुगलबंदी के आगे एक के बाद एक राज्य में पस्त होने वाली कांग्रेस को अब क्षेत्रीय पार्टियों की जरूरत और ताकत का एहसास होने लगा है । ऐसे में कांग्रेस अब बिना मौका गंवाए गठबंधन करते हुए सत्ता के कुर्सी का रास्ता तय करने लगी है। इसे देश में कांग्रेस की नई राजनीतिक अंदाज के रूप में देखा जा रहा है। कांग्रेस के गठबंधन सियासत को यदि इस बार 'हाथी' (बसपा) का साथ मिल गया तो साल के अंत में होने वाले तीन राज्यों के चुनाव में कमल 'मुरझाता' हुआ ही नजर आएगा।
बात राजस्थान की करें तो यहां वर्ष 2003 में भाजपा का वोट शेयर 39.20 फीसदी रहा है, वहीं कांग्रेस-बसपा को जोड़कर देखें तो इनका वोट शेयर 39.62 फीसदी रहता है। 2008 में कांग्रेस+बसपा के वोट शेयर 44.42 फीसदी तथा भाजपा के 34.27 फीसदी रहा है। 2013 में भाजपा का वोट शेयर 45.17 फीसदी व कांग्रेस-बसपा के 36.44 फीसदी रहा है।
वहीं लेकिन इस के बाद भी अगर अलायंस की बात करें तो कांग्रेस को कई बार नुकसान का फायदा उठाना पड़ा है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की बात करें तो कांग्रेस ने यहां पर समाजवादी पार्टी के साथ अलायंस किया था। जिसका खामियाजा ने ऐतिहासिक हार के साथ उठाना पड़ा। लेकिन वहीं कर्नाटक की बात करें तो यहां जीत के बाद अलायंस किया जिसका फायदा यह मिला कि वहां पर कांग्रेस ने गठबंधन कर सरकार बना ली।
कर्नाटक में सीएम के शपथ ग्रहण के दौरान जिस तरह से सारी विपक्षी पार्टियां एक दूसरे के साथ मिल रहे थे। उससे तो लगता है कि आने वाले चुनावों में पूरा का पूरा विपक्ष एक साथ मिलकर मोदी के खिलाफ मैदान में उतरेगा। खैर बीजेपी के लिए यह थोड़ी चिंत का विषय है वोट फीसदी का कम होना। लेकिन अमित शाह भी मंझे हुए खिलाड़ी हैं। उन्हें भी पता है कि अब उन्हें क्या करना है।

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