गुरुवार, 31 मई 2018

उपचुनावों में भाजपा की लगातार हार

एक तरफ जहां भारतीय जनता पार्टी एक के बाद एक राज्य में चुनाव जीतती जा रही है वहीं दूसरी ओर उपचुनावों में उसकी हार का सिलसिला भी बढ़ता जा रहा है। 2014 में लोकसभा का चुनाव जीत कर पूर्ण बहुमत हासिल करने के बाद से भाजपा लगातार लोकसभा के उपचुनावों में हार रही है। वह अपनी जीती हुई सीटें हार रही है और वैसी सीटों पर भी हार रही है, जो बरसों से उसका गढ़ रही हैं। तभी विपक्षी पार्टियां इससे यह निष्कर्ष निकाल रही हैं कि नरेंद्र मोदी का जादू कम हो रहा है।


पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कैराना लोकसभा सीट को मिसाल के तौर पर पेश किया जा रहा है। यह सीट भाजपा के लिए प्रतिष्ठा की थी क्योंकि उसके दिग्गज नेता हुकूम सिंह ने 2014 में इसे जीता था। उनको 50 फीसदी से ज्यादा वोट मिले थे। ध्यान रहे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह लगातार कह रहे हैं कि उनका लक्ष्य अगले चुनाव में 50 फीसदी वोट हासिल करने का है। कैराना सीट पर हुकूम सिंह ने 50 फीसदी वोट हासिल किए थे। पर उनके निधन से खाली हुई इस सीट पर उनकी बेटी मृगांका सिंह को सपा, बसपा और कांग्रेस समर्थित रालोद उम्मीदवार तबस्सुम हसन ने हरा दिया।

वह भी तब जबकि इस सीट को जीतने के लिए भाजपा ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जबरदस्त प्रचार किया था और गन्ना की बजाय जिन्ना का मुद्दा उठाया था ताकि ध्रुवीकरण कराया जा सके। वोटिंग से एक दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक रोड शो किया और कैराना के ठीक बगल के बागपत में एक बड़ी रैली करके करीब एक घंटे का भाषण दिया। फिर भी पार्टी चुनाव हार गई। ऊपर से वोटिंग के दिन जाने अनजाने मुस्लिम व दलित बहुल इलाकों में डेढ़ सौ ईवीएम खराब हो गए थे।

भाजपा महाराष्ट्र में अपनी जीती एक और सीट हार गई। भंडारा गोंदिया सीट पर एनसीपी ने भाजपा उम्मीदवार को हराया। पालघर में जरूर भाजपा की इज्जत बच गई। बहरहाल, पिछले चार साल में भाजपा करीब दस लोकसभा सीटों पर उपचुनाव हारी है। उसने उत्तर प्रदेश में अपनी जीती तीन सीटें – गोरखपुर, फूलपुर और कैराना गंवा दी। राजस्थान की अजमेर और अलवर सीट पर वह जीती थी पर उपचुनाव में हार गई। महाराष्ट्र की भंडारा गोंदिया सीट उसके हाथ से निकल गई। मध्य प्रदेश में भाजपा ने अपनी जीती झाबुआ रतलाम सीट गंवा दी और पंजाब में गुरदासपुर में विनोद खन्ना की जीती हुई सीट उसके हाथ से निकल गई। उसकी सहयोगी पीडीपी भी अपनी जीती श्रीनगर सीट हार गई। दूसरी ओर विपक्षी पार्टियों ने बिहार और पश्चिम बंगाल में अपनी जीती सीटें उपचुनाव में भी बचा लीं। 

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