रविवार, 6 मई 2018

विपक्ष नहीं समझा है कि नरेंद्र मोदी- अमित शाह सामान्य प्रतिद्विंदी नहीं है

 राहुल गांधी, अशोक गहलोत, दिग्विजयसिंह, अहमद पटेल, मायावती, अखिलेश, ममता, शरद पवार आदि में अभी भी कोई नहीं समझा है कि नरेंद्र मोदी- अमित शाह सामान्य प्रतिद्विंदी नहीं है। ये असामान्य, असाधारण है जिनसे लड़ने के लिए, जिनसे जीतने का पुराना, रूटिन वाला चुनावी, राजनैतिक ढर्रा हार की गांरटी है। विपक्ष के नेता यदि इसी मूर्खतापूर्ण एप्रोच से चिपके रहे तो 2019 में फिर मोदी की आंधी होगी। हां, राहुल गांधी और विपक्ष ने कर्नाटक चुनाव को रूटिन अंदाज में लिया।  सिद्वारमैया अकेले जीता देगें, प्रदेश नेताओं ने अपनी दुकान में जो राय दी उसी विश्वास में पुराने ढर्रे पर विपक्ष का चुनाव लड़ना है। इसी के चलते कांग्रेस ने सिद्वारमैया के सुपुर्द सबकुछ किए रखा। सिद्वारमैया ने भी यह गलतफहमी पाले रखी कि सामने येदियुरप्पा है। उन्होने मोदी-शाह के जुनून की कल्पना नहीं की। यह पुरानी, रूटिन वाली एप्रोच है। जिसमें राहुल- सोनिया-विपक्ष ने हिसाब ही नही ऱखा कि चुनाव भाजपा नहीं, येदियुरप्पा नहीं बल्कि मोदी-शाह लड़ने वाले है और ये लड़ते है तो वोट लेने की एसेंबली लाइन प्लान करके।

सोचे, देखे, बूझे कि एक विधानसभा चुनाव को मोदी-शाह किस जूनुन से लड रहे है? सिद्वारमैया भी अब जरूर अपने आपको या तो लाचार पा रहे होंगे या मुगालते में होंगे। प्रदेश में हिंदू –मुस्लिम बन रहा है। प्रदेश के मंदिरों में भगवा झंडी को चुनाव आयोग में पहुंचा दिया गया। तटीय याकि कोस्टल पट्टी में हवा बदलने के संकेत है। भाजपा बेइंतहा पैसा खर्च कर रही है। कांग्रेस की सरकार के बावजूद कर्नाटक में कांग्रेस कडकी में है। विरोधियों का पैसा ज्यादा जप्त हो रहा है। लाले पड़े हुए है। सोशल मीडिया में भाजपा की फौज टूट पड़ी है। मोदी-शाह ने होशियारी से देवगौडा- कुमारस्वामी याकि जनता दल(एस) को चुनाव से ऐसे आउट किया है कि वौकालिग्गा समुदाय के कांग्रेस विरोधी वोट भी भाजपा को ले कर सोचने लगे होंगे। टीवी- प्रिट मीडिया सबमें मोदी-शाह का यह बुलंद हुंकारा जोरों से है कि हम पूर्ण बहुमत से चुनाव जीतेगें। चुनावी जीतने का इतनी दबंगी से विश्वास क्या विपक्ष में कोई दिखला पा रहा है और क्या वह सुना जा रहा है?

मतलब धारणा के स्तर पर महीने पहले जो जमीनी हकीकत थी वह आज बदली हुई है। मैं अभी चुनाव विश्लेषण पर नहीं जा रहा हू। उस पर अगले सप्ताह लिखेगें। लेकिन कर्नाटक के महीने पहले के हल्ले या नैरेटिव बनाम आज की स्थिति का फर्क दिन-रात वाला है। यह आश्चर्यजनक है। इसलिए कि लोजिक, गणित में भाजपा की बुरी हवा बनी हुई होनी चाहिए थी। वोट को यदि जांत के आधार पर तौले तो प्रदेश के 13 प्रतिशत मुसलमान, 17 प्रतिशत दलित, सात प्रतिशत आदिवासी आबादी और सिद्वारमैया की जाति के कुरबा के आठ प्रतिशत वोटों का कुल जोड़ 45 प्रतिशत बैठता है। इस चुनाव में अपनी थीसिस है कि दलित-आदिवासी बुरी तरह भाजपा से यदि बिदके हुए आज दिखते है तो ये मुसलमान जितनी ही कट्टरता से भाजपा को हराने के लिए कांग्रेस को वोट देंगें। उस नाते कांग्रेस की छप्पर फाड जीत की हवा होनी चाहिए। मगर मोदी-शाह ने जनता दल एस के साथ मायावती का एलायंस करवा दलित वोटों का हिसाब बिगाडा हुआ है तो नरेंद्र मोदी दलित और ओबीसी वोटों को ऐसे ललकार रहे है मानों उन्हें पटाना चुटकियों का काम हो।

यह सब विपक्ष, कांग्रेस की दुर्दशा है। प्रमाण है कि सिद्वारमैया हो देवगौडा-कुमारस्वामी हो या मायावती, सब खत्म होने के कगार के बावजूद चुनाव को पुराने ढर्रे में देखते है। नोट करके रखे कि कुमारस्वामी हो या मायावती का भाई आनंद कुमार सबके टेटूए फंसे हुए है। सब पैसे के खेल में है। सब इस मूर्खता में जी रहे है कि मोदी-शाह की सुनामी में भी अपनी जात, अपने वोट से अपने को जिंदा बनाए रख सकेगें। हिसाब से सिद्वारमैया, कुमारस्वामी को प्रदेश स्तर पर और राहुल गांधी- देवगौडा को केंद्र स्तर पर विचार करके कर्नाटक में एलायंस बना चुनाव लड़ना था। कांग्रेस 70 सीटे जनता दल एस को उसके वोटों वाले इलाके में दे देती तो क्या बिगड़ जाता। लेकिन राहुल, सिद्वारमैया, कुमारस्वामी, देवगौडा सबने माना कि कर्नाटक के मैदान में भाजपा भला कहां है? भाजपा याकि मोदी-शाह चुनाव के माइक्रो बंदोबस्तों, साम-दाम-दंड-भेद में करो-मरों के जुनून में जीतेगे, विधानसभा हंग करा देगें, फिर अनिवार्यत जोड़ तोड़ से अपनी ही सरकार बनाएगें, इन संभावनाओं का विपक्षी नेताओं के दिमाग में सिनेरियों बना ही नहीं, आया ही नहीं।

यही पेंच है। विपक्ष नहीं समझ पा रहा है कि मई 2019 में नरेंद्र मोदी को अनिवार्यत वापिस शपथ लेनी है। इसके लिए ये जनवरी 2019 से जो करेगें उसका सिनेरियो न बूझ पा रहा है और न विपक्ष साझे तौर पर विचार कर पा रहा है।  विपक्षी नेता फालतू बात करते है कि कर्नाटक में प्रधानमंत्री 24 सभाएं कर रहे है या हिंदू-मुस्लिम हो रहा है, पैसा खर्च हो रहा है। रेड्डी भाइयों से ले कर धर्मगुरूओं सबको झौंक दिया गया है तो यह सब होना ही था। कांग्रेस ने याकि राहुल गांधी एंड टीम ने गलतफहमी क्यों पाली कि अकेले सिद्वारमैया चुनाव जीतवा देगें।

जान ले कांग्रेस ऐसे ही राजस्थान में, मध्यप्रदेश, छतीसगढ़ में गलती करेगी। दिग्विजयसिंह, कमलनाथ को या सचिन पायलट को समझ नहीं है कि मध्यप्रदेश में शिवराजसिंह नहीं बल्कि मोदी-शाह चुनाव लड़ेगें। बाजे बजा देगें कमलनाथ के। सचिन पायलट गुर्जर वोटों के मक़जाल में ऐसे फंसेगे कि उन्हे मोदी-शाह का अकेला मीणा कार्ड ही निपटवा देगा। सो पते की बात मोदी-शाह की कमान है। हिसाब से कर्नाटक में लिंगायत को भी बांटने का मास्टर दांव हुआ। उस नाते भाजपा के तंबू को बांधे रखने, पकड़ने वाला वहां एक भी ठोस जांत आधार नहीं है बावजूद इसके यदि मोदी-शाह दो महिने के अंदर लड़ाई को कांग्रेस बनाम भाजपा का बना दे रहे है और हंग विधानसभा भी ले आए तो कैसी गजब बात होगी?

ऐसा विपक्ष के कारण है। मोदी-शाह को अंडरएस्टीमेट करते हुए विपक्ष का सोचना है कि इनकी हवा बिगड़ गई है। लोग हताश, मोहभंग में है और विपक्ष फिर जिंदा है। उस नाते मेरा मानना है कि कर्नाटक में कांग्रेस को हारना चाहिए नहीं तो जीत के बाद राहुल गांधी, कांग्रेसी, विपक्ष सब हवा में उड़ते हुए और गलतफहमी पालेगें कि 2019 में हमारा जीतना पक्का और एलायंस या साझा राजनीति की जरूरत नहीं है! 

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