शुक्रवार, 25 मई 2018

वसुंधरा के कद को कम करने के लिए इस बार आलाकमान कई सख्त निर्णय भी कर सकते हैं।

भाजपा प्रदेशाध्यक्ष के पद पर गजेंद्र सिंह शेखावत के काम करने के चलते इस बार विधानसभा चुनाव में पार्टी पदाधिकारियों को मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे नई परेशानी में डाल सकती हैं...।

जयपुर । भाजपा प्रदेशाध्यक्ष के पद पर पार्टी के आलाकमान की ओर से गजेंद्र सिंह शेखावत को बिठाने के बाद भी प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे खेमे के बीच टिकट बंटवारे को लेकर लट्ठ बजना तो तय है। शेखावत के राजस्थान दौरे के दौरान अभी जिस तरह से वसुंधरा खेमे के कई नेताओं में अप्रत्यक्ष रूप से रोष सामने आता है, उसे देखकर यही लगता है कि इस बार टिकट बंटवारा इतना आसान नहीं है।



सियासतदारों की मानें तो दिल्ली के विश्वासपात्र  शेखावत के यहां पार्टी के मुखिया के रूप में काम करने के बाद शाह टिकट बंटवारे में वसुंधरा खेमे को वो तवज्जो नहीं देंगे, जो अब तक वसुंधरा को मिली है। अब तक टिकट बंटवारे के लिए वसुंधरा की सबकुछ होती  थी, दिल्ली के दखल के बाद भी चलती  वसुंधरा की थी। लेकिन, इस बार राजस्थान पर पकड़ बनाने के लिए पार्टी अध्यक्ष शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस रणनीति पर काम कर रहे हैं, उसे देखकर यही लगता है कि वसुंधरा राजे खेमे की इस बार चल नहीं पाएगी। इसका अहसास वसुंधरा खेमे को भी हो चुका है।



जानकारों का कहना है कि अमित शाह और मोदी की ओर से गजेंद्र सिंह शेखावत को प्रदेश संगठन की कमान सौंपने को लेकर जो हरी झण्डी दी गई है, उसका मकसद ही वसुंधरा के वर्चस्व को कमजोर करना है। इस बात को वसुंधरा भी बखूबी समझ रही हैं। पार्टी में प्रदेश की कमान अपने हाथ में रखते हुए अब तक एकछत्र  राज करने वाली  वसुंधरा इस बार भी टिकट बंटवारे में अपनी मर्जी चलाने की कोशिश करेंगी, जो कि शाह को मंजूर नहीं होगा। शाह अपने विश्वासपात्र शेखावत और संगठन के दूसरे पदाधिकारियों की रिपोर्ट के आधार पर टिकट बंटवारे को लेकर निर्णय करेंगे।


जिसमें कई पुराना चेहरों को इस बार चुनावी मैदान से बाहर भी रखा जा सकता है। इसमें कई ऐसे भी मौजूदा विधायक हैं जो कि वसुंधरा खेमे के हैं, ऐसे में इस खेमे में नाराजगी फैलना तय है। जिसके बाद शाह और वसुंधरा चुनाव के दौरान  फिर आमने-सामने हो सकते हैं। पार्टी सूत्रों के मुताबिक प्रदेश में वसुंधरा के कद को कम करने के लिए इस बार आलाकमान कई सख्त निर्णय भी कर सकते हैं।

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