गुरुवार, 31 मई 2018

उपचुनाव से 2019 की तस्वीर

2019 की तस्वीर! पर  आज 182 सीटों वाले उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार और झारखंड के चार राज्यों ने बता दिया है कि नरेंद्र मोदी 2019 में वापिस प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे। वे तभी बन सकते हैं जब मायावती, अखिलेश यादव, राहुल गांधी व अजित सिंह आज जैसी आपसी समझ को खत्म करके मूर्खता करें और 2019 में अलग अलग चुनाव लड़ें। अन्यथा इन चार राज्यों में 2014 में भाजपा और उसकी सहयोगियों ने 182 में से 158 सीटे जीतने का जो चमत्कार दिखाया था उसकी चौथाई सीटें भी भाजपा को 2019 में नहीं मिलनी है। आज क्योंकि झूठ का जादू उतरा दिखा है और एक बार उतरता है तो काठ की हांडी हो जाता है इसलिए बात नरेंद्र मोदी के कोई नए अपूर्व, हिमालयी झूठ को बनाने या गढ़ने से भी नहीं बननी है।

यों दोनों की संभावना अपनी जगह है। मगर 31 मई 2018 को मोदी सरकार की मौत लिख गई है। नरेंद्र मोदी और अमित शाह कितना ही महामृत्युंजय जाप कराएं इनका झूठ अब उस हिंदू घर में भी महा झूठ माना जाने लगा है, जो चार साल पहले अपनी बहू-बेटियों की चिंता में मुसलमान उम्मीदवार की बात सुन कर भड़क उठता था। उत्तर प्रदेश के कैराना ने आज प्रमाणित किया है कि झूठ सुन सुन कर लोगों के कान इतने पक गए हैं कि वे न केवल अपने साथ धोखा हुआ मानते हैं, बल्कि गांठ बांध रहे हैं कि नरेंद्र मोदी दरवाजे पर आ कर भाषण करें, अमित शाह घर आ कर गिड़गिड़ाएं, योगी कटोरा ले कर भीख मांगें तब भी लोग इन्हें वोट देने के लिए घर से बाहर नहीं निकलेंगें।

हां, कैराना के उपचुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह, योगी आदित्यनाथ सबने वह सब कोशिश की जो वोट के लिए हिंदू को पिघलाने के खातिर थी। लेकिन हिंदुओं में जोश बना ही नहीं। पहली बात मतदान ही कुल कम हुआ। दूसरी बात जाट हो जाटव हो या मध्यवर्गी शहरी हिंदू सबने बेगम तबुस्सम हुसैन के चुने जाने में हर्ज नहीं माना।

यही हिंदुओं के झूठ से कान पकने के प्रमाण का सबसे बड़ा संकेत है। मैंने कर्नाटक के चुनाव नतीजों से पहले लिखा था कि कर्नाटक से अधिक कैरान का उपचुनाव देश की राजनीति को बतलाने की अहमियत लिए हुए है। वह 2019 की धड़कन बताने वाला होगा। कैराना में अखिलेश, मायावती, राहुल गांधी ने बहुत बड़ा जुआ खेला, जो पहले तो अजित सिंह की पार्टी को सीट दी। दूसरे, मुस्लिम महिला बेगम तबुस्सम हुसैन को उम्मीदवार बनाया। ध्यान रहे, याद करें कैराना, मुजफ्फरपुर में ही तो 2012-13 में सांप्रदायिक हिंसा की वह आग बनी थी, जिस पर पूरे प्रदेश में हिंदू बनाम मुसलमान की राजनीति पकी और हिंदुओं के पलायन की खबरों के साथ अमित शाह ने वह चुनावी बिसात बिछाई, जिससे जाट, जाटव, गुर्जर, ब्राह्मण, बनिया, राजपूत सब बावले हो हर, हर मोदी करने लगे!

उस एपीसेंटर में राष्ट्रीय लोकदल की तरफ से मुस्लिम महिला उम्मीदवार को खड़ा कर विपक्ष ने बहुत बड़ी जोखिम ली। वह भी तब जब गोरखपुर और फूलपुर के लोकसभा उपचुनाव में हार से घायल हुए योगी आदित्यनाथ, अमित शाह इस चुनाव में सबकुछ झोंक देने वाले थे।

और दोनों ने एक उपचुनाव को जीतने के लिए कोई कसर नहीं रख छोड़ी। चुनाव प्रचार खत्म होने व मतदान से ठीक पहले प्रधानमंत्री ने कैराना सीट के बगल में जा कर एक हाईवे का उद्घाटन किया। उनकी सभा का लाइव शो हुआ। नरेंद्र मोदी ने मतदाताओं को आव्हान करते हुए वह सब कहा, जिससे हिंदुओं को लगे, वे सोचें कि मोदी अकेला अच्छी नीयत वाला। बाकी सब चोर, लुटेरे पापी! फिर मतदान की घड़ी आई तो बूथ में वीवीपैट मशीन की खराबी, टीवी चैनलों पर लाइन में खड़े मुसलमानों की भीड़ की हिंदुओं में प्रतिक्रिया पैदा करने के माइक्रो प्रबंधन हुए। करिश्मे का, भगवा रंग का, प्रशासन का, पैसे का, चुनाव के माइक्रो प्रबंधन के तमाम काम इस संकल्प से हुए कि कुछ भी हो जाए कैराना में चुनाव जीतना ही है!

और हुआ क्या? पिछले चुनाव में कुल वोटों का 50.5 प्रतिशत वोट, 5.65 लाख वोट लेने वाली भाजपा आज 3.52 लाख वोट पर सिमटी, जहां ढाई लाख वोट कम वहीं पचास हजार वोटों के अंतर से हार। 

यह झूठ के घड़े का फूटना नहीं तो क्या?

माना झूठ बोलना बड़ा पाप नहीं है बावजूद इसके झूठ सुनने की भी सीमा होती है। हर समय, चौबीसों घंटे केवल झूठ और झूठ के प्रचार और हिंदू-मुस्लिम के हल्ले में कभी न कभी तो इंसान इस फैसले पर होगा ही कि बहुत हुआ अब लौटा जाए रोजमर्रा के जीवन और अनुभव में!

इस उपचुनाव का अर्थ यह भी है कि योगी आदित्यनाथ के घर याकि पूर्वी यूपी के केंद्र गोरखपुर, मध्य यूपी के फूलपुर और पश्चिमी यूपी के कैराना में भाजपा का हारना लोकसभा की सभी 80 सीटों में भाजपा के तोते उड़ना है। विपक्ष ने जैसे कैराना, गोरखपुर, फूलपुर लड़ा वैसे यदि 2019 में यूपी की लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा तो नरेंद्र मोदी को वाराणसी की अपनी सीट के लिए भी मोहल्ले-मोहल्ले घूमना होगा।

 54 लोकसभा सीट वाले बिहार, झारखंड में जो हुआ और 48 सीटों वाले महाराष्ट्र में जो हुआ वह भाजपा के लिए बहुत खतरनाक है। पालघर को लेकर भाजपा आज भले यह सोच बम-बम हो कि उद्धव ठाकरे को धूल चटा दी लेकिन अपना मानना है महाराष्ट्र में आज 2019 के चुनाव के संदर्भ में भाजपा की कब्र खुद गई है। हिसाब से पालघर का उपचुनाव भाजपा को लड़ना ही नहीं था। शिवसेना के लिए यह सीट छोड़ देनी थी। शिवसेना के नेता उद्धव ठाकरे ने इस सीट को जब प्रतिष्ठा का विषय बनाया हुआ था तो भाजपा को चुपचाप पीछे हट लेना था। लेकिन भाजपा ने जिद्द से चुनाव जीता। नरेंद्र मोदी-अमित शाह ने अहंकार में पालघर में जीत करके उद्धव ठाकरे को वैसी ही औकात दिखाने का रवैया अपनाया जैसे 2104 के बाद विधानसभा चुनाव के वक्त शिवसेना को धोखा दे कर अलग लड़ने के लिए मजबूर किया गया था। ध्यान रहे पालघर में शिवसेना पहले कभी नहीं लड़ी है। उद्धव ठाकरे ने भाजपा से खुन्नस के चलते इस चुनाव में प्रतिष्ठा लगाई। मोदी-शाह-फड़नवीस ने परवाह नहीं की। नतीजतन चुनाव के दौरान ऐसा टकराव हुआ कि शिवसेना ने वोट के भाजपाई माइक्रो प्रबंधन को ले चुनाव आयोग को मोदी सरकार की रखैल तक कह दिया।

और आज उद्धव ठाकरे इस कदर घायल शेर की तरह होंगे कि 2019 के लोकसभा चुनाव की उनकी स्क्रिप्ट लिख गई होगी। मोदी-शाह ने अपने अहंकार में जैसे उत्तर प्रदेश में विपक्ष को एकजुट बनाया वैसे महाराष्ट्र में 2019 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस, एनसीपी, शिवसेना, मनसे की प्रत्यक्ष-परोक्ष सहमति से लड़ा जाना है। गौर करें भाजपा को पालघर में मिले आज के वोटों पर। सिर्फ 2.72 लाख करीब वोट। जबकि शिवसेना के 2.43 लाख और एक दलित पार्टी बीवीआर को मिले 2.22 लाख वोट व सीपीएम के 71 हजार और कांग्रेस को 43 हजार। मतलब विपक्ष के ये करीब पौने छह लाख वोट भाजपा के दो लाख 72 हजार वोटों पर 2019 में कितने भारी पड़ने वाले हैं यह आज लिख गया है। तय मानें कि अब उद्धव ठाकरे के यहां नरेंद्र मोदी, अमित शाह जा कर उनकी मिन्नत करें तब भी घायल शेर अपनी सवारी के लिए अपने को पेश नहीं करेगा।

और बिहार, झारखंड का कमाल यह है कि नीतीश कुमार, भाजपा, लोजपा सब नेताओं ने पूरा दम लगाया जनता दल यू की 2005 से लगातार जीती जा रही सीट को जीतने के लिए लेकिन लालू की पार्टी राजद आश्चर्यजनक रूप से वहां जीती। वोट के लिए हिंदू-मुस्लिम कराने की न केवल कोशिश हुई, बल्कि अपनी जानकारी अनुसार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने निजी तौर पर माइक्रो प्रंबधन के तमाम तरीके अपनाए लेकिन जनता दल यू और भाजपा का गठजोड़ बुरी तरह हारा। आज सचमुच नीतीश कुमार को समझ नहीं आ रहा होगा कि हवा का रूख इतना कैसे बदला हुआ? नीतीश कुमार का अब मोदी सरकार से मोहभंग जैसे जो बनेगा उसकी कल्पना ही की जा सकती है। बिहार की 40 लोकसभा सीट में अब भाजपा के लिए नीतीश की पुण्यता खत्म है तो नीतीश भी सोचेंगें कि नरेंद्र मोदी से उनको चुनाव लड़ने की कितनी तो सीटें मिलेंगी और उनका बनेगा क्या?

झारखंड की दो सीटों में दोनों पर ही जेएमएम का जीतना और जीत के साथ कांग्रेस, बाबूलाल मरांडी पार्टी का सहयोग विपक्षी एलायंस का संकेत लिए हुए है तो एक सीट पर भाजपा का नंबर तीन पर चले जाना बहुत हैरानी वाली बात है। गोमिया की इस सीट पर जेएमएम से आजसू लड़ती हुई नंबर दो पर थी और भाजपा नंबर तीन पर। यह छोटा मगर आदिवासी-पिछड़े वोटों की पट्टी के नाते यह बहुत गंभीर बात है। सवाल है कि गरीब, आदिवासी पट्टी में भी यदि प्रचार का, झूठ का जादू उतरा हुआ ऐसा दिखा है तो फिर बचता क्या है?

इस सबके बावजूद नोट करके रखे कि इन सब बातों का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह के लिए कोई मतलब नहीं है। ये आज से इस नई धुन में आएंगे कि ऐसा क्या नया जादू रचें, जिससे जनता माने कि भला नरेंद्र मोदी का कोई मुकाबला है? उनके आगे है कौन?  और इस बात पर ये 2019 में आज के ही कैराना में 51 प्रतिशत वोट लिवा लाने का ख्याल बनाए हुए होंगे।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें