मामूली बात नहीं जो महाराष्ट्र सरकार के मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता सुधीर मुनगंटीवार ने हाथ खड़े कर कहां अब वे शिवसेना से गठबंधन के लिए बात नहीं करेगें। इस बयान के पीछे की हकीकत है कि मुनंगटीवार भाजपा हाईकमान की और से शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से मिलने की कई दिनों से कोशिश में थे। भाजपा के कई नेताओं सहित पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने भी 6 अप्रैल को भाजपा स्थापना दिवस में मुंबई की रैली में शिवसेना को पटाने के लिए बयान दिया था। लेकिन तब से ले कर अब तक शिवसेना ने एक ऐसा काम नहीं किया, एक ऐसा बयान नहीं दिया जिससे जाहिर हो कि उद्धव ठाकरे भाजपा पर रहम करने वाले है। मतलब वे अपनी उस बात से पीछे हटेगें कि 2019 में वे भाजपा से एलायंस कर चुनाव नहीं लड़ेगे। शिवसेना अकेले चुनाव लड़ेगी। उद्धव ठाकरे, शिवसेना के प्रवक्ता, शिवसेना का अखबार कई महिनो से लगातार बात-बेबात मोदी सरकार की निंदा कर रहे है। कर्नाटक में येदियुरप्पा के इस्तीफे के बाद सर्वाधिक सख्त बयान किसी पार्टी का आया तो वह कांग्रेस का नहीं बल्कि शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत का है। उन्होने कहां यह मनमानी और हिटलरशाही के अंत की शुरुआत है। कर्नाटक में जो हुआ वह असंवैधानिक था। किसी भी तरह से चुनाव जीता जा सकता है और किसी भी तरह सत्ता स्थापित की जा सकती है, इस विकृत मानसिकता की यह पराजय है।
ऐसा तल्ख बयान शरद पवार या उनकी पार्टी एनसीपी नहीं दिया मगर शिवसेना ने दिया तो जाहिर है उद्धव ठाकरे इस बात से ज्यादा घायल है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने उनके साथ क्या किया! तभी वे अहसास करा दे रहे है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी-शाह की रणनीति की सीढ़ी नहीं बनेगें। ध्यान रहे 28 मई को महाराष्ट्र में लोकसभा के दो और विधानसभा की एक सीट के लिए उपचुनाव है। अमित शाह ने उद्धव ठाकरे से सुधीर मुनगंटीवार के अच्छे रिश्तों के चलते उन्हे बात करने की जिम्मेवारी दी हुई थी। लेकिन उद्धव ठाकरे ने उनको मिलने का समय ही नहीं दिया। तभी इन उपचुनावों के लिए दोनों पार्टियों में कोई तालमेल नहीं है। पिछले महिने सुधीर मुनगंटीवार ने दो दफा ठाकरे के साथ मीटिंग तय की लेकिन ऐन वक्त उद्धव ठाकरे के घर से मैसेज आया कि वे पार्टी के काम में व्यस्त होने के कारण नहीं मिल सकते!
तभी आज हताशा के साथ सुधीर मुनगंटीवार का ऐलान था कि अब वे कोशिश नहीं करेगें। यदि शिव सेना आगे बढ़ कर एलायंस की बात करना चाहेगी तो हम तैयार है। यदि वह नहीं करती है तो भाजपा अकेले चुनाव मे जाएगी। हमने अपनी कोशिश कर ली। शिवसेना को तय करना है कि वह हमारे साथ मिल कर चुनाव लड़ना चाहती है या नहीं।
जाहिर है सुधीर मुनगंटीवार का बयान कल येदियुरप्पा के इस्तीफे के बाद शिव सेना के ‘मनमानी और हिटलरशाही के अंत की शुरुआत’ की टिप्पणी का सदंर्भ भी लिए हुए होगा। पता नहीं मोदी-शाह ने शिवसेना के इन बयानों को देखा या नहीं लेकिन यदि उद्धव ठाकरे से बातचीत के लिए मुकर्रर सुधीर मुनगंटीवार ने हाथ खड़े किए है तो महाराष्ट्र की राजनीति में नया दौर तय है। इसका अर्थ यह नहीं कि वहां देवेंद्र फड़नवीस सरकार खतरे में है या भाजपा और शिवसेना का सत्ता साझा टूट जाएगा। ऐसा कतई नहीं होगा। भाजपा हाईकमान में अब हिम्मत नहीं है, कोई विकल्प नहीं है जो वह गालियां सुनने के बाद भी शिवसेना से सरकार का एलायंस तोड़े। उधर उद्धव ठाकरे के लिए यह आदर्श स्थिति है कि सरकार में रहते हुए भाजपा, मोदी-शाह पर ठिकरा फोड़ते हुए मुंबई, पूणे जैसे अपने असर वाले शहरों में यह मैसेज दे कि पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ रहे है तो हम दोषी नहीं है बल्कि भाजपा है।
सोचे, चुनाव में अभी एक साल बाकि है और यदि पूरे साल शिवसेना इसी मंत्र के साथ प्रदेश सरकार में रहते हुए यह हल्ला बनाए रखे कि ‘मनमानी और हिटलरशाही’ के अंत के लिए हम है तो उसके सासंदों-विधायकों के लिए एंटी इस्टेबलिसमेंट याकि जनता के गुस्से से बचने का बहाना होगा तो विपक्ष की राजनीति के फायदे भी होंगे।
उस नाते आगे के महिनों में मोदी-शाह के लिए महाराष्ट्र नंबर एक गुत्थी होगा। आखिर उत्तरप्रदेश के बाद नंबर दो महत्व वाला राज्य महाराष्ट्र है। लोकसभा की 48 सीटे है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा –शिवसेना ने एलायंस से चुनाव लड़ा था और 48 में से 43 सीटे एलायंस ने जीती थी। भाजपा के 23 और शिवसेना के 18 सांसद जीते थे। कांग्रेस व एनसीपी 4 और 2 सीट पर सिमटे। मगर उसके बाद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने विधानसभा चुनाव में शिवसेना और उद्धव ठाकरे को ऐसा धता बताया कि शिवसेना को अकेले चुनाव लड़ना पडा। उसके बाद चुनाव जीतने और शिव सेना को ले कर सरकार बनाने की मजबूरी के बावजूद नरेंद्र मोदी-अमित शाह ने शिवसेना को न कायदे के मंत्रालय दिए और न महत्व!
सो शिवसेना और उद्धव ठाकरे के घाव गहरे है। तभी भाजपा को आंखे दिखाते हुए शिवसेना चार साल से राजनीति कर रही है और उसका ऐलान है कि वह 2019 का लोकसभा चुनाव भाजपा के साथ मिल कर नहीं लडेगी। बहुत संभव है यह आगे ज्यादा सीटे लेने या अपना भाव बढ़ाने का पैंतरा हो। मगर इतना तय है कि उद्धव ठाकरे और शिवसेना का उनका कॉडर भाजपा का रायता फैलाना चाहता है। नरेंद्र मोदी-अमित शाह चुनाव हारे यह अब शिव सैनिकों की पहली मनोकामना है। तभी येदियुरप्पा कांड के बाद शिवसेना ने मन की भंडास में यहा तक कह दिया कि यह मनमानी और हिटलरशाही के अंत की शुरुआत है।
निसंदेह 2019 के आते-आते मोदी-शाह के लिए उद्धव ठाकरे का महत्व बढ़ेगा। उनके प्रतिद्वदी याकि मनसे के राज ठाकरे को मोदी-शाह अपना नहीं सकते। वे उद्धव ठाकरे से बढ कर मोदी विरोधी हो गए है। उन्होने दो टूक घोषणा की है कि 2019 में भारत को मोदी मुक्त कराना है।
सो बाल ठाकरे और छत्रपति शिवाजी के हिंदू राष्ट्रवादी हरकारों की राजनीति अगले बारह महिनों का बड़ा कौतुक होना है। मराठा हिंदूवादियों को गुजराती हिंदूवादी कैसे पटाते है या धोबीपाट मार उन्हे कैसे अपने बस में करते है इसे देखना दिलचस्प होगा। फिलहाल सुधीर मुनगंटीवार के बयान से तो लगा है कि उद्धव ठाकरे भी अपना वक्त आया हुआ मान रहे होंगे।

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें