देश की कई क्षेत्रीय पार्टियां भाजपा को रोकने के अभियान में लगी हैं। पर सवाल है कि बिना कांग्रेस के कैसे क्षेत्रीय पार्टियां भाजपा को रोक पाएंगी? अगर कांग्रेस के नेतृत्व वाला यूपीए एक बड़ा गठबंधन नहीं बन पाता है तो कि 2019 का चुनाव भी 2014 की ही तरह लड़ा जाएगा। और नतीजे भी पूरी तरह वैसे ही न हों तब भी उसी के आसपास होंगे। कांग्रेस यहीं बात सभी प्रादेशिक क्षत्रपों को समझाने की कोशिश कर रही है।
बताया जा रहा है कि कांग्रेस की रिसर्च टीम ने इसकी एक रिपोर्ट बनाई है, जिसमें बताया गया है कि अलग अलग लड़ने पर अगली लोकसभा की संभावित तस्वीर क्या हो सकती है। अगर पिछले चुनाव के आंकड़े को देखें तो ज्यादातर प्रादेशिक क्षत्रपों ने अच्छा प्रदर्शन किया था। तमिलनाडु में अन्ना डीएमके ने राज्य की सभी 39 लोकसभा सीटें जीत ली थीं। इसी तरह पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस ने 42 में से 34 सीटें जीती थीं। ओडिशा में बीजू जनता दल ने 21 में से 17 सीटें जीती थी। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भी तीनों क्षेत्रीय पार्टियों टीडीपी, वाईएसआर कांग्रेस और टीआरएस ने लगभग सारी सीटें जीतीं।
सो, अगर इन राज्यों में फिर नतीजे पहले जैसे ही होते हैं या तमिलनाडु में अन्ना डीएमके की जगह डीएमके आ जाती है या बंगाल में लेफ्ट को भी कुछ सीटें मिल जाती हैं तो भाजपा की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। भाजपा की सेहत पर फर्क तब पड़ेगा जब उत्तर भारत के प्रादेशिक क्षत्रपों का प्रदर्शन सुधरे और सीधी लड़ाई वाले इलाकों में कांग्रेस का प्रदर्शन सुधरे।
अगर क्षेत्रीय पार्टियों ने कांग्रेस को अलग थलग किया तो उसका फायदा अंततः भाजपा को ही मिलेगा। यह संभव है कि उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड की कुछ क्षेत्रीय पार्टियों का प्रदर्शन थोड़ा बहुत ठीक हो जाए और उससे भाजपा की सीटों में थोड़ी कमी आ जाए फिर भी वह सबसे बड़ी पार्टी होगी और सरकार बनाने के बेहद करीब होगी। राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक में जब तक कांग्रेस का प्रदर्शन नहीं सुधरेगा तब तक सबी क्षेत्रीय पार्टियां पूरा दम लगा कर भी भाजपा को नहीं रोक पाएंगी।
बताया जा रहा है कि कांग्रेस की रिसर्च टीम ने इसकी एक रिपोर्ट बनाई है, जिसमें बताया गया है कि अलग अलग लड़ने पर अगली लोकसभा की संभावित तस्वीर क्या हो सकती है। अगर पिछले चुनाव के आंकड़े को देखें तो ज्यादातर प्रादेशिक क्षत्रपों ने अच्छा प्रदर्शन किया था। तमिलनाडु में अन्ना डीएमके ने राज्य की सभी 39 लोकसभा सीटें जीत ली थीं। इसी तरह पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस ने 42 में से 34 सीटें जीती थीं। ओडिशा में बीजू जनता दल ने 21 में से 17 सीटें जीती थी। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भी तीनों क्षेत्रीय पार्टियों टीडीपी, वाईएसआर कांग्रेस और टीआरएस ने लगभग सारी सीटें जीतीं।
सो, अगर इन राज्यों में फिर नतीजे पहले जैसे ही होते हैं या तमिलनाडु में अन्ना डीएमके की जगह डीएमके आ जाती है या बंगाल में लेफ्ट को भी कुछ सीटें मिल जाती हैं तो भाजपा की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। भाजपा की सेहत पर फर्क तब पड़ेगा जब उत्तर भारत के प्रादेशिक क्षत्रपों का प्रदर्शन सुधरे और सीधी लड़ाई वाले इलाकों में कांग्रेस का प्रदर्शन सुधरे।
अगर क्षेत्रीय पार्टियों ने कांग्रेस को अलग थलग किया तो उसका फायदा अंततः भाजपा को ही मिलेगा। यह संभव है कि उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड की कुछ क्षेत्रीय पार्टियों का प्रदर्शन थोड़ा बहुत ठीक हो जाए और उससे भाजपा की सीटों में थोड़ी कमी आ जाए फिर भी वह सबसे बड़ी पार्टी होगी और सरकार बनाने के बेहद करीब होगी। राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक में जब तक कांग्रेस का प्रदर्शन नहीं सुधरेगा तब तक सबी क्षेत्रीय पार्टियां पूरा दम लगा कर भी भाजपा को नहीं रोक पाएंगी।

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