हर पीढ़ी की अपनी एक कहानी होती है। आपने अपने माता-पिता को यह कहते हुए जरूर सुना होगा कि हमारे जमाने में ऐसा होता था...वैसा होता था। दरअसल जमाना तेजी से बदल भी रहा है। बुद्धू बक्सा कहा जाने वाला टीवी अब स्मार्ट टीवी बन चुका है। लैंडलाइन फोन की जगह मोबाइल आया था और अब स्मार्टफोन उपयोग हो रहा है। क्लास रूम अब स्मार्ट हो गए हैं। आज के वो युवा जिनका जन्म साल 2000 और 2001 के बीच हुआ है, अगले साल बीस वर्ष के हो जाएंगे। हम आपको कुछ ऐसे बदलावों के बारे में बता रहे हैं, जिनके बीच यह पीढ़ी पली-बढ़ी है।
लैंडलाइन से मोबाइल
विभिन्न सरकारी और निजी एजेंसियों की रिपोर्ट के मुताबिक देश में मोबाइल/वायरलेस उपयोगकर्ताओं की संख्या लगभग एक अरब हो चुकी है। युवा वर्ग स्मार्टफोन का बड़ा यूजर बनकर उभरा है। इस पीढ़ी के अधिकांश लोगों के लिए एसटीडी-पीसीओ और साइबर कैफे जैसे शब्द नए हैं।
ऑरकुट नहीं इंस्टाग्राम
2004 में गूगल ने ऑरकुट नाम की एक सोशल मीडिया सर्विस शुरू की थी। इसका उपयोग दोस्ती, चैटिंग और फोटो शेयर करने के लिए होता था। इसके बाद आया फेसबुक और फिर ट्विटर। लेकिन युवाओं की पसंद इंस्टाग्राम है। इसकी वजह है इंस्टाग्राम का प्राइवेसी फीचर, जो युवाओं को पसंद है।
कैमरा से सेल्फी तक
मोबाइल और स्मार्टफोन की वजह से जो चीजें खत्म हो रही हैं, उनमें से एक नाम कैमरा भी है। चाहे फोटो क्लिक करनी हो, वीडियो बनाना हो या फिर सेल्फी खींचनी हो। बस अपनी जेब से स्मार्टफोन निकालिए और काम हो गया।
ओटीटी स्ट्रीमिंग
90 के दशक में घर पर मनोरंजन का एकमात्र तरीका दूरदर्शन था। समय बदला तो केबल टीवी की वजह से चैनल बढ़े और जीटीवी, स्टार प्लस, सोनी टीवी ने इसका दायरा बढ़ाया। लेकिन 19 वर्षीय नायरा का कहना है कि उन्होंने कभी अपने घर पर परिवार के साथ टीवी नहीं देखा। हां, उनकी मां जरूर सास-बहू के सीरियल देखती हैं। लेकिन नायरा ओटीटी स्ट्रीमिंग यानी मोबाइल एप पर सीरियल और फिल्में देखती हैं। नेटफ्लिक्स, वूट, जी5, अमेजन प्राइम वीडियो और हॉटस्टार ऐसे ही ओटीटी प्लेटफॉर्म्स हैं।
एलेक्सा को दे रहे ऑर्डर
एक समय ऐसा था जब लोग कैसेट, सीडी और डीवीडी पर अपने पसंदीदा गाने सुना करते थे। फिर आया आईपॉड, जिसने गाना सुनने का पूरा तरीका ही बदल दिया। इसने वॉकमैन को इतिहास बना दिया था। लेकिन अब आईपॉड भी बाजार से गायब हो रहा है और इसकी जगह ले रहा है एलेक्सा। इसे केवल चार्ज करके वाईफाई से कनेक्ट करना होता है और फिर जो आप चाहें वो सुनें।
काली-पीली टैक्सी से ओला-उबर तक
लगभग एक दशक पहले तक महानगरों में काली-पीली टैक्सियां चला करती थीं। लेकिन अब चार-पांच वर्षों में इनका स्थान मोबाइल एप आधारित कैब सेवाओं ने ले लिया है। आपको कहीं भी जाना है तो बस अपने स्मार्टफोन में इंस्टॉल एप से लोकेशन चुनकर कैब बुक कीजिए और सवारी का मजा लीजिए। इसका पेमेंट भी चाहें तो नकद करें या फिर ऑनलाइन दें।
डेटिंग भी हुई ऑनलाइन
अखबारों में क्लासिफाइड के रूप में आने वाले मैट्रिमोनियल विज्ञापन तब कम होना शुरू हुए जब ऑनलाइन मैट्रिमॉनी वेबसाइट्स आईं। एक दशक में जमाना और बदला तो डेटिंग एप्स आ गए। इन एप्स पर अपनी पसंद से साथी को चुनिए, मिलिए और फिर चाहें तो शादी भी कर लें।
कम्प्यूटर पीसी नहीं लैपटॉप, टैबलेट
लगभग एक दशक पहले तक घरों में पर्सनल कम्प्यूटर हुआ करते थे। धीरे-धीरे इनका स्थान लैपटॉप और टैबलेट ने ले लिया है।
बोर्ड गेम, वीडियो गेम और मोबाइल गेम
लूडो, सांप सीढ़ी और कैरम जैसे खेलों की जगह अब मोबाइल गेम्स ने ले ली है। क्रिकेट, कार रेसिंग से लेकर फाइटिंग तक के लिए मोबाइल गेम बनाए गए हैं। इतना ही नहीं, ये गेम्स वर्चुअल रियलिटी में भी खेले जा सकते हैं। यानी खेलने वाला एक बंद कमरे में भी खेल के मैदान को महसूस कर सकता है। इनके उपयोगकर्ता भी तेजी से बढ़ रहे हैं।
क्या आपको याद है ये सब?
लेकिन अगर आपका जन्म 90 के दशक का है और आप इसे पढ़ रहे हैं तो केवल एक मिनट के लिए अपना बचपन याद करें। हो सकता है कि कई ऐसे लम्हे आपके जहन में ताजा हो जाएं, जो वक्त की आपाधापी में कहीं छूट गए हैं।
क्या आपको शटर वाला टीवी याद है। इस टीवी में अमूमन 12 चैनल हुआ करते थे और इन्हें बदलने के लिए रेगुलेटरनुमा बटन होता था। टीवी का एंटेना भी इतिहास में खो गया है। जब क्रिकेट मैच, रामायण, महाभारत, करमचंद जासूस, नींव और हम लोग जैसे धारावाहिक देखने के लिए एंटेना घुमाया जाता था।
रोटरी डायल वाला टेलीफोन और उसकी कर्कश घंटी अब स्मार्टफोन की सुरीली धुनों में खो गई है। बजाज का वो स्कूटर, जिसे स्टार्ट करने से पहले थोड़ा झुकाना पड़ता था। यह सब मीठी यादों का हिस्सा हैं।
पर कुछ चीजें आज भी नहीं बदली हैं
मतदान की उम्रः 18 साल की उम्र होने पर ही आप चुनावों में वोट डाल सकते हैं।
शराब पीने की कानूनी उम्रः देश के कुछ राज्यों में शराब पीने की वैध उम्र 21 वर्ष है तो कहीं 23 और 25 वर्ष। चुनिंदा केंद्र शासित प्रदेशों सहित कुछ राज्यों में यह आयु 18 साल भी है।
क्रिकेट और बॉलीवुड के लिए हमारा प्यार: भले ही मोबाइल एप पर मनोरंजन की बाढ़ आ गयी हो, लेकिन आज भी सिनेमा हॉल और मल्टीप्लेक्स के बाहर लगने वाली भीड़ कम नहीं हुई है। वहीं, क्रिकेट का बुखार तो मानो लगातार बढ़ता ही जा रहा है।
इंस्टेंट नूडल्स: 80 के दशक में भारत आया इंस्टेंट नूडल्स आज भी अपनी लोकप्रियता बनाए हुए है। जब भी बात आती है कुछ जल्दी बनाने और खाने की तो लोग इसी पर भरोसा करते हैं। अकेले रहने वाले और हॉस्टल में रहने वालों के लिए तो इंस्टेंट नूडल्स मानो वरदान की तरह है।

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