सोमवार, 15 जुलाई 2019

सत्ता के लिए कुछ भी करेंगे

ऐसा लग रहा है कि अप्रैल 1980 में बनी भारतीय जनता पार्टी ने पिछले 39 साल में एक चक्र पूरा कर लिया है। ध्यान रहे 1980 का साल भारतीय राजनीति में बड़ा अहम स्थान रखता है। पहली बार सत्ता से बाहर रही कांग्रेस ने करीब तीन साल के बाद इंदिरा गांधी की कमान में फिर से केंद्र की सत्ता में वापसी की। जनता पार्टी बिखर गई थी। कांग्रेस की भारी भरकम जीत के बाद दो घटनाएं जिक्र के लायक हुई थीं। पहली घटना फरवरी की है, जब हरियाणा में जनता पार्टी के 50 में से 35 विधायकों को लेकर भजनलाल कांग्रेस में शामिल हो गए थे। तब उन्होंने कहा था- राजनीति में आपको संन्यास ले लेना चाहिए या सही समय पर सही फैसला करना चाहिए। भजनलाल को भारतीय राजनीति का प्रतीक पुरुष माना जा सकता है। उन्हें न तो दलबदल से कोई ऐतराज था, न खरीद फरोख्त से और न किसी अन्य किस्म की तिकड़म से।

उनके लगभग पूरी पार्टी को लेकर कांग्रेस में शामिल हो जाने के दो महीने बाद पार्टी विद द डिफरेंस के स्लोगन के साथ भारतीय जनता पार्टी का जन्म हुआ। अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी ने 1980 में भजनलाल और कांग्रेस द्वारा स्थापित किए गए राजनीतिक मूल्य के प्रतिकार के तौर पर एक नए राजनीतिक मूल्य की स्थापना की थी। अब ऐसा लग रहा है कि 39 साल पहले भाजपा ने जिस राजनीतिक अवधारणा के विरोध की राजनीति शुरू की थी, उसे पूरी तरह से अपना लिया है। 

भजनलाल ने 1980 में जो किया वैसा कितनी बार भाजपा ने पिछले पांच साल में कर दिया। उसने बाकी सबसे अलग होने की सारी धारणा खत्म कर दी। जैसे किसी जमाने में कांग्रेस का लक्ष्य होता था कि कोई विपक्ष नहीं हो और हर जगह कांग्रेस की सरकार हो, उसी अंदाज में भाजपा विपक्ष को खत्म कर हर जगह अपनी सरकार बनाने की राजनीति कर रही है। उसने सबसे अलग होने की विचारधारा छोड़ कर भारतीय राजनीति के बारे में कही जाने वाली तमाम पुरानी धारणाओं को अपना लिया है। ‘जंग की तरह राजनीति में सब कुछ जायज है’, ‘राजनीति संभावनाओं का खेल है’ या ‘राजनीति में कोई स्थायी दोस्त और दुश्मन नहीं होता’, ऐसी तमाम बातों को भाजपा ने आत्मसात कर लिया है। 

2016 में अरुणाचल प्रदेश में भाजपा ने वह काम किया, जो फरवरी 1980 में इंदिरा गांधी ने हरियाणा में कराया था। जिस तरह उस समय हरियाणा के मुख्यमंत्री भजन लाल पूरी सरकार लेकर कांग्रेस में शामिल हो गए थे वैसे ही अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू दिसंबर 2016 में अपनी पूरी सरकार को लेकर भाजपा में शामिल हो गए। पेमा खांडू कांग्रेस के मुख्यमंत्री थे, फिर अपनी पार्टी पीपीए बना कर उसके मुख्यमंत्री रहे और अब वे भाजपा के मुख्यमंत्री हैं। 

बहरहाल, अरुणाचल प्रदेश एक शुरुआत थी। भाजपा ने इसे जुलाई 2017 में बिहार में दोहराया। भाजपा के विरोध में महागठबंधन बना कर चुनाव लड़े नीतीश कुमार की पार्टी को भाजपा ने गठबंधन से अलग कराया और उनकी सरकार बना कर उसमें शामिल हो गई। यह अभियान अरुणाचल प्रदेश से थोड़ा अलग था पर उससे बड़ा था। 2015 के बिहार विधानसभा के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने सबसे बड़े राजनीतिक विरोधी नीतीश कुमार के डीएनए में गड़बड़ी बताई थी, जिसके जवाब में नीतीश की पार्टी ने बिहार के लोगों से डीएनए का सैंपल जुटा कर प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजा था। इतने कड़वाहट भरे संबंधों के बावजूद भाजपा ने नीतीश की पार्टी को राजद और कांग्रेस के महागठबंधन से अलग कराया और उनके साथ मिल कर अपनी सरकार बनाई। इसके बाद तो यह हर दिन की कहानी है।  नगालैंड से लेकर तमिलनाडु तक की कहानी।          

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