शुक्रवार, 19 जुलाई 2019

अमित शाह के सरकार में जाने से संगठन कमजोर हुआ..?

हर शख्स का अपनी जगह अपना महत्व होता है, फिर वह चाहे परिवार हो या समाज, या कि राजनीति, इस ब्रह्म वाक्य को आज पूरा देश महसूस करने को मजबूर है, देश की सत्ता का जबसे मोदी और अमित शाह के बीच बंटवारा हुआ है, तभी से देश के सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी का रूतबा कम होता दिखाई दे रहा है, पिछले माह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने ‘हनुमान’ अमित शाह जी को संगठन की राजनीति से बाहर कर उन्हें सरकार में अपना प्रमुख सहयोगी बनाकर पार्टी के चुनावी घोषणा-पत्र के क्रियान्वयन और कश्मीर समस्या जैसे मुद्दे सौंपकर उन्हें गृहमंत्री बना दिया।

 अब अमित शाह अपने आपमें इतने उलझ गए कि उन्हें पार्टी संगठन की ओर ध्यान देने का समय ही नहीं मिल पा रहा, यद्यपि अमित भाई पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अभी भी है, किंतु उन्होंने कार्यवाहक अध्यक्ष जे.पी. नड्डा को सम्पूर्ण कार्यभार सौंपकर अपने आपको गृह मंत्रालय तक सीमित कर लिया, यद्यपि सरकार में ऐसा कहा जाता है कि अमित शाह का हर शब्द मोदी का ही शब्द मानकर उस पर अमल किया जा रहा है, क्योंकि मोदी ने सरकार के दैनंदिनी कार्य अमित भाई को सौंपकर स्वयं के राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय मामलों तक ही सीमित कर लिया है।

इस प्रकार कुल मिलाकर सरकार का अस्सी फीसदी महत्वपूर्ण कार्यभार अमित भाई के कंधों पर आ गया है और अमित भाई उसी में व्यस्त हो गए है, इसलिए वे न तो अब पार्टी को देख पा रहे है और न ही संघ व विहिप जैसे अहम् अनुषांगिक संगठनों को? इसी कारण से पिछले दिनों से यह महसूस किया जा रहा है कि पार्टी व पार्टी के साथ तालमेल कर सरकार से जुड़े दलों में अनुशासनहीनता बढ़ती जा रही है, जिस नड्डा जैसे तीसरी श्रेणी के नेता नियंत्रण नहीं कर पा रहे हैं। हाल ही में देश में सत्तारूढ़ एनडीए संगठन में शामिल जदयू की बिहार सरकार ने भाजपा के सरंक्षक संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की गतिविधियों पर खूफिया जांच शुरू करवा दी और भाजपा कुछ नहीं कर पाई।

इसी तरह भारतीय जनता पार्टी संसदीय दल की बैठक में भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री के क्रिकेट-बल्लेबाज विधायक की करतूतों की प्रधानमंत्री मोदी ने खुलकर भर्त्सना की और यह भी कहा कि उक्त विधायक चाहे किसी का भी बेटा हो उसके खिलाफ व उसका जेल के द्वार पर स्वागत करने वाले पार्टीजनों के खिलाफ पार्टी से निकालने की कार्यवाही की जाए, किंतु चूंकि उक्त विधायक के दबंग पिता का पार्टी में रूतबा है, इसलिए उक्त विधायक को पार्टी ने सिर्फ एक नोटिस या ‘कारण बताओं सूचना-पत्र’ देकर कर्तव्य की खानापूर्ति कर ली।

 अर्थात प्रधानमंत्री के निर्देशों की भी अनदेखी कर दी गई, इसके पूर्व भोपाल की सांसद प्रज्ञा भारती ठाकुर द्वारा गांधी जी के हत्यारे नाथूराम गोड़से की तारीफ करने पर भी प्रधानमंत्री ने काफी दुःखी होकर अपने विचार व्यक्त किए थे, किंतु उक्त घटना को भी पार्टी ने कोई विशेष महत्व नहीं दिया। जबकि आज की वास्तविकता यह है कि मोदी रूपी गंगा में साथ बहने के कारण इन कथित पापियों का भी राजनीति में उद्धार हुआ है और आज ये लोग जो भी है, जिस जगह पर भी है, मोदी के कारण है।

यदि हम भाजपा का पुराना इतिहास देखें तो यह वहीं पार्टी है, जिसके शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवानी को पाकिस्तान के जनक मोहम्मद अली जिन्ना की मजार पर जाकर उनके बारें में सिर्फ दो शब्द बोलने पर पार्टी के शीर्ष पदों से इस्तीफा देना पड़ा था, आज स्वयं आडवाणी व उनके साथी डॉ. मुरली मनोहर जोशी को पार्टी के ऐसे दिन देखने पड़ रहे हैं, वे आखिर क्या सोचते होंगे?

क्या इन पितृपुरूषों की घुटन को पार्टी के किसी शीर्ष नेता ने आज तक महसूस किया? इस तरह कुल मिलाकर इतनी लम्बी जिरह करने का मकसद यह है कि अब कांग्रेस के रसातल की ओर जाने के बाद देश के आम वोटर की आस मोदी-शाह की भाजपा से ही है, और यदि ये शीर्ष नेता भी संगठन की जगह सत्ता को वरीयता देने लगे हैं तो फिर देश की भावी राजनीति का क्या होगा? क्या फिर देश में राष्ट्रीय दल एक भी नहीं बचेगा और क्षेत्रिय दल देश पर बारी-बारी से राज करेंगे?

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