रविवार, 14 जुलाई 2019

आखिर क्यों कहीं सूखा तो कहीं बाढ़ से जूझता रहता है भारत

आखिर क्या कारण है कि भारत के अधिकांश हिस्से कभी सूखे तो कभी बाढ़ की चपेट में आते रहते हैं? क्या यह जलवायु परिवर्तन है या मानव निर्मित आपदा का परिणाम है? 
मानसूनी बारिश के दौरान देश के अधिकांश हिस्सों में बाढ़ के हालात बन गए हैं। भारी बारिश के कारण असम, मेघालय, मिजोरम, पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल के कुछ हिस्सों में बाढ़ आ गई है। मौसम में आए इस परिवर्तन से पहले मई-जून में भारत के कई राज्य भीषण जलसंकट का सामना कर रहे थे। जगह-जगह लोग पानी के लिए कतारें लगाए खड़े थे जबकि कई जगहों पर तो पानी के लिए टैंकरों का सहारा लेना पड़ा।
देश के शीर्ष चार महानगरों में शुमार चेन्नई पिछले साल जहां पानी में डूब गया था वहीं इस बार जल संकट ने लोगों को बूंद-बूंद के लिए तरसा दिया है। लोगों को पानी के लिए टैंकरों का सहारा लेना पड़ रहा है। हालात यह हो गए हैं कि दोगुने दाम देने पर भी पानी के लिए दिनों का इंतजार करना पड़ रहा है। 

महाराष्ट्र का विदर्भ इलाका पानी को तरस रहा है जबकि कुछ दिन पहले तक मुंबई भारी बारिश से जूझ रही थी। एक तरफ उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, हरियाणा, बिहार में भारी बारिश हो रही है वहीं दिल्ली-एनसीआर बारिश की उम्मीद में बादलों की ओर टकटकी लगाए बैठा है। 




भारत सहित दक्षिण एशिया पर मंडरा रहा खतरा 


साइंस एडवांसेज में प्रकाशित एक शोध के अनुसार आने वाले दिनों में दक्षिण एशिया के कृषि क्षेत्र भीषण गर्मी की चपेट में ज्यादा आएंगे। इसका सबसे ज्यादा असर भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के कृषि क्षेत्रों पर पड़ेगा। सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय की डाटा के अनुसार हर साल हीटवेव (लू) की घटनाओं में वृद्धि देखी जा रही है। साल 2018 में हीटवेव की कुल 448 घटनाएं रिकॉर्ड की गईं।

आंकड़ों के अनुसार 19वीं सदी के बाद से पृथ्वी की सतह का तापमान तीन से छह डिग्री तक बढ़ गया है। हर 10 साल में तापमान में कुछ न कुछ वृद्धि हो ही जाती है। ये तापमान में वृद्धि के आंकड़े मामूली लग सकते हैं, लेकिन इनके पीछे प्रलय छिपी हुई है।


जलवायु परिवर्तन के चलते सबसे ज्यादा नुकसान भारत को


आमतौर पर जलवायु में बदलाव आने में काफी समय लगता है और उस बदलाव के साथ धरती पर मौजूद सभी जीव (चाहे वो इंसान ही क्यों न हों), जल्द ही सामंजस्य भी बैठा लेते हैं। लेकिन पिछले 150-200 सालों की अगर बात की जाए तो ये जलवायु परिवर्तन इतनी तेजी से हुआ है कि इंसानों से लेकर पूरा वनस्पति जगत इस बदलाव के साथ सामंजस्य नहीं बैठा पा रहा है।  

लेंसेट (मेडिकल जर्नल) की रिपोर्ट कहती है कि जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया में हुई क्षति का 99 फीसदी तो भारत जैसे निम्न आय वाले देशों में हुआ है। इस क्षति का आकलन गर्मी बढ़ने के कारण पैदा होने वाली परिस्थितियों, तबाही की घटनाओं, इसके चलते स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों, बीमारियों आदि को ध्यान में रखते हुए किया गया है। रिपोर्ट में पिछले दो दशकों से भी कम समय में जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव तेजी से सामने आए हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2000 से 2017 के बीच 62 अरब कार्य घंटे के बराबर की उत्पादकता नष्ट हुई है। साल 2000 में भारत में यह अनुमान लगाया गया था कि 43 अरब कार्य घंटों की क्षति हो सकती है, लेकिन पिछले दो दशकों में यह काफी बढ़ गई है। 

जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम सबसे ज्यादा प्रभावित



जलवायु परिवर्तन का प्रभाव सबसे ज्यादा मौसम पर पड़ता है। गर्म मौसम होने से वर्षा का चक्र प्रभावित होता है और इससे बाढ़ या सूखे का खतरा पैदा हो जाता है। इसके अलावा ध्रुवीय ग्लेशियरों के पिघलने से समुद्र के स्तर में भी वृद्धि हो जाती है। पिछले कुछ सालों में आए तूफानों और बवंडरों ने अप्रत्यक्ष रूप से इसके संकेत भी दे दिए हैं। 2018 में जारी संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक 2016, 2017 और 2018 सबसे गर्म वर्षों की सूची में शीर्ष पर हैं। 


एशिया में 50 डिग्री तक पहुंचा तापमान


जलवायु परिवर्तन के चलते एशिया में तापमान 50 डिग्री तक पहुंच चुका है। बार-बार आए समुद्री तूफानों से अमेरिका, कैरेबियाई द्वीपसमूह, अटलांटिक और यहां तक कि यूरोप को भी भारी नुकसान का सामना करना पड़ा। अफ्रीका के कई हिस्से भी भीषण सूखे की चपेट में रहे। 

ओडिशा, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और केरल में हाल ही में आए चक्रवात की वजह भी जलवायु परिवर्तन ही है। इस दौरान बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में 13 दबाव के क्षेत्र बने, जिसने पिछले 26 सालों के रिकॉर्ड को तोड़ दिया। 

शोधकर्ताओं के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन का प्रभाव चक्रवाती गतिविधियों के बढ़ने में ही नहीं बल्कि तापमान में वृद्धि और वर्षा में कमी के रूप में भी दिख रहा है। माना जा रहा है कि इस सदी के अंत तक तमिलनाडु का तापमान 3.1 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा, जबकि वर्षा में औसतन 4 फीसदी की कमी आएगी। 


खराब मौसम के कारण भारत में हर साल होती हैं 3,660 मौतें


जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाले खराब मौसम के कारण भारत में हर साल 3,660 लोगों की मौतें हो जाती है। हाल ही में जारी की गई एक रिपोर्ट में साल 1998 से लेकर 2017 तक आंकड़ा दिया गया था। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि खराब मौसम से होने वाली घटनाओं में बीते 20 सालों में दुनियाभर में 5.2 लाख लोगों की जानें गई हैं। इनमें सबसे ज्यादा मौतें म्यांमार में हुई हैं, जबकि दूसरे नंबर पर भारत है। 

आंकड़ों के मुताबिक, भारत में साल 2017 में खराब मौसम के कारण आई बाढ़, भारी बारिश और तूफान ने 2,736 लोगों की जान ले ली। यह रिपोर्ट जर्मनवॉच द्वारा जारी की गई है। बता दें कि खराब मौसम से हुई घटनाओं से धन की भी काफी हानि होती है। बीते दो दशकों में भारत को 67.2 बिलियन डॉलर की हानि हुई है। वहीं, वैश्विक तौर पर 3.47 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है।

यह हैं बड़े कारण

पहाड़ों और घाटियों में निर्मित और निर्माणाधीन बड़े बांध, नदियों के जलस्तर में बदलाव, अंधाधुंध खनन, जंगलों की आग, सूखा, बाढ़, बेहिसाब औद्योगिकीकरण, शहरी क्षेत्रों में लगातार चल रहा निर्माण, कम होती खेती की जमीनें, सड़कों पर बढ़ती वाहनों की भीड़ और बढ़ती जनसंख्या मौसम में बदलाव का सबसे बड़ा कारण है। 

नदियां, तालाब, पोखरों पर आबादी बढ़ रही है। भूजल स्तर दिन-प्रतिदिन नीचे जा रहा है। आंकड़ों के अनुसार भूमिगत जलस्तर में इस साल तक 54 फीसदी की गिरावट दर्ज की जा चुकी है। केंद्रीय जल आयोग के मुताबिक जून में 90 रिजर्वायरों में 20 फीसदी से भी कम पानी पाया गया है।

भारत के पास भूमि का ढाई फीसदी और दुनिया भर के पानी का चार फीसदी हिस्सा है, जबकि दुनिया की 17 फीसदी आबादी यहां रहती है। इसलिए चुनौतियां आने वाले दिनों में बढ़ने वाली हैं।

लगातार बढ़ती गर्मी को कैसे रोक पाएगा भारत

जलवायु परिवर्तन पर बनी संयुक्त राष्ट्र की संस्था आईपीसीसी ने कहा है कि अगर ग्लोबल वार्मिंग को नहीं रोका गया तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। संस्थान की ओर से जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनियाभर के देशों को इस पर तुरंत लगाम लगाने की जरूरत है। अगर ऐसा नहीं होता है तो 2030 तक धरती के कई हिस्से रहने लायक नहीं होंगे।

भारत जलवायु परिवर्तन की मार झेलने वाले देशों में सबसे प्रमुख है। देश की आबादी बड़ी है और यहां आर्थिक रूप से असमानता भी बहुत ज्यादा है। अगर ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से समुद्र का जल स्तर बढ़ता है तो देश के कई हिस्से डूब जाएंगे। वहीं दूसरी तरफ गर्म हवाएं और हीट वेव आम हो जाएंगी, जिसका सबसे अधिक असर भारत और पाकिस्तान पर होगा।

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