राजस्थान हाईकोर्ट ने भारत के संविधान में निहित समानता के अधिकार का सम्मान करने के लिए ये फैसला लिया है।
भारत के संविधान में निहित समानता के अधिकार का सम्मान करने के लिए राजस्थान हाईकोर्ट की फुल कोर्ट ने सर्वसम्मति से फैसला लिया है कि अब जजों को ‘माई लॉर्ड’ और ‘योर लॉर्डशिप’ कहने की प्रथा को खत्म किया जाए।
संभवत: ये पहला ऐसा मौका है जब किसी कोर्ट ने इस प्रथा को खत्म करने का फैसला लिया है। राजस्थान हाईकोर्ट ने सोमवार को एक नोटिस जारी कर वकीलों से अनुरोध किया है कि वे जजों को ‘माई लॉर्ड’ और ‘योर लॉर्डशिप’ कहकर संबोधित न करें।
लाइव लॉ के मुताबिक बीते 14 जुलाई को फुल कोर्ट की बैठक हुई थी जिसमें सर्वसम्मत्ति से ये फैसला लिया गया है।
इससे पहले जनवरी 2014 में जस्टिस एचएल दत्तू और जस्टिस एसए बोबडे की पीठ ने कहा था कि जजों को इन शब्दों से संबोधित करना अनिवार्य नहीं है। जजों को केवल सम्मानित तरीके से संबोधित किया जाना चाहिए।
पीठ एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें ये मांग किया गया था कि जजों को ऐसे शब्दों से संबोधित नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि यह देश की मर्यादा के खिलाफ है।
हालांकि न्यायालय ने कहा कि वो वकीलों को ये निर्देश नहीं दे सकते हैं कि वे किस तरह से कोर्ट को संबोधित करें। इसी आधार पर याचिका खारिज कर दी गई थी।
इसी तरह 2009 में मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस चंद्रू ने वकीलों को इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल नहीं करने को कहा था।
साल 2006 में बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने एक प्रस्ताव पारित किया था जिसमें कहा गया था कि ‘माई लॉर्ड’ और ‘योर लॉर्डशिप’ का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि ये औपनिवेशिक अतीत के अवशेष हैं।


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