देश की सत्ता के गलियारों में इन दिनों एक ही चर्चा गर्म है, और वह है इस बार लाल किले से प्रधानमंत्री द्वारा आजादी की बहत्तरवीं वर्गग्रंथी पर कश्मीर से अनुच्छेद-35ए खत्म करने की घोषणा। सरकार ने कश्मीर में दस हजार विशेष प्रशिक्षित सैनिक तैनात कर इसकी शुरूआत भी कर दी है। यद्यपि सरकार ने अनुच्छेद-35ए खत्म करने के अधिकारिक संकेत नहीं दिए है और सैनिकों की नई तैनाती के पीछे पुराने थके-हारे सैनिकों की वापसी, बड़े आतंकी या पाकिस्तानी हमले की आशंका आदि कारण बताए जा रहे है, किंतु केन्द्र सरकार के सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की अचानक गुपचुप कश्मीर यात्रा, वहां राज्यपाल व शीर्ष अधिकारियों से विचार-विमर्श और वहां से लौटते ही दस हजार सैनिकों की वहां तैनाती कुछ रहस्यमयी कहानी बयां करती है, जो कश्मीर में पिछले बहत्तर साल से जारी राज्य को विशेष दर्जा दिलाने वाले संविधान के अनुच्छेद-35ए से जुडी है।
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि जब राजनाथ सिंह की जगह भाजपाध्यक्ष अमित शाह को गृहमंत्री का दायित्व सौंपा गया था, तो उसके पीछे मोदी जी की एक ही मंशा थी जो कश्मीर में लागू अनुच्छेद-35ए व धारा-370 से जुड़ी थी, देश में राज कर रही भाजपा के चुनावी घोषणा-पत्र में भी जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने वाले संविधान के इन अनुच्छेदों को खत्म करने का वादा किया गया था। इसीलिए गृहमंत्री का पदग्रहण करते ही अमित शाह ने सबसे पहले कश्मीर का ही दौरा किया था और राज्यपाल सतपाल मलिक से काफी गंभीर विचार-विमर्श भी हुआ था। उसके बाद कश्मीर से निष्कासित पण्डितों से गृहमंत्री का विचार-विमर्श तथा कश्मीर की समस्याओं व वहां की स्थितियों पर गंभीर चिंतन यह स्पष्ट करता है कि सरकार शीघ्र ही कश्मीर पर कोई गंभीर कदम उठाने जा रही है, और वह कदम अनुच्छेद-35ए खत्म करने से ही सम्बंधित हो सकता है। जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सतपाल मलिक ने पिछले दिनों एक सार्वजनिक कार्यक्रम में आतंकियों को पुलिस व सेना की जगह भ्रष्ट अधिकारियों व नेताओं को निशाना बनाने का विवादित बयान देकर भी ऐसा ही कुछ संकेत देने की कौशिश की थी, जिसके लिए उन्हें बाद में खेद भी प्रकट करना पड़ा। इस तरह केन्द्र सरकार व जम्मू-कश्मीर प्रशासन के बीच यह खिचड़ी लम्बे अर्से से पक रही है और इसकी भनक जम्मू-कश्मीर के राजनेताओं को भी लग चुकी है, तभी तो ऊमर अब्ब्दुल्ला के बाद मेहबूबा मुफ्ती को अनुच्छेद-35ए को लेकर विस्फोटक बयान देने को मजबूर होना पड़ा। अब ये कश्मीर नेता, जो इस मामले पर एकजुट है, अपने बयानों से कश्मीर में भय और दहशत का माहौल तैयार करने लगे है, जिसका परिणाम यह हो रहा है कि कश्मीरियों ने अपने वतन से पलायन और अनाज (राशन) भंडारण की तैयारी शुरू कर दी है, और सैनिकों की बढ़ती गश्त और उनकी मुस्तैदी से वहां भय की भावना निर्मित होने लगी है। केन्द्र सरकार ने भी सतर्क होकर वहां की पल-पल की खबरों पर नजर रखना शुरू कर दिया है, साथ ही एनआईए ने छापे मारी की भी शुरूआत कर दी है।
अब संविधान की उन विशेष अनुच्छेदों ‘370’ व ‘35ए’ पर नजर डाली जाए, जिसके तहत् जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा मिला हुआ है। यद्यपि ये धाराएं अस्थायी है जो राज्य विधानसभा की अनुमति से कभी भी खत्म की जा सकती है, किंतु आज तक चूंकि किसी भी केन्द्र सरकारर ने इस दिशा में प्रयास नहीं किया, इसलिए ये धाराएं पिछले सत्तर सालों से चली आ रही है और जम्मू-कश्मीर को देश के अन्य राज्यों से अलग विशेष दर्जा प्राप्त है।
धारा-35ए जम्मू-कश्मीर विधानसभा को राज्य के ‘स्थायी निवासी’ की परिभाषा तय करने का अधिकार देता है। वर्ष 1954 मंे इस तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के आदेश के माध्यम से संविधान से जोड़ा गया था, इस अनुच्छेद ने स्थायी नागरिकता को विशेष अधिकार दिए है, इसके तहत अस्थायी नागरिक न जम्मू-कश्मीर में स्थायी रूप से निवास कर सकते है और न ही इस राज्य में कोई चल-अचल सम्पत्ति खरीद सकते है। साथ ही इस राज्य की कोई महिला या पुरूष किसी अन्य राज्य के निवासी लड़के-लड़की से विवाह रचा सकता है, यदि विवाह रचाता है तो संबंधित लड़के या लड़की की जम्मू-कश्मीर की स्थायी नागरिकता स्वतः ही खत्म हो जाती है। अब मोदी सरकार का प्रयास है कि जम्मू-कश्मीर से यह विशेष धारा खत्म कर इस राज्य को भी अन्य राज्यों की बराबरी में खड़ा कर दिया जाए।
अब यदि अनुच्छेद-370 पर नजर डाली जाए तो इस अनुच्छेद के प्रावधानों के मुताबिक संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में सिर्फ रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है, किंतु इन तीन विषयों के अलावा किसी अन्य विषय से संबंधित कानून को लागू करवाने के लिए केन्द्र को राज्य सरकार से अनुमति सहमति लेनी पड़ती है, इसी अनुच्छेद के तहत् जम्मू-कश्मीर का राष्ट्रीय ध्वज भी अलग है, साथ ही इसी धारा के प्रावधानों के तहत जम्मू-कश्मीर विधानसभा का कार्यकाल भी छः साल का है, जबकि पूरे देश में संसद व राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल पांच साल है और इसी धारा के तहत जम्मू-कश्मीर में सूचना का अधिकार (आर.टी.आई.) भी लागू नहीं होता।
इस तरह कुल मिलाकर संविधान के ‘370’ व ‘35ए’ के विशेष प्रावधानों के कारण भारतीय गणराज्य में सिर्फ जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त है और पूरे देश में समानता के संवैधानिक अधिकार के तहत देश की मौजूदा मोदी सरकार जम्मू-कश्मीर से ये संवैधानिक बंधन खत्म कर देश के सभी राज्यों के एक ही समानता की श्रेणी में लाना चाहती है और मोदी जी ने गृहमंत्री अमित शाह को यही महत्वपूर्ण साहसिक जिम्मेदाारी सौंपी है। इस बारे में प्रधानमंत्री व गृहमंत्री के बीच गंभीर मंत्रणा कर अगले चरणों पर चर्चा भी हो चुकी है, संभव है प्रधानमंत्री जी अगले महीनें स्वतंत्रता की बहत्तरवी वर्षग्रंथी पर लाल किले की प्राचीर से देश को यह सौगात देने की घोषणा करें!

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