ऑल इंडिया स्टूडेंट्स यूनियन, मणिपुर स्टूडेंट्स फेडरेशन और डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स एलायंस ऑफ मणिपुर जैसे छात्र संगठनों ने कहा कि राष्ट्रपति के बयान से विधेयक को उनके समर्थन का संकेत मिलता है जो पूर्वोत्तर क्षेत्र के लोगों की इच्छाओं के ख़िलाफ़ है।
मणिपुर के तीन प्रमुख छात्र संगठनों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के उस बयान की निंदा की है जिसमें उन्होंने कहा था कि नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 से उन पीड़ितों को मदद मिलेगी जो उत्पीड़न के कारण भारत में आने को मजबूर हुए हैं।
ऑल इंडिया स्टूडेंट्स यूनियन (एएमएसयू), मणिपुर स्टूडेंट्स फेडरेशन (एमएसएफ) और डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स एलायंस ऑफ मणिपुर (डीईएसएएम) ने बीते एक फरवरी को कहा कि यदि विधेयक पारित हुआ तो वे अपने आंदोलन को तेज़ करेंगे।
इस विवादास्पद विधेयक को आठ जनवरी को लोकसभा में पारित किया गया था। नागरिकता (संशोधन) विधेयक में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से भागकर भारत में शरण लेने वाले गैर मुस्लिम समुदाय के लोगों को नागरिकता पाने के लिए 12 वर्ष भारत में रहने की अनिवार्यता की जगह छह साल में नागरिकता दिए जाने का प्रावधान है।
मालूम हो कि इस विधेयक के पारित होने के बाद उत्तर पूर्व के विभिन्न राज्यों में लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।
एएमएसयू के अध्यक्ष मनजीत सारंगथम ने कहा कि छात्र संगठनों ने प्रधानमंत्री को एक ज्ञापन सौंपा है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति के बयान से विधेयक को उनके समर्थन का संकेत मिलता है जो पूर्वोत्तर क्षेत्र के लोगों की इच्छाओं के ख़िलाफ़ है।
मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने हाल में इस मुद्दे पर केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह को एक ज्ञापन सौंपा था।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बीती 31 जनवरी को कहा था कि नागरिकता संशोधन विधेयक से अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए उन अल्पसंख्यकों को न्याय मिलेगा जो प्रताड़ना के कारण भारत में आने को मजबूर हुए हैं।
संसद के बजट सत्र के पहले दिन दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में अपने अभिभाषण में कोविंद ने कहा था, ‘समाज में व्याप्त हर प्रकार के अभाव और अन्याय को समाप्त करने की संवेदनशील सोच के साथ मेरी सरकार ने, सामाजिक और आर्थिक न्याय के लिए क़ानून व्यवस्था में समुचित परिवर्तन का प्रयास किया है।’
उन्होंने कहा था, ‘नागरिकता संशोधन विधेयक के द्वारा उन पीड़ितों को भारत की नागरिकता प्राप्त होने का मार्ग आसान होगा, जो प्रताड़ना के कारण पलायन करके भारत आने पर मजबूर हुए हैं। इसमें उनका कोई दोष नहीं है बल्कि वे परिस्थितियों का शिकार हुए हैं।’
मालूम हो कि नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 को लेकर उत्तर-पूर्व के विभिन्न राज्यों विरोध प्रदर्शन का सिलसिला जारी है. इस कड़ी में बीती 30 जनवरी को असम आंदोलन में लड़ते हुए जान गंवाने वाले लोगों के परिजनों ने विधेयक का विरोध करते हुए राज्य सरकार द्वारा सम्मान के तौर पर दिए गए स्मृति चिह्न लौटा दिए।
वर्ष 1980 में असम आंदोलन के दौरान मारे गए 76 लोगों के परिवारों ने वो स्मृति चिह्न लौटा दिए, जो 2016 में उन्हें मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल द्वारा सम्मानित करते हुए दिए गए थे।
इसके अलावा भाजपा नीत नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (एनईडीए) के ज़्यादातर घटक दलों सहित पूर्वोत्तर की 10 राजनीतिक पार्टियों ने ‘नागरिकता संशोधन विधेयक’ का विरोध करने का बीती 29 जनवरी को सर्वसम्मति से फैसला लिया।
इन 10 राजनीतिक दलों में मिज़ो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ), यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी (यूडीपी), असम गण परिषद (एजीपी), नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ), नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) नेशनल डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी), हिल स्टेट पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (एचएसपीडीपी), पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट (पीडीएफ), इंडिजीनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) और केएचएनएएम शामिल हैं।
मणिपुर के तीन प्रमुख छात्र संगठनों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के उस बयान की निंदा की है जिसमें उन्होंने कहा था कि नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 से उन पीड़ितों को मदद मिलेगी जो उत्पीड़न के कारण भारत में आने को मजबूर हुए हैं।
ऑल इंडिया स्टूडेंट्स यूनियन (एएमएसयू), मणिपुर स्टूडेंट्स फेडरेशन (एमएसएफ) और डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स एलायंस ऑफ मणिपुर (डीईएसएएम) ने बीते एक फरवरी को कहा कि यदि विधेयक पारित हुआ तो वे अपने आंदोलन को तेज़ करेंगे।
इस विवादास्पद विधेयक को आठ जनवरी को लोकसभा में पारित किया गया था। नागरिकता (संशोधन) विधेयक में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से भागकर भारत में शरण लेने वाले गैर मुस्लिम समुदाय के लोगों को नागरिकता पाने के लिए 12 वर्ष भारत में रहने की अनिवार्यता की जगह छह साल में नागरिकता दिए जाने का प्रावधान है।
मालूम हो कि इस विधेयक के पारित होने के बाद उत्तर पूर्व के विभिन्न राज्यों में लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।
एएमएसयू के अध्यक्ष मनजीत सारंगथम ने कहा कि छात्र संगठनों ने प्रधानमंत्री को एक ज्ञापन सौंपा है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति के बयान से विधेयक को उनके समर्थन का संकेत मिलता है जो पूर्वोत्तर क्षेत्र के लोगों की इच्छाओं के ख़िलाफ़ है।
मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने हाल में इस मुद्दे पर केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह को एक ज्ञापन सौंपा था।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बीती 31 जनवरी को कहा था कि नागरिकता संशोधन विधेयक से अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए उन अल्पसंख्यकों को न्याय मिलेगा जो प्रताड़ना के कारण भारत में आने को मजबूर हुए हैं।
संसद के बजट सत्र के पहले दिन दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में अपने अभिभाषण में कोविंद ने कहा था, ‘समाज में व्याप्त हर प्रकार के अभाव और अन्याय को समाप्त करने की संवेदनशील सोच के साथ मेरी सरकार ने, सामाजिक और आर्थिक न्याय के लिए क़ानून व्यवस्था में समुचित परिवर्तन का प्रयास किया है।’
उन्होंने कहा था, ‘नागरिकता संशोधन विधेयक के द्वारा उन पीड़ितों को भारत की नागरिकता प्राप्त होने का मार्ग आसान होगा, जो प्रताड़ना के कारण पलायन करके भारत आने पर मजबूर हुए हैं। इसमें उनका कोई दोष नहीं है बल्कि वे परिस्थितियों का शिकार हुए हैं।’
मालूम हो कि नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 को लेकर उत्तर-पूर्व के विभिन्न राज्यों विरोध प्रदर्शन का सिलसिला जारी है. इस कड़ी में बीती 30 जनवरी को असम आंदोलन में लड़ते हुए जान गंवाने वाले लोगों के परिजनों ने विधेयक का विरोध करते हुए राज्य सरकार द्वारा सम्मान के तौर पर दिए गए स्मृति चिह्न लौटा दिए।
वर्ष 1980 में असम आंदोलन के दौरान मारे गए 76 लोगों के परिवारों ने वो स्मृति चिह्न लौटा दिए, जो 2016 में उन्हें मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल द्वारा सम्मानित करते हुए दिए गए थे।
इसके अलावा भाजपा नीत नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (एनईडीए) के ज़्यादातर घटक दलों सहित पूर्वोत्तर की 10 राजनीतिक पार्टियों ने ‘नागरिकता संशोधन विधेयक’ का विरोध करने का बीती 29 जनवरी को सर्वसम्मति से फैसला लिया।
इन 10 राजनीतिक दलों में मिज़ो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ), यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी (यूडीपी), असम गण परिषद (एजीपी), नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ), नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) नेशनल डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी), हिल स्टेट पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (एचएसपीडीपी), पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट (पीडीएफ), इंडिजीनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) और केएचएनएएम शामिल हैं।
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