गुरुवार, 21 फ़रवरी 2019

असली रंगकर्मी सरकार के अनुदानों की कृपा से वंचित

करीब 50 व्यक्तिगत अनुदान आवेदन में वितरित की जाने वाली राशि को मात्र 3 व्यक्तिगत व 5 संस्था में रेवडियों की तरह बांट दिया गया, 43 रंगकर्मियों के नाम जिन्हें मीटिंग्स में स्वीकृत किया हुआ था, उनका लिस्ट से नामोनिशान मिटा दिया गया। कहावत चरितार्थ होती है अंधा बांटे रेवडी फेर फेर अपनो को देवे ।
जयपुर,  विशेष संवाददाता। कला एवं संस्कृति विभाग के आला अधिकारी से लेकर कर्मचारी तक कला संस्कृति विभाग को कलंकित करने में लगे हुए है। यहीं तक यह सीमित नहीं रहे, विभागीय मंत्री को भी बरगलाने का कार्य ये लोग कर रहे हैं । असली रंगकर्मी सरकार के अनुदानों की कृपा से वंचित होते जा रहे हैं, वहीं गैररंगकर्मी सरकार के अनुदानों पर मौजमस्ती कर रहे हैं और अपने इशारे पर असली रंगकर्मियों को नचा रहे हैं, इससे स्पष्ट हो रहा है कि राजस्थान में रंगकर्मियों का भविष्य घोर अंधकार में जा रहा है, इसका दोषी कौन ?

कला एवं संस्कृति विभाग राजस्थान सरकार से रंगकर्मियों ने अनुदान प्राप्त करने के लिये सरकार के समक्ष आवेदन किया था, जिसमें सूत्रों के मुताबिक लगभग 50 व्यक्तिगत अनुदान आवेदन सरकार द्वारा स्वीकृत करना शेष रहा था। जिस पर करीब 50 व्यक्तिगत अनुदान आवेदन में वितरित की जाने वाली राशि को मात्र 3 व्यक्तिगत व 5 संस्था में रेवडियों की तरह बांट दिया गया, 43 रंगकर्मियों के नाम जिन्हें मीटिंग्स में स्वीकृत किया हुआ था, उनका लिस्ट से नामोनिशान मिटा दिया गया। कहावत चरितार्थ होती है अंधा बांटे रेवडी फेर फेर अपनो को देवे । 

 कला एवं संस्कृति विभाग राजस्थान से रंगकर्मियों को आशा बंघी थी कि अच्छे दिन आयेंगे। लेकिन अब तो लगता है कि रंगक​र्मियों के और भी बुरे दिन आने वाले है। क्योंकि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि नामों को ही उडा दिया जाये।

 सभी को कुछ न कुछ सरकार से अनुदान मिलता रहा है। लेकिन इस बार तो जैसे अनहोनी होने जा रही है, भविष्य रंगकर्मियों का और कला जगत के लोगों का अंधकार में प्रतीत होता है। अगर आपकी पहुंच मंत्री जी तक नहीं है तो आपको कभी सरकारी अनुदान का लाभ मिलने वाला नहीं है । जब यह शुरूआत है तो आने वाले चार सालों में असली रंगकर्मियों व कला जगत का क्या होने वाला है, भगवान ही मालिक है। मंत्री जी को समझना होगा कि चाटुकार ही कलाकार नहीं होते, उन्हें दरबारियों के दल से बाहर आकर देखना होगा । तभी राजस्थान के रंगकर्मियों के दिन फिरेंगे ।

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