बुधवार, 6 फ़रवरी 2019

बंगाल में दोहराया जाएगा बिहार का इतिहास

भाजपा का मकसद फिलहाल ऐसा माहौल बनाना है कि तृणमूल कांग्रेस से उसका मुकाबला है और कांग्रेस व लेफ्ट पार्टियां अप्रासंगिक हो गई हैं। दूसरा मकसद राज्य की नौकरशाही को ममता बनर्जी के असर से बाहर करना है। अभी नौकरशाही का भरोसा ममता में है।
लोकसभा चुनाव से पहले पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की चर्चा हो रही है। केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में कहा कि राज्य में संवैधानिक व्यवस्था चरमरा गई है। संवैधानिक व्यवस्था का चरमराना राष्ट्रपति शासन का आधार होता है। बिहार में इसी आधार पर 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने राष्ट्रपति शासन लगाया था। उस समय संघ के पुराने नेता सुंदर सिंह भंडारी बिहार के राज्यपाल थे। उन्होंने केंद्र को रिपोर्ट भेजी थी, जिसके आधार पर राष्ट्रपति शासन लगाने का फैसला हुआ था। तात्कालिक कारण रणवीर सेना द्वारा 12 दलितों की हत्या को बनाया गया था। 

तब वाजपेयी की सरकार को लोकसभा में बहुमत था पर राज्यसभा में सरकार अल्पमत में थी। जब सरकार को लगा कि वह राष्ट्रपति शासन का प्रस्ताव राज्यसभा से नहीं पास करा पाएगी तो उसने अधिसूचना वापस ले ली और तीन हफ्ते के राष्ट्रपति शासन के बाद मार्च 1999 में फिर से राबड़ी देवी की सरकार बहाल हो गई। पर इसका बड़ा फायदा भारतीय जनता पार्टी को हुआ। सितंबर-अक्टूबर 1999 में लोकसभा का मध्यावधि चुनाव हुआ, जिसमें अविभाजित बिहार की 54 में से 42 सीटें भाजपा और जदयू ने जीतीं। अकेले भाजपा को 23 सीटें मिलीं। लालू प्रसाद की सत्तारूढ़ पार्टी सिमट कर सात सीटों पर आ गई। 

क्या ऐसा कुछ पश्चिम बंगाल में हो सकता है? भारतीय जनता पार्टी उम्मीद कर रही है कि वह बंगाल में बड़ी सफलता हासिल करेगी। तभी उसने तृणमूल कांग्रेस के साथ सीधा टकराव बढ़ाया है। भाजपा को पता है कि बंगाल में राष्ट्रपति शासन के प्रस्ताव को संसद की मंजूरी नहीं मिल पाएगी। राज्यसभा में भाजपा का बहुमत नहीं है। इसलिए संभव है कि संसद का सत्र खत्म होने के बाद राष्ट्रपति शासन लगाने का फैसला हो और मंजूरी लेने का काम नई संसद तक स्थगित रहे। भाजपा को इससे फर्क नहीं पड़ता है कि मई के आखिर में बनने वाली नई संसद राष्ट्रपति शासन के प्रस्ताव को खारिज कर दे। 

भाजपा का मकसद फिलहाल ऐसा माहौल बनाना है कि तृणमूल कांग्रेस से उसका मुकाबला है और कांग्रेस व लेफ्ट पार्टियां अप्रासंगिक हो गई हैं। दूसरा मकसद राज्य की नौकरशाही को ममता बनर्जी के असर से बाहर करना है। अभी नौकरशाही का भरोसा ममता में है। आईपीएस अधिकारी राजीव कुमार के मामले में जो स्टैंड उन्होंने लिया है उससे अधिकारियों का भरोसा और बढ़ा होगा। पर अगर राष्ट्रपति शासन लग जाए और उनके चहेते अधिकारियों को इधर उधर कर दिया जाए तो भरोसा टूटेगा। भाजपा राज्यपाल की कमान में चुनाव कराएगी तो पुलिस और अर्धसैनिक बलों की तैनाती उसके हिसाब से होगी। भाजपा के अच्छा प्रदर्शन करने के लिए इतना काफी है।

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