गुरुवार, 14 फ़रवरी 2019

16वीं लोकसभा का काम और अवसर खत्म

16वीं लोकसभा का काम और अवसर खत्म वह अवसर भी, जिसमें मां भारती की संतानों ने, हिंदुओं ने पूरी शिद्दत से 2014 के चुनाव में 16वीं लोकसभा को हिंदू राष्ट्रवादियों के बहुमत से गढ़ा था। 
तो खत्म 16वीं लोकसभा का काम! और खत्म वह अवसर भी, जिसमें मां भारती की संतानों ने, हिंदुओं ने पूरी शिद्दत से 2014 के चुनाव में 16वीं लोकसभा को हिंदू राष्ट्रवादियों के बहुमत से गढ़ा था। सोचें, नरेंद्र मोदी पर, जिन्हें जनता ने प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठाया था। जिन्होंने अपने आपको राष्ट्रवादी हिंदू कहा था। तब जनता का विश्वास था कि हिंदुवादी बहुल 16वीं लोकसभा नेहरू के आइडिया ऑफ इंडिया से मुक्ति दिलाते हुए मां भारती याकि हिंदू याकि संघ के आइडिया ऑफ इंडिया में देश को बदलने वाली बनेगी। देश की चाल, उसका चेहरा, उसका चरित्र बदलेगा। और बुधवार 13, फरवरी 2019 को वह लोकसभा अपने लेखे के साथ खत्म हुई। त्रासद है कि आखिरी दिन भी संघ, मोहन भागवत सहित करोड़ों-करोड़ उन हिंदुओं याकि मां भारती की संतानों को नरेंद्र मोदी के धोखे का एक और प्रकरण प्राप्त हुआ। राष्ट्रीय नागरिकता कानून पर संसद का ठप्पा नहीं लगा। लोकसभा में पूर्ण बहुमत, राज्यसभा में सबसे बड़े दल के बावजूद सरकार इतनी सहमति भी नहीं बना पाई कि मां भारती की इस भूमि को हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध की नैसर्गिक पुण्य भूमि, स्थायी शरणगाह मानी जाए। 

भला कैसे माना जाता? जो काम 2014 में सत्ता संभालते ही होना था उसे भी नरेंद्र मोदी ने आखिरी सत्र में वोट लेने के मकसद में धोखे की टांट में लपेट कर जैसे पेश किया तो क्यों विरोधी इस बिल को पास होने दें? क्या यह या ऐसे बिल 2014-15 में ही नहीं आ जाने चाहिए थे? सचमुच विचारें हिंदू राष्ट्रवादियों की 16वीं लोकसभा के गुजरे पांच सालों पर। क्या पांच सालों की पांच ऐसी कोई बात, कोई पांच ऐसे कानून है, जिससे मां भारती के चाल, चेहरे, चरित्र में हिंदू आइडिया ऑफ इंडिया के पांच आयाम जुड़े हों? हिंदू राष्ट्रवादियों के पांच सपने पूरे हुए हों? मैं सवा सौ करोड़ लोगों की बात नहीं कर रहा हूं। मैं उस हिंदू, उस हिंदू भक्त की बात कर रहा हूं, छप्पन इंची छाती पर फिदा उन हिंदू राष्ट्रवादी चेहरों के परिप्रेक्ष्य में बात कर रहा हूं, जिन्होंने 2014 में दिवानगी से नारा लगाया था कि जो हिंदू की बात करेगा वहीं देश पर राज करेगा!

लेकिन पांच सालों में लोकसभा में एक भी दफा हिंदू की बात नहीं हुई। हां, पांच सालों में जो हुआ वह सिर्फ नरेंद्र मोदी द्वारा, नरेंद्र मोदी के लिए, नरेंद्र मोदी का कीर्तन था। मां भारती की बजाय मोहन भागवत से, संघ के पदाधिकारियों से, भाजपा के नेताओं से मोदी ने संसद के बाहर और संसद के भीतर कुल मिला कर अपनी आरती उतरवाई। इन पांच सालों में भारत राष्ट्र-राज्य के नक्शे में मां भारती का चित्र नहीं, भारत माता का मंदिर नहीं, बल्कि नरेंद्र मोदी का चित्र और उनका मंदिर बना। पूरे देश को, पूरी सरकार को, पूरे मीडिया को, सभी संस्थाओं, संस्थानों को नरेंद्र मोदी ने अपनी फोटो, अपनी आरती, अपने प्रवचन, अपने कीर्तन के मूर्खतापूर्ण जुमलों में झोंका कि देखो हमारे विष्णु अवतार ने शौचालय बनाए हैं। दाम बांधे हैं। आर्थिकी को दुनिया में छठा बना दिया है। दुनिया में धूम करा दी है! 

पर ये बातें संसद के बाहर की हैं। फिलहाल 16वीं लोकसभा के कार्यकाल के दायरे में ही अभी सोचें तो सवाल उठेगा कि क्या कोई भक्त या मां भारती का लाल बताएगा कि आजाद भारत की इस पहली हिंदुवादीबहुल लोकसभा में ऐसा क्या हुआ, जिससे राष्ट्र की चाल, चेहरे, चरित्र में परिवर्तन की हिंदू उमंग फलीभूत हुई? कौन सा कानून बना, जिसने मोहन भागवत को, संघ परिवार को गदगद किया? मैं बहुत एक्सट्रीम में मूर्ख भक्तों की चाहना वाला सवाल पूछ रहा हूं कि इस लोकसभा में किस मां भारती के लाल ने भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का संकल्प या प्राइवेट बिल रखा? गिरिराज सिंह से ले कर गेरूआ पहने जो साधु-संत-साध्वियां चुनी गईं उसमें किसकी हिम्मत हुई, जिसने गोहत्या पर पाबंदी के अखिल भारतीय कानून की जिद्द की? बक-बक करने वाले इन चेहरों ने कभी संसद में, कैबिनेट में अपनी इस बक-बक पर विचार करने, विधेयक बनवाने या प्राइवेट बिल लाने की हिम्मत की कि मुस्लिम आबादी पर नियंत्रण वक्त का तकाजा है? क्या स्म़ृति ईरानी, प्रकाश जावडेकर ने मदरसों को आधुनिक शिक्षा में बदलने या शिक्षा के भगवाकरण के लिए कोई कानून बनवाया? क्या उतना भी हुआ जो वाजपेयी के समय डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने किया था? हां, उस हकीकत में पिछले पांच सालों का नरेंद्र मोदी का मां भारती की संतानों से यह नंबर एक धोखा है, जो पूरे पांच साल विरोधियों से शोर ही नहीं सुनाई दिया कि शिक्षा का भगवाकरण हो रहा है! 

याद रखें कि वाजपेयी राज में डॉ. जोशी के पांच सालों में लगातार शिक्षा के भगवाकरण की आलोचना बनी थी जबकि 16वीं लोकसभा के कानूनों से, काम से एक दफा भी भगवाकरण के खिलाफ हल्ला नहीं हुआ। इसलिए क्योंकि नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार में शिक्षा का एजेंडा मतलब स्मृति ईरानी थीं।

चलिए इसे भी छोड़ें। इसलिए कि नरेंद्र मोदी का बुद्धि, शिक्षा, हार्वर्ड से भला क्या लेना-देना! पर राम मंदिर बनाने से तो लेना–देना था। क्या 16वीं लोकसभा में राम मंदिर बनाने का विधेयक, अध्यादेश आया? क्या जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 या 35ए जैसे अनुच्छेद खत्म करने का संकल्प, प्रस्ताव पेश हुआ? क्या समान नागरिक संहिता बनाने और उससे हिंदू, मुस्लिम सभी को बाध्य बनाने का विधेयक मोदी सरकार ने पेश किया?  

हकीकत है कि मेरे लिखे के असंख्य पाठक हिंदू राष्ट्रवादी हैं। इन सबका मुझसे गिला है कि मैंने 2014 में नरेंद्र मोदी को सिर आंखों बैठाया था लेकिन शपथ हुई नहीं कि नवाज शरीफ को न्यौतने से लक्षण बताते-बताते हिंदुवादी सरकार के खिलाफ आप ऐसे हाथ धो कर पड़े कि आज कांग्रेस, विपक्ष की गोदी में खेल रहे हैं। कल ही मुझे हैदराबाद  से हिंदूवादी सोहनलाल ने कांग्रेस को सलाह देने वाली मेरी सीरिज पर मैसेज दिया कि आपको तो 24, अकबर रोड में बैठना चाहिए। राहुल गांधी का सलाहकार बनना चाहिए। पर अपना हिंदू राष्ट्रवादी सोहनलाल, लक्ष्मी डाड, पीके, दीपक आदि से पूछना है कि मां भारती की इन संतानों में कोई तो बताए कि नरेंद्र मोदी की कमान में हिंदुवादी 16 वीं लोकसभा जाया हुई या नहीं? इन्होंने 2014 में राम का देवालय बनने का सपना देखा था या शौचालय का? 

कितना शर्मनाक है जो मुझे  मूर्ख भक्तों को आईना बताते हुए पूछना पड़ रहा है कि एक भी काम, एक भी एजेंडा (स्वदेशी से ले कर अनुच्छेद 377 से ले कर राम देवालय तक) 16वीं लोकसभा से क्या सधा?  यदि नहीं तब किस बात के लिए मोहन भागवत, संघ, हिंदू राष्ट्रवादी मोदी-मोदी का कीर्तन कर रहे हैं? तब क्या मोदी ने हिंदू आइडिया से धोखा, विश्वासघात किया है या नहीं? क्या किसी भी कसौटी पर 16वीं लोकसभा हिंदू आंकाक्षा, राष्ट्र-राज्य की किसी भी हिंदू उमंग आंकाक्षा में सफल हुई? क्या 16 वीं लोकसभा ने हिंदू जनादेश के अनुसार कोई काम किया? और यदि नहीं तो इसके बावजूद हिंदू से विश्वासघात के पांच साला लेखे के बाद भी क्या हम हिंदुओं को नरेंद्र मोदी की आरती उतारनी चाहिए? 

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