बुधवार, 20 मार्च 2019

उठ मतदाता, उठ ! रंग चढ़ता-उतरता रहेगा

चुनाव आ गये हैं। इसलिए हे मतदाता नेता तो खानदानी होते हैं। तू खानदानी मतदाता है। तेरे दादा भी मतदाता थे, पिता भी मतदाता ही रहे, तू भी मतदाता है और तेरी संततियां भी मतदाता ही रहेंगी।



उठ मतदाता, उठ! तेरे दिन फिर गये हैं। कहते हैं कि बारह साल में तो घूरे के भी दिन फिर जाते हैं। हमें पता नहीं कैसे फिरते हैं। एक कहावत है सो कह दी, वरना तो हमने घूरे को हमेशा बढ़ते ही देखा है। यदि उसका बढ़ना ही उसके दिन फिरना है, तो रामजी भली करें. हालांकि हमें नहीं लगता कि इसमें रामजी कुछ कर सकते हैं, पर ऐसा भी कहने का चलन है तो हमने भी कह दिया।



कहने में किसी का कुछ जाता नहीं है। यकीन न हो तो नेताओं की बातों को देख लीजिए। उनका कभी कुछ नहीं जाता। जो जाता है मतदाता का जाता है। पर तू निराश न हो, हताश न हो, अब तेरे दिन फिरनेवाले हैं। भले ही चार दिन की चांदनी हो, पर मतदाता के जीवन में यह भी क्या कम है। 


चुनाव आ गये हैं। इसलिए हे मतदाता, उठ और अवसर की रेवड़ियां बटोरने की तैयारी कर। यही तो मौका है तर माल खाने का। दो-चार साल में एक बार ही तो ऐसा मौका आता है। भाई लोगों की चलती तो पूरे देश में एक साथ चुनाव कराके तेरा यह सुख भी छीन लेते। बच गया तेरा सुख। अब चार दिन चांदनी है। इसलिए उठ, ऐसे घर में पड़ा मत रह। बाहर वादों और नारों की बहार आ चुकी है और तू अब भी अपनी कुटरिया में रजाई में दुबका हुआ है। यूं मत दुबक। अब तो मौका मिला है तुझे। सीना तान और बाहर निकल। देख कैसी सुहानी फिजा है।

होली से पहले ही किसी नेता के चेहरे पर रंग आ रहे हैं, तो किसी के चेहरे से रंग उड़ रहे हैं। होली के बाद भी रंग चढ़ता-उतरता रहेगा। पर तू चिंता मत कर। तेरे चेहरे पर तो अब रंग ही रंग होना चाहिए। बाहर निकल कर तो देख, तेरे स्वागत में कैसे मुस्कुराहटें बरस रही हैं। माई-बाप हो गया है तू आजकल। अब तू आम नहीं रहा, खास हो गया है। इस खास होने का लुत्फ उठा। यूं सिर को न झुका। उठ चल बाहर निकल।

सरकार में वही नहीं है जो कुर्सी पर है। जो कुर्सी पर नहीं है वह भी सरकार है। क्या कभी देखा है तूने उसे जो सरकार में नहीं है। देख, उसे ध्यान से देख! क्या वह सरकार से कुछ कम लगता है। उसकी आन-बान-शान में क्या कोई कमी आयी है। अरे नादान, छोड़ अपना मचान और मैदान में आकर देख, देख रूप-रंग हैं जुदा-जुदा फिर भी एक हैं। तू निरा मतदाता है, थोड़ा नेता होकर सोच। क्या कहा? तू कैसे नेता हो सकता है? 

बात तेरी भी सही है। नेता तो खानदानी होते हैं। तू खानदानी मतदाता है। तेरे दादा भी मतदाता थे, पिता भी मतदाता ही रहे, तू भी मतदाता है और तेरी संततियां भी मतदाता ही रहेंगी। पर इस बात का गम न मना। अपनी स्थिति को समझता है तो उठ, अवसर मिल रहा है तो लाभ उठा। बाहर निकल कर देख रेलम-पेला है, नोटों का खेला है।

तू मतदाता है। मायूसी से तो तेरा हमेशा का नाता है। इन दिनों तो उसका दामन छोड़, उठ! बाहर निकल और चुनाव से नाता जोड़। माना अब सब कुछ हाइटेक हो गया है। पीआर एजेंसी है, इलेक्शन मैनेजमेंट है, सबकुछ इवेंट है पर तू भी तो कुछ कंटेंट है। तेरे बिना किसका जमना टेंट है। 

तू भीड़ है, जय-जयकारा, मंत्री से लेकर चमचों तक का बस तू ही तो एक सहारा है। मत कर मायूस उनको। उठ, देख कैसे तेरी राह निहार रहे हैं। तेरी खातिरदारी का इंतजाम भी किया है, खुलेआम नहीं तो क्या हुआ। तेरी सेवा में इन दिनों कोई कमी नहीं रहने देंगे।

तुझे तो अपनी पलकों पे बैठा लेंगे। तू इन दिनों उनका लाड़ला है, दुलारा है। नेता भगवान हैं, तो तू भी केवट है। तेरे बिना उनकी नैया पार नहीं लगेगी। अपनी कीमत पहचान। मौका मिला है। तू बैरर चैक है, खुद को भुना, जिस भी बैंक से मौका मिले खुद को कैश कर-एैश कर। यूं न मुंह को छिपा, निराशा की चादर हटा। माना चार दिन बाद फिर वही अंधेरी रात होगी। पर अभी तो सुहानी चांदनी है। 

बाहर निकल, चांदी काट, मत तोड़ यूं ही खाट। उठ, मतदाता, उठ, करोड़पति के बारे में मत सोच। कड़कपत्ती के बारे में सोच। जहां-तहां सरकार कड़क पत्तियां पकड़ रही है पर कितनी पकड़ेगी। तुझे मलाई नहीं तो क्या खुरचन भी न मिलेगी? तेरी भी कुछ कीमत है। अपनी कीमत को पहचान।

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