'हजारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पर रोती है, बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा।' 'एक और देवदास' के लिए राजेन्द्र सिंह गहलोत मृत्यु उपरांत भी याद किये जायेंगे, अद्भुत, अविश्वसनीय प्रस्तुतिकरण, जाने-अंजाने इतिहास इसी तरह लिखे जाते हैं।
जवाहर कला केंद्र को राज रंगम समारोह के पांचवे दिन एक अजीब उदासी ने घेरा हुआ था, रंगायन में सन्नाटा पसरा था, दर्शक आज हमेशा की तरह अंधेरे में नहीं थे, रोशनी में थे, रंगायन की ग्रीन लाइट की रोशनी में।सारा माहौल मरा- मरा था, मंच पर वरिष्ठ रंगकर्मी राजेंद्र सिंह गहलोत लिखित, निर्देशित और एकल अभिनीत नाट्य संध्या 'एक और देवदास' का मंच देखकर अजीब सी उदासी मन पर छा रही थी, अस्पताल का पलंग, चारों तरफ इंसान के हालातों से जन्मा रस्सियों से बना मकड़जाल जिससे इंसान कितना ही निकलने की कोशिश करें उसका मन नहीं निकल पाता, बिना सुईयों की घड़ी जो जीवन के ठहराव की ओर इशारा कर रही थी कि मौत और प्रेम के लम्हों में समय थम सा जाता है, देखा जाए तो समय होता ही नहीं।
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| सर्वेश भट्ट, वरिष्ठ कला समीक्षक |
शीशा टूटने पर पता चलता है कि शीशा था, जैसे मौत आने पर पता चलता है कि जीवन था । जीवन के दो रंग, एक काला,एक सफेद । एक ऐसा अंधेरा जिस के राज सिर्फ इंसान का खुद का मन जानता है जिसके लिए राजेंद्र सिंह गहलोत ने नाटक में कहा कि कई सच ऐसे होते हैं जिसे आदमी अकेले में खुद से बोलते हुए भी डरता है, और शीशे का सफेद रंग बता रहा था उस उजाले को, जिसके लिए गहलोत ने कहा कि कई झूठ ऐसे होते हैं जिन्हें लाउडस्पीकर पर बोला जाता है। रस्सियों के मकड़जाल के पीछे घूमता औरत का साया, जो इंसान के दिलों दिमाग में घूमता रहता है वह कह रहा था वह मेरी जिंदगी में आई नहीं,उसने एंट्री ली स्टार्स की तरह और आंसू सपने, यादों के बाद मौत की आगोश में जाते इंसान की परिणिति के बारे में गहलोत कहते हैं और छोड़ गई एक और देवदास।
वरिष्ठ नाट्य निर्देशक राजेंद्र सिंह गहलोत ने अपनी अनोखी और प्रयोगात्मक प्रस्तुति को इस ढंग से हर स्तर पर सजाया चाहे वह लेखन हो, अभिनय हो, निर्देशन हो, मंच सज्जा हो, प्रकाश परिकल्पना हो, संगीत संयोजन हो, या रूप सज्जा।
'एक और देवदास' रंगायन में बैठे हर व्यक्ति में बैठे देवदास के रूप में उसको रुला रही थी । नाटक खत्म हो गया था लेकिन दर्शक सीटों पर जमे थे जैसे जिंदगी खत्म हो जाती है और मृत शरीर पड़ा रह गया हो । गहलोत की आवाज सभागार में गूंजती है रुक जाओ नाटक और जिंदगी खत्म नहीं होते। लेकिन मृत शरीर कब तक पड़ा रह सकता है उसे तो खुद के बनाए घर से भी परिजनों मित्रों रिश्तेदारों द्वारा निकाल दिया जाता है तो रंगायन कैसे पड़ा रख सकता था। भीगी आंखों और टूटे कदमों से निकलते दर्शक सालों साल नहीं भूल पाएंगे राजेन्द्र सिंह गहलोत की बेहद अनूठी और रूला देने वाली सफल प्रस्तुति 'एक और देवदास।'


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