बुधवार, 27 मार्च 2019

अदालत के हस्तक्षेप से हुए हैं चुनाव में कई सुधार

नामांकन पत्रों में सुधार एवं राजनीति में सादगी के लिए न्यायालय ने कई फैसले सुनाये

लोकतंत्र में सबसे महत्वपूर्ण अंग नागरिक होते हैं, क्योंकि उन पर संसद या राज्य विधानसभाओं में अपने प्रतिनिधियों को चुनाव करने की जिम्मेदारी होती है। मतदाताओं को यह अधिकार भी है। मतदाताओं के लिए अपने उम्मीदवारों के बारे में जानना आसान हो गया है। 

यह सुधार हो पाया न्यायालय के हस्तक्षेप की वजह से। खासकर नामांकन पत्रों में सुधार एवं राजनीति में सादगी के लिए न्यायालय ने पिछले दिनों कई ऐतिहासिक व उल्लेखनीय फैसला सुनाया। जिसने जटिल परिस्थितियों को आसान किया है। चुनाव आयोग को अनुच्छेद 324  के तहत चुनाव प्रक्रिया के निरीक्षण, दिशा निर्देश और नियंंत्रण का अधिकार दिया गया है।

2001 के एडीआर की एक अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने 2 मई, 2002 को आदेश दिया था कि इसमें सूचना के अधिकार का संज्ञान लेते हुए चुनाव आयोग से कहा था कि वह प्रत्याशी के आपराधिक रिकाॅर्ड, उसकी, उसके पति या पत्नी और निर्भर व्यक्तियों की संपत्ति और शैक्षणिक योग्यता की जानकारी मुहैया कराएं।इसके बाद से आयोग ने नामांकन फाॅर्म के साथ एक हलफनामा अनिवार्य बना दिया. तब के फाॅर्म में प्रत्याशी की वैवाहिक स्थिति की जानकारी नहीं मागी गयी थी। इसके बाद केंद्र सरकार ने जनप्रतिनिधित्व कानून व निर्वाचन नियमों के निर्वहन के तहत हलफनामे का प्रारूप बदल दिया। अगस्त 2012 मे जोड़े गये नियमों के तहत पत्नी या पति के नाम, पैन और आयकर भरने संबंधी जानकारी मांगी गयी थी. इसके पहले कहीं भी वैवाहिक स्थिति या पति  अथवा पत्नी का जानकारी नहीं मांगी जाती थी। 

इस प्रकार फाॅर्म 26 में अगस्त, 2012 को पहली बार प्रत्याशी से जीवन साथी के नाम की जानकारी मांगी गयी। आयोग ने नामांकन पत्र खारिज करने के मामले को 13 मार्च, 2003 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गये फैसले के अनुसार तय करते हुए अधिसूचना जारी कर दी थी कि नामांकन अधिकारी को नामांकन पत्र खारजि करने का अधिकार नहीं होगा. पिछले दिनों 13 सितंबर, 2013 को सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया कि रिक्तियां छोड़ने पर हलफनामा रद्द हो जायेगा। 

कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसा होने पर नामांकन अधिकारी रिमांइडर जारी कर छोड़ी गयी जानकारी की मांग करें। इसके बाद भी जानकारी उपलब्ध नहीं हो पाती है, तो नामांकन रद्द होगा।  नामांकन खारिज करने पर आयोग द्वारा लगायी गयी पाबंदी को आंशिक रूप से संशोधित किया गया। पांच  मई, 2014 को सर्वोच्च न्यायालय ने यह व्यवस्था दी कि चुनाव आयोग किसी भी उम्मीदवार को चुनाव खर्च संबंधी गलत ब्योरा देने पर अयोग्य घोषित कर सकता है।

पांच फरवरी, 2015 को सर्वोच्च न्यायालय ने यह व्यवस्था दी। किसी उम्मीदवार द्वारा उसकी आपराधिक पृष्ठभूमि की जानकारी नहीं देने, खास कर जघन्य अपराधों का या भ्रष्टाचार या नैतिक पतन संबंधी अपराधों के बारे में उम्मीदवार के विरुद्व अपराध लंबित है या संज्ञान लिया जा चुका है या चार्ज निर्धारित किये जा चुके है, इस सूचना के अभाव को अवांछित माना जायेगा।

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