रविवार, 31 मार्च 2019

सर्जिकल स्ट्राइक के हीरो हुड्डा ने राष्ट्रीय सुरक्षा पर राहुल गांधी को सौंपी रिपोर्ट

पाक अधिकृत कश्मीर में 2016 में आतंकियों के लॉन्च पैड पर की गई सर्जिकल स्ट्राइक के मुख्य रणनीतिकार लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) डी एस हुड्डा ने रविवार को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को राष्ट्रीय सुरक्षा पर एक रिपोर्ट सौंपी।
  
कांग्रेस अध्यक्ष ने एक महीने पहले ही उन्हें एक दृष्टि-पत्र सौंपने को कहा था। उत्तरी सैन्य कमान के पूर्व कमांडर को गांधी द्वारा फरवरी में देश के लिये दृष्टि पत्र तैयार करने के लिये बनाए गए राष्ट्रीय सुरक्षा पर कार्य बल का प्रमुख बनाया गया था। गांधी ने ट्वीट किया, लेफ्टि. जनरल (सेवानिवृत्त) डी एस हुड्डा और उनके दल ने भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा पर एक व्यापक रिपोर्ट तैयार की है और उन्होंने इसे आज मुझे सौंपा।

इस विस्तृत रिपोर्ट पर पहले कांग्रेस पार्टी के अंदर चर्चा और बहस की जाएगी। कांग्रेस अध्यक्ष ने हुड्डा और उनके दल को इस प्रयास के लिये धन्यवाद किया। सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी ने पार्टी द्वारा बनाई गई समिति की अध्यक्षता की और विशेषज्ञों के एक चयनित समूह से परामर्श के बाद इसे तैयार किया।
राहुल गांधी से मुलाकात के बाद हुड्डा ने कहा, कांग्रेस अध्यक्ष ने मेरी अध्यक्षता में राष्ट्रीय सुरक्षा पर एक कार्यबल गठित किया था। मैंने राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति दस्तावेज तैयार किया और आज इसे उन्हें सौंप दिया।

राजस्थान के शिवगंज में एक फाइटर प्लेन क्रैश हुआ

शिवगंज के पास रविवार को एक फाइटर प्लेन क्रैश होकर नीच गिर गया है। इस घटना में दोनों पायलेट सुरक्षित बच गए हैं। फाइटर प्लेन जोधपुर रेंज के आईजी सचिन मित्तल ने इस घटना की जानकारी दी है। बताया जा रहा है कि यह लड़ाकू विमान सिरोही के गोंडाना में शिवगंज के पास दुर्घटनाग्रस्त हुआ है।

भारतीय वायुसेना की ओर से जारी बयान में बताया गया कि रविवार सुबह करीब 11.45 बजे एक मिग -27 यूपीजी विमान, जो कि उटारलाई वायु सेना के बेस से उड़ा था। तकनीकी समस्या के कारण जोधपुर से लगभग 120 किलोमीटर दक्षिण में दुर्घटनाग्रस्त हो गया है। पायलट सुरक्षित हैं। 
यह लडाकू विमान रूटीन मिशन पर था । इस हादसे में दोनों पायलेट सुरक्षित बच गए हैं। 

'मैं भी चौकीदार' कैंपेन की शुरुआत, मोदी बोले-जनता के पैसे पर 'पंजा' नहीं पड़ने देंगे

 पीएम नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में 'मैं भी चौकीदार' अभियान की शुरूआत की। इस मौके पर पीएम देशभर से चुनी गई 500 जगहों पर चौकीदारों को संबोधित किया। इस मौके पर पीएम मोदी ने कहा कि 2013 में उन्होंने कहा था कि उनकी ये कोशिश रहेगी कि वे जनता के पैसे पर पंजा नहीं पड़ने देंगे। 

पीएम ने कहा, "एक चौकीदार के रूप में मैं अपनी जिम्मेदारी निभाऊंगा, 2014 में भाजपा ने मुझे दायित्व दिया उसके बाद मुझे देश के कौने कौने में जाने की नौबत आयी, तब मैंने देश के लोगों से कहा थी कि आप दिल्ली का दायित्व जो मुझे दे रहे हैं। 

उन्होंने कहा कि देश की जनता को राजा-महाराजा की ज़रूरत नहीं है। देश की जनता को हुकुमदारों की ज़रूरत नहीं है। देश की जनता चौकीदार को पसंद करती है। आज देशभर में करीब 500 से अधिक स्थानों पर इसी प्रकार से देश के लिए कुछ कर गुजरने वाले, देश के सम्मान में ही अपना गर्व अनुभव करने वाले लाखों लोगों से तकनीक के माध्यम से मुझे मिलने का सौभाग्य मिला है। 

अमित शाह हुये माला माल

अमित शाह की संपत्ति सात साल में तिगुनी हुई  
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने शनिवार को गुजरात की गांधीनगर लोकसभा सीट से नामांकन भरा। नामांकन में दी गई जानकारी के मुताबिक पिछले सात सालों में उनकी संपत्ति में तीन गुना इज़ाफ़ा हुआ है।

अपने हलफ़नामे में अमित शाह ने बताया कि उनकी और उनकी पत्नी की चल-अचल संपत्ति 38.81 करोड़ है जो साल 2012 में 11.79 करोड़ थी।

इसमें 23.45 करोड़ की संपत्ति उन्हें अपने परिवार से विरासत में मिली है।

अमित शाह और उनकी पत्नी के बचत खाते में 27.80 लाख रुपये हैं, इसके अलावा दंपत्ति के पास कुल मिलाकर 9.80 लाख रुपये का फिक्स्ड डिपॉज़िट है।

दंपत्ति के नामांकन में इनकम टैक्स रिटर्न का जो ब्योरा दिया गया है उसके मुताबिक इनकी सालाना आय 2.84 करोड़ रुपये है।

भारत बना अंतरिक्ष महाशक्ति

देश के वैज्ञानिकों ने विकसित की ए-सैट मिसाइल क्षमता
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के वैज्ञानिकों ने देश को एक बार फिर गर्व करने का मौका दिया है। बीते 27 मार्च को वैज्ञानिकों ने सफल ए-सैट परीक्षण को अंजाम दिया। हालांकि, भारत बहुत पहले से ही अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी था, लेकिन इस परीक्षण से अब वह अंतरिक्ष महाशक्ति बन गया है। अब हम अंतरिक्ष में भी दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम हैं। 

इसरो

इसरो ने 19 अप्रैल, 1975 को देश का अपना पहला उपग्रह 'आर्यभट्ट' लॉन्च किया था।
इसरो ने साल 1983 में  कम्युनिकेशन और ब्रॉडकास्ट के उद्देश्य से 9 सैटेलाइट लॉन्च किये थे, जिसे इनसैट के रूप में जाना जाता है।

इसरो ने साल 1993 में पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (पीएसएलवी) के माध्यम से 19 देशों के 40 से ज्यादा सैटेलाइट लॉन्च किये थे।

इसरो के चंद्रमा पर मिशन 'चंद्रयान' ने भारत को अग्रणी देशों के बीच ला खड़ा किया था। साल 2008 में चंद्रयान के प्रक्षेपण के साथ इसरो दुनिया की उन छह अंतरिक्ष एजेंसियों में एक बन गया था जिसने यह प्रयास किया था। 

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के मंगलयान मिशन ने भारत को पहले प्रयास में मंगल ग्रह पर पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बना दिया था। यह अभियान नवंबर, 2013 में लॉन्च किया गया था। इस मार्स ऑर्बिटर मिशन ने भारत को दुनिया के उन चार देशों में से एक बना दिया था, जो मंगल ग्रह पर पहुंचने में सफल हुए हैं। 

इसरो ने साल 2013 में देश की अपनी पहली भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (आईआरएनएसएस) विकसित की थी। इससे भारत दुनिया के उन पांच देशों में से एक हो गया है, जिनके पास अपनी खुद की नेविगेशन प्रणाली है।

इसरो ने साल 2015 में भारत की अपनी अंतरिक्ष वेधशाला एस्ट्रोसैट को लॉन्च किया था. एक विकासशील देश द्वारा लॉन्च की गयी यह पहली अंतरिक्ष दूरबीन है।
साल 2016 में इसरो ने स्वदेश निर्मित स्पेस शटल आरएलवी-टीडी लॉन्च किया था।
इसरो ने साल 2016 में भारत के पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान का प्रदर्शन परीक्षण किया था।

दिसंबर 2014 में, इसरो ने अब तक के सबसे भारी रॉकेट जीएसएलवी एमके3-डी1 को लॉन्च किया था, जिससे भारत के पास अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजने की क्षमता प्राप्त हुई थी। 

इसरो ने फरवरी 2017 में एक ही मिशन में 104 सैटेलाइट लॉन्च करके इतिहास रच दिया था। कक्षा में रखे गये कुल 104 उपग्रहों में से 101 उपग्रह छह अन्य देशों के थे। इससे पहले, रूसी अंतरिक्ष एजेंसी ने एक ही बार में 37 उपग्रहों को लॉन्च करने का रिकॉर्ड बनाया था।

डीआरडीओ 

साल 2016 में, डीआरडीओ ने देश का पहला स्वदेशी रूप से विकसित भारी ड्यूटी ड्रोन का सफलतापूर्वक परीक्षण किया, जिसका नाम रुस्तम-2 था। यह एक मानवरहित सशस्त्र लड़ाकू वाहन है। इसके माध्यम से अमेरिका और इजराइल से आयातित ड्रोन को स्वदेशी के साथ बदला जा रहा है।

डीआरडीओ ने साल 2018 में देश की पहली परमाणु बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी आइएनएस अरिहंत का सह-विकास किया। इसके साथ ही भारत ने अपना परमाणु त्रय पूरा कर लिया और भूमि, वायु और समुद्र तीनों जगहों से परमाणु हथियार चलाने में सक्षम हो गया। 

डीआरडीओ ने साल 2017 में हवाई जहाज के लिए एक सेल्फ-इजेक्टेबल (स्वयं निकलने वाला) ब्लैक बॉक्स विकसित किया, जो पानी में दुर्घटना की स्थिति में बचावकर्मियों को आसानी से मलबे का पता लगाने में मदद कर सकता है। इनका पनडुब्बियों में भी बखूबी इस्तेमाल किया जा सकता है।

डीआरडीओ ने साल 2017 में भारत का पहला मानवरहित टैंक 'मंत्र' विकसित किया. इस टैंक के तीन अलग-अलग प्रतिरूप मानव रहित निगरानी मिशन के लिए, खानों का पता लगाने के लिए और परमाणु विकिरण या जैव हथियार के जोखिम वाले क्षेत्रों में ऑपरेशन के लिए विकसित किये गये हैं।

डीआरडीओ ने अपने इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम (आइजीएमडीपी) के तहत कई बैलिस्टिक मिसाइलों का विकास किया है। 

डीआरडीओ के आइजीएमडीपी में पृथ्वी, त्रिशूल, अग्नि, आकाश और नाग जैसी मिसाइलें शामिल हैं। इस श्रृंखला में परमाणु क्षमता में सक्षम अग्नि वी मिसाइल का सफल परीक्षण नवीनतम रहा है।

हाल में, डीआरडीओ ने नयी जनरेशन की एंटी-रेडिएशन मिसाइल (एनजीएआरएम) का सफल परीक्षण किया, जो दुश्मन के रडार को नष्ट करने की क्षमता रखता है। 

यह मिसाइल भारत में अपनी तरह की पहली मिसाइल है और इसे अलग-अलग ऊंचाई से लॉन्च किया जा सकता है। यह दुश्मन के रडार या अन्य ट्रैकिंग उपकरणों द्वारा उत्सर्जित संकेतों या विकिरणों को पकड़ सकता है और उन्हें नष्ट कर सकता है। 

पहले भी इसरो और डीआरडीओ ने दिये हैं गर्व के क्षण 

बीते 27 मार्च को भारत ने अपने पहले उपग्रह रोधी (एंटी-सैटेलाइट) मिसाइल का सफलतापूर्वक परीक्षण किया। इस परीक्षण के लिए रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा विकसित बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस इंटरसेप्टर ने ओडिशा तट से 300 किमी की ऊंचाई पर पृथ्वी की निचली कक्षा में पहले से मौजूद अपने ही एक उपग्रह को ध्वस्त कर दिया। धरती की इसी निचली कक्षा से अधिकांश उपग्रह पृथ्वी का सर्वेक्षण करते हैं।

डीआरडीओ ने इस अभियान को मिशन 'शक्ति' नाम दिया था। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टीवी और ट्विटर के जरिये इस उपलब्धि को देश के साथ साझा किया। इस उपलब्धि को हासिल करने वाला भारत चौथा देश है। भारत से पहले केवल अमेरिका, रूस और चीन के पास ही यह क्षमता थी। 

इस क्षमता को हासिल करने के बाद अब भारत अपने दुश्मन के कम्युनिकेशन और सर्विलांस सैटेलाइट को अंतरिक्ष में मार गिराने में सक्षम हो गया है। गौरतलब है कि वर्ष 2011 में ही डीआरडीओ ने यह तकनीक विकसित कर ली थी, लेकिन किन्हीं कारणों से अब तक इसका परीक्षण नहीं हो पाया था।

क्या है उपग्रह रोधी हथियार

उपग्रह रोधी हथियार, वास्तव में अंतरिक्ष उपकरण होते हैं। इस उपकरण को अंतरिक्ष में मौजूद उपग्रहों को निष्क्रिय करने या उन्हें नष्ट करने के लिए डिजाइन किया जाता है। 

इस उपकरण का उपयोग युद्ध के समय दुश्मन देशों के संचार या सैन्य उपग्रहों को बाधित करने और उन्हें अपने सैनिकों के साथ संचार करने से रोकने के लिए किया जा सकता है। साथ ही, इसका इस्तेमाल सैन्य टुकड़ी या आनेवाली मिसाइलों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी हासिल करने के लिए भी किया जा सकता है।

डीआरडीओ की स्थापना

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन यानी डीआरडीओ की स्थापना 1958 में हुई थी। भारतीय सेना के लिए पहले से कार्यरत प्रौद्योगिकी विकास प्रतिष्ठान (टीडीई) और रक्षा विज्ञान संस्थान (डीएसओ) व प्रौद्योगिकी विकास और उत्पादन निदेशालय (डीटीडीपी) के एकीकरण के पश्चात डीआरडीओ का गठन किया गया था। 

अपनी स्थापना के समय डीआरडीओ के पास महज 10 प्रयोगशालाएं थीं और यह एक छोटा सा संगठन था। लेकिन, तब से आज तक इस संगठन ने शिक्षण, प्रयोगशालाओं, उपलब्धियों समेत कई क्षेत्र में प्रगति की है। 

आज डीआरडीओ के पास 50 से अधिक प्रयोगशालाएं हैं जो एयरोनॉटिक्स, आर्मामेंट, इलेक्ट्रॉनिक्स, कॉम्बैट व्हीकल, इंजीनियरिंग सिस्टम्स, इंस्ट्रूमेंटेशन, मिसाइल, एडवांस्ड कंप्यूटिंग व सिमुलेशन, स्पेशल मटीरियल्स, नवल सिस्टम्स, लाइफ साइंसेज, ट्रेनिंग, इनफॉर्मेशन सिस्टम्स और एग्रीकल्चर जैसी अनेक शाखाओं को सुरक्षा देनेवाली प्रौद्योगिकियों के विकास में गंभीरता से लगी हैं। इस संगठन में 5000 से अधिक वैज्ञानिक और 25,000 अन्य तकनीकी विशेषज्ञ और सहयोगी हैं। 

यहां मिसाइलों, हथियारों, हल्के लड़ाकू विमानों, रडार, इलेक्ट्रॉनिक युद्धक प्रणालियों आदि के विकास के लिए अनेक प्रमुख परियोजनाएं मौजूद हैं। अपनी रचनात्मकता व दूरदर्शिता के कारण इस संगठन ने प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनेक महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं।

 भारत को समृद्ध बनाना है लक्ष्य 


 रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन का उद्देश्य सैन्य सेवाओं के लिए अत्याधुनिक तकनीकों वाले सेंसर, युद्धक प्रणाली व संबद्ध उपकरणों को डिजाइन व विकसित करना है। बुनियादी सुविधाओं का विकास और स्वदेशी प्रोद्यौगिकी आधार को मजबूत बनाना डीआरडीओ के प्रमुख लक्ष्यों में शामिल है।

 यह संगठन विज्ञान व प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विश्वस्तरीय उपलब्धि हासिल कर भारत को समृद्ध बनाने के साथ ही उसे प्रतिस्पर्धी प्रणालियों से लैस कर रक्षा सेवा में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निर्णायक बढ़त प्रदान करने के लिए लगातार प्रयासरत है।

रक्षा उपकरणों के निर्यात को तैयार है भारत

यह सच है कि सैन्य साजो-सामान व अंतरिक्ष उपकरणों के लिए भारत बहुत हद तक विदेशी तकनीक व उपकरण पर निर्भर है और आज भी हम अधिकांश साजो-सामान का आयात करते हैं।

 लेकिन, बीते एक दशक में हमने इस दिशा में प्रगति की है और देशी तकनीक के जरिये रडार, इलेक्ट्रॉनिक युद्धक प्रणाली, मिसाइल समेत अनेक रक्षा संबंधी उपकरणों को डिजाइन व विकसित किया है। इन तकनीकों को भारत न सिर्फ अपनी सैन्य क्षमता बढ़ाने के लिए इस्तेमाल कर रहा है, बल्कि कम मात्रा में ही सही, लेकिन उनका निर्यात भी कर रहा है। 

अप्रैल 2015 में एक लिखित जवाब में तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने राज्यसभा में बताया था कि भारतीय नौसेना के लिए डीआरडीओ द्वारा विकसित तीन सोनार सिस्टम (साउंड नेविगेशन रेंजिंग सिस्टम) को भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड ने म्यांमार को निर्यात किया था। 

वहीं, कई अन्य देशों ने भी सोनार सिस्टम को प्राप्त करने में रुचि दिखाई थी। उन्होंने यह भी कहा था कि डीआरडीओ द्वारा विकसित रडार, इलेक्ट्रॉनिक युद्धक प्रणाली, एईडब्ल्यू एंड सी सिस्टम, ब्रीजिंग सिस्टम, मिसाइल, टॉर्पीडो, डेकोय एंड फायर कंट्रोल सिस्टम आदि मित्र देशों को निर्यात करने पर विचार किया जा सकता है।

एमिसैट के लॉन्च से बढ़ेगी शक्ति

इसी एक अप्रैल को डीआरडीओ द्वारा विकसित इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस सैटेलाइट 'एमिसैट' को इसरो लॉन्च करेगा। इस उपग्रह के लॉन्च होने के बाद भारत को दुश्मनों के रडार और सीमा पर तैनात सेंसर गतिविधियों का पता लगाने में मदद मिलेगी। साथ ही, दुश्मन क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति का सटीक आकलन करने और उस क्षेत्र में कितने संचार उपकरण सक्रिय हैं, इसका लगाने में भी हमारा देश सक्षम हो पायेगा।

शनिवार, 30 मार्च 2019

लोकतंत्र में घृणा, नफरत और हिंसा का कोई स्थान नहीं : अशोक गहलोत

प्रदेश में कला, साहित्य एवं संस्कृति सहित अन्य सेवाओं में उल्लेखनीय कार्य करने वाली विभूतियों को राजस्थान रत्न अवॉर्ड से नवाजा जाता था। वसुंधरा राजे की सरकार ने यह अवॉर्ड देना बंद कर दिया था। वापिस राजस्थान रत्न अवार्ड देने की घोषणा राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राजस्थान दिवस के मौके पर वापस शुरू करने की घोषणा कर दी है।
जयपुर। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा है कि लोकतंत्र में घृणा, नफरत और हिंसा का कोई स्थान नहीं है। देश और प्रदेश में शांति और सद्भाव के साथ ही हम चहुंमुखी विकास की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। हमें इसे बरकरार रखने के लिए प्रयास करने होंगे। गहलोत शनिवार को ’काव्या’ इंटरनेशनल एवं स्वच्छ नगर संस्था जयपुर के तत्वावधान में बिड़ला आॅडिटोरियम में आयोजित राजस्थान दिवस 2019 के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे। 

मुख्यमंत्री ने प्रदेशवासियों को राजस्थान स्थापना दिवस की बधाई देते हुए इस बात के लिए प्रसन्नता दर्शाई कि यह आयोजन जनता और नागरिक संस्थाओं की ओर से किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि राजस्थान को एक शक्तिशाली, प्रगतिशील और विकासशील प्रदेश बनाने में यहां की कर्मठ और मेहनतकश जनता के साथ लोकप्रिय जन प्रतिनिधियों, शिक्षाविद्याथियो, साहित्य, समाज सेवा, कला, संगीत, पुरातत्व आदि क्षेत्रों से जुड़े लोगों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
उन्होंने कहा कि 70 साल पहले 30 मार्च, 1949 को राजस्थान का निर्माण हुआ था। इससे पहले यहां छोटी-बड़ी 22 रियासतें थीं। इन रियासतों का एकीकरण करने में देश के महान सपूत और तत्कालीन केन्द्रीय गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की महती भूमिका रही। उन्होंने कहा कि राजस्थान की संस्कृति, परम्परा और विरासत का गौरवशाली एवं समृद्ध इतिहास है। यहां की लोक कलाएं, लोक संस्कृति, लोकगीत और संगीत की पूरी दुनिया में खास पहचान है। 

राजस्थान का इतिहास वीरता, साहस एवं स्वाभिमान से भरा हुआ है। उन्होंने इस मौके पर स्वाधीनता संग्राम में योगदान करने वाले राजस्थान सहित सभी देश के ज्ञात-अज्ञात महान स्वाधीनता सैनानियों को नमन करते हुए कहा कि उन्हीं के त्याग और बलिदान के कारण यह देश आजाद हुआ। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राजस्थान निर्माण के बाद हीरालाल शास्त्री, टीकाराम पालीवाल, जयनारायण व्यास, मोहनलाल सुखाड़िया, बरकतुल्ला खां, हरिदेव जोशी, भैरोंसिंह शेखावत, जगन्नाथ पहाड़िया, शिवचरण माथुर, हीरालाल देवपुरा, वसुन्धरा राजे और मुझे मुख्यमंत्री के रूप में प्रदेश की सेवा करने का अवसर मिला।


राजस्थान के विकास में सभी लोगों का योगदान रहा है। जनता के स्नेह, आशीर्वाद और विश्वास से मुझे तीसरी बार मुख्यमंत्री के रूप में प्रदेशवासियों की विनम्र सेवा का मौका मिला है। उन्होंने कहा कि मैंने जब मुख्यमंत्री के रूप में बागडोर संभाली तब गांव, गरीब और किसान प्राथमिकता में रहे और चहुंमुखी विकास पर ध्यान देते हुए आमजन के कल्याणकारी योजनाएं प्रारम्भ की। आप सब जानते हैं कि राजस्थान में अकाल हमारे स्थायी मेहमान की तरह रहा है। हमारे समय में भी कई बार अकाल पड़े किन्तु हमने मिलकर इस चुनौती का मुकाबला किय। अकाल पीड़ितों के लिए राहत कार्यों पर पर्याप्त मजदूरी, भरपूर अनाज, पशुओं के लिए चारे और पेयजल का प्रबंध किया। 

गहलोत ने कहा कि मुझे यह बताते हुए संतोष है कि पिछले सत्तर सालों में राजस्थान के सभी क्षेत्रों में जो विकास हुआ है, वह किसी भी दृष्टि से कम नहीं है। आज गांवों और शहरों, सभी जगह विकास और सुविधाओं का विस्तार हुआ है, जिससे लोगों के सामाजिक-आर्थिक जीवन स्तर में सुधार आया है। प्रदेश में सड़क, बिजली, पानी, चिकित्सा, शिक्षा, सामुदायिक सेवाओं का विस्तार हुआ है। प्रदेश को शिक्षित और विकसित बनाने में यहां की जनता ने शासन एवं प्रशासन के साथ कदम से कदम मिलाकर काम किया है।


दुनियाभर में सूचना टेक्नोलोजी बढ़ी है। स्वर्गीय राजीव गांधी ने भारत को दुनिया के विकसित राष्ट्र के रूप में खड़ा करने की पहले से ही परिकल्पना कर ली थी। सूचना एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आज हम जो प्रगति देख रहे हैं वह सब स्वर्गीय श्री राजीव गांधी की देन है। 

उन्होंने कहा कि यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी की प्रेरणा और पूर्व प्रधानमंत्री डाॅ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में आजादी के बाद देश में पहली बार अधिकार आधारित युग की शुरूआत हुई, जिसे लागू करने में राजस्थान भी पीछे नहीं रहा। रोजगार का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार, खाद्य सुरक्षा का अधिकार लागू करने के साथ प्रदेश की सरकार ने राइट टू शेल्टर, सुनवाई का अधिकार, लोकसेवा गारन्टी का अधिकार, सामाजिक सुरक्षा का अधिकार देने की पहल की। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने न्यूनतम आय की गारन्टी, राइट टू हैल्थ जैसे जनहित के कार्यों को एजेण्डा बनाया है। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि राजस्थान दिवस के शुभ अवसर पर प्रदेश के सेवाभावी महानुभावों को संस्था की ओर से सम्मानित किया गया है। यह एक अच्छी परम्परा और इससे दूसरे लोगों को भी प्रेरणा मिलती है। 

उन्होंने सभी सम्मानितों को बधाई देते हुए कहा कि इन लोगों की सेवाओं को हम निरन्तर देख रहे हैं। हमने पिछली सरकार के दौरान ऐसी विभूतियों को ’राजस्थान रत्न’ सम्मान देने की योजना शुरू की थी जो बाद में बंद कर दी गई। सम्मान की अब योजना को फिर से प्रारम्भ किया जाएगा। ऐसे व्यक्तियों को सम्मानित करने से युवा पीढ़ी को प्रेरणा मिलती है। उन्होंने कहा कि राजस्थान दिवस पर हमें यह संकल्प लेकर यहां से जाना है कि कैसे हम अपने प्रदेश को और अधिक समृद्ध, सम्पन्न और खुशहाल बनाने में अपना योगदान कर सकते हैं। उन्होंने इस आयोजन के लिए काव्या इंटरनेशनल एवं स्वच्छ नगर संस्था के पदाधिकारियों, सदस्यों एवं आप सभी को साधुवाद देते हुए आशा व्यक्त की कि रचनात्मक सेवाओं और कार्यों को निरन्तर बढ़ाने में ये संस्थाएं हमेशा तत्पर रहेंगी।

समारोह की अध्यक्षता करते हुए कला, संस्कृति मंत्री डाॅ. बी.डी कल्ला ने राजस्थानी भाषा में अपना उद्बोधन देते हुए कहा कि राजस्थान की समृद्ध संस्कृति की दुनियाभर में पहचान है। यहां जो अपनत्व, सहिष्णुता, सद्भाव और अतिथियों के सम्मान की परम्परा है, वह अपने आप में एक मिसाल है। हम यहां से संकल्प लेकर जाए कि यह परम्परा और पहचान बनी रहे। उन्होंने कहा कि राजस्थान शिक्षा के क्षेत्र में निरन्तर आगे बढ़े। इस दिशा में हम काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम राजस्थान को वर्किंग पाॅपुलेशन का हिस्सा कैसे बनाएं, इसके लिए काम करेंगे। उन्हाेंने देश को आजादी दिलाने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धापूर्वक याद किया। शिक्षा मंत्री गोविन्द सिंह डोटासरा, तकनीकी शिक्षा मंत्री डाॅ. सुभाष गर्ग एवं गृहरक्षा राज्यमंत्री भजनलाल जाटव विशिष्ठ अतिथि के रूप में मौजूद थे।


इस अवसर पर जस्टिस विनोद शंकर दवे, न्यायमूर्ति जैनेन्द्र कुमार रांका (विधि एवं न्याय), डी. आर. मेहता (दिव्यांगों की सेवा), कुुशलचन्द सुराणा (जवाहरात उद्योग), दीनबन्धु चैधरी, प्रवीण चन्द छाबड़ा (पत्रकारिता), जे.पी. शर्मा, दीपक गोस्वामी (इलेक्ट्राॅनिक मीडिया), अनिला कोठारी (कैंसर चिकित्सा सेवा), श्रीमती मृदुल भसीन (स्वयंसेवी संस्था), डाॅ. एम. एल स्वर्णकार, डाॅ. मंगल सोनगरा (चिकित्सा सेवा), डाॅ. आईदान सिंह भाटी (राजस्थानी साहित्य ), बी.पी. मून्दड़ा, साबिर हुसैन (समाजसेवा), राम सहाय बाजिया (सैन्य सेवा), मृदुला सामवेदी (महिला शिक्षा), भावना जगवानी (अंगदान) को उनकी उल्लेखनीय सेवाओं के लिए मुख्यमंत्री एवं अन्य अतिथियों ने शाॅल ओढ़ाकर एवं प्रशस्ति पत्र प्रदान कर सम्मानित किया। मुख्यमंत्री कार्यक्रम के समन्वयक नफीस आफरीदी एवं इवेन्ट गुरू अरशद हुसैन को स्मृति चिन्ह् प्रदान कर सम्मानित किया। 

प्रारम्भ में आयोजन समिति के अध्यक्ष राजीव अरोड़ा, स्वच्छ नगर संस्था के अध्यक्ष डाॅ. सत्यनारायण सिंह, काव्या फाउण्डेशन राजस्थान के अध्यक्ष वीर सक्सेना ने भी अपने विचार व्यक्त किए। डाॅ. सत्यनारायण सिंह ने राजस्थान दिवस पर लिखी अपनी पुस्तिका ’भारत की एकता का निर्माण: राजस्थान के संदर्भ में’ मुख्यमंत्री को भेंट की। कार्यक्रम का शुभारम्भ गजानन्द के शहनाई वादन एवं डाॅ. विजयेन्द्र के मांड गायन के साथ हुआ। कार्यक्रम का संचालन आकाशवाणी के पूर्व निदेशक श्री इकराम राजस्थानी ने किया। काव्या के महासचिव फारूक आफरीदी ने आभार व्यक्त किया। अंत में निशब्द मूक बधिर विद्यालय की बालक-बालिकाओं ने राष्ट्रगान प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में पद्मश्री साकिर अली, राजस्थान के दूर-दराज इलाकों से आये नागरिकों के साथ ही सैनिक परिवारों, बंजारा समाज, ’बाल सम्बल’ के विशेष बच्चों, शिक्षा, साहित्य, संस्कृति, विधि एवं न्याय, चिकित्सा आदि क्षेत्रों के गणमान्य नागरिक बड़ी संख्या में मौजूद थे।

भाजपा किसी व्यक्ति के खिलाफ नकारात्मक नहीं , राष्ट्र विरोधी विचारधारा के लिए नकारात्मक है : प्रकाश जावड़ेकर

देश का गरीब ही है भाजपा के लिए प्रथम परिवार   भाजपा किसी व्यक्ति के खिलाफ नकारात्मक नहीं , राष्ट्र विरोधी विचारधारा के लिए नकारात्मक है। 
जयपुर। भारतीय जनता पार्टी के राजस्थान लोकसभा चुनाव प्रभारी एवं केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि कांग्रेस पार्टी में चापलूसी की परम्परा है। पी.सी.चाको के बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए जावड़ेकर ने कहा कि कांग्रेस के लिए गाँधी परिवार देश का प्रथम परिवार है। भारतीय जनता पार्टी के लिये देश का प्रथम परिवार देश की गरीब जनता है। 

जावड़ेकर ने कहा कि इस गाँधी परिवार का महात्मा गाँधी से कोई संबंध नही है। पीसी चाको कह रहे है कि देश में सारे सुधार पंडित जवाहर लाल नेहरू के कारण हुए। उन्हे यह जानकारी नहीं है कि वंशवाद को भारत में पंडित जवाहर लाल नेहरू लेकर आये। कश्मीर का मुद्दा भी उनकी ही देन है। भाजपा किसी व्यक्ति के खिलाफ नकारात्मक नहीं है। भाजपा तो राष्ट्र विरोधी विचारधारा के लिए नकारात्मक है। 

पता नहीं कश्मीर के लोग तिरंगे के बजाय कौन सा झंडा उठा लेंगे

महबूबा का विवादित बयान, 370 को छेड़ा तो भारत से रिश्ता खत्म समझो ,अनुच्छेद 35ए के साथ अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर हमला किया गया तो उन्हें   पता नहीं कश्मीर के लोग तिरंगे के बजाय कौन सा झंडा उठा लेंगे।
जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने अनुच्छेद 370 को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि अगर अनुच्छेद 370 को खत्म किया गया तो जम्मू कश्मीर से भारत का रिश्ता खत्म हो जाएगा। बता दें कि अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा प्रदान करता है। 

पीडीपी प्रमुख ने आगे कहा कि अगर अनुच्छेद 370 को खत्म किया जाता है तो मुस्लिम बहुल राज्य भारत का हिस्सा बनना पसंद नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि यदि आप उस पुल (अनुच्छेद 370) को तोड़ते हैं। तो आपको भारत-जम्मू और कश्मीर के बीच संबंधों को फिर से संगठित करना होगा, जिसमें कई शर्तें होंगी। क्या मुस्लिम बहुल राज्य, आपके साथ रहना चाहेगा? अगर आप अनुच्छेद 370 को खत्म करते हैं तो जम्मू कश्मीर से आपका रिश्ता खत्म हो जाएगा। 

बता दें कि महबूबा मुफ्ती समय-समय पर संविधान के अनुच्छेद 35ए के साथ अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर बयान देती रहती हैं। हाल ही में पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा था कि अनुच्छेद 35ए पर हमला किया गया तो उन्हें नहीं पता कि कश्मीर के लोग तिरंगे के बजाय कौन सा झंडा उठा लेंगे।

रामचरण बोहरा ने जयपुर शहर के लिए क्या किया है: कांग्रेस प्रत्याशी ज्योति

जयपुर में घमासान  बोहरा को खुली चुनौती वे एक मंच पर आएं और जनता को बताएं कि क्या काम किया है। साथ ही मैं भी बताती हूं मैं शहर के लिए क्या करती रही हूं। 
जयपुर । लोकसभा चुनाव के मैदान में तेज हो रही राजनीतिक हलचलों के बीच बयानों के तीर भी जमकर चल रहे हैं। राज्य की हॉट सीट जयपुर शहर से टिकट मिलने के बाद सियासी ताल ठोकते हुए कांग्रेस प्रत्याशी ज्योति खंडेलवाल ने रामचरण बोहरा पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि रामचरण बोहरा ने जयपुर शहर के लिए क्या किया है, यह बताएं। वे चुनाव में पीएम मोदी के नाम पर वोट मांग रहे है। 

जिससे उनका फेलियर साफ पता चलता है। टिकट मिलने के बाद जयपुर पहुंचने के बाद ज्योति खंडेलवाल ने कहा कि रामचरण बोहरा बताएं कि जयपुर शहर के सुधार और विकास के लिए क्या काम कराए हैं। उन्होंने चुनौती देते हुए कहा कि वे एक मंच पर आएं और जनता को बताएं कि क्या काम किया है। साथ ही मैं भी बताती हूं मैं शहर के लिए क्या करती रही हूं। उन्होंने कहा कि बोहरा पीएम का नाम लेकर अपने फेलियर और गलतियों को छिपा नहीं सकते हैं। उन्होंने इस दौरान यह भी कहा कि भाजपा प्रत्याशी बोहरा ने 2014 में काफी बड़े अंतर से जीत हासिल की थी। जीत के इस अंतर को पार पाना मेरे लिए काफी बड़ी चुनौती है। लेकिन, इस जीत के बाद भी बोहरा के पास कोई उपलब्धि नहीं है। 

 भाजपा की ओर से इस सीट पर मौजूदा सांसद बोहरा को फिर से मैदान में उतारा गया है। जबकि, कांग्रेस ने वैश्य कार्ड के रूप में ज्योति खंडेलवाल को चुनाव मैदान में उतारते हुए बड़ा दांव खेल दिया है। जानकारों का कहना है कि कांग्रेस के इस दांव के बाद अब इस सीट पर जातिगत समीकरण उलझना लगभग तय हो चुका है। दरअसल, भाजपा के गढ़ रहे जयपुर में विधानसभा चुनाव के दौरान सेंध लगाने के बाद अब कांग्रेस इस सीट पर कब्जा करने लिए रणनीति बना रही है। जबकि, भाजपा इस सीट पर फिर से जीत दर्ज करते हुए अपनी किलेबंदी को दोबारा मजबूत करना चाहती है।

लोकसभा चुनाव 2019 - राजस्थान में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर

जयपुर । लोकसभा चुनाव 2019 को लेकर राजस्थान में इस बार बड़ा दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल रहा है। भाजपा ने राजस्थान से मौजूदा सांसदों में दो सांसदों के टिकट काटे है और 15 को रिपीट किया है। झुंझुनूं से संतोष अहलावत और बांसवाड़ा से मौजूदा सांसद मानशंकर निनामा को मौका नहीं देकर नए चेहरों को टिकट दिया गया है। वहीं अजमेर और अलवर में भी वहां भाजपा सांसदों के निधन कारण नए चेहरों को मौका दिया गया है। भाजपा और कांग्रेस के बीच अभी 25 में से 14 सीटों पर तस्वीर साफ हो चुकी है। अब प्रदेश की 6 हॉट सीटों पर कड़ा संघर्ष देखने को मिलेगा और 14 सीटों पर भाजपा और कांग्रेस की सीधी टक्कर रहेगी। 

सबसे पहले अगर राजधानी जयपुर की बात करें, तो जयपुर शहर से मौजूदा भाजपा सांसद रामचरण बोहरा पिछले बार रिकॉर्ड 5 लाख से अधिक वोटों से चुनाव जीते थे। इनके सामने कांग्रेस पार्टी ने पूर्व मेयर ज्योति खंडेलवाल को मौका दिया है। यहां पर वैश्य समुदाय और ब्राह्मण समुदाय के प्रत्याशी आमने-सामने है। लेकिन इस बार रामचरण बोहरा को आदर्श नगर, किशनपोल, हवामहल जैसे विधानसभा क्षेत्रों से वोट कम मिलने की संभावना है। यहां पर कांग्रेस पार्टी ने विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की थी और आदर्शनगर से भाजपा के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अशोक परनामी को हार का सामना करना पड़ा था।
इसके बाद बात करें जोधपुर की तो, यहां पर सीएम पुत्र वैभव गहलोत के कांग्रेस पार्टी से चुनाव में खड़े होने से मामला रोचक हो गया है। वैभव गहलोत की सीधी टक्कर केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत से है। यहां पर सीएम अशोक गहलोत की खुद की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है।



अलवर लोकसभा सीट पर इस बार कांग्रेस से पूर्व केंद्रीय मंत्री भंवर जितेंद्र सिंह मैदान है। हालांकि लोकसभा उपचुनाव में यहां कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी डॉ. करण सिंह यादव की रिकॉर्ड 3 लाख से अधिक मतों से जीत दर्ज हुई थी। भंवर जितेंद्र सिंह का इस बार भाजपा के बालकनाथ से मुकाबला है। सीकर लोकसभा सीट क बात करें तो पूर्व सांसद सुभाष महरिया जो भाजपा छोड़कर कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए है उन्हें कांग्रेस ने टिकट दिया है। महरिया इस सीट पर वर्ष 2009 में भाजपा से चुनाव जीत चुके है। लेकिन वर्ष 2014 में महरिया का टिकट कट गया था और समुेधानंद को भाजपा ने टिकट दिया था। यहां पर महरिया का सीधा मुकाबाला भाजपा के सुमेधानंद के साथ है। अगर बीकानेर लोकसभाक्षेत्र की बात करें, तो इस बार यहां से मौजूदा सांसद और केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल को देवीसिंह भाटी की नाराजगी का खामियाजा उठाना पड़ सकता है। भाजपा के अर्जुनराम मेघवाल का सीधा मुकाबला इस बार कांग्रेस में शामिल होने वाली रिटायर्ड आईपीएस मदनगोपाल मेघवाल से है। 


प्रदेश की पाली लोकसभा सीट से भारी विरोध के बावजूद केंद्रीय मंत्री पीपी चौधरी पर भाजपा ने फिर से विश्वास जताया है। लेकिन इस बार कांग्रेस के कद्दावर नेता बद्री जाखड़ से सीधा मुकाबला है। अगर अब बांसवाड़ा की बात करें तो यह सीट इस बार भाजपा, कांग्रेस और बीटीपी के त्रिकोणीय संघर्ष में फंस सकती है। भाजपा ने यहां के कनकमल कटारा को चुनाव मैदान में उतारा है, तो वहीं कांग्रेस ने यहां ताराचंद भगौरा को प्रत्याशी बनाया है। लेकिन इन दोनों के साथ ही भारतीय ट्राइबल पार्टी भी बहुत बड़ा फैक्टर है।

साल भर में अनुमान से करीब दो लाख करोड़ रुपये बढ़ा राजकोषीय घाटा

कंट्रोलर जनरल ऑफ अकाउंट्स के आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2018 से फरवरी 2019 के दौरान राजकोषीय घाटा 8.51 लाख करोड़ रुपये रहा है जो पूरे साल के लिए संशोधित बजट अनुमान 6.34 लाख करोड़ रुपये से 134.2 प्रतिशत अधिक है।


 देश का राजकोषीय घाटा फरवरी 2019 के अंत तक पूरे साल के संशोधित बजट अनुमान के 134.2 प्रतिशत पर पहुंच गया है। शुक्रवार को जारी आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, राजकोषीय घाटा बढ़ने का मुख्य कारण राजस्व संग्रह की वृद्धि कम रहना रहा।

लेखा महानियंत्रक (सीजीए) के आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल-फरवरी, 2018-19 में राजकोषीय घाटा 8.51 लाख करोड़ रुपये रहा है जो पूरे साल के लिए संशोधित बजट अनुमान 6.34 लाख करोड़ रुपये से 134.2 प्रतिशत अधिक है।

हालांकि, आर्थिक मामलों के सचिव एससी गर्ग ने संवाददाताओं से कहा कि सरकार राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 3.4 प्रतिशत पर सीमित रखने को प्रतिबद्ध है।

आंकड़ों के अनुसार, केंद्र सरकार की राजस्व प्राप्तियां 12.65 लाख करोड़ रहीं जो संशोधित बजट अनुमान का 73.2 प्रतिशत हैं. इससे पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में राजस्व प्राप्तियां बजट अनुमान का 78.2 प्रतिशत थीं।

सरकार का कर राजस्व 10.94 लाख करोड़ रुपये और गैर कर राजस्व 1.7 लाख करोड़ रुपये रहा।

अप्रैल-फरवरी, 2018-19 की अवधि में सरकार का कुल खर्च 21.88 लाख करोड़ रुपये (बजट अनुमान का 89.08 प्रतिशत) रहा. इसमें से 19.15 लाख करोड़ रुपये राजस्व खाते का 2.73 लाख करोड़ रुपये पूंजी खाता का था।

इस बीच वित्त मंत्रालय ने बयान में कहा कि फरवरी तक केंद्र सरकार ने राज्यों को कर में उनके हिस्से के तहत 5.96 लाख करोड़ रुपये स्थानांतरित किए। यह 2017-18 की समान अवधि से 67,043 करोड़ रुपये अधिक है।

विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी जारी, 406.66 अरब डॉलर पर पहुंचा

देश का विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार तीसरे सप्ताह तेजी जारी रही. रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार विदेशी मुद्रा भंडार 22 मार्च को समाप्त सप्ताह में 1.02 अरब डॉलर बढ़कर 406.66 अरब डॉलर हो गया।

विदेशी मुद्रा आस्तियों में भारी वृद्धि होने के कारण यह वृद्धि संभव हुई है. इससे पिछले सप्ताह विदेशी मुद्रा भंडार 3.6 अरब डॉलर बढ़कर 405.6 अरब डॉलर रहा था।

रिज़र्व बैंक ने कहा कि समीक्षाधीन सप्ताह में, विदेशी मुद्रा भंडार का अहम हिस्सा यानी विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां 1.03 अरब डॉलर बढ़कर 378.805 अरब डॉलर हो गईं।

देश का विदेशी मुद्रा भंडार इससे पहले 13 अप्रैल, 2018 को समाप्त सप्ताह में 426.02 अरब डॉलर के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया था। लेकिन इसके बाद से इसमें काफी गिरावट आई है।

केन्द्रीय बैंक ने कहा कि समीक्षाधीन सप्ताह में देश का आरक्षित स्वर्ण भंडार 23.40 अरब डॉलर पर अपरिवर्तित रहा।

सप्ताह के दौरान अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) के पास सुरक्षित विशेष निकासी अधिकार सात लाख डॉलर घटकर 1.46 अरब डॉलर रह गया। केन्द्रीय बैंक ने कहा कि आईएमएफ में देश का आरक्षित भंडार भी 15 लाख डॉलर घटकर 2.99 अरब डॉलर रह गया।

जब मुक़दमा चलानेवाले एनआईए जैसे हों, तो बचाव में वकील रखने की क्या ज़रूरत है

समझौता एक्सप्रेस मामले की सुनवाई कर रहे जज ने कहा कि अभियोजन कई गवाहों से पूछताछ और उपयुक्त सबूत पेश करने में नाकाम रहा इसलिए मजबूरन आरोपियों को बरी करना पड़ा। जब एनआईए जैसी शीर्ष जांच एजेंसी एक भयानक आतंकी हमले के हाई-प्रोफाइल मामले में इस तरह बर्ताव करती है, तो देश की जांच और अभियोजन व्यवस्था की क्या साख रह जाती है?


अगर एक बड़े आतंकी हमले के मुकदमे का समापन एक न्यायाधीश इस बात का दुख प्रकट करते हुए करे कि अभियोजन ने ‘सबसे अच्छे सबूत’ ‘छिपा लिए’ और उन्हें सामने नहीं रखा गया, जिसके कारण सभी आरोपियों को बरी करना पड़ा, तो इससे निश्चित ही किसी राष्ट्र के विवेक को ठेस लगनी चाहिए।

समझौता एक्सप्रेस बम विस्फोट मामले, जिसमें 10 भारतीय और 43 पाकिस्तानी नागरिकों समेत 68 लोग मारे गए थे, की सुनवाई कर रहे विशेष न्यायाधीश जगदीप सिंह ने आतंकवादी घटनाओं की जांच करनेवाली भारत की शीर्ष जांच एजेंसी राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को फटकार लगाते हुए कहा कि वे मजबूरी में सभी आरोपियों को बरी कर रहे हैं, क्योंकि अभियोजन कई गवाहों से पूछताछ करने और उपयुक्त सबूत पेश करने में नाकाम रहा है।

इस फैसले से उभरनेवाला ज्यादा बड़ा सवाल यह है कि जब एनआईए जैसी शीर्ष जांच एजेंसी एक भयानक आतंकी हमले के हाई-प्रोफाइल मामले में इस तरह से बर्ताव करती है, तो भारत की जांच और अभियोजन व्यवस्था की क्या साख रह जाती है?

और सभी तरह के आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए एक वैश्विक जनमत तैयार करने की मुहिम में जुटा भारत दुनिया को इस तरह से क्या संदेश दे रहा है?

इस मामले से जुड़ी समस्या अनोखी है क्योंकि फरवरी, 2007 में समझौता एक्सप्रेस विस्फोट मक्का मस्जिद, हैदराबाद और अजमेर शरीफ और मालेगांव में हुए ऐसे ही विस्फोटों से जुड़ा हुआ है। इन मामलों के तार आपस में जुड़े हुए थे, क्योंकि आरोपपत्रों के मुताबिक स्वामी असीमानंद (नाबा कुमार सरकार) इन विस्फोटों का साझा मास्टरमाइंड था।

दुर्भाग्य से इन विस्फोटों का राजनीतिकरण ‘हिंदुत्व आतंकवाद’ के मामलों के तौर पर कर दिया गया और केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद इन मामलों में अभियोजन को कमजोर करने के व्यवस्थित प्रयास किए गए।

इसके बाद हमने एनआईए के ऐसे प्रमुखों को भी देखा, जो ‘हिंदू आतंकवाद’ जैसी कोई चीज नहीं होने’ के विचार के प्रति सहानुभूति रखते थे।

समझौता विस्फोट मामले में न्यायाधीश ने पीड़ा के भाव के साथ कहा, ‘अभियोजन के सबूत बहुत लचर हैं और इस तरह से आतंकवाद का एक मामला अनसुलझा रह गया है। आतंकवाद का कोई धर्म नहीं है क्योंकि दुनिया का कोई भी धर्म हिंसा की शिक्षा नहीं देता। अदालत प्रचलित या प्रबल जनधारणाओं या अपने समय की सार्वजनिक बहस के आधार पर काम नहीं कर सकती है और आखिकार उसे मौजूदा सबूतों को ही तवज्जो देनी होती है…’



न्यायाधीश का यह बयान कि कानून की अदालत से मौजूदा सार्वजनिक बहस के आधार पर आगे बढ़ने की अपेक्षा नहीं की जाती है, अपने आप में मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा करने वाला है, जिसने पहले दिन से बम विस्फोट के इन मामलों को बहुसंख्यवादी चश्मे से देखना शुरू कर दिया था।

न्यायाधीश को जरूर इस बात का एहसास पहले ही हो गया होगा कि एनआईए की दिलचस्पी अदालत के सामने पुख्ता सबूत पेश करने में नहीं है। ऐसे में कोई हैरत की बात नहीं है कि न्यायाधीश ने अपने 160 पन्ने के फैसले में यह भी कहा कि अदालत के सामने सबूत के तौर पर पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के सीसीटीवी कैमरा की रिकॉर्डिंग्स तक को सही तरीके से पेश नहीं किया गया।

एनआईए ने इसी तरह से हैदराबाद में हुए मक्का मस्जिद विस्फोट मामले में भी अभियोजन को कमजोर करने का काम किया। उसमें भी असीमानंद प्रमुख आरोपी था और सबूत का एक अहम हिस्सा जेल के एक अन्य कैदी के साथ उसकी मुलाकात से सामने आया, जिसके सामने असीमानंद ने विस्फोट में अपनी भूमिका कबूल की थी।

उस मामले में न्यायाधीश द्वारा असीमानंद को आरोपमुक्त करने का एक आधार यह था कि अभियोजन पक्ष यह सबूत पेश नहीं कर पाया कि दूसरा कैदी उस समय जेल में मौजूद था। इसके लिए और कुछ नहीं बस जेल रजिस्टर की जरूरत थी, जिससे यह साबित हो जाता कि दूसरा कैदी भी उस समय जेल में ही था. लेकिन यह साधारण सा सबूत भी एनआईए ने पेश नहीं किया।

इसके पीछे मंशा इन मामलों को कमजोर करने की थी और अब जबकि जज ने खुद इसके बारे में स्पष्ट शब्दों में कह दिया है, इस बात को लेकर किसी तरह के शक की गुंजाइश नहीं रह जाती कि किस तरह से अभियोजन तंत्र की धज्जियां उड़ाई गईं हैं।

यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि मोदी-शाह के शासन में अभियोजन प्रणाली पर सबसे भीषण हमला हुआ है। याद कीजिए कि 2जी मुकदमे जैसे भ्रष्टाचार के मामलों में भी विशेष न्यायाधीश ने इसी तरह की बातें कही थीं, जिसका इशारा अभियोजन द्वारा विभिन्न आरोपियों के खिलाफ, जिनमें कुछ प्रभावशाली कॉरपोरेट घराने भी शामिल थे, मामलों को कमजोर करने की कोशिशों की तरफ था।

अंत में, समझौता विस्फोट मामले में सरकार के पूर्वाग्रह का सबसे प्रकट सबूत केंद्रीय गृहमंत्री के पूरे फैसले के सार्वजनिक किए जाने से पहले दिया गया बयान है कि ‘अभियोजन इस फैसले के खिलाफ बड़ी अदालत में अपील नहीं करेगा। कम से कम कहा जाए तो उनका ऐसा कहना हैरान कर देनेवाला है।

शुक्रवार, 29 मार्च 2019

जयपुर शहर में अब होगा कड़ा मुकाबला

कांग्रेस ने 'ज्योति' को लोकसभा के लिए बचाकर रखा था
जयपुर । लोकसभा चुनाव को लेकर तेज होती राजनीतिक हलचल के बीच कांग्रेस ने राज्य की हॉट सीट जयपुर शहर से पूर्व महापौर ज्योति खंडेलवाल को मैदान में उतारा है। कांग्रेस के इस दांव के साथ ही अब इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर होना तय हो गया है। भाजपा के गढ़ जयपुर में विधानसभा चुनाव के दौरान 8 में से 5 सीटों पर जीत दर्ज करते हुए कांग्रेस पहले ही सेंध लगा चुकी है। 


इसके बाद अब पार्टी की नजर यहां के लोकसभा सीट पर जीत हासिल करने को लेकर टिकी हुई है। जयपुर शहर सीट पर भाजपा ने ब्राह्मण चेहरे के तौर मौजूदा सांसद रामचरण बोहरा को टिकट देकर मैदान में उतारा है। इसके जवाब में कांग्रेस ने सभी को चौंकाते हुए पूर्व महापौर ज्योति खंडेलवार को टिकट दिया है। ज्योति को टिकट दिए जाने के बाद से इस सीट पर सियासी पारा चढ़ गया है। राजनीति के जानकारों का कहना है कि ज्योति खंडेलवाल के मैदान में आने के बाद अब सियासी मुकाबला कांटे का होना तय माना जा रहा है। 

दरअसल, जयपुर शहर सीट को ब्राह्मण और वैश्य वर्ग के मतदाताओं के प्रभाव वाली सीट माना जाता है। ऐसे में माना जा रहा है कि ये सीट अब जातिगत समीकरण में उलझती दिखाई दे रही है। ज्योति खंडेलवाल ने विधानसभा चुनाव के दौरान टिकट की मांग की थी। लेकिन, उस समय कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया था। जिसके चलते ज्योति खंडेलवाल के समर्थकों के बीच निराशा बनी हुई थी। लेकिन, अब लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी ने ज्योति को चुनावी मैदान में उतार दिया है।  जयपुर शहर से कांग्रेस के पूर्व लोकसभा प्रत्याशी महेश जोशी को प्रबल दावेदार माना जा रहा था। लेकिन, पार्टी स्तर पर हुए मंथन के दौरान ज्योति खंडेलवाल ने महेश जोशी को पछाड़ते हुए टिकट हासिल कर लिया है। कांग्रेस ने 'ज्योति' को लोकसभा के लिए बचाकर रखा था

प्रदेश भर में ईवीएम और वीवीपैट मशीनों का प्रथम रेंडमाइजेशन पूर्ण

जयपुर। लोकसभा आम चुनाव-2019 के लिए तैयारियां जोरों पर है। निर्वाचन विभाग ने प्रदेश भर की सभी लोकसभा सीटों के लिए काम आने वाली ईवीएम और वीवीपैट मशीनों का प्रथम रेंडमाइजेशन सभी जिला निर्वाचन अधिकारियों द्वारा राजनैतिक दलों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में आयोग के ईएमएस साफ्टवेयर के द्वारा करवा लिया है। 

मुख्य निर्वाचन अधिकारी आनंद कुमार ने बताया कि प्रदेश के सभी जिला निर्वाचन अधिकारियों द्वारा 28 और 29 मार्च को प्रथम रेंडमाइजेशन कर दिया गया है। उन्होंने बताया कि रेंडमाइजेशन के बाद सभी मशीनों को संबंधित विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के सहायक रिटर्निंग अधिकारी को सुपुर्द कर दिया जाएगा। 

कुमार ने बताया कि ईवीएम और वीवीपैट मशीनों का द्वितीय रेंडमाइजेशन लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के रिटर्निंग अधिकारियों द्वारा उम्मीदवार या उनके द्वारा नियुक्त एजेंट की उपस्थिति में किया जाएगा। राज्य के 13 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के द्वितीय रेंडमाइजेशन 15 अप्रेल और 12 निर्वाचन क्षेत्र के लिए 24 अप्रेल को रेंडमाइजेशन किया जाकर मतदान केंद्र मतदान केंद्र पर ईवीएम-वीवीपैट आवंटित की जाएगी। 

चुनाव में उपयोग होने वाले वाहनों के लिए होंगे 6 रंगों के परमिट जारी

जयपुर। मुख्य निर्वाचन अधिकारी आनंद कुमार ने सभी जिला निर्वाचन अधिकारियों को लोकसभा आम चुनाव-2019 के दौरान चुनाव प्रचार-प्रसार अवधि में उम्मीदवारों एवं राजनैतिक दलों द्वारा प्रचार, चुनाव सामग्री पहुंचाने के उपयोग में आने वाले वाहनों के लिए अलग-अलग रंग के परमिट जारी करने के निर्देश दिए हैं। ये परमिट 9 x 6 इंच आकार के होंगे और संबंधित वाहन के विंड स्क्रीन पर इस तरह चिपकाए जाएं जो कि आसानी से दिखाई दे सकें।

मुख्य निर्वाचन अधिकारी करेंगे तीन रंग के परमिट जारी

उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनाव के दौरान धारा 77(1) के अन्तर्गत स्टार प्रचारकों द्वारा चुनाव प्रचार में उपयोग में जाए जाने वाले वाहन परमिट का रंग लाल होगा। मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के राज्य स्तरीय पदाधिकारियों द्वारा चुनाव प्रचार में उपयोग लाए जाने वाले वाहनों के परमिट का रंग बैंगनी होगा। इसी प्रकार मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के राज्य स्तरीय पदाधिकारियों द्वारा चुनाव प्रचार सामग्री के वितरण के काम के लिए उपयोग में आने वाले वाहनों के परमिट सफेद रंग के होंगे। इन तीनों श्रेणी के पदाधिकारियों के वाहनों के परमिट मुख्य निर्वाचन अधिकारी की ओर से जारी किए जाएंगे।

जिला निर्वाचन अधिकारी करेंगे नीले रंग का परमिट जारी

मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के जिला स्तरीय पदाधिकारियों द्वारा चुनाव प्रचार के दौरान उपयोग में लाए जाने वाले वाहनों के परमिट नीले रंग के होंगे। ये परमिट जिला निर्वाचन अधिकारी के माध्यम से जारी किए जाएंगे। 

रिटर्निंग अधिकारी करेंगे हरे व पीले रंग के परमिट जारी

इसी प्रकार चुनाव लड़ने वाले अभ्यर्थी एवं उनके कार्यकर्ता द्वारा चुनाव प्रचार अवधि के दौरान प्रचार अभियान में उपयोग लिए जाने वाले वाहनों के परमिट हरे रंग के होंगे। चुनाव लड़ने वाले अभ्यर्थी/निर्वाचन अभिकर्ता एवं उनके कार्यकर्ता द्वारा मतदान दिवस के दिन उपयोग में आने वाले वाहनों के पीले रंग के परमिट जारी किए जाएंगे तथा ये परमिट रिटर्निंग अधिकारी द्वारा जारी किए जाएंगे।

चुनाव आयोग क्या करेगा?

केंद्रीय चुनाव आयोग के सामने हर चुनाव के समय ऐसे सवाल खड़े होते हैं, ऐसे मुद्दे आते हैं, जिसमें लोगों को लगता है कि आयोग को सख्त कदम उठाना चाहिए और कोई कार्रवाई करनी चाहिए पर आयोग कुछ नहीं करता है। चुनाव आयोग की सख्त कार्रवाई इतनी होती है कि वह आचार संहिता का उल्लंघन करने वालों की निंदा कर दे या उसको नोटिस जारी करके भविष्य में ऐसा नहीं करने के लिए आगाह करे। 

तभी हाल में उठे तीन मामलों में भी आयोग के इससे ज्यादा कुछ करने की उम्मीद नहीं है। चुनाव आयोग ने राष्ट्र के नाम प्रधानमंत्री के संबोधन की जांच करने के लिए अधिकारियों की एक टीम बनाई है। पर यह टीम कुछ करेगी इसमें संदेह है। क्योंकि खुद चुनाव आयोग ने ही मान लिया है कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला है और इसलिए इसे आचार संहिता का उल्लंघन नहीं माना जा सकता है। 

इसी तरह चुनाव आयोग ने कांग्रेस की न्याय योजना की घोषणा के खिलाफ बोलने के लिए नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार को नोटिस दिया है। पर उनको भी आगाह करने के अलावा आयोग कुछ नहीं करने जा रहा है। वित्त मंत्रालय ने चुनाव आयोग को चिट्ठी लिख कर कुछ वित्तीय कामों की मंजूरी मांगी। आयोग के अधिकारी हैरान थे कि इस पर फैसला करने के लिए उनको 48 घंटे का अनिवार्य समय भी नहीं दिया गया। उन्होंने इस पर नाराजगी जताई पर आनन फानन में उनको वित्त मंत्रालय के प्रस्ताव पर मंजूरी देनी पड़ी।

वीवीपैट की पर्चियों की गणना सबसे उपयुक्त

निर्वाचन आयोग ने शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि वीवीपैट की पर्चियों की गणना का वर्तमान तरीका सबसे अधिक उपयुक्त है। आयोग ने प्रति विधानसभा क्षेत्र के एक मतदान केन्द्र से अकस्मात तरीके से वीवीपैट की पर्चियों की गणना की प्रणाली को न्यायोचित ठहराया। आयोग ने कहा कि वह किसी भी ऐसे सुझाव पर विचार के लिये तैयार है जिससे देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से चुनाव कराने में सुधार मदद मिलती हो।

निर्वाचन आयोग ने शीर्ष अदालत के 25 मार्च के सवाल के उत्तर में एक हलफनामा दाखिल किया है। न्यायालय जानना चाहता था कि क्या एक विधानसभा क्षेत्र के एक मतदान केन्द्र से अकस्मात तरीके से लिये जाने वाले नमूना सर्वेक्षण की संख्या बढ़ाई जा सकती है?  आयोग ने इस संबंध में न्यायालय में दाखिल हलफनामे में कहा कि इन याचिकाओं में आगामी चुनाव के मुद्दे उठाये गये हैं जिन पर निर्वाचन आयोग ने विचार किया, अध्ययन किया और निर्णय लिया और इसके बाद वर्तमान तरीके से आगामी चुनाव कराने के बारे में फैसला किया गया।’’

आयोग ने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चन्द्रबाबू नायडू के नेतृत्व में 21 विपक्षी दलों के नेताओं की याचिका का जिक्र करते हुये कहा कि इसमें इस समय वर्तमान प्रणाली में बदलाव के लिये कोई वजह नहीं बताई गयी है।  साथ ही आयोग ने कहा कि वर्तमान प्रणाली को आसन्न चुनाव में जारी रहने दिया जाये क्योंकि यह सबसे अधिक उपयुक्त पायी गयी है।

निर्वाचन आयोग ने इस समय विधानसभा चुनाव के लिये एक निर्वाचन क्षेत्र से एक मतदान केन्द्र और लोकसभा चुनाव के मामले में प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र के एक एक मतदान केन्द्र की वीवीपैट पर्चियों की गणना की प्रणाली अपनायी है। याचिका दायर करने वाले विपक्षी नेता चाहते हैं कि अगले महीने होने वाले लोकसभा चुनाव में प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में वोटिंग मशीनों की कम से कम 50 फीसदी वीवीपैट पर्चियों की गणना की जाये। 

अदालत ने कहा, सबूतों के अभाव में गुनहगारों को सजा नहीं मिल पाई

एनआईए अदालत के जज जगदीप सिंह ने अपने फैसले में कहा, ‘मुझे गहरे दर्द और पीड़ा के साथ फैसले का समापन करना पड़ रहा है क्योंकि विश्वसनीय और स्वीकार्य साक्ष्यों के अभाव की वजह से इस जघन्य अपराध में किसी को गुनहगार नहीं ठहराया जा सका।’




 समझौता एक्सप्रेस विस्फोट मामले में स्वामी असीमानंद और तीन अन्य आरोपियों को बरी करने वाली पंचकुला की विशेष अदालत ने कहा कि विश्वसनीय और स्वीकार्य साक्ष्यों के अभाव की वजह से इस जघन्य अपराध के किसी गुनहगार को सजा नहीं मिल पाई।

इस मामले में चारों आरोपियों स्वामी असीमानंद, लोकेश शर्मा, कमल चौहान और राजिंदर चौधरी को अदालत ने बीते 20 मार्च को बरी कर दिया गया था।

राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) अदालत के जज जगदीप सिंह ने अपने फैसले में कहा, ‘मुझे गहरे दर्द और पीड़ा के साथ फैसले का समापन करना पड़ रहा है क्योंकि विश्वसनीय और स्वीकार्य साक्ष्यों के अभाव की वजह से इस जघन्य अपराध में किसी को गुनहगार नहीं ठहराया जा सका। अभियोजन के साक्ष्यों में निरंतरता का अभाव था और आतंकवाद का मामला अनसुलझा रह गया।’

जज जगदीप सिंह ने 160 पेज के अपने फैसले में  कहा था कि अभियोजक पक्ष ने सबसे मजबूत सबूत अदालत में पेश नहीं किए. उन्होंने कहा कि स्वतंत्र गवाहों की कभी जांच नहीं की गई।

उन्होंने 28 मार्च को सार्वजनिक किए गए विस्तृत फैसले में कहा, ‘अदालत का फैसला सार्वजनिक धारणा या राजनीति से प्रेरित नहीं होना चाहिए बल्कि इसे मौजूदा साक्ष्यों को तवज्जो देते हुए वैधानिक प्रावधानों और इसके साथ तय कानूनों के आधार पर अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए।’

उन्होंने कहा, ‘संदेह चाहे कितना भी गहरा हो, साक्ष्य की जगह नहीं ले सकता।’

गौरतलब है कि अदालत ने 20 मार्च को नबा कुमार सरकार उर्फ स्वामी असीमानंद, कमल चौहान, राजिंद्र चौधरी और लोकेश शर्मा को बरी कर दिया था। इस विस्फोट में 43 पाकिस्तानी नागरिक, 10 भारतीयों और 15 अज्ञात लोगों सहित 68 लोगों की मौत हो गई थी।

यह विस्फोट 2007 में 18-19 फरवरी की रात को अटारी जाने वाली समझौता एक्सप्रेस में हुआ था. हरियाणा में दिवाना और पानीपत के बीच दो अनारक्षित कोचों में दो विस्फोट हुए थे। दो बम फटे ही नहीं, जिन्हें बाद में बरामद किया गया।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, तीन आरोपियों अमित चौहान (रमेश वेंकट मलहाकर), रामचंद्र काससंगरा और संदीप डांगे को अपराधी घोषित किया गया. एनआईए ने एक अन्य आरोपी सुनील जोशी को इस हमले का मास्टरमाइंड बताया, जिसकी मध्य प्रदेश के दिवास में दिसंबर 2007 में मौत हो गई थी।

जज ने अपने आदेश में कहा, ‘अभियोजक पक्ष के सबूतों में निरंतरता नहीं है और आतंकवाद का यह मामला अनसुलझा ही रह गया। आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता क्योंकि इस दुनिया में कोई भी धर्म हिंसा का पाठ नहीं पढ़ाता। अदालत का फैसला लोगों की भावनाओं और धारणा के आधार पर या राजनीति से प्रेरित नहीं होना चाहिए यह सबूतों के आधार पर होना चाहिए।’

जज ने कहा, ‘मौजूदा मामले में ऐसा कोई सबूत नहीं था कि इन आरोपियों ने इस अपराध को अंजाम दिया है। इस अपराध को अंजाम देने के लिए इन लोगों की मुलाकात और बातचीत को लेकर भी कोई सबूत पेश नहीं किया गया। इन आरोपियों की आपस में कड़ियों को जोड़ने, मुकदमे का सामना करने के लिए किसी तरह के ठोस मौखिक, दस्तावेजी और वैज्ञानिक सबूत को पेश नहीं किया गया. अपराधियों का इस अपराध में शामिल होने के उद्देश्य का कोई सबूत पेश नहीं किया जा सका।’


जब भी चुनाव आयोग मांगी है शक्तियां, केंद्र ने ठुकराया

चुनाव आयोग ने जनप्रतिनिधित्व क़ानून, 1951 में संशोधन करके धारा 58बी शामिल करने की मांग की थी, ताकि राजनीतिक दलों द्वारा मतदाताओं को रिश्वत देने पर चुनाव को स्थगित या रद्द किया जा सके। लेकिन केंद्र सरकार ने इस मांग को ख़ारिज कर दिया।




 चुनाव आयोग ने साल 2016 से चार बार पत्र लिखकर मोदी सरकार से मांग किया था कि अगर किसी बूथ या विधानसभा क्षेत्र में मतदाताओं को रिश्वत देने के मामले सामने आते हैं तो आयोग को ये शक्तियां दी जानी चाहिए कि वे चुनाव को स्थगित या खारिज कर सकें। हालांकि सरकार ने हर बार आयोग की इस मांग को ठुकरा दी।

 चुनाव में पैसे के बढ़ते इस्तेमाल के बावजूद सरकार ये अधिकार नहीं देना चाहती है कि रिश्वत के मामले सामने आने पर आयोग चुनाव को खारिज कर सके।

चुनाव आयोग ने सबसे पहले छह जून 2016 को इस मामले में सरकार को पत्र लिखा था और इसके बाद तीन बार पत्र लिखकर अपनी इसी मांग को दोहराया था। इसमें से दो बार पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम जैदी ने कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को पत्र लिखा था।

आयोग ने जून 2016 में कानून मंत्रालय को एक प्रस्ताव भेजा था जिसमें जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 में संशोधन करके धारा 58ए की तर्ज पर धारा 58बी शामिल करने की मांग की गई थी। धारा 58ए के तहत चुनाव आयोग को ये अधिकार दिया गया है कि अगर बूथ-कैप्चरिंग के मामले सामने आते हैं तो वे चुनाव को स्थगित या रद्द कर सकते हैं।

चुनाव आयोग ने मांग किया था कि इसी तरह एक अन्य धारा 58बी को शामिल किया जाना चाहिए ताकि राजनीतिक दलों द्वारा किसी निर्वाचन क्षेत्र के मतदाताओं को रिश्वत देने पर चुनाव को स्थगित या रद्द किया जा सके।

हालांकि रविशंकर प्रसाद और कानून मंत्रालय ने ये कहते हुए आयोग की मांग को खारिज कर दिया कि बूथ-कैप्चरिंग और रिश्वत के मामले को एक जैसे नहीं होते हैं या इन्हें एक ही चश्में से नहीं देखा जा सकता है।

प्रसाद ने 18 नवंबर 2016 को पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम जैदी को भेजे पत्र में लिखा, ‘जहां तक मतदाताओं को रिश्वत देने के मामले में चुनाव को खारिज करने के लिए जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में विशेष प्रावधान को शामिल करने का प्रस्ताव है, मैं यह कह सकता हूं कि बूथ कैपचरिंग के साथ मतदाताओं के रिश्वतखोरी के आरोपों की तुलना करना उचित नहीं होगा क्योंकि इसकी परिस्थितियां भिन्न होती हैं। रिश्वत के आरोप हमेशा जांच और सबूत का विषय होते हैं। इसके अलावा, आयोग पूर्व में संविधान के अनुच्छेद 324 में दी गई शक्तियों के तहत ऐसी स्थितियों से निपट रहा है। इसलिए, यथास्थिति बनाएं रखें।’

प्रसाद से पहले कानून मंत्रालय ने 26 सितंबर 2016 को चुनाव आयोग को एक पत्र भेजा था जिसमें यही बात लिखी गई थी। इस पत्र पर भारत सरकार में उप सचिव केके सक्सेना के हस्ताक्षर हैं। चुनाव आयोग द्वारा फिर से इसी मामले की सिफारिश करने पर मंत्रालय ने 22 मई 2017 को पत्र लिखकर अपने पुराने जवाब को ही दोहराया और आयोग की मांग को खारिज कर दिया।

23 नवंबर 2016 को रविशंकर प्रसाद को भेजे एक पत्र में नसीम जैदी ने लिखा, ‘कानून मंत्रालय का मानना है कि बूथ कैप्चरिंग के साथ रिश्वत के आरोपों की तुलना करना सही नहीं होगा क्योंकि रिश्वत एक जांच और सबूत का मामला होगा. इस संदर्भ में, मैं यह बताना चाहूंगा कि बूथ-कैप्चरिंग के मामले में भी, आयोग प्रासंगिक-कानून के तहत तथ्यों के सत्यापन और संतुष्टि के बाद ही कानूनी कार्रवाई करता है। रिश्वत के मामले में भी ऐसा हो सकेगा। आयोग को बहुत सीमित समय सीमा में कार्य करना होगा और वो गंभीर, निष्पक्ष और तथ्य आधारित जांच और सत्यापन के बाद ही कार्य करता है। इस तरह आयोग का मानना है कि आयोग द्वारा कार्रवाई करने के लिए दोनों अपराधों को अलग-अलग करके देखने की जरूरत नहीं है।’

उन्होंने आगे लिखा, ‘जैसा कि पिछले पत्र में प्रस्ताव रखा गया था कि पैसे का दुरुपयोग और मतदाताओं को रिश्वत देने के व्यापक मामलों को देखते हुए, हर मौके पर अनुच्छेद 324 के तहत पूर्ण शक्ति का इस्तेमाल करने के बजाय इस समस्या से निपटने के लिए कानून में एक विशेष प्रावधान होना चाहिए।’

 साल 2017 में भारी मात्रा में कैश बरामद होने पर आयोग को तमिलनाडु के राधाकृष्णानगर विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव को अनुच्छेद 324 में दी गई शक्तियों के तहत रद्द करना पड़ा था। इसके पहले साल 2016 में रिश्वत के मामलों की वजह से आयोग ने तमिलनाडु की अरावाकुरिचि और थंजावुर विधानसभा क्षेत्र के चुनाव को रद्द किया था।

नसीम जैदी ने  कहा, ‘सरकार कह रही है कि आयोग को अनुच्छेद 324 के तहत ही इस मामले से निपटना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 324 के तहत चुनाव आयोग को ये व्यवस्था दी थी कि अगर किसी मामले को लेकर कानून नहीं बना है या फिर जहां कानून शांत है तो विशेष परिस्थितियों में इसके तहत कार्रवाई की जा सकती है। चूकिं रिश्वत के मामले बहुत व्यापक हो चुके हैं इसलिए बार-बार अनुच्छेद 324 इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। ये अपर्याप्त है। इसके लिए अलग से कानून होना चाहिए। जिस तरह कानून बनाने के बाद बूथ कैप्चरिंग पर आयोग ने 99.99 फीसदी लगाम लगा दिया उसी तरह रिश्वतखोरी के संबंध में कानून बनता है तो आयोग इस पर रोक लगा सकेगा।’

जैदी ने कहा कि एक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 में धारा 58बी जोड़ना अनिवार्य है। उन्होंने यह भी कहा कि आयोग को बार बार सरकार के पास ये सिफारिश भेजनी चाहिए। हालांकि आयोग से मिली जानकारी से यह स्पष्ट होता है कि नसीम जैदी के बाद अभी तक किसी अन्य आयुक्त इसकी सिफारिश नहीं भेजी है। 


मालूम हो कि हाल ही में मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने कहा कि धन के दुरुपयोग के चलते स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराना भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। अरोड़ा से पहले भी कई चुनाव आयुक्त इस समस्या को सरकार के सामने रखते रहे हैं।

मोदी सरकार का दावा था कि नोटबंदी की वजह से काले धन खत्म हो जाएंगे, लेकिन पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कहा था कि नोटबंदी की वजह से काले धन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है. साल 2018 में पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के संदर्भ में रावत ने कहा था कि हमने इन चुनावों में 200 करोड़ रुपये जब्त किए हैं।

पिछले कुछ सालों में चुनाव आयोग द्वारा जब्त किए गए कैश, ड्रग्स, शराब और कीमती उपहार
आरटीआई के तहत मिली जानकारी से पता चलता है कि साल 2016 के असम, पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु और पुदुचेरी के विधानसभा चुनावों में चुनाव आयोग ने 175.53 करोड़ का कैश, 24.29 करोड़ रुपये की कीमत का 52.76 लाख लीटर शराब और 12.05 करोड़ रुपये की कीमत का 65260 किलो ड्रग्स बरामद किया था।

आयोग ने असम में 11.83 करोड़ रुपये का कैश, 4.69 करोड़ रुपये की कीमत का 9.72 लाख लीटर शराब और 5.99 लाख रुपये की कीमत का 11928 किलो ड्रग्स बरामद किया था. इसी तरह पश्चिम बंगाल के चुनाव में 20.75 करोड़ रुपये, 40.56 लाख लीटर शराब और 52216 किलो ड्रग्स बरामद किया था।

इसके अलावा केरल में 23.15 करोड़ रुपये कैश, 49669 लीटर शराब और 521 किलो शराब जब्त किया गया। सबसे ज्यादा कैश राशि तमिलनाडु से बरामद किया गया था। आयोग ने यहां पर 112.32 करोड़ रुपये और 1.84 लाख लीटर शराब बरामद की थी।

साल 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में भी ऐसी ही हालत थी। इस साल उत्तराखंड, पंजाब, गोआ, उत्तर प्रदेश और मणिपुर में हुए चुनावों में 184.85 करोड़ रुपये का कैश, 37.26 लाख लीटर शराब और 6264 किलो ड्रग्स बरामद किए गए थे। इसके अलावा 50 करोड़ से ज्यादा के सोने चांदी भी बरामद किए गए थे। चुनाव आयोग ने अकेले उत्तर प्रदेश से 119.03 करोड़ रुपये का कैश जब्त किया था।

इसी तरह 2014 के लोकसभा चुनाव और अरुणाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश (अविभाजित) ओडिशा और सिक्किम के विधानसभा चुनावों में आयोग ने 303.85 करोड़ रुपये का कैश और शराब बरामद किया था।

आयोग ने 24 अप्रैल 2017 को सरकार को लिखे पत्र में लिखा, ‘ये आंकड़े केवल इस मुद्दे की हद और गंभीरता के संकेत हैं क्योंकि ये बरामदगी बहुत बड़ी समस्या का बहुत छोटा हिस्सा है. इसलिए चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता को नष्ट करने वाली धन शक्ति के दुरुपयोग पर प्रभावी अंकुश लगाने के लिए कानून को और कड़ा बनाने की जरूरत है।’

चुनाव आयोग ने आगे लिखा, ‘चुनावों में रिश्वत मतदाताओं के पसंद को प्रभावित करने के लिए हेरफेर करने का एक प्रयास है, और स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के संदर्भ में एक बहुत ही गंभीर अपराध है। अपराध के व्यापक प्रभाव को देखते हुए, आयोग का मानना है कि चुनाव लड़ने की अयोग्यता के लिए अन्य अपराधों की तुलना में इस अपराध को एक अलग स्तर पर रखा जाना चाहिए।’

इसके अलावा आयोग ने उस व्यक्ति को अयोग्य घोषित करने का प्रस्ताव रखा था जिसके खिलाफ आईपीसी की धारा 171बी और 171सी के तहत घूसखोरी और अनुचित प्रभाव के आरोप तय हुए हो। फिलहाल ये नियम है कि अगर किसी व्यक्ति को कम से कम छह साल के लिए सजा होती है तो वो जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(1) के तहत चुनाव लड़ने के अयोग्य हो जाता है।

चुनाव सुधार की दिशा में काम करने वाली गैर सरकार संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की हालिया रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है कि चुनावों में पैसे, शराब, कीमती उपहार इत्यादि देने से मतदाता प्रभावित होता है. एडीआर ने अपने सर्वेक्षण में पाया है कि 41.34 प्रतिशत मतदाताओं के लिए पैसे, शराब, कीमती उपहार आदि चुनाव में किसी खास उम्मीदवार को वोट देने के कारक हैं।

 साल 1989 में जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 में धारा 58ए जोड़ा गया था। उस समय, बूथ कैप्चरिंग को चुनाव में एक बड़ी समस्या माना जाता था। बाद के वर्षों में और खासकर हाल के वर्षों में, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के संचालन पर पैसे के दुरुपयोग का गंभीर प्रभाव देखा जा रहा है। चुनाव आयोग द्वारा चुनावों के दौरान उम्मीदवारों/उनके एजेंटों, राजनीतिक पार्टी कार्यकर्ताओं से बड़ी मात्रा में नकदी, शराब, नशीले पदार्थों, उपहार वस्तुओं आदि को जब्त करने के कई उदाहरण सामने आए हैं।

सावधान! हमें बीमार बना रहा है स्मार्टफोन

सोशल साइट्स की लत से स्वास्थ्य पर पड़ रहा है हानिकारक प्रभाव


 स्मार्ट फोन पर सोशल नेटवर्किंग साइट का दिन भर इस्तेमाल लोगों को बीमार बना रहा है। युवा, विद्यार्थी, महिला, पुरुष से लेकर बच्चे तक इसकी गिरफ्त में हैं। सोशल नेटवर्किंग साइट का लोगों पर ऐसा भूत सवार हो गया  है कि उनका ज्यादा से ज्यादा समय मैसेज टाइप करने में ही बीत रहा है। हमलोग इसकी गंभीरता को नहीं समझ पा रहे हैं, जिसका परिणाम यह हो रहा है कि लोग हड्डी व ब्रेन की गंभीर समस्या से पीड़ित हो जा रहे हैं। इससे निजात पाने के लिए लोगों को अस्पताल व फिजियोथेरेपी क्लिनिक का सहारा लेना पड़ता है। समय रहते सचेत होने की जरूरत है।

टेक्स्टनेक सिंड्रोम (गर्दन की समस्या )

यह गर्दन की समस्या है। इसमें व्यक्ति के गर्दन में दर्द व  जकड़न हो जाता है। लगातार स्मार्ट फोन पर काम करने से इससे रीढ़ की हड्डी के डिस्क खिसकने की संभावना बढ़ जाती है। यह समस्या बाद में क्रोनिक स्पोंडेलाइटिस का रूप ले लेती है।

क्या करें : स्मार्ट फोन का इस्तेमाल करते समय पोस्चर का ध्यान रखें। गर्दन को लगातार झुका कर काम नहीं करना है। पीठ को सीधा रखना है, ताकि स्पाइन सीधा रहे। दोनों पैर का तलवा जमीन पर रहना है। कंधा का सपाेर्ट टेबल या कुर्सी पर होना चाहिए।

लोकसभा के 83 प्रतिशत सदस्य करोड़पति, 33 प्रतिशत दागी

2014 के आम चुनाव में लोकसभा के लिए निर्वाचित सांसदों पर रिपोर्ट में हुआ खुलासा 


 चुनाव सुधार के लिए काम करने वाली संस्था एडीआर की एक रिपोर्ट के मुताबिक लोकसभा के मौजूदा 521 सांसदों में कम से कम 83 प्रतिशत करोड़पति हैं और 33 प्रतिशत के खिलाफ आपराधिक मामले हैं। गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) 2014 के आम चुनाव में लोकसभा के लिए चुने गये 543 सदस्यों में 521 सांसदों के शपथपत्रों का विश्लेषण कर यह रिपोर्ट तैयार की है।


रिपोर्ट में कहा गया है, जिन 521 मौजूदा सांसदों के शपथपत्रों का विश्लेषण किया गया, उनमें 430 (83 प्रतिशत) करोड़पति हैं। उनमें भाजपा से 227, कांग्रेस से 37 और अन्नाद्रमुक से 29 सांसद हैं। रिपोर्ट के मुताबिक लोकसभा के प्रत्येक मौजूदा सदस्य की औसत संपत्ति 14. 72 करोड़ रुपये हैं। एडीआर की रिपोर्ट में कहा गया है कि मौजूदा 32 सांसदों ने अपने पास 50 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति घोषित की, जबकि सिर्फ मौजूदा दो सांसदों ने पांच लाख रुपये से कम की संपत्ति घोषित की। रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा 33 प्रतिशत सांसदों (लोकसभा के) ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले होने की शपथपत्रों में घोषणा की है।


एनजीओ की रिपोर्ट में कहा गया है, उनमें से 106 ने अपने खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले होने की घोषणा की है जिनमें हत्या, हत्या का प्रयास, सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने, अपहरण और महिलाओं के खिलाफ अपराध जैसे मामले शामिल हैं, जबकि 10 मौजूदा सांसदों ने हत्या से जुड़े मामले घोषित किये हैं। उनमें से चार सांसद भाजपा से हैं जबकि कांग्रेस, राकांपा, लोजपा, राजद और स्वाभिमानी पक्ष से एक-एक सांसद हैं तथा एक सांसद निर्दलीय है।

14 सांसदों के खिलाफ हत्या के प्रयास के मामले

रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा 14 सांसदों ने अपने खिलाफ हत्या के प्रयास के मामलों की घोषणा की है। उनमें से आठ सांसद भाजपा से हैं। वहीं, कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, राकांपा, राजद, शिवसेना और स्वाभिमानी पक्ष के एक - एक सांसद हैं।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 14 मौजूदा सांसदों ने सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ने के अपने खिलाफ मामले होने की घोषणा की। उनमें से 10 सांसद भाजपा से हैं जबकि टीआरएस, पीएमके, एआइएमआइएम और एआइयूडीएफ के एक-एक सांसद हैं।

करोड़पति एमपी की संख्या 

227 भाजपा ,कांग्रेस, 29 अन्नाद्रमुक

14.72 करोड़ रुपये सांसदों की औसत संपत्ति

32 सांसदों ने घोषित की 50 करोड़ से अधिक की संपत्ति

02 सांसदों के पास पांच लाख रुपये से कम संपत्ति

106 पर गंभीर आपराधिक मामले

10 सांसदों पर हत्या से जुड़े मामले

भाजपा 04 कांग्रेस 01 राकांपा 01 लोजपा 01 राजद 01 स्वाभिमानी 01  निर्दलीय 01

राजस्थान की 25 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस ने 19 प्रत्याशियों की लिस्ट जारी की

जयपुर। कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव 2019 के लिए गुरुवार देर रात को राजस्थान की 25 लोकसभा सीटों में से 19 सीटों पर प्रत्याशियों को टिकट दे दिया हैं। इस लिस्ट में सबसे चर्चित नाम राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत का है। उन्हें जोधपुर से टिकट दिया गया है। इसके अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह को अलवर और मानवेंद्र सिंह को बाडमेर से टिकट दिया गया है। टोंक -सवाई माधोपुर सीट से पूर्व मंत्री नमो नारायण मीणा, उदयपुर से रघुवीर मीणा को भी टिकट दिया है। जयपुर शहर से ज्योति खंडेलवाल को उतारा है। आपको बताते दें कि ज्योति खंडेलवाल जयपुर की पूर्व मेयर रही हैं। नागौर से कांग्रेस ने ज्योति मिर्धा को टिकट दिया है। 19 उम्मीदवारों सूची में तीन महिलाओं को टिकट दिया गया है। 

1. चूरू - रफीक मंडेलिया 2. बीकानेर -मदन गोपाल मेघवाल 3. अलवर -जितेन्द्र सिंह 
4. करौली-धौलपुर -संजय कुमार जाटव 5. पाली - बद्रीराम जाखड़ 6. बाड़मेर - मानवेन्द्र सिंह 
7. सीकर -सुभाष महरिया 8. टोंक-सवाईमाधोपुर - नमोनारायण मीणा 9. सिरोही-जालौर- रतन देवासी
10. जोधपुर - वैभव गहलोत 11. जयपुर शहर -ज्योति खंडेलवाल 12. झुंझुनूं - श्रवण कुमार 
13. दौसा - सविता मीणा 14. भरतपुर - अभिजीत कुमार जाटव 15. चित्तौड़गढ़ - गोपाल सिंह ईड़वा 
16. कोटा - रामनारायण मीणा 17. उदयपुर - रघुवीर सिंह मीणा 18. बांसवाड़ा -ताराचंद भगोरा 
19. नागौर -ज्योति मिर्धा 

दर्शकों को रूला गया 'एक और देवदास'

'हजारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पर रोती है, बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा।' 'एक और देवदास' के लिए राजेन्द्र सिंह गहलोत मृत्यु उपरांत भी याद किये जायेंगे, अद्भुत, अविश्वसनीय  प्रस्तुतिकरण, जाने-अंजाने इतिहास इसी तरह लिखे जाते हैं।  
जवाहर कला केंद्र को राज रंगम समारोह के पांचवे दिन एक अजीब उदासी ने घेरा हुआ था, रंगायन में सन्नाटा पसरा था, दर्शक आज हमेशा की तरह अंधेरे में नहीं थे, रोशनी में थे, रंगायन की ग्रीन लाइट  की रोशनी में।

 सारा माहौल मरा- मरा था,  मंच पर वरिष्ठ रंगकर्मी राजेंद्र सिंह गहलोत लिखित, निर्देशित और एकल अभिनीत नाट्य संध्या 'एक और देवदास' का मंच देखकर अजीब सी उदासी मन पर छा रही थी, अस्पताल का पलंग, चारों तरफ इंसान के हालातों से जन्मा रस्सियों से बना मकड़जाल जिससे इंसान कितना ही निकलने की कोशिश करें उसका मन नहीं निकल पाता, बिना सुईयों की घड़ी जो जीवन के ठहराव की ओर इशारा कर रही थी कि मौत और प्रेम के लम्हों में समय थम सा जाता है, देखा जाए तो समय होता ही नहीं।

सर्वेश भट्ट, वरिष्ठ कला समीक्षक



 शीशा टूटने पर पता चलता है कि शीशा था, जैसे मौत आने पर पता चलता है कि जीवन था । जीवन के दो रंग, एक काला,एक सफेद । एक ऐसा अंधेरा जिस के राज सिर्फ इंसान का खुद का मन जानता है जिसके लिए राजेंद्र सिंह गहलोत ने नाटक में कहा कि कई सच ऐसे होते हैं जिसे आदमी अकेले में खुद से बोलते हुए भी डरता है, और शीशे का सफेद रंग बता रहा था उस उजाले को, जिसके लिए गहलोत ने कहा कि कई झूठ ऐसे होते हैं जिन्हें लाउडस्पीकर पर बोला जाता है। रस्सियों के मकड़जाल के पीछे घूमता औरत का साया, जो इंसान के दिलों दिमाग में घूमता रहता है वह कह रहा था वह मेरी जिंदगी में आई नहीं,उसने एंट्री ली स्टार्स की तरह और आंसू सपने, यादों के बाद मौत की आगोश में जाते इंसान की परिणिति के बारे में गहलोत कहते हैं और छोड़ गई एक और देवदास।

 वरिष्ठ नाट्य निर्देशक राजेंद्र सिंह गहलोत ने अपनी अनोखी और प्रयोगात्मक प्रस्तुति को इस ढंग से हर स्तर पर सजाया चाहे वह लेखन हो, अभिनय हो, निर्देशन हो,  मंच सज्जा हो,  प्रकाश परिकल्पना हो, संगीत संयोजन हो, या रूप सज्जा।

 'एक और देवदास' रंगायन में बैठे हर व्यक्ति में बैठे देवदास के रूप में उसको रुला रही थी । नाटक खत्म हो गया था लेकिन दर्शक सीटों पर जमे थे जैसे जिंदगी खत्म हो जाती है और मृत शरीर पड़ा रह गया हो । गहलोत की आवाज सभागार में गूंजती है रुक जाओ नाटक और जिंदगी खत्म नहीं होते।  लेकिन मृत शरीर कब तक पड़ा रह सकता है उसे तो खुद के बनाए घर से भी परिजनों मित्रों रिश्तेदारों द्वारा निकाल दिया जाता है तो रंगायन कैसे पड़ा रख सकता था। भीगी आंखों और टूटे कदमों से निकलते दर्शक सालों साल नहीं भूल पाएंगे राजेन्द्र सिंह गहलोत की बेहद अनूठी और रूला देने वाली सफल प्रस्तुति 'एक और देवदास।'

गुरुवार, 28 मार्च 2019

मैं चौकीदार हूं, हिसाब दूंगा भी और लूंगा भी: मोदी

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तराखंड के रुद्रपुर में एक रैली में गुरुवार को कहा कि वह चौकीदार हैं, वह हिसाब देंगे और दूसरों से हिसाब लेंगे भी। उन्होंने याद दिलाते हुए कहा कि हमारे देश के सैनिकों को जिस प्रकार से अपमानित किया जा रहा है और नीचा दिखाने का प्रयास हो रहा है ।

मोदी ने नैनीताल, ऊधमसिंह नगर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रत्याशी अजय भट्ट के समर्थन में आयोजित जनसभा में गढ़वाली भाषा में अपना सम्बोधन शुरू करते हुये कहा कि देवभूमि के करोड़ों लोगों का आशीर्वाद उनके साथ है। उन्होंने याद दिलाते हुए कहा कि हमारे देश के सैनिकों को जिस प्रकार से अपमानित किया जा रहा है और नीचा दिखाने का प्रयास हो रहा है तथा उनके खिलाफ अपशब्द बोलने की हिम्मत की जा रही है, वह क्षमा किये जाने लायक नहीं है।

उन्होंने कहा कि उत्तराखंड वीरों की, बलिदानियों की भूमि है। ऐसी भूमि पर देश के चौकीदार को आशीर्वाद देने के लिए इतने सारे चौकीदार एक साथ निकल पड़े हैं। उन्होंने कहा कि 2019 के चुनाव में वह विकास के मुद्दे को लेकर आगे बढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा,“मैं पूछूंगा उनसे, कांग्रेस और अन्य से कि वे अपने कार्यकाल में नाकाम क्यों रहे।”

प्रधानमंत्री ने कहा कि आज फैसले लेने वाली सरकार है तो दूसरी ओर फैसले टालने वालों का इतिहास है। उस ओर वंशवाद की बहार है। एक ओर दमदार चौकीदार है तो उस ओर दागदारों की भरमार है। उन्होंने कहा, “मैं चाहता हूं नया भारत जो अपने गौरवशाली अतीत के साथ ही वैभवशाली होगा।  मोदी ने कहा कि जब आपके इस चौकीदार की सरकार के पहले महामिलावटी लोगों की सरकार थी तो देश भर में बम धमाके होते थे। आतंकवादियों की भी जाति देखी जाती थी। उनका धर्म जाना जाता था, तब कार्रवाई होती थी। उन्होंने कहा कि आज देश में तो संकल्प सिद्ध करने वाली सरकार, सर्जिकल स्ट्राइक वाली सरकार है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘वन रैंक वन पेंशन की मांग पूरी करने वाली सरकार यही है। विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि जब वह बैंक खाते खुलवाते थे तो लोग कमेंट करते थे कि बैंक कहां हैं। उनकी सरकार ने यह काम कर दिखाया। उन्होंने कहा, “बताइये इस देश में जो लोग 70 वर्ष में आपका बैंक खाता नहीं खुलवा सके। वे आपके खाते में पैसा पहुंचने देंगे क्या।” जनसभा को क्षेत्र के भाजपा प्रत्याशी अजय भट्ट के अलावा मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत सांसद भगत सिंह कोश्यारी ने भी सम्बोधित किया। 

मतदाताओं के मतों का मूल्य

अगर आप मतदाता हैं और देश के करोड़ों लोगों की तरह इस जोर-शोर से प्रचारित लोकतांत्रिक मिथ के शिकार है कि लोकसभा चुनाव में हर मतदाता के मत का मूल्य समान और नयी लोकसभा के गठन में उसकी एक जैसी हिस्सेदारी या भूमिका होती है, तो अपनी यह गलतफहमी दूर कर लीजिये, क्योंकि यह सिर्फ और सिर्फ मिथ है और इसका सच्चाई से कतई कोई वास्ता नहीं है! 

अगर आप देश के सबसे छोटे लोकसभा क्षेत्र लक्षदीप के मतदाता हैं, तो तेलंगाना स्थित सबसे बड़े क्षेत्र मलकाज गिरि के मतदाताओं के मुकाबले आपके मत का मूल्य 63 गुना ज्यादा है, क्योंकि लक्षदीप में जहां केवल 49,922 मतदाता एक सांसद चुनकर लोकसभा में अपना एक मत पक्का कर लेते हैं, वहीं मलकाज गिरि के 31,83,325 मतदाताओं के पास भी लोकसभा में कुल मिलाकर एक ही मत है।
मतों के मूल्य में यह असंतुलन तब है, जब इसे दूर करने के नाम पर ही 2009 के आम चुनाव से पहले लोकसभा क्षेत्रों का नया परिसीमन कराया गया था। 

परिसीमन का आधार 2001 की जनगणना से हासिल आंकड़ा था। फलस्वरूप असंतुलन कुछ कम तो हुआ, लेकिन पूरी तरह खत्म नहीं हुआ। साल 2004 के आम चुनाव तक लक्षदीप देश का सबसे छोटा और बाहरी दिल्ली सबसे बड़ा संसदीय क्षेत्र था और दोनों के मतदाताओं के मतों के मूल्य में 86 गुना का अंतर था।
इस असंतुलन के कई अनर्थ है। कुछ प्रत्यक्ष तो कुछ परोक्ष। मसलन, लोकसभा के गठन में देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के मतदाताओं की हिस्सेदारी 16.49 प्रतिशत है, तो महाराष्ट्र के मतदाताओं की 9.69 प्रतिशत। इसी क्रम में पश्चिम बंगाल के मतदाताओं की भागीदारी 7.67, आंध्र प्रदेश व तेलंगाना के मतदाताओं की 7.66, बिहार के मतदाताओं की 7.62, तमिलनाडु के मतदाताओं की 6.66, मध्य प्रदेश के मतदाताओं की 5.84, कर्नाटक के मतदाताओं की 5.49, राजस्थान के मतदाताओं की 5.22 और गुजरात के मतदाताओं की 4.89 प्रतिशत भागीदारी है।

इस बात को गुणांकों के हिसाब से समझना चाहें, तो दिल्ली के मतदाताओं का गुणांक जहां 0.83 है, वहीं अरुणाचल प्रदेश के मतदाताओं का गुणांक 4.38 है. गुणांक एक से कम होने का मतलब है कि लोकसभा में संबंधित राज्य के मतदाताओं का प्रतिनिधित्व राष्ट्रीय औसत से कम है और एक से ज्यादा होने का अर्थ यह कि उसे राष्ट्रीय औसत से ज्यादा प्रतिनिधित्व मिला हुआ है।
नियमों के मुताबिक किसी भी लोकसभा क्षेत्र का फैलाव दो राज्यों में नहीं हो सकता, इस कारण भी कुछ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लोकसभा क्षेत्र मतदाताओं की संख्या के लिहाज से काफी छोटे हैं, जबकि कई अन्य बहुत बड़े। 

परिसीमन में एक गड़बड़ यह हुई कि इसका ध्यान नहीं रखा गया कि कई बार राज्यों की जनसंख्या दूसरे राज्यों से आनेवाले लोगों के कारण भी बढ़ती है। दिल्ली, महाराष्ट्र और कर्नाटक में देश के सबसे बड़े तीन महानगर हैं और उनकी जनसंख्या बढ़ती जाने का सबसे बड़ा कारण अन्य राज्यों से आनेवाला जनप्रवाह ही है। 
मतदाताओं की संख्या को आधार न बनाये जाने से हालत यह हो गयी है कि कुछ राज्यों में मतदाताओं की संख्या के अनुपात में जितनी लोकसभा सीटें होनी चाहिए, नहीं हैं। इस कारण मतों के मूल्य की समानता स्थापित नहीं हो पा रही है।

प्रत्येक लोकसभा सीट के मतदाताओं की संख्या के 2014 के राष्ट्रीय औसत 13.5 लाख को आधार बनायें, तो तमिलनाडु की कुल लोकसभा सीटें 39 से घटकर 31 हो जायेंगी, जबकि उत्तर प्रदेश की अस्सी सीटें बढ़ाकर 88 करनी पड़ेंगी. इसी तरह महाराष्ट्र की सीटें 48 से बढ़ाकर 55 करनी होंगी, कर्नाटक की 25 से बढ़ाकर 28, गुजरात की 26 से बढ़ाकर 28, छत्तीसगढ़ की 11 से बढ़ाकर 12 और दिल्ली की सात से बढ़ाकर आठ, जबकि पश्चिम बंगाल की 42 से घटाकर 40, केरल की 20 से घटाकर 17, असम की 14 से घटाकर 13, जम्मू कश्मीर की छह से घटाकर पांच, हरियाणा की दस से घटाकर नौ, हिमाचल की चार से घटाकर तीन और उत्तराखंड की पांच से घटाकर चार। अलबत्ता, पंजाब और मध्य प्रदेश दो ऐसे राज्य बचते हैं, जिनकी लोकसभा सीटें फिर भी यथावत बनी रहेंगी।

देश के लोकतंत्र की अच्छी सेहत के लिए जरूरी है कि मतों के मूल्यों में यह असमानता को जितनी जल्दी संभव हो, खत्म कर दिया जाये. लेकिन, प्रश्न है कि इसकी उम्मीद भी भला कैसे की जाये।
आप मतों के मूल्य में इस गड़बड़ी को जानकर क्षुब्ध हो रहे हैं, तो यह भी जानिये कि देश के लोकतंत्र की यह विडंबना इकलौती नहीं है। इधर दि इरीटेटेड इंडियंस की ओर से एक मैसेज वायरल हो रहा है, जिसमें कहा गया है कि इस लोकतंत्र में राजनेता अपनी पसंद की दो सीटों से चुनाव लड़ सकते हैं, लेकिन मतदाता अपनी पसंद की दो सीटों तो क्या एक ही सीट की दो जगहों पर भी वोट नहीं दे सकते। जेल में बंद तो वोट नहीं दे सकते, लेकिन नेता जेल में रहकर भी चुनाव लड़ सकते हैं।

अगर आप कभी किसी एक मामले में भी जेल हो आये हैं, तो कोई सरकारी नौकरी नहीं पा सकते, लेकिन नेता कितनी बार भी जेल हो आये हों, वे प्रधानमंत्री-मुख्यमंत्री क्या, राष्ट्रपति भी बन सकते हैं।  
ऐसे में कोई तो बताये कि यह लोकतंत्र जनता का है या नेताओं का और क्या इसके सिस्टम को बदलने की जरूरत नहीं है? अगर है तो उसका मुहूर्त कब आयेगा? मतदाताओं के मतों का मूल्य