जयपुर। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जनहित एवं लोक कल्याण को दृष्टिगत रखते हुए आदर्श आचार संहिता की समीक्षा की मांग की है। उन्होंने आचार संहिता की अवधि न्यूनतम करने तथा इसके विभिन्न प्रावधानों की समीक्षा किए जाने के लिए भारत निर्वाचन आयोग को पत्र लिखा है। गहलोत ने कहा है कि लम्बे समय तक आचार संहिता लागू रहने के कारण राज्यों को संवैधानिक दायित्वों के निर्वहन में बाधा आती है और नीतिगत पंगुता की स्थिति उत्पन्न होती है।
गहलोत ने मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा को संबोधित पत्र में कहा है कि लोकसभा चुनाव के दौरान देशभर में 78 दिनों तक आचार संहिता प्रभावी रहने से गवर्नेंस का कार्य पूरी तरह ठप्प रहा और आमजन को भारी समस्याओं का सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा कि इतने लम्बे समय तक चुनाव प्रक्रिया का संचालन करने से आयोग की मंशा पर सवालिया निशान खडे़ हुए हैं। कई प्रकरणों में आचार संहिता के उल्लंघन के बावजूद खानापूर्ति किए जाने से आयोग की विश्वसनीयता भी खतरे में पड़ी है। साथ ही आचार संहिता की पालना को लेकर आयोग के अंदर मतभेदों ने इस संवैधानिक संस्था की साख को आघात पहुंचाया है।
मुख्यमंत्री ने पत्र में अपने सुझाव देते हुए कहा है कि आचार संहिता के दौरान मुख्यमंत्री, मंत्रीगण, मुख्य सचिव एवं पुलिस महानिदेशक को अधिकारियों से सीधे फीडबैक लेने तथा कानून-व्यवस्था एवं जनहित के कार्यों की माॅनिटरिंग की मनाही रहती है, इसके चलते आवश्यक निर्णय नहीं लिए जा सकते। उन्होंने कहा है कि लोकसभा के चुनाव सामान्यतः गर्मी में होते हैं, इस दौरान राजस्थान जैसे मरूस्थलीय प्रदेश में पेयजल प्रबंधन को लेकर विभिन्न समस्याएं होती हैं, लेकिन आचार संहिता के कारण जनस्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग न तो स्वीकृत कार्यों के कार्यादेश जारी कर पाता है और न ही नए टेण्डर स्वीकृत हो पाते हैं। साथ ही कार्यादेश जारी नहीं होने से बिजली जैसी अति आवश्यक सेवाओं की उपलब्धता एवं सुधार का कार्य भी प्रभावित होता है। इससे आमजन को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। आचार संहिता के दौरान ऐसे प्रतिबंध नहीं होने चाहिए।
रोजमर्रा के कार्यों पर लागू नहीं हो आचार संहिता
मुख्यमंत्री ने कहा है कि आचार संहिता के दौरान छोटे-छोटे रूटीन तथा आपात एवं राहत कार्यों के लिए भी चुनाव आयोग की अनुमति लेनी पड़ती है, इसमें काफी समय लग जाता है। उन्होंने कहा है कि आचार संहिता को इतने सूक्ष्म स्तर पर लागू नहीं किया जाना चाहिए। इससे निर्वाचित सरकार के लिए रोजमर्रा के कार्य करना मुश्किल हो जाता है।
आवश्यक बैठकों की मनाही से कानून-व्यवस्था की स्थिति होती है प्रभावित
गहलोत ने चुनाव आयोग द्वारा 2 अप्रेल, 2019 को दिए गए निर्देशों को याद दिलाते हुए कहा है कि इन निर्देशों के माध्यम से जिला कलेक्टर्स को मुख्य चुनाव अधिकारी एवं चुनाव आयोग से अनुमत किसी अधिकारी के अलावा अन्य किसी अधिकारी द्वारा आहूत बैठक में भाग लेने से मना कर दिया गया। इसके कारण मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक तथा अतिरिक्त मुख्य सचिव गृह भी चुनाव एवं कानून-व्यवस्था संबंधी बैठक नहीं ले सके। उन्होंने कहा है कि ऐसे प्रतिबंध उचित नहीं हैं। इनसे कानून-व्यवस्था की स्थिति प्रभावित होती है और अपराधियों के हौसले बुलन्द होते हैं।
जहां मतदान हो जाए, वहां मतगणना तक आचार संहिता तार्किक नहीं
मुख्यमंत्री ने पत्र में यह सुझाव भी दिया है कि जिन राज्यों में मतदान सम्पन्न हो जाता है, उनमें मतगणना तक आचार संहिता लगाए रखना तार्किक नहीं है। मतदान के बाद संबंधित राज्यों में मतदाता के प्रभावित होने का कोई प्रश्न नहीं रह जाता, ऐसे में वहां आचार संहिता लागू नहीं रखी जानी चाहिए। उन्होंने आचार संहिता की अवधि को न्यूनतम करते हुए इसे सामान्यतः 45 दिन तक सीमित रखने का सुझाव दिया है।
राजकीय विश्राम स्थलों पर ठहरने के लिए मिलें समान अवसर
गहलोत ने राजकीय विश्राम स्थलों के संबंध में भी 8 जनवरी, 1998 तथा 6 अप्रेल, 2004 के परिपत्रों की व्यवस्था को ही वापस लागू किए जाने की मांग की है, ताकि जेड प्लस एवं उच्चतर श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त व्यक्तियों के साथ ही सभी राजनीतिक पार्टियों के जनप्रतिनिधियों को राजकीय विश्राम स्थलों पर ठहरने के समान अवसर मिल सकें। मुख्यमंत्री ने आशा व्यक्त की है कि चुनाव आयोग इस महत्वपूर्ण संवैधानिक संस्था की साख बनाए रखने तथा लोक कल्याण की दृष्टि से इन सुझावों पर गम्भीरता से विचार करेगा ताकि आदर्श आचार संहिता के अनावश्यक प्रावधानों में समय के अनुरूप यथोचित संशोधन किया जा सके।

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